भारत में ऐसे कई मामले सामने आते हैं जिसमें किसी झोलाछाप डॉक्टर या मेडिकल स्टोर संचालक द्वारा गलत दवा दी गई और इसका खामियाजा व्यक्ति को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा हो। उदाहरण के लिए बीते साल दिसंबर महीने में ही दिल्ली में ऐसी दो बड़ी घटनाएं सामने आई थी। पहली घटना में मेडिकल स्टोर के मालिक द्वारा गलत दवा देने से दो साल की बच्ची की मौत हो गई थी। वहीं दूसरे मामले में एक झोलाछाप डॉक्टर के गलत इंजेक्शन की वजह से एक साल के बच्चे को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। हालांकि, यह तो सिर्फ दो मामले हैं जबकि देशभर में ऐसी ना जाने कितनी घटनाएं होती हैं, जिनका शायद जिक्र भी नहीं होता।

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पेट के दर्द की बजाय दी बाल उगाने की दवा
खैर ये तो बात रही हमारे देश की, लेकिन यहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर, यूरोपीय देश स्पेन में भी ऐसे कुछ मामलों की पुष्टि हुई जहां गलत दवा देकर मासूम बच्चों को समस्या में डाल दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूरा मामला स्पेन के कैंटाब्रिया शहर का है। यहां करीब दो साल पहले, एक या दो नहीं बल्कि 20 बच्चों को पेट संबंधी परेशानी (गैस या दर्द) की दवा देने के बजाय बाल उगाने वाली दवा दे दी गई थी। इसके बाद बच्चों के पूरे शरीर पर लगातार बाल निकलने लगे।

गलत पैकेजिंग की वजह से दी गलत दवा 
रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस गलती को मानते हुए स्पैनिश फार्मास्युटिकल कंपनी फार्मा-क्यूमिका सूर को दोषी ठहराया है। साथ ही स्पष्टीकरण में बताया गया है कि कंपनी द्वारा पैकेजिंग की मिक्स-अप यानी गलत पैकेजिंग की वजह से ऐसा हुआ है। कंपनी की गलत पैकेजिंग के चलते बच्चों को मिनोक्सिडिल दवा दे गई जो कि बाल झड़ने से रोकने के लिए सिर पर लगानी होती है। हालांकि बच्चों को ओमेप्रैजोल ड्रग दी जानी थी जो कि पेट में होने वाली गैस के उपचार में सहायक है।

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गलत दवा से उपचार के परिणामस्वरूप, सभी बच्चे (20 बच्चे) हाइपरट्रीकोसिस बीमारी से पीड़ित हो गए, जिसे "वेयरवुल्फ सिंड्रोम" के रूप में भी जाना जाता है। दरअसल हाइपरट्रीकोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पीड़ित के पूरे शरीर पर जरूरत से ज्यादा या अतिरिक्त बाल निकलने लगते हैं। एक अन्य प्रमुख समाचार संस्था 'एबीसी न्यूज' के अनुसार एक महिला ने बताया कि केवल दो महीने तक मिनोक्सिडिल सिरप लेने से उसके 10 महीने के बच्चे के पूरे शरीर पर (पैरो को छोड़ कर) मोटे तौर पर बाल निकल आए।

अभिभावकों ने उठाया था मामला
दुर्भाग्य से, यह मामला बीते साल जुलाई में सामने आया था, जब बच्चों के अभिभावकों ने सार्वजनिक रूप से इसकी जानकारी दी थी। उस दौरान परिवारों ने एक प्रयोगशाला और ऐसी कई कंपनियों के खिलाफ सिविल एंड क्रिमिनल कंपलेंट दर्ज कराई थी, जिनके द्वारा दवाइयों का आयात और वितरण किया गया था। इसके साथ ही अभिभावकों ने कैंटाब्रिया स्थित दो फार्मेसियों के खिलाफ भी केस दायर किया गया जिन्हें बाद में कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

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बीमारी का नहीं हो सका इलाज
मुकदमों के बावजूद, कथित तौर पर प्रयोगशाला को बंद करने के लिए अधिकारियों को दो महीने का वक्त लगा। साथ ही ऐसी दवाओं को वापस भी लिया गया। हालांकि, इस पर एक पीड़ित बच्चे की मां (अमाइया) ने आपत्ति जताते हुए कहा, 'एक दवा का परीक्षण करने में दो महीने से अधिक समय क्यों लगता है? हमें कुछ नहीं बताया गया है।' घटना के दो साल बाद पीड़ितों के परिवारों ने दावा किया कि उपचार के बावजूद बच्चों के शरीर पर बाल उगते रहते हैं। दुर्भाग्य से यह अब तक साफ नहीं है कि क्या लक्षणों का उपचार किया जा सकता है क्योंकि बीमारी का स्वाभाविक रूप से कोई इलाज नहीं है। हालांकि, अब पीड़ित कॉस्मेटिक इफेक्ट जैसे शेविंग, वैक्सिंग और लेजर के जरिए बालों को हटाने की कोशिश कर रहे हैं।

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