इस साल जब से कोविड-19 बीमारी अस्तित्व में आयी है दुनियाभर में हर तरफ सिर्फ इसी बारे में चर्चा हो रही है। हो भी क्यों ना आखिर यह कोई सामान्य इंफेक्शन नहीं बल्कि बेहद संक्रामक इंफेक्शन है जो अब तक दुनिया के 50 लाख लोगों को संक्रमित कर 3 लाख से ज्यादा लोगों की जान भी ले चुका है। इस बीमारी के बारे में हम ये तो जानते हैं कि जिन लोगों को पहले से कोई बीमारी है उनके लिए यह संक्रमण बेहद गंभीर साबित हो सकता है। लेकिन बच्चे और युवा, कोविड-19 से कितने सुरक्षित हैं? 

साल 1918 की स्पैनिश फ्लू महामारी 20 से 30 साल के लोगों के लिए सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हुई थी। कोविड-19 महामारी के बारे में अब तक जितने भी आंकड़े मौजूद हैं वे सभी सर्वसम्मति से इस बात को साबित करते हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चे इस इंफेक्शन से गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होते हैं। चीन, इटली और अमेरिका में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के 2 प्रतिशत से भी कम मामले सामने आए हैं। 

हालांकि इसके आगे की तस्वीर जरा धुंधली है। अनुसंधानकर्ता इस बात को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में हैं कि बच्चों को संक्रमण का खतरा कम है या फिर किस श्रेणी तक वे इस बीमारी को फैला सकते हैं। इन सवालों के जवाब मिलने के बाद ही स्कूलों को खोलने के बारे में निर्णय लिया जा सकेगा और दिशा निर्देश जारी किए जा सकेंगे। बच्चों में कोविड-19 को फैलने से रोकने के मकसद से ही पिछले कई महीनों से दुनियाभर के ज्यादातर देशों में स्कूल बंद हैं। हालांकि जर्मनी और डेनमार्क जैसे राष्ट्रों ने अपने यहां स्कूल खोले हैं लेकिन कुछ पाबंदियों और फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ। 

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ऐसे में अगर इन देशों में कोविड-19 के मामले बढ़ते हैं तो हमें पता चल जाएगा बच्चे, हम जितना सोच रहे हैं उससे ज्यादा तेजी से बीमारी को फैलाने में सक्षम हैं। हालांकि ज्यादातर एक्सपर्ट्स यही कह रहे हैं कि अभी स्कूलों को बंद ही रखना बेहतर होगा। इतना ही नहीं, अगर गर्भवती महिला कोविड-19 से संक्रमित है तो कहीं उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण तक भी वायरस न पहुंच जाए इस बात को लेकर भी चिंता का माहौल है। अब तक इस बारे में जितने भी सबूत सामने आए हैं वे ये बताते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे को संक्रमण का खतरा नहीं है क्योंकि संक्रमित मांओं ने जिन बच्चों को जन्म दिया उनमें यह बीमारी नहीं थी। 

हालांकि नवजात बच्चों को संक्रमित मांओं से तब तक दूर रखने की सलाह दी जा रही है जब तक वे पूरी तरह से इस बीमारी से उबर नहीं जातीं। इसके अलावा अब तक कोविड-19 पॉजिटिव मांओं द्वारा प्रीमैच्योर बच्चों को जन्म देने के भी कई मामले सामने आए हैं और एक केस स्टिलबर्थ (गर्भ में बच्चे का मरना) का भी था। कुछ नवजात शिशु हल्के-फुल्के बीमार थे तो वहीं कुछ गंभीर रूप से बीमार जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ी। ऐसे में चूंकि यह सैंपल बहुत छोटा है और सामने आ रहे नतीजे बिलकुल अलग-अलग इसलिए इस बारे में निश्चितता के साथ कुछ भी कहा नहीं जा सकता।

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साथ ही इस बीमारी के शुरू होने और लक्षणों में अंतर देखने को मिल रहा है। फ्रन्टीयर्स इन पीडियाट्रिक्स नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो 5 में से 4 कोविड-19 से संक्रमित बच्चों में शुरुआत में श्वास से संबंधी कोई लक्षण नहीं दिखे और उन्हें किसी और बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पेट में इंफेक्शन से जुड़े लक्षण का पहला संकेत थे। वैसे तो यह एक छोटी सी स्टडी थी लेकिन इसके मुताबिक बच्चों में यह बीमारी डायग्नोज नहीं हो पा रही है क्योंकि उनमें बीमारी के पारंपरिक लक्षण नजर नहीं आते। 

इस आर्टिकल में हम लेटेस्ट स्टडीज के आधार पर यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर बच्चों में यह बीमारी कितनी गंभीर हो सकती है, बच्चे इस बीमारी को लेकर कितने संवेदनशील हैं और उनमें बीमारी की संक्रमणता कितनी अधिक है।

  1. बच्चों के लिए कितना गंभीर है कोविड-19?
  2. बच्चे कितनी आसानी से कोविड-19 से संक्रमित हो सकते हैं?
  3. क्या बच्चे भी कोविड-19 इंफेक्शन फैला सकते हैं?
क्या कोविड-19 इंफेक्शन फैलाने में मौन भूमिका निभा रहे हैं बच्चे? के डॉक्टर

जैसा कि पहले ही ऊपर बताया जा चुका है कि कोविड-19 बच्चों के लिए कम जानलेवा लगता है। हालांकि ऐसे कई मामले भी सामने आए हैं जिसमें बच्चे गंभीर रूप से बीमार हुए हैं और फिर उनकी मौत भी हो गई है। JAMA पीडियाट्रिक्स में इसी महीने प्रकाशित एक स्टडी में 48 बच्चे और 21 साल तक के उन युवाओं को शामिल किया गया जो अमेरिका में आईसीयू में भर्ती हुए। इनमें से 2 बच्चों की मौत हो गई जबकी 18 बच्चों को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ी। स्टडी खत्म होने के बाद भी 2 बच्चे वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। कुल मिलाकर देखें तो यह रिपोर्ट दिखाती है कि बच्चे जब इस आईसीयू में भर्ती हो रहे हैं तो वयस्कों की तुलना में उनके सेहत से जुड़े नतीजे बेहतर साबित हो रहे हैं। 

स्टडी में शामिल 48 में से 40 बच्चों को पहले से कोई बीमारी थी और इनमें से करीब आधे बच्चे ऐसे थे जिन्हें गंभीर बीमारियां थी जैसे- सेरेब्रल पाल्सी या जिन्हें ट्रैक्यिोस्टोमीज दिए गए। यह तथ्य भी इसी बात को दिखाता है कि वयस्कों की ही तरह बच्चों को भी अगर पहले से कोई गंभीर बीमारी है तो उन्हें कोविड-19 का गंभीर इंफेक्शन होने का खतरा अधिक है। 

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पिछले कुछ हफ्तों में कोविड-19 से संक्रमित बच्चों में कावासाकी बीमारी के मामले काफी बढ़े हैं। अभी के लिए डॉक्टर इसे पीडियाट्रिक मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम का नाम दे रहे हैं। बीमारी के लक्षणों की बात करें तो इसमें रैशेज या चकत्ते, पेट में दर्द, बुखार और रक्त प्रवाह से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं। ऐसा लगता है कि यह ओवरऐक्टिव इम्यून रिस्पॉन्स की वजह से होता है और ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा लो होने और शरीर के जरूरी अंगों तक खून और पोषक तत्व सही मात्रा में न पहुंचने के कारण कुछ बच्चे शॉक में चले जाते हैं। यह सिंड्रोम व्यापक इन्फ्लेमेशन रिस्पॉन्स है जो सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं है।

ऐसा लग रहा है कि यह नया सिंड्रोम कावासाकी बीमारी से अलग है क्योंकि यह हृदय को अलग तरीके से प्रभावित करता है और इसकी वजह से बच्चे के शॉक में जाने की आशंका अधिक है। इस सिंड्रोम की वजह से अब तक न्यूयॉर्क में 3 और लंदन में 1 बच्चे की मौत हो चुकी है। एक बार फिर देखें तो यह बेहद दुर्लभ सिंड्रोम है और इसके बारे में बेहद कम आंकड़े उपलब्ध हैं। बीमारी से पीड़ित बच्चे एंटी-इन्फ्लेमेटरी ट्रीटमेंट के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं और डॉक्टर एक्सपेरिमेंट के तौर पर उन्हें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और रेमडेसिवियर भी दे रहे हैं।

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कुल मिलाकर देखें तो यह पूरा मामला गंभीर हो सकता है। एक तरफ जहां बहुसंख्यक बच्चों के गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना नहीं है वहीं बच्चों का एक उपवर्ग है जो गंभीर रूप से बीमार हो रहा है। आखिर क्यों बच्चों के बीमार होने की आशंका कम है तो इस बारे में रिसर्च अभी जारी है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि बच्चों के फेफड़ों में ace2 रिसेप्टर्स की मात्रा कम होती है क्योंकि यह वह रिसेप्टर जिससे वायरस खुद को बांधता है। ऐसा भी हो सकता है कि बच्चे इंफेक्शन के लिए प्रतिक्रिया देते वक्त साइटोकीन्स के कम लेवल का उत्पादन करते हैं। एंटी-इन्फ्लेमेटरी साइटोकीन्स के हाई लेवल की वजह से साइटोकीन स्टॉर्म होता है जो वयस्कों में जानलेवा साबित हो सकता है।

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इस सवाल के जवाब का सबूत परस्पर विरोधी है। 27 अप्रैल को द लैंसेट पत्रिका में चीन के शेन्जेन के आधार पर हुई एक स्टडी प्रकाशित हुई जिसके मुताबिक 10 साल से कम उम्र के बच्चों को भी वयस्कों की ही तरह संक्रमित होने का खतरा है। वहीं, आइसलैंड के अनुसंधानकर्ताओं को बिना लक्षण वाले 10 साल से कम उम्र के 848 बच्चों में कोई इंफेक्शन नहीं मिला। हालांकि 10 साल से अधिक उम्र के बच्चों में 1 प्रतिशत की दर से इंफेक्शन के मामले दिखे। अमेरिकी विश्लेषण के मुताबिक 1 लाख 50 हजार संक्रमित लोगों में से सिर्फ 1.7 प्रतिशत 18 साल से कम उम्र के थे। दक्षिण कोरिया और इटली की स्टडी में भी यही बात सामने आयी है कि बच्चों में इंफेक्शन का लेवल कम होता है।

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कुछ अनुसंधानकर्ता इन आंकड़ों को नहीं मानते। उनका कहना है कि इन्हें वास्तविकता से कम आंका जा रहा है क्योंकि बच्चों में हल्के लक्षण होते हैं इसलिए उनकी टेस्टिंग कम ही की जाती है। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने 4 मई 2020 को एक स्टडी शुरू की जिसमें 2 हजार परिवारों को 6 महीने तक फॉलो किया जाएगा ताकि यह समझा जा सके कि बच्चों में इंफेक्शन होने की संभावना कितनी है और वे किस मात्रा में इस इंफेक्शन को फैला सकते हैं।

कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि बच्चों की नाक और कंठ में मौजूद वायरल आरएनए वयस्कों से मिलता जुलता है। इसका तात्पर्य है अधिक वायरल लोड लेकिन इसका मतलब क्या हुआ इसे लेकर विवाद है। पूरे विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि वायरल लोड इस बात से सहसम्बद्ध है कि वह व्यक्ति कितना संक्रामक या रोग फैलाने वाला है।

यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड में हुए एक विश्लेषण के मुताबिक घर में संक्रमित होने वाले शख्स में बच्चे पहले नहीं होते हैं। सिर्फ 8 प्रतिशत घर ही ऐसे थे जहां बच्चे सबसे पहले संक्रमित हुए। इसी तरह की रिसर्च डच नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ एंड इन्वायरनमेंट ने पायी कि 54 घरों में से एक भी घर ऐसा नहीं था जहां बच्चे के पहले संक्रमित होने का मामला सामने आया हो। ऑस्ट्रेलिया की एक दूसरी रिपोर्ट में बताया गया कि 850 लोग जो 9 कोविड-19 पॉजिटिव बच्चों के संपर्क में आए थे उनमें से सिर्फ 2 ही संक्रमित पाए गए।

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हालांकि इन स्टडीज के सैंपल बेहद छोटे हैं और इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचना सही नहीं होगा। इस दौरान 6 महीने के एक शिशु का उदाहरण दिया गया जो अलक्षणी (asymptomatic) था लेकिन उसमें वायरल का लेवल वयस्कों के बराबर था। इस बारे में होने वाली रियल-टाइम स्टडी सैंपल के पूर्वाग्रहों को दूर करेंगी और हमें इस पूरी स्थिति के बारे में सही जानकारी दे पाएंगी।

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संदर्भ

  1. Science [Internet]. AAAS (American Association for the Advancement of Science); Should schools reopen? Kids’ role in pandemic still a mystery
  2. Nature [Internet]. Springer Nature Limited; How do children spread the coronavirus? The science still isn’t clear
  3. Lara S. Shekerdemian, et al. Characteristics and Outcomes of Children With Coronavirus Disease 2019 (COVID-19) Infection Admitted to US and Canadian Pediatric Intensive Care Units JAMA Pediatr. 2020 May 11. PMID: 32392288
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  5. David Baud, et al. Second-Trimester Miscarriage in a Pregnant Woman With SARS-CoV-2 Infection JAMA April 30, 2020.
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  7. CDC [Internet]. Centers for Disease Control and Prevention; Coronavirus Disease 2019 in Children — United States, February 12–April 2, 2020
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