कोविड-19 इंफेक्शन भारत में बहुत तेजी से फैल रहा है। पिछले कुछ दिनों से लगातार रोजाना 15 हजार से ज्यादा संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं और भारत कोविड-19 से दुनियाभर के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। इसे देखते हुए देश की स्थानीय दवा कंपनियां अब हरकत में आ गई हैं और उन्होंने दवाइयों के जेनरिक और सस्ते वर्जन का प्रस्ताव रखा है ताकि कोविड-19 का संक्रमण फैलने की दर और मृत्यु दर में कमी लायी जा सके।

पिछले सप्ताह ग्लेनमार्क फार्मासूटिकल्स ने फैबीफ्लू दवा लॉन्च की थी। फैबीफ्लू, फैविपिराविर के सॉल्ट से बनी है जो कि एक एंटीवायरल दवा है जिसका शुरुआतसबह में मूल रूप से इस्तेमाल इन्फ्लूएंजा के इलाज में जापान और कई दूसरे देशों में किया जा रहा था। अब कई और दवा कंपनियां उन दवाइयों को लेकर आगे आयी हैं जो ट्रायल्स में सफल और असरदार साबित हुई हैं। नए कोरोना वायरस इंफेक्शन कोविड-19 का अब तक कोई इलाज या निश्चित दवा खोजी नहीं जा सकी है। रेमडेसिवियर जहां वैसे मरीज जिनमें मध्यम श्रेणी की बीमारी हुई है और जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं उन्हें जल्दी रिकवर करने में मदद करती है तो वहीं, फैविपिराविर कोविड-19 की हल्की और मध्यम श्रेणी की बीमारी में बेहतर नतीजे देने में मदद करती है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की मानें तो नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 इंफेक्शन के इलाज के लिए अब तक कोई निश्चित दवा को स्वीकृति नहीं मिली है और ना ही किसी निश्चित दवा का सुझाव दिया गया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता फिलहाल दिन-रात इसी कोशिश में लगे हैं कि किसी निर्णायक दवा या वैक्सीन को विकसित किया जाए जिससे कोविड-19 बीमारी का इलाज किया जा सके जिसने अब तक दुनियाभर के 97 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर दिया है और करीब 5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। (26 जून 2020 के आंकड़ों के मुताबिक)

इसी क्रम में एक भारतीय दवा कंपनी हेटेरो हेल्थकेयर ने कोविफोर दवा लॉन्च की है जिसकी उत्पत्ति रेमडेसिवियर के सॉल्ट से हुई है। भारत में इसकी रिटेल कीमत 5400 रुपये प्रति शीशी है। रेमडेसिवियर को अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने विकसित किया था और हेटेरो और सिपला दोनों ही कंपनियों ने गिलियड साइंसेज से लाइसेंसिंग अग्रीमेंट करके भारत में इस दवा के निर्माण की स्वीकृति ले ली है। इसी के तहत कोविफोर, रेमडेसिवियर के 2 वर्जन्स में से एक है जिसे भारत में लॉन्च किया गया है। सिपला ने रेमडेसिवियर के जिस वर्जन को भारत में लॉन्च किया है उसका नाम सिप्रेमी है।

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हेटेरो के मुताबिक, 'मौजूदा समय में दवा की जरूरत को देखते हुए जितने स्टॉक की जरूरत होगी उसके लिए हम तैयार हैं। हम सरकार और चिकित्सा समुदाय के लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि कोविड-19 के खिलाफ जंग में बेहतर नतीजे हासिल किए जा सकें।'

  1. 2 नई दवाओं के साथ भारत में रेमडेसिवियर की एंट्री
  2. कोविड-19 के इलाज में रेमडेसिवियर की क्षमता
कोविड-19 से निपटने के लिए फैबीफ्लू के बाद अब कोविफोर और सिप्रेमी ने भी भारतीय दवा बाजार में की एंट्री के डॉक्टर

रेमडेसिवियर एक एंटीवायरल दवा है जो आरएनए पॉलिमर्स नाम के एन्जाइम में रुकावट पैदा करके शरीर में वायरस को बढ़ने से रोकती है। अमेरिका बेस्ड दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने रेमडेसिवियर दवा को शुरुआत में इबोला वायरस के इलाज के लिए विकसित किया था। हालांकि यह दवा इबोला के खिलाफ असरदार साबित नहीं हुई लेकिन क्लिनिकल ट्रायल में यह बात सामने आयी है कि रेमडेसिवियर को कोविड-19 के मरीजों के इलाज में कुछ सफलता जरूर मिली है। 

इतना ही नहीं यह एकलौती ऐसी दवा है जिसे अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन FDA ने स्वीकृति दे दी है, उन सभी वयस्कों और बच्चों के इलाज में आपातकालीन इस्तेमाल के लिए जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है या फिर लैब टेस्ट में जिनका कोविड-19 टेस्ट कंफर्म हुआ है। 

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दवा कंपनी हेटेरो के साथ ही भारत की एक और बहुत बड़ी दवा कंपनी सिपला ने भी भारत में रेमडेसिवियर के उत्पादन के लिए लाइसेंस हासिल कर लिया है और भारतीय दवा बाजार में सिप्रेमी नाम से दवा लॉन्च कर दी है। सिपला के सिप्रेमी की कीमत हेटेरो के कोविफोर के बराबर ही है। कोविफोर की कीमत जहां 5400 रुपये प्रति शीशी है वहीं सिप्रेमी की कीमत 5000 रुपये प्रति शीशी। सिपला की सिप्रेमी दवा हालांकि मार्केट में एक शर्त के साथ आयी है कि उसे सिर्फ उन्हीं मरीजों को दिया जाएगा जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।

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हेटेरो और सिपला दोनों ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से स्वीकृति मिलने के बाद अपनी दवा को लॉन्च किया। इन दोनों कंपनियों के अलावा दो और फार्मा कंपनियां हैं जो भारत के बाहर की हैं- जूबिलैंट लाइफ साइंसेज और माइलन- ये भी भारत में रेमडेसिवियर के उत्पादन में जुटी हैं। 

सिपला के आधिकारिक बयान में कहा गया है, 'जोखिम नियंत्रण प्लान के तहत सिपला, दवा के इस्तेमाल से जुड़ी ट्रेनिंग देगी, मरीज की स्वीकृति से जुड़े कागजातों के बारे में जानकारी देगी, पोस्ट-मार्केटिंग निरीक्षण करेगी और साथ में भारतीय मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल का चौथा फेज भी पूरा करेगी।'

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दुनियाभर के कई अस्पतालों में कोविड-19 का इलाज करा रहे मरीजों पर अध्ययन किए गए जिसमें रेमडेसिवियर दवा इलाज में असरदार साबित हुई। लेकिन यह दवा अब तक उन मरीजों को नहीं दी गई जो वेंटिलेटर सपोर्ट पर हों। द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में एक पेपर प्रकाशित हुआ है जिसमें यह बताया गया कि रेमडेसिवियर दवा कोविड-19 के मरीजों का रिकवरी टाइम 15 दिन से घटाकर 11 दिन कर देती है। इसके बाद दवा को मरीजों के लिए इस्तेमाल करने की स्वीकृति दे दी गई।

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उस स्टडी में सैंपल के तौर पर करीब 1 हजार मरीजों को शामिल किया गया था जो अमेरिका, डेनमार्क, ग्रीस, यूके, जर्मनी और कई और देशों से थे। स्टडी के नतीजों में इस बात का भी सुझाव दिया गया कि मरीजों का रिकवरी टाइम कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम को मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच खुद को व्यवस्थित करने का मौका मिल जाएगा।

हालांकि रेमडेसिवियर के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं जिसकी वजह से यह दवा उन लोगों को नहीं दी जा सकती जिन्हें पहले से कोई बीमारी हो जैसे- किडनी से जुड़ी समस्या रीनल इन्पेयरमेंट या फिर गर्भवती और बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाएं। इसके अलावा 12 साल से कम उम्र के बच्चों को भी यह दवा नहीं दी जा सकती।

अलग-अलग देशों में मरीजों के इलाज के लिए अलग-अलग सहायक सहायता (सपोर्टिव केयर) के तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी शामिल है। इस थेरेपी में वैसे मरीज जिन्हें कोविड-19 का इंफेक्शन हुआ था लेकिन वे बीमारी से रिकवर कर चुके हैं उनके ब्लड प्लाज्मा को बीमार मरीज को दिया जाता है। इसके अलावा मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का इस्तेमाल या फिर पहले से मौजूद दवा को कोविड-19 के लिए पुनर्उद्देशित करके इस्तेमाल करना। ये वे दवाइयां हैं जो पहले से मार्केट में मौजूद हैं और उन्हें दूसरी बीमारियों और इंफेक्शन के लिए स्वीकृति मिली हुई है।

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