बवासीर को हेमोर्रोइड्स के नाम से भी जाना जाता है। इसमें निचले मलद्वार और गुदा की रक्‍त वाहिकाओं में सूजन हो जाती है। बवासीर के कारण मल निष्‍कासन के समय अत्‍यधिक दबाव पड़ना है। रक्‍त वाहिकाओं में सूजन के कारण मलद्वार और गुदा की त्‍वचा पर दिक्‍कत होने लगती है और इस वजह से गुदा मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार तीन दोषों (वात, पित्त और कफ) के एकसाथ असंतुलित होने पर बवासीर की बीमारी होती है।

आयुर्वेद में जट्यादि तेल से अभ्‍यंग (तेल मालिश), बस्‍ती (एनिमा) और विभिन्‍न आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से मात्रा बस्‍ती (तेल एनिमा) और सिट्ज बाथ (टब में बैठ कर स्नान करने की एक विधि) आदि का विवरण है। बवासीर को नियंत्रित करने के लिए जड़ी-बूटियों और औषधि की सलाह भी दी जाती है।

बवासीर को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक द्वारा मंजिष्‍ठा (भारतीय मजीठ), हरीद्रा (हल्‍दी), हरीतकी (हरड़), कुटज (कुर्ची) और सूरन (उष्णकटिबंधीय कंद की फसल) आदि जड़ी-बूटियों के प्रयोग की सलाह दी जाती है। बवासीर की औषधियों में कांकायन वटी और त्रिफला गुग्‍गल टैबलेट शामिल है।

(और पढ़ें - बवासीर में क्या करना चाहिए)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बवासीर - Ayurveda ke anusar Bavasir
  2. बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Bawaseer ka ramban ayurvedic ilaj
  3. बवासीर की आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां - Bavasir ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार बवासीर होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Bavasir me kya kare kya na kare
  5. बवासीर में आयुर्वेदिक औषधियां कितनी लाभदायक हैं? - Bavasir ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. बवासीर की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Bavasir ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. बवासीर के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Bavasir ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में बवासीर को अर्श कहा जाता है। अर्श का अर्थ होता है सुईं की तरह चुभने वाला दर्द। ये एक पाचन विकार है जोकि मलद्वार में मल के जमने की वजह से होता है। कब्‍ज और गर्भावस्‍था के कारण भी व्‍यक्‍ति बवासीर का शिकार हो सकता है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में देखभाल कैसे करें)

आयुर्वेद के अनुसार अर्श पैदा करने वाले त्रिदोष में असंतुलन कई कारणों की वजह से हो सकता है। अनियमित या अनुचति आहार और विहार (जीवनशैली) के साथ-साथ अनुवांशिक कारकों की वजह से भी त्रिदोष में असंतुलन होकर बवासीर की समस्‍या हो सकती है। आयुर्वेद में अर्श को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। (और पढ़ें - स्‍वस्‍थ जीवनशैली के उपाय)

  • सहज (अनुवांशिक)
  • जतोटरा (जन्‍म के बाद होना)

इसके अलावा बवासीर को इस तरह भी वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • शुष्‍कर्ष (खून ना आने वाला बवासीर):
    शुष्‍कर्ष में मल निष्‍कासन के समय खून नहीं आता है और ये वात और कफ बढ़ने के कारण होता है।
  • रक्‍तर्ष (खून आने वाला बवासीर):
    रत्‍कर्ष के हेमोर्रोइड में मल में खून आता है और ये पित्त और कफ (अशुद्ध रक्‍त) के बढ़ने के कारण होता है।

हर व्‍यक्‍ति की स्थिति अलग हो सकती है जैसे कि किसी को मल में खून आता है तो किसी के पाइल की आकृति बदल जाती है। हर व्‍यक्‍ति में बवासीर की अवस्‍था उसके दोष की प्रधानता पर निर्भर करती है। 

(और पढ़ें - खूनी बवासीर का इलाज)

  • अभ्‍यंग
    • इस आयुर्वेदिक चिकित्‍सा में सादे तेल या औषधीय तेल से शरीर के किसी हिस्‍से या पूरे शरीर का इलाज किया जाता है।
    • आयुर्वेद में अभ्‍यंग से बवासीर को नियंत्रित करने के लिए जात्यादि तेल का इस्‍तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
    • ये ऊर्जा प्रदान करता है और बवासीर के कारण होने वाले अपक्षयी (किसी अंग या ऊत्तकों के कार्य को नुकसान) बदलावों को रोकता है।
    • वात दोष के कारण हुए बवासीर के इलाज में इसका प्रयोग अधिक किया जाता है जिसमें तेल मालिश के साथ पसीने के जरिए वात को संतुलित किया जाता है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हर्बल सस्‍पेंशन को गुदा या मल द्वार के जरिए डाला जाता है। अपामार्ग क्षार बस्ती को बवासीर के इलाज में प्रभावी पाया गया है क्‍योंकि अपामार्ग का कषाय प्रभाव ब्‍लीडिंग को रोक कर घाव का इलाज करने में मदद करता है।
    • मात्रा बस्‍ती में जात्यादि तेल, कसिसादी तेल या अपामार्ग क्षार के इस्‍तेमाल की सलाह दी जाती है। मात्रा बस्‍ती में प्रतिदिन औषधीय तेल की छोटी या सुरक्षित खुराक दी जाती है।
    • ये हर उम्र के व्‍यक्‍ति के लिए सुरक्षित और प्रभावी है लेकिन इसकी खुराक व्‍यक्‍ति की आयु और बीमारी की अवस्‍था पर निर्भर करती है। बस्‍ती चिकित्‍सा से मलद्वार में ब्‍लीडिंग, मल आने के बीच अंतर और गुदा में दर्द को कम किया जाता है।
  • सिट्ज बाथ
    • इसमें व्‍यक्‍ति को गर्म और कम गहराई वाले पानी में बैठाया जाता है। इससे दर्द, खुजली और अन्‍य गुदा से संबंधित लक्षणों से राहत मिलती है।
    • ये गुदा और जननांग के हिस्‍से को साफ करता है और आराम देता है और इस हिस्‍से में रक्‍त प्रवाह को बढ़ाता है।  (और पढ़ें - रक्त प्रवाह बढ़ाने के उपाय)
    • आमतौर पर सिट्ज बाथ द्वारा बवासीर के कारण हो रहे दर्द और खुजली से राहत दिलाई जाती है और अगर व्‍यक्‍ति बाथ लेने में असमर्थ है तो उसके गुदा और जननांग के हिस्‍से की सफाई की जाती है।
    • सिट्ज बाथ में 10 से 20 मिनट का समय लगता है और एक दिन में इसे दो से तीन बार करना चाहिए।
    • कभी-कभी बाथ के बाद व्‍यक्‍ति को चक्‍कर और सिर घूमने जैसा महसूस हो सकता है इसलिए बाथ के बाद किसी की मदद से या रेलिंग को पकड़कर बाहर निकलें। जननांग और गुदा क्षेत्र को तौलिए से अच्‍छी तरह से साफ करना चाहिए और उसे रगड़ें नहीं। हाथों को अच्‍छी तरह से धोएं और डॉक्‍टर द्वारा बताई गई कोई दवा लगाएं। (और पढ़ें - योनि को साफ कैसे रखें)
  • शार सूत्र (औषधीय धागा)
    • इस प्रक्रिया में सूजन वाले हेमोर्रोइड ऊत्तकों को शारसूत्र के साथ नीचे बांधा जाता है और बांधे हुए सूत्र को मलद्वार के अंदर रखा जाता है। इसे एक सप्‍ताह के अंदर अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में लोकल, मेरुदण्‍डीय (स्‍पाइनल) या सामान्‍य एनेस्‍थीसिया की जरूरत पड़ सकती है। (और पढ़ें - एनेस्थीसिया क्या है)
    • देखभाल के तौर पर इस प्रक्रिया को कर सकते हैं या फिर बाहरी और अंदरूनी बवासीर में इस चिकित्‍सा का प्रयोग कर सकते हैं।
    • कुछ प्रकार की बवासीर में ये उपचार सही नहीं रहता है और ह्रदय, पेट, सिर से संबंधित रोगों और डायबिटीज में ये चिकित्‍सा उचित नहीं मानी जाती है। (और पढ़ें - डायबिटीज डाइट चार्ट)

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  • शस्‍त्र कर्म (सर्जरी)
    • पाइल मास को उच्‍छेदन द्वारा हटाया जाता है। इस प्रक्रिया में अस्‍पताल में भर्ती होना पड़ता है और सामान्‍य, मेरुदण्‍डीय या लोकल एनस्‍थीसिया के अंतर्गत सर्जरी की जाती है।
    • ये बड़े, ब्‍लीडिंग बवासीर और इंटेरो-एक्सटर्नल पाइल्‍स (गुदा के आसपास की त्वचा के नीचे हेमोर्रोइड) में काफी प्रभावकारी होती है।
    • बवासीर के कुछ प्रकार और ह्रदय, पेट, सिर से संबंधित रोगों और डायबिटीज में ये चिकित्‍सा उचित नहीं मानी जाती है। (और पढ़ें - हृदय रोग का इलाज)

सर्जरी के बाद जत्‍यादि घृत से रोज ड्रेसिंग करना, त्रिफला गुग्‍गल टैबलेट, गंधक रसायन और षटसकार चूर्ण लेने की सलाह दी जाती है। इस चिकित्‍सा के बाद 15 दिनों के लिए मात्रा बस्‍ती और घाव ठीक होने तक दिन में दो बार सिट्ज बाथ लेने की सलाह दी जाती है। 

(और पढ़ें - पेट संबंधित रोग का इलाज)

बवासीर के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • मंजिष्‍ठा
    • रक्‍त को साफ करने के लिए मंजिष्‍ठा सबसे बेहतर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। बवासीर, दस्‍त, पेचिश, कैंसर, एमेनोरिया (एक या अधिक मासिक धर्म में रक्‍त स्राव की कमी) और किडनी स्‍टोन जैसे कई रोगों में मंजिष्‍ठा उपयोगी है। (और पढ़ें - किडनी स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज
    • मंजिष्‍ठा के काढ़े, पाउडर, पेस्‍ट या घी में ट्यूमर रोधी और त्‍वचा के ऊत्तकों को सिकोड़ने वाले गुण मौजूद होते हैं। इसके अलावा ये घाव को भरने में भी मदद करती है। घाव भरने वाले गुणों के कारण ही इसका इस्‍तेमाल बवासीर के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि
    • इस जड़ी-बूटी में एटी-ऑक्‍सीडेंट गुण पाए जाते हैं और ये खून के थक्‍कों, ब्‍लडप्रेशर और रक्‍त वाहिकाओं के संकुचन को नियंत्रित करती है। (और पढ़ें - लो ब्लड प्रेशर उपाय
    • अत्‍यधिक वात दोष और अधिक ठंड लगने वाले व्‍यक्‍ति मंजिष्‍ठा का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।
  • हरीद्रा
    • हल्‍दी के रिज़होम्‍स (एक ऐसे पौधे का तना जिससे जड़ें बाहर तक आती हों) के कई लाभ और गुण होते हैं जिनमें बैक्‍टीरियलरोधी, कृमिनाशक, घाव को भरने वाले, वायुनाशक और उत्तेजक टॉनिक शामिल हैं।
    • गर्भवती महिलाएं, अत्‍यधिक पित्त वाले व्‍यक्‍ति और गंभीर पीलिया या हेपेटाइटिस के रोगी इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करें।
    • हल्‍दी को काढ़े या दूध में मिलाकर ले सकते हैं। चंदन के साथ हल्‍दी का पेस्‍ट बनाकर भी इसे त्‍वचा या घाव पर लगा सकते हैं। (और पढ़ें - दूध पीने का सही समय)
  • हरीतकी
    • हरीतकी के फलों का प्रयोग कई रोगों जैसे पाचन तंत्र के विकारों में किया जाता है।
    • हरीतकी ऊर्जा देने वाली, शरीर के ऊत्तकों को संकुचित करने वाली, रेचक (पेट साफ करने वाली) और कृमिनाशक होती है।
    • दस्‍त और कब्‍ज के इलाज में पाचन में सुधार करने के लिए इसकी कम खुराक दी जा सकती है। इसके अलावा ये खूनी और गैर-रक्‍तस्राव वाले बवासीर के इलाज में भी मदद करती है।
    • गर्भवती महिलाएं, पानी की कमी या थकान जैसी समस्‍याओं से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति हरीतकी का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें। (और पढ़ें - थकान दूर करने के उपाय)
  • कुटजा
    • आयुर्वेदिक चिकित्‍सक खूनी बवासीर के इलाज में कुटज की छाल के चूर्ण से बने बारीक पाउडर को इस्‍तेमाल करने की सलाह देते हैं। इसकी विशिष्‍ट खुराक लेने पर ये जीवाणुरोधी और अमीबा को नष्‍ट करने का कार्य करती है।
    • कुटज तुरंत रक्‍तस्राव को बंद करती है लेकिन इससे दोबारा खून आने और खूनी बवासीर को पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं है। इस जड़ी-बूटी से लंबे समय तक उपचार करना जरूरी है।
    • गर्भवती महिलाएं इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करें। (और पढ़ें - गर्भवती महिला के लिए भोजन)
  • सूरन
    • सुरन पौधे के कंद (जड़ का भाग) में सूजनरोधी, दर्द-निवारक, भूख बढ़ाने वाले, कृमिनाशक, हेमोर्रोइडरोधी और ऊर्जा देने वाले गुण होते हैं। सुरन को जिमीकंद भी कहते हैं।
    • निचले मलद्वार और गुदा में फोडे के इलाज और हेमोर्रोइड्स से राहत पाने में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • असंतुलित हुए वात और कफ दोष के कारण पैदा हुई परिस्थितियों को ठीक करने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।

बवासीर के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • कांकायण वटी
    • हरीतकी, पिप्‍पली, शुंथि (सूखी अदरक) आदि जैसी कई चीजों से इसे तैयार किया जाता है।
    • कांकायण वटी की अमूमन सभी सामग्रियों में दर्द-निवारक गुण होते हैं तथा ये भूख बढ़ाने में मदद करती है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के उपाय
    • इसमें हरीतकी जैसी जड़ी-बूटी होती है जो कि कब्‍ज का इलाज करती है और इस तरह पाइल मास (सूजे हुए ऊत्तकों का जमाव) के दबाव में कमी आती है।
    • आयुर्वेद के अनुसार नसों में जमाव को ही बवासीर कहा जाता है और ये औषधि इस जमाव को घुला देती है।
  • त्रिफला गुग्‍गल टैबलेट
    • इसमें आमलकी (आंवला), हरीतकी, विभीतकी, पिप्‍पली और गुग्गुल होती है।
    • पाचन तंत्र को बेहतर करने के साथ ये हल्‍के रेचक (मल निष्‍कासन) के तौर पर कार्य भी करती है। घाव ठीक करने के लिए भी त्रिफला को जाना जाता है। (और पढ़ें - पाचन तंत्र मजबूत करने के उपाय
    • गुग्‍गल में सूजनरोधी और संक्रमणरोधी गुण होते हैं।
    • इसलिए त्रिफला गुग्‍गल खूनी बवासीर के इलाज की सबसे बेहतरीन दवा है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और अन्‍य कई कारकों के आधार पर इलाज अलग हो सकता है। अपनी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के उचित इलाज और औषधि के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से जरूर सलाह लें। 

(और पढ़ें - बवासीर में क्या क्या खाना चाहिए

क्‍या करें

  • विशेष प्रकार के साठी चावल, गेहूं और जौ को अपने आहार में शामिल करें।
  • कुलथी और हरे चने जैसी दालों को अपने नियमित आहार में शामिल करें।
  • करेले, लौकी, पालक, हरी सब्जियां, पपीता, सेब, अंगूर, ककड़ी, आमलकी (भारतीय आंवला) और आम जैसी फल-सब्जियां खाएं।
  • बवासीर को नियंत्रित करने के लिए छाछ, शुगर कैंडी, गाय का दूध, बकरी का दूध, क्‍लैरिफाइड मक्‍खन (बटरफैट से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालकर तैयार मक्‍खन), खट्टा सिरका और काला नमक खाएं। (और पढ़ें - गाय का दूध या बकरी का दूध कौन है अच्छा)
  • आयुर्वेदिक इलाज के साथ नियमित व्‍यायाम भी करें।

(और पढ़ें - व्यायाम करने का सही समय)

क्‍या ना करें

  • काले चने और छोले आदि ना खाएं।
  • मसाले, अचार, तिल और आलू और अन्‍य कंद ना खाएं।
  • कई घंटों तक लगातार बैठना नुकसानदायक है।
  • अधिक ना खाएं और खाने के बीच में पर्याप्‍त समय का अंतराल रखें।
  • दिन में सोने से बचें और मल त्यागने की इच्‍छा को दबाएं नहीं। (और पढ़ें - क्या दिन में सोना चाहिए)
  • मल निष्‍कासन के समय ज्‍यादा जोर ना दें।

(और पढ़ें - आयुर्वेद में स्‍वस्‍थ जीवनशैली के उपाय)

खूनी बवासीर पर अपामार्ग क्षार बस्‍ती और त्रिफला गुग्‍गल के प्रभाव को जांचने के लिए चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया था जिसमें 129 प्रतिभागियों ने हिस्‍सा लिया। इस अध्‍ययन में पता चला कि इन दोनों के मिश्रण से सफलतापूर्वक बवासीर का इलाज किया जा सकता है।

सप्‍ताह में एक बार अपामार्ग क्षार बस्‍ती की 2 ग्राम मात्रा को 10 मि.ली पानी में मात्रा बस्‍ती के रूप में दिया गया। इसके साथ ही दो सप्‍ताह तक दिन में दो बार त्रिफला गुग्‍गल 500 मि.ग्रा खाने को दी गई। इस मिश्रण से खूनी बवासीर को नियंत्रित कर लिया गया और हीमोग्‍लोबिन का स्‍तर भी बढ़ता हुआ पाया गया।

(और पढ़ें - हीमोग्लोबिन कैसे बढ़ाएं)

अन्‍य चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में 40 प्रतिभागियों पर कांकायण वटी के प्रभाव की जांच की गई। चूंकि, इसमें रेचक गुण होते हैं इसलिए ये कब्‍ज से राहत दिलाती है और नसों में जमाव को कम करती है जिससे बवासीर के मरीज़ को राहत मिल पाती है।

सभी प्रतिभागियों को तीन सप्‍ताह तक वटी की 2 ग्राम मात्रा दी गई। परिणामस्‍वरूप, 37 प्रतिभागियों में बवासीर पूरी तरह से ठीक हो चुकी थी और बाकी तीन प्रतिभागियों की अवस्‍था में सुधार देखा गया।

(और पढ़े - गर्भावस्था में बवासीर के उपचार)

अलग-अलग पृ‍ष्‍ठभूमि के 28 प्रतिभागियों पर बवासीर के इलाज में कसीसादी तेल और जट्यादि तेल के प्रभाव को जानने के लिए चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया। इस अध्‍ययन में पाया गया बस्‍ती के अंतर्गत ये दो तेल खूनी बवासीर, गुदा में दर्द, उभरे हुए हिस्‍से और कब्‍ज से राहत दिलाने में मददगार हैं। हालांकि, सिर्फ कसीसादि तेल ही हेमोर्रोइड के ढेर को घटाने में असरकारी था।

अन्‍य अध्‍ययन के मुताबिक दिन में दो बार 4 ग्राम कुटज त्रिदोष को संतुलित करने और शुरुआती इलाज की प्रक्रिया को कम करती है। इसके अलावा ये ब्‍लीडिंग को रोकने में भी असरकारी पाई गई है। आयुर्वेदिक औषधियों से बवासीर के संपूर्ण इलाज के लिए लंबे समय तक चिकित्‍सा लेने की जरूरत होती है। 

(और पढ़ें - ब्लीडिंग कैसे रोके)

अधिकतर जड़ी-बूटियों और औषधियों का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है। हालांकि, मंजिष्‍ठा जैसी जड़ी-बूटियों के इस्‍तेमाल के दौरान आवश्‍यक सावधानी बरतने की जरूरत है। व्‍यक्‍ति का इलाज निर्धारित करने के लिए दोष की प्रबलता की जांच की जानी चाहिए।

इसके अलावा कुटज का स्‍वाद कसैला होता है और इस वजह से इससे जी मिचलाना और उल्‍टी जैसे कुछ हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। किसी भी तरह के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए आयु‍र्वेदिक चिकित्‍सक की सलाह एवं निर्देशन पर ही औषधि, जड़ी-बूटी और उपचार लेना चाहिए।

(और पढ़ें - उल्टी को रोकने के घरेलू उपाय)

जीवनशैली और आहार जैसे कुछ मुख्‍य कारणों की वजह से बवासीर की समस्‍या हो सकती है। इसके अतिरिक्‍त कारणों में गर्भावस्‍था और कब्‍ज शामिल है। आयुर्वेद में कहा गया है कि बवासीर तीनों दोषों के एक साथ खराब होने के कारण होता है।

दोष को संतुलित और प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की सलाह पर चिकित्‍सा प्रक्रिया, जड़ी-बूटी और औषधि और जीवनशैली एवं आहार में बदलाव करना चाहिए। इससे बवासीर के मूल कारण को जड़ से मिटाया जा सकता है और व्‍यक्‍ति को रोग से राहत मिल सकती है।

(और पढ़ें - संतुलित आहार किसे कहते हैं)

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संदर्भ

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