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गर्भाशय ग्रीवा यानी सर्विक्‍स को निकालने के लिए जो सर्जरी की जाती है उसे रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी कहते हैं। इस सर्जरी में गर्भाशय ग्रीवा, योनि के ऊपरी हिस्‍से और आसपास के सहायक ऊतकों को निकाल दिया जाता है। कभी-कभी कैंसर के सर्विक्‍स के आसपास के हिस्‍सों में फैलने के डर से पेल्विस (पेट और जांघों के बीच का हिस्सा) की लिम्‍फ नोड्स को भी निकाल दिया जाता है। रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी को सर्विक्‍सेक्‍टोमी भी कहा जाता है और यह गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी है।

  1. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी क्या है - Cervicectomy kya hai
  2. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी क्यों की जाती है? - Cervicectomy kab ki jati hai?
  3. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी से पहले की तैयारी - Cervicectomy se pehle ki taiyari
  4. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी कैसे की जाती है - Cervicectomy kaise ki jati hai
  5. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी के बाद देखभाल - Cervicectomy ke baad dekhbhal
  6. गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी के बाद जटिलताएं - Cervicectomy me jatiltayein

गर्भाशय ग्रीवा में कैंसर होने या इसकी आशंका होने की स्थिति में गर्भाशय ग्रीवा, इसके आसपास के ऊतकों और लिम्‍फ नोड्स को निकालने के लिए सर्विसेक्‍टोमी सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी के बाद भी महिलाएं मां बन सकती हैं। गर्भाशय ग्रीवा में कैंसर होने पर हिस्‍टेरेक्‍टोमी से दोनों गर्भाशय ग्रीवाओं और गर्भाशय को निकाल दिया जाता है, लेकिन अगर कोई महिला इस स्थि‍ति में मां बनना चाहती है तो उसकी हिस्‍टेरेक्‍टोमी की जगह सर्विसेक्‍टोमी सर्जरी की जाती है। गर्भाशय में ही भ्रूण का विकास होता है इसलिए हिस्‍टेरेक्‍टोमी के बाद कोई भी महिला गर्भधारण नहीं कर सकती है। इसका सुरक्षित विकल्‍प सर्विसेक्‍टोमी है।

गर्भाशय ग्रीवा कैंसर यानी सर्वाइकल कैंसर मनुष्‍य में होने वाला पांचवा और विश्‍व स्‍तर पर महिलाओं में होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है। विकासशील देशों में कैंसर से होने वाली मृत्‍यु में गर्भाशय कैंसर सबसे आम है।

भारत में महिलाओं में होने वाले कैंसर में से लगभग 6 से 29 प्रतिशत महिलाएं गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से प्रभावित होती हैं। दुनियाभर में होने वाले सर्वाइकल कैंसर के कुल मामलों का एक चौथाई हिस्‍सा भारत का ही है। भारत में कैंसर से मरने वाली 30 से 69 साल की 17 प्रतिशत महिलाओं की मौत सर्वाइकल कैंसर से ही होती है। आंकड़ों के अनुसार लगभग 53 में से 1 भारतीय महिला इस कैंसर का शिकार होती है, जबकि विकसित देशों में ये संख्‍या 100 में से एक महिला की है।

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गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी सबसे ज्‍यादा सर्वाइकल कैंसर यानी गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की स्थिति में की जाती है। कैंसर से होने वाली महिलाओं की मृत्‍यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण सर्वाइकल कैंसर है और ये स्‍त्री प्रजनन मार्ग को प्रभावित करने वाला सबसे आम कैंसर भी है।

अधिकतर ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के साथ संक्रमण की वजह से सर्वाइकल कैंसर होता है जो कि सेक्‍स के जरिए फैलता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ट्रस्‍टेड सोर्स के अनुसार 10 में से 9 मामलों में एचपीवी संक्रमण दो साल में अपने आप ही साफ हो जाता है। इसका मतलब है कि एचपीवी संक्रमण के इलाज के लिए रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी की जरूरत नहीं है।

सर्वाइकल कैंसर के इलाज में हिस्‍टेरेक्‍टोमी की जगह कभी-कभी रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी सर्जरी की जाती है। अगर किसी महिला को कम उम्र में ही सर्वाइकल कैंसर हो जाता है और उनका कैंसर शुरुआती चरण में हो (आकार 2 से.मी या इससे कम हो) एवं वह आगे चलकर मां बनने की इच्‍छा रखती हो तो इस स्थिति में विकल्‍प के तौर पर रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी की जाती है।

सबसे पहले डॉक्‍टर चैक करेंगे कि आप जनरल एनेस्‍थीसिया के लिए फिट हैं या नहीं। वो आपसे सर्जरी के बारे में बात करेंगें और कुछ सवाल पूछ सकते हैं।

जनरल एनेस्‍थीसिया का मतलब है कि आप सर्जरी से कुछ घंटे पहले कुछ खा और पी नहीं सकती हैं। आमतौर पर सर्जरी से 6 घंटे पहले कुछ भी खाना बंद कर दिया जाता है। सर्जरी से 2 घंटे पहले पानी पी सकते हैं। डॉक्‍टर या नर्स आपको इस बारे में निर्देश देंगे।

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पेल्विक लिम्‍फ नोड्स को अलग करना

ऑपरेशन थिएटर में मरीज को जनरल एनेस्‍थीसिया दिया जाता है, जिसके बाद ही सर्जरी शुरू होती है। इस सर्जरी में सबसे पहले पेल्विस की लिम्‍फ नोड्स को निकाला जाता है, जिसे पेल्विक लिम्‍फ नोड डिसेक्‍शन कहा जाता है। ये ओपन सर्जरी या लैप्रोस्‍कोपिक तकनीक से की जा सकती है। अब माइक्रोस्‍कोप की मदद से पेल्विक लिम्‍फ नोड्स में कैंसर कोशिकाओं की मौजूदगी की जांच की जाती है। अगर लिम्‍फ नोड्स में कैंसर हो तो सर्जरी रोक दी जाती है, लेकिन अगर इसमें कोई कैंसर न हो तो सर्जरी को इसके दूसरे चरण यानी रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी तक लाया जाता है।

रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी

ये सर्जरी का दूसरा चरण है, जिसमें गर्भाशय ग्रीवा, योनि के ऊपरी हिस्‍से और गर्भाशय ग्रीवा के आसपास के सहायक ऊतकों को निकाला जाता है। गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय अपनी जगह पर ही रहते हैं। अगर सिर्फ गर्भाशय ग्रीवा और योनि का ऊपरी हिस्‍सा ही निकाला जाए तो इस प्रक्रिया को सिंपल ट्रेकिलेक्‍टोमी और अप्‍पर वजाइनेक्‍टोमी कहा जाता है।

रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी करने के कई अलग-अलग तरीके हैं, जैसे कि :

  • वजाइनल रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी में गर्भाशय ग्रीवा और इसके आसपास के सहायक ऊतकों को योनि के जरिए निकाला जाता है।
  • एब्‍डोमिनल (पेट) रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी में गर्भाशय ग्रीवा और आसपास के सहायक ऊतकों को पेट में बड़ा चीरा लगाकर निकाला जाता है।
  • लैप्रोस्‍कोपिक रेडिकल ट्रेकिलेक्‍टोमी में पतली ट्यूब जैसे उपकरण को लाइट और लैंस के साथ इस्‍तेमाल किया जाता है, जिसे लैप्रोस्‍कोप कहते हैं। सर्जन पेट में छोटा-सा चीरा लगाते हैं जिसके बाद लैप्रोस्‍कोप और अन्‍य उपकरणों को उस छोटे चीरे के जरिए पेट के अंदर डालकर गर्भाशय ग्रीवा और आसपास के ऊतकों को निकाला जाता है।

सर्जरी के अंत में सर्जन एक विशेष टांके से चीरे वाली जगह को पूरा बंद न कर के थोड़ा ही बंद करते हैं। अब इसमें जो थोड़ी-सी जगह छोड़ी जाती है वहां से मासिक धर्म के दौरान ब्‍लीडिंग होती है। इस चीरे वाली जगह को बंद रखने के लिए कुछ समय के लिए कैथेटर लगाया जा सकता है।

सर्जरी के दौरान जिन गर्भाशय ग्रीवा के ऊतकों को बाहर निकाला जाता है, उनमें माइक्रोस्‍कोप के जरिए कैंसर कोशिकाओं की जांच की जाती है। अगर इनमें या इनके सिरे के आसपास कैंसर कोशिकाएं दिखाई देती हैं तो सर्जन इस स्थिति में और ऊतकों को निकालने की कोशिश कर सकते हैं। कुछ मामलों में सामान्‍य ऊतकों की संख्‍या पर्याप्‍त होने पर सर्जन को कैंसर को पूरी तरह से निकालने के लिए हिस्‍टेरेक्‍टोमी की जरूरत पड़ सकती है।

  • सर्जरी से पहले आपकी सेहत कैसी थी और आपकी किस तरह की ट्रेकिलेक्‍टोमी सर्जरी हुई है, इस बात पर ही आपकी रिकवरी निर्भर करती है।
  • आमतौर पर लैप्रोस्‍कोपी या रोबोटिक आर्म से हुई ट्रेकिलेक्‍टोमी सर्जरी के बाद रिकवर करना आसान होता है, क्‍योंकि इसमें चीरा ज्‍यादा बड़ा नहीं लगता है। कई महिलाओं को तीन से पांच दिन तक अस्‍पताल में रहना पड़ता है।
  • सर्जरी के कुछ घंटों बाद जब मरीज को थोड़ा-ठीक महसूस होता है तब उसे कुछ खाने और पीने के लिए दिया जाता है। नर्स आपको बताती हैं कि आप कब से खाना और पीना शुरू कर सकती हैं।
  • सर्जरी के पहले हफ्ते में दर्द रहना सामान्‍य बात है। इससे राहत दिलाने में दर्द निवारक (पेन किलर) दवाएं मदद करती हैं।
  • डॉक्‍टर आपको पेन किलर की सही खुराक और कौन-सी देवा लेनी है, इस बारे में बताएंगे।
  • सर्जरी के पहले दिन चलने-फिरने या उठने के बारे में तो बिल्कुल न सोचें। आपको धीरे-धीरे चलना शुरू करना है। दर्द खत्‍म होने और घाव भरने पर अपने आप ही चलने में आपको सहज महसूस होने लगेगा।
  • डॉक्‍टर की सलाह पर कोई एक्‍सरसाइज भी कर सकती हैं। इससे सर्जरी के बाद होने वाली किसी गंभीर समस्‍या जैसे कि पैरों में खून जमने की स्थिति से बचा जा सकता है।
  • सर्जरी के बाद आपको थोड़ा तनाव या दुख महसूस हो सकता है। ऐसा जनरल एनेस्‍थीसिया की वजह से हो सकता है या फिर सर्जरी के बारे में सोचने के कारण हो सकता है।
  • गर्भाशय ग्रीवा निकालने की सर्जरी के बाद कुछ हफ्तों तक किसी भी तरह की कोई शारीरिक गतिविधि जैसे कि एक्‍सरसाइज, सीढियां चढ़ना और ड्राइविंग आदि न करें।
  • सर्जरी के बाद चार से छह हफ्तों तक सेक्‍स न करें।
  • आमतौर पर सर्जरी के बाद 4 से 6 सप्‍ताह तक ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर आराम करने की सलाह दी जाती है।
  • अगर योनि और गर्भाशय के बीच में आर्टिफिशियल ओपनिंग (वो जगह जहां चीरा लगा हो) में कैथेटर लगाया गया है तो इसे सर्जरी के लगभग 3 हफ्ते बाद निकाला जाएगा।
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  • सर्जरी के बाद 6 हफ्ते तक योनि से ब्‍लीडिंग या गुलाबी या भूरे रंग का डिस्‍चार्ज हो सकता है। ये डिस्‍चार्ज सर्जरी के 10 से 14 दिन के बाद बढ़ सकता है। यह रिकवर होने का ही एक हिस्‍सा है। लेकिन अगर ब्‍लीडिंग 6 हफ्ते के बाद भी कम या बंद नहीं हो रही है तो एक बार अपने डॉक्‍टर से इस बारे में बात जरूर कर लें।
  • आमतौर पर सर्जरी के बाद 6 हफ्ते तक सेक्‍स न करने की सलाह दी जाती है। इस समय में योनि के ऊपर बना घाव ठीक होता है। आपको सेक्‍स के लिए तैयार होने में 6 हफ्ते से भी ज्‍यादा का समय लग सकता है।
  • कई महिलाओं को ट्रेकिलेक्‍टोमी या हिस्‍टेरेक्‍टोमी करवाने के बाद यौन संबंध बनाने में कोई दिक्‍कत नहीं आती है और उन्‍हें पहले की तरह ही यौन सुख मिलता है लेकिन सर्वाइकल कैंसर के निदान के बाद कुछ महिलाओं की यौन इच्‍छा में परिवर्तन आ जाता है।
  • इस सर्जरी के बाद कुछ दिनों या हफ्तों तक दर्द, ब्‍लीडिंग, संक्रमण, पेशाब करने में दिक्‍कत, सेक्‍स करने में दर्द, जांघों का सुन्‍न होना और अ‍नियमित मासिक धर्म या पीरियड्स में दर्द जैसी कुछ समस्‍याएं हो सकती हैं।
  • सर्जरी के कुछ महीनों या सालों बाद भी महिलाओं को प्रॉब्‍लम हो सकती है, जैसे कि पेल्विस से लिम्‍फ नोड्स निकालने की वजह से टांगों या पेट में लिम्‍फ फ्लूइड का जमाव महसूस हो सकता है। इसे लिम्‍फेडेमा कहते हैं। इसके अलावा मूत्र असंयमिता यानी पेशाब रोकने में भी दिक्‍कत हो सकती है। खांसने या छींकने पर भी पेशाब निकल सकता है।
  • कुछ महिलाओं को गर्भाशय ग्रीवा निकलवाने की वजह से प्रजनन और गर्भावस्‍था से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। सर्जरी वाली जगह पर गर्भाशय के ऊतक सं‍कुचित हो सकते हैं, जिससे शुक्राणुओं को अंडे तक पहुंचने में दिक्‍कत आ सकती है। जब शुक्राणु अंडे तक नहीं पहुंच पाते हैं तो इस स्थिति में महिला में बांझपन हो सकता है। अगर ट्रेकिलेक्‍टोमी के बाद आप प्रेगनेंट हो भी गईं तो गर्भपात और शिशु के नौ महीने से पहले जन्‍म लेने का खतरा रहता है। इसके अलावा सी-सेक्‍शन डिलीवरी की भी जरूरत पड़ सकती है।
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