निमोनिया एक संक्रमित रोग है जो कि सबसे ज्‍यादा फेफडों की थैलियों को प्रभावित करता है। इस बीमारी में फेफड़ों में अपने आप सूजन बढ़ती रहती है। आमतौर पर निमोनिया बैक्टीरिया या वायरस के कारण होता है लेकिन किसी दवा से भी निमोनिया हो सकता है। कभी-कभी फ्लू के बिगड़ने पर भी निमोनिया हो सकता है। अस्‍पताल में होने वाले संक्रमण के कारण हुई मृत्‍यु में निमोनिया का नाम भी शामिल है।

निमोनिया के लक्षण सामान्‍य से लेकर गंभीर हो सकते हैं एवं इसके लक्षणों में बुखार, खांसी, ठंड लगना, थूक आना, सांस लेने में दिक्कत तथा सीने में दर्द होना शामिल है। ये बीमारी संक्रमित व्‍यक्‍ति से खांसी, छींक और कुछ मामलों में छूने से भी स्‍वस्‍थ व्‍य‍क्‍ति में फैल सकती है। अगर कोई व्‍यक्‍ति निमोनिया से ग्रस्‍त है लेकिन उसमें किसी तरह का कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहा है तो उस व्‍यक्‍ति से भी संक्रमण फैल सकता है।

आयुर्वेदिक उपचार में निमोनिया के लिए जड़ी बूटियां और औषधियां अपने जीवाणुरोधी कार्य के आधार पर चुनी जाती हैं एवं इसमें शरीर से खराब कफ को हटाया जाता है। निमोनिया के इलाज के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों जैसे कि आमलकी, कुटज, भृंगराज, तिल, गुडूची, वासा (अडूसा) का इस्‍तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेदिक औषधियों जैसे कि गोरोचनादि वटी, सुदर्शन चूर्ण और संजीवनी वटी एवं लंघन (व्रत) तथा वमन कर्म (औषधियों से उल्‍टी) निमोनिया के उपचार में फायदेमंद होते हैं।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से निमोनिया - Ayurveda ke anusar Pneumonia
  2. निमोनिया का आयुर्वेदिक इलाज - Pneumonia ka ayurvedic ilaj
  3. निमोनिया की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Pneumonia ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार निमोनिया होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Pneumonia hone par kya kare kya na kare
  5. निमोनिया में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Pneumonia ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. निमोनिया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Pneumonia ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. निमोनिया के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Pneumonia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
निमोनिया की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में निमोनिया को श्वसनक ज्‍वर कहा जाता है। श्वसनक ज्‍वर के प्रमुख लक्षणों में शरीर का तापमान बढ़ने के साथ अकड़न महसूस होना, सीने में दर्द, बलगम वाली खांसी शामिल हैं। इसमें सांस लेने और छोड़ने में दिक्‍कत तथा सांस फूलने की भी समस्‍या होती है।

नाडि (पल्‍स) नरम, भारी और तेज हो जाती है। इसके अन्‍य लक्षणों में माथे पर पसीना आना, थकान, कमजोरी, उन्‍माद और जीभ पर रूखा एवं अजीब महसूस होना शामिल है। पल्‍स के बहुत ज्‍यादा तेज होने और सांस लेने में दिक्‍कत आने पर तुंरत अस्‍पताल में भर्ती होने की सलाह दी जाती है।

(और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)

निमोनिया के साथ बुखार होने की स्थिति को कफ प्रधान के नाम से जाना जाता है। खराब कफ और अमा (विषाक्‍त पदार्थ) शरीर की विभिन्‍न नाडियों में रुकावट पैदा करता है। इसकी वजह से पूरे शरीर में अग्नि फैल जाती है और त्‍वचा पर गर्म महसूस होने लगता है जिससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। निमोनिया के आयुर्वेदिक उपचार में कफ दोष को कम करने पर काम किया जाता है।

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ प्रकृति क्या हैं)

  • लंघन
    • अमा के जमने और ज्‍वर होने पर सबसे पहले लंघन चिकित्‍सा दी जाती है।
    • इसे उपवास के नाम से भी जाना जाता है। इसमें शरीर को अपतर्पण (संतुलित आहार के साथ कैलोरी की मात्रा कम करना) की स्थिति में लाया जाता है। इससे शरीर में हल्‍कापन महसूस होता है।
    • लंघन के दो प्रकार होते हैं – निराहार (पूरी तरह से भोजन का त्‍याग करना) और फलाहार (केवल फलों का सेवन करना)। लंघन चिकित्‍सा में से मरीज़ को निराहार या फलाहार पर रहना है, ये व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर तय किया जाता है।
    • वात प्र‍कृति के लोगों के लिए फलाहार, पित्त और कफ प्रकृति वाले लोगों के लिए निराहार चिकित्‍सा ठीक रहती है।
    • लंघन से अमा का पाचन, पाचन अग्नि में सुधार आता है एवं इंद्रियां तीव्रता से कार्य करने लगती हैं।
    • लंघन चिकित्‍सा से 3 दिन और 3 रात्रि तक चलती है। लंघन के लिए हेमंत और शिशिर ऋतु का समय सबसे बेहतर रहता है।
       
  • वमन कर्म
    • वमन एक जैव शोधन चिकित्‍सा है जो शरीर से विषाक्‍त तत्‍वों, खराब या अत्‍यधिक कफ एवं पित्त दोष को साफ करती है।
    • ये नाडियों और छाती से अमा एवं कफ को भी साफ करती है।
    • ज्‍वर, फेफड़ों से संबंधित समस्‍याओं, अस्‍थमा, खांसी और सांस से जुड़ी परेशानियों से राहत पाने के लिए वमन कर्म उपयोगी है।
    • कफ विकारों के इलाज के लिए पिप्पली और मदनफल जैसी जड़ी बूटियों के साथ गर्म पानी या दूध का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • वमन चिकित्‍सा के बाद मरीज़ को चेहरा, हाथ और पैर धोने एवं हर्बल धुएं को सांस द्वारा अंदर लेने के लिए कहा जाता है। वमन के बाद आराम करना जरूरी है।
    • वमन के सफल होने से बीमारी के सभी लक्षण तो दूर होते ही हैं साथ ही मन और मस्तिष्‍क को शांति भी मिलती है।

निमोनिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • आमलकी
    • इस जड़ी बूटी को इम्‍युनिटी बढ़ाने और एजिंग रोकने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। (और पढ़ें - नेचुरल तरीके से करें एजिंग की समस्या दूर)
    • एनीमिया, अस्‍थमा, डायबिटीज, जुकाम और फेफड़ों से जुड़े रोगों के इलाज में प्रमुख तौर पर आंवला असरकारी है।
    • इसके अलावा मसूड़ों से खून आने, हाइपरलिपिडेमिआ (हाई कोलेस्ट्रॉल), यीस्‍ट इंफेक्‍शन और कैंसर के इलाज में भी आंवला उपयोगी है।
    • निमोनिया के लक्षण फेफड़ों में सूजन से राहत दिलाने में आवंला प्रभावकारी है।
    • आंवला में अनेक जीवाणुरोधी तत्‍व होते हैं जो निमोनिया के संक्रमण को पैदा करने वाले संक्रमित माइक्रोब्‍स को साफ करने में मदद करते हैं।
    • आमलकी में फ्लेवोनॉयड्स और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है जिस वजह से आंवला निमोनिया में फेफड़ों के ऊतकों को होने वाले नुकसान को रोकता है।

      डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट आपके लिए हैं। इनसे रक्त शर्करा की स्तिथि में सुधार होगा। ऑर्डर करें और स्वस्थ जीवन का आनंद लें!
  • कुटज
    • कुटज में संकुचक और जीवाणुरोधी गुण होते हैं।
    • आयुर्वेद में दस्त और निमोनिया जैसे विभिन्‍न रोगों के इलाज में कुटज का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • कुटज सर्वोत्तम जीवाणुरोधी जड़ी बूटी है जो कि इसे निमोनिया के इलाज में असरकारी बनाती है।
       
  • भृंगराज
    • ये जड़ी बूटी पूरे भारत में पाई जाती है।
    • ज्‍वरनाशक, ऊर्जादायक और श‍क्‍तिवर्द्धक गुणों के कारण भृंगराज की पत्तियों और जड़ों का इस्‍तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है।
    • ये जीवाणुरोधी, इम्‍युनिटी बढ़ाने, एंटीऑक्सीडेंट और लिवर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाने का काम करता है।
    • इन गुणों के कारण निमोनिया में होने वाले माइक्रोब्‍स को घटाने में भृंगराज उपयोगी है। इससे संपूर्ण सेहत में भी सुधार आता है।
    • भृंगराज को काढ़े, अर्क, औषधीय तेल या घी के रूप में ले सकते हैं।
       
  • तिल
    • विभिन्‍न रोगों के इलाज के लिए तिल के बीज, तेल और पत्तियों का इस्‍तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है।
    • ये शक्‍तिवर्द्धक और ऊर्जादायक के रूप में कार्य करता है एवं प्रजनन, उत्‍सर्जन, मूत्राशय तथा श्‍वसन प्रणाली से संबंधित रोगों के इलाज में मदद करता है।
    • तिल, संक्रमण फैलाने वाले सूक्ष्‍मजीवों के कार्य को रोक कर निमोनिया के इलाज में मदद करता है।
       
  • गुडूची
    • पारंपरिक और आयुर्वेदिक औषधियों में इस्‍तेमाल होने वाली गुडूची में ज्‍वर-रोधी और इम्‍युनिटी को बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
    • ये सूजन-रोधी और एंटीऑक्‍सीडेंट के तौर पर भी काम करती है जिससे निमोनिया के उपचार में मदद मिलती है।
    • गुडूची को स्‍वरस (जूस) के रूप में ले सकते हैं। शहद या पिप्‍पली चूर्ण के साथ गुडूची के रस की 10 मि.ली खुराक लेने से निमोनिया के बुखार को कम किया जा सकता है।
       
  • वासा
    • परिसंचरण, श्‍वसन और तंत्रिका तंत्र से जुड़े रोगों के इलाज में वासा उपयोगी है।
    • खांसी, कफ विकारों, ब्रोंकाइटिस, फ्लू और अस्‍थमा के लक्षणों से राहत दिलाने में वासा असरकारी है। ये प्रमुख तौर पर श्‍वसन विकारों पर कार्य करती है।
    • ज्‍वर के उपचार के लिए वासा को चीनी और शहद के साथ लेना चाहिए।

निमोनिया के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • गोरोचनादि वटी
    • इस मिश्रण को ताजी अदरक, कालमेघ, बकरी और हिरण के सींग, संसाधित सोना और गलेन से तैयार किया गया है।
    • बुखार, चढ़ने-उतरने वाला बुखार और श्‍वसन विकारों के इलाज में प्रमुख तौर पर इस औषधि की सलाह दी जाती है।
    • गोरोचनादि चटी को दिन में दो बार शहद के साथ लिया जाता है। भोजन से एक घंटे पहले भी इस मिश्रण के सेवन की सलाह दी जाती है। (और पढ़ें - खाना खाने का सही समय)
       
  • संजीवनी वटी
    • यह सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले हर्बल मिश्रणों में से एक है।
    • इसमें विडंग, शुंथि (सोंठ), पिप्‍पली, हरीतकी, विभीतकी, आमलकी, वच, गुडूची, शुद्ध भल्‍लातक और शुद्ध वत्‍सनाभ मौजूद है।
    • संजीवनी वटी दीपन (भूख बढ़ाने), पाचन, वात-अनुलोमन (वात नियंत्रित करने), कृमिघ्‍न (कीड़े नष्‍ट करने), ज्‍वरघ्‍न (बुखार खत्‍म करने) और विषघ्‍न (जहर खत्‍म करने) वाले गुणों से युक्‍त हैं।
    • निमोनिया के इलाज के लिए संजीवनी वटी को शहद के साथ लिया जाता है।
       
  • सुदर्शन चूर्ण
    • ये चूर्ण खासतौर पर बुखार के इलाज में इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इस आयुर्वेदिक मिश्रण को 48 जड़ी बूटियों से बनाया गया है जिसमें प्रमुख जड़ी बूटी चिरायता है।
    • सुदर्शन चूर्ण को ठंडे पानी के साथ लेना सबसे अच्‍छा रहता है। ये बुखार के इलाज में बहुत लाभकारी होता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

क्‍या करें

क्‍या न करें

निमोनिया पैदा करने वाले बैक्‍टीरिया क्‍लेबसिएला निमोनिया पर आमलकी के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में पाया गया कि रोज़ आमलकी का सेवन करने से फेफड़ों के ऊतकों में बैक्‍टीरिया बनना कम होने के साथ-साथ फैगोसाइटिक क्रिया (शरीर को बाहरी जीवाणुओं से बचाने वाली) में बढ़ोत्तरी होती है।

कुटज के फूल के अर्क में जीवाणु-रोधी गुण होते हैं एवं एक स्‍टडी में क्‍लेबसिएला निमोनिया के विकास को रोकने में इस जड़ी बूटी को असरकारी पाया गया।

(और पढ़ें - निमोनिया में क्या करे)

एक अन्‍य अध्‍ययन के अनुसार भृंगराज के अर्क के साथ पॉली हर्बल (एक से ज्‍यादा जड़ी बूटियां) मिश्रण क्‍लेबसिएला निमोनिया को रोकने में असरकारी है। इसलिए इसका इस्‍तेमाल निमोनिया के इलाज में किया जा सकता है।

चिकित्‍सक से परामर्श के बाद ही आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहिए। गलत खुराक लेने की वजह से आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों के कुछ हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं इसलिए इनके इस्‍तेमाल के दौरान कुछ विशेष सावधानियां बरतना जरूरी है। आयुर्वेदिक औषधियों और उपचार के कुछ दुष्‍प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • वात प्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए लंघन और वमन चिकित्‍सा हानिकारक साबित हो सकती है।
  • बच्‍चों, वृद्धों और गर्भवती महिलाओं को वमन की सलाह नहीं दी जाती है। कमजोरी, घाव, ह्रदय समस्‍या और हाइपरटेंशन की समस्‍या में भी इससे बचना चाहिए। मजबूत पाचन अग्नि, थकान, कब्‍ज या जठरांत्र विकार की स्थिति में भी वमन नहीं लेना चाहिए।
  • पित्त दोष वाले व्‍यक्‍ति को आमलकी के कारण दस्‍त हो सकते हैं।
  • भृंगराज की वजह से सर्दी लग सकती है इसलिए इसका इस्‍तेमाल सावधानी के साथ करना चाहिए।
  • तिल की अधिक खुराक की वजह से गर्भपात, मोटापा और पित्त बढ़ने की शिकायत हो सकती है।

(और पढ़ें - निमोनिया में क्या खाना चाहिए)

दुनियाभर में गंभीर रूप से बीमार होने और मृत्‍यु के सबसे प्रमुख कारणों में निमोनिया भी शामिल है। इसमें फेफड़ों में संक्रमण के साथ सूजन होने लगती है। आयुर्वेद में निमोनिया से संबंधित कफ प्रधान ज्‍वर और अमा के जमाव का इलाज जड़ी बूटियों, हर्बल मिश्रणों और आवश्‍यक चिकित्‍सा से किया जाता है। जीवाणु-रोधी और बुखार-रोधी गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियां निमोनिया के आयुर्वेदिक उपचार को प्रभावी बनाती हैं।

औषधियों और उपचार के साथ खानपान में कुछ बदलाव लाने और पर्याप्‍त आराम करने से भी मरीज़ जल्‍दी ठीक हो सकता है।

(और पढ़ें - निमोनिया के घरेलू उपाय)

Dr Bhawna

Dr Bhawna

आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

Dr. Saumya Gupta

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Burke A. Pneumonia Essentials 2010. Cunha Jones & Bartlett Publishers, 22-Oct-2010 - Medical
  2. National Health Portal [Internet] India; Pneumonia.
  3. American Lung Association [Internet]: Chicago, Illinois. Learn About Pneumonia.
  4. A. Saini,S. Sharma,S. Chhibber. Protective efficacy of Emblica officinalis against Klebsiella pneumoniae induced pneumonia in mice. Indian J Med Res 128, August 2008, pp 188-193.
  5. Sahrawat. Antibacterial activity of Holarrhena pubescens (Kurchi) Flower against Gram negative Bacterial strains. Vegetos- An International Journal of Plant Research. 31. 80. 10.5958/2229-4473.2018.00011.3. 2018
  6. C. S. Barik et al. The efficacy of herbs against Klebsiella pneumoniae with special reference to polyherbal formulation: An update . Pharma Science Monitor 5(3) Supl-1, Jul-Sep 2014.
  7. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences [Internet]: National Institute of Indian Medical Heritage; Āmasya Vrana (Anna-Drava Śula Evam Parinama Śula).
  8. Dr. Praveenkumar H Bagali,Dr. A.S.Prashanth. Clinical Application Of Langhana. Paryeshana International Journal of Ayurvedic Research VOLUME-II ISSUE –V May-June-2018 .
  9. Nishant Singh. Panchakarma: Cleaning and Rejuvenation Therapy for Curing the Diseases . Journal of Pharmacognosy and Phytochemistry Vol. 1 No. 2 2012
  10. Upadhyay AK et al. Tinospora cordifolia (Willd.) Hook. f. and Thoms. (Guduchi) - validation of the Ayurvedic pharmacology through experimental and clinical studies. Int J Ayurveda Res. 2010 Apr-Jun;1(2):112-21. PMID: 20814526
ऐप पर पढ़ें