गर्दन में दर्द को आयुर्वेद में मान्‍य शूल कहा जाता है। इसमें गर्दन और पीठ के सर्वाइकल हिस्‍से में दर्द महसूस होता है। गलत पोस्‍चर में बैठने या आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस (गठिया का एक रूप है जो रीढ़ को प्रभावित करता है), सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस (रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोग), रूमेटाइड आर्थराइटिस (जोड़ों में दर्द और सूजन) और स्लिप डिस्क (रीढ़ की हड्डी से शुरु होकर दर्द शरीर के कई हिस्‍सों में फैल जाता है) जैसी किसी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।

गलत पोस्‍चर जैसे कि झुक कर खड़े होने, कंधों को झुका कर रखने, मोटे तकिए पर सोने या लंबे समय तक मोबाइल पर गर्दन को झुका कर देखने से गर्दन पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से उसमें दर्द और अकड़न पैदा होती है। उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां कमजोर होने की वजह से भी गर्दन में दर्द हो सकता है।

(और पढ़ें - मांसपेशियों की कमजोरी दूर करने के उपाय)

गर्दन में दर्द के लिए आयुर्वेद में विभिन्‍न उपचारों का उल्‍लेख किया गया है जिसमें स्‍नेहन (तेल मालिश), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), मान्‍य बस्‍ती (बाहरी बस्‍ती का एक प्रकार), बस्‍ती कर्म (एनिमा थेरेपी), नास्‍य कर्म (नाक से औषधि डालने की विधि) और लेप (औषधियों को प्रभावित हिस्‍से पर लगाना) शामिल है।

(और पढ़ें - मालिश करने की विधि)

गर्दन में दर्द को नियंत्रित करने के लिए जिन आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है वो गोक्षुर, बाला, अश्वगंधा और रसोनम (लहसुन) हैं। इसके अलावा गर्दन के दर्द से छुटकारा पाने के लिए खाने और लगाने की औषधि में महारास्नादि कषाय, लाक्षा गुग्‍गुल, प्रसारिणि तेल, योगराज गुग्‍गुल, दशमूल क्‍वाथ और त्रिफला रसायन का नाम शामिल है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से गर्दन में दर्द - Ayurveda ke anusar gardan me dard
  2. गर्दन में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज - Gardan me dard ka ayurvedic upchar
  3. गर्दन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Gardan dard ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार गर्दन में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar gardan dard hone par kya kare kya na kare
  5. गर्दन के दर्द की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Neck pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. गर्दन में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Gardan dard ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. गर्दन में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Gardan me dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
गर्दन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में विभिन्‍न स्थितियों का वर्णन किया गया है जिनके कारण गर्दन में दर्द हो सकता है। इसमें निम्‍न स्थितियां शामिल हैं:

  • आर्थराइटिस: आर्थराइटिस यानी गठिया का सबसे सामान्‍य प्रकार ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस है। इन दोनों ही स्थितियों के गर्दन के जोड़ों को प्रभावित करने पर गर्दन में दर्द हो सकता है।
    • ऑस्‍टियोआर्थराइटिस: ये जोड़ों को प्रभावित करने वाला डीजेनरेटिव रोग (जो लगातार बढ़ता रहता है) है। ये बीमारी बढ़ती उम्र में ज्‍यादा देखी जाती है और इसका कारण वात दोष का बढ़ना है। ये बीमारी पूरे जोड़ और उसके आसपास की मांसपेशियों, हड्डियों, लिगामेंट के साथ जोड़ की ऊपरी परत को प्रभावित कर सकती है। 
      वात के बढ़ने के कई कारण हैं लेकिन इसकी प्रमुख वजह बढ़ती उम्र (एजिंग) है। गर्दन में दर्द होने का सबसे सामान्‍य कारण है शरीर का गलत पोस्‍चर में होना जैसे कि लंबे समय तक झुक कर फोन का इस्‍तेमाल करना आदि। गलत पोस्‍चर की वजह से गर्दन की मांसपेशियों और सर्वाइकल स्‍पाइन पर अत्‍यधिक दबाव पड़ता है जिससे दर्द उत्‍पन्‍न होता है। अगर इसका इलाज न किया जाए तो इसकी वजह से जोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है।
    • रूमेटाइड आर्थराइटिस: ये एक ऑटो-इम्‍यून रोग (इसमें इम्‍यून सिस्‍टम अपने ही शरीर की स्‍वस्‍थ कोशिकाओं और ऊतकों को क्षति पहुंचाने लगता है) बीमारी है जिसमें जोड़ों में वात बढ़ने और अमा (विषाक्‍त पदार्थों) का जमाव होने लगता है। इसकी वजह से जोड़ों में सूजन हो जाती है।
  • आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस: ये एक गंभीर समस्‍या है जिसकी वजह से पीठ के साथ-साथ गर्दन के हिस्‍से में भी सूजन और दर्द उत्‍पन्‍न होता है। ये बीमारी वात दोष में असंतुलन की वजह से होती है और हड्डियों एवं अस्थि-मज्‍जा (बोन मैरो) को प्रभावित करती है।
  • मान्‍य स्‍तंभ: इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस भी कहा जाता है। ये गर्दन में दर्द होने के सबसे सामान्‍य कारणों में से एक है। ये बीमारी वात और कफ दोष के खराब होने के कारण होती है। इसकी वजह से प्रमुख तौर पर गर्दन की मांसपेशियों में अकड़न रहती है जिसके कारण गर्दन को हिलाने पर दर्द महसूस होता है।
  • स्लिप डिस्‍क: स्‍पाइन की हड्डियों के बीच कार्टिलेजिनस डिस्‍क होती है जो कि किसी भी तरह का झटका लगने पर स्‍पाइन को सुरक्षित रखने का काम करती है। डिस्‍क के खिसकने या टूटने पर तेज दर्द उठता है और आसपास की नसों में सुईंया सी चुभने लगती हैं। ऐसा हड्डियों को क्षति पहुंचने, भारी वजन उठाने या चोट लगने पर होता है। आमतौर पर ऐसा पीठ के निचले हिस्‍से में होता है लेकिन ये सर्वाइकल हिस्‍से को भी प्रभावित कर सकता है और गर्दन में दर्द का कारण बन सकता है।
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  • स्‍नेहन
    • इसमें शरीर की कुछ विशेष बिंदुओं पर औषधियों से की गई मालिश से दबाव बनाया जाता है जिससे दर्द से राहत पाने में मदद मिलती है।
    • स्‍नेहन शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों में पोषक तत्‍वों को पहुंचाकर कोशिकाओं को पोषण प्रदान करता है।
    • ये ऊतकों से अमा को बाहर निकालकर उसे जठरांत्र मार्ग में लाने में मदद करता है। इसके बाद अमा को पेट से आसानी से निकाल दिया जाता है।
    • अमा के हटने से थकान और तनाव से राहत मिलती है एवं तंत्रिका तथा इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूती मिलती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ)
    • स्‍नेहन एंटीबॉडी (शरीर को बीमारियों से सुरक्षित रखने वाला प्रोटीन यौगिक) के उत्‍पादन को बढ़ाता है जिससे शरीर को सूक्ष्मजीवों से बेहतर तरीके से लड़ने में मदद मिलती है। इस प्रकार शरीर का बीमारियों से बचाव होता है।
    • ये शरीर को मजबूती देता है और दर्द से राहत प्रदान करता है।
    • आमतौर पर स्‍नेहन के लिए जड़ी बूटियों को तेल में मिलाया जाता है। गर्दन में दर्द के लिए मुर्गी के अंडे को काले नमक और घी में मिलाकर स्‍नेहन किया जाता है।
    • गर्दन के दर्द को नियंत्रित करने में आक के पत्ते के साथ घी को लपेटकर भी इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन में विभिन्‍न प्रक्रियाओं से शरीर पर पसीना लाया जाता है। ये शरीर में अकड़न, भारीपन और ठंड से राहत पाने में मदद करता है। इस वजह से स्‍नेहन गर्दन के दर्द के इलाज में उपयोगी है।
    • विभिन्‍न प्रक्रियाओं जैसे कि भाप, गर्म कंबल और गर्म वस्‍तु से स्‍वेदन किया जा सकता है। (और पढ़ें - भाप लेने का तरीका)
    • स्‍वेदन कर्म का ही एक प्रकार रुक्ष स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) है। अमा के जमने के कारण हुए गर्दन के दर्द के इलाज में रुक्ष स्‍वेदन की सलाह दी जाती है। रुक्ष स्‍वेदन में पसीना लाने के लिए सिर्फ शुष्क प्रक्रियाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है, जैसे कि गर्म धातु की वस्‍तु या गर्म हाथों या गर्म कपड़ों को प्रभावित हिस्‍से पर लगाना।
    • ये शरीर की नाडियों को चौड़ा कर अमा को पाचन मार्ग में आने में मदद करता है। इसके बाद इस अमा को रेचन या औषधियों से उल्‍टी के जरिए शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
    • स्‍वेदन अमा को साफ कर शरीर के ऊतकों की सफाई करता है और मांसपेशियों में आए तनाव को दूर करता है। इस प्रकार दर्द से मुक्‍ति मिलती है।
       
  • मान्‍य बस्‍ती
    • इस प्रक्रिया में काले चने के पेस्‍ट से बने गोलाकार फ्रेम को गर्दन के पीछे आटे के पेस्‍ट की मदद से चिपका दिया जाता है।
    • इससे गर्दन के पीछे वाले हिस्‍से में जगह बन जाती है जिसमें गर्म औषीधीय तेल डाले जाते हैं। तेल को बाहर गिरने से बचाने के लिए फ्रेम को प्रभावित हिस्‍से से मजबूती से जोड़ा जाता है। इससे तेल लंबे समय तक प्रभावित हिस्‍से पर रहता है।
    • आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस और आर्थराइटिस जैसी स्थितियों के कारण उत्‍पन्‍न हुए गर्दन में दर्द को नियंत्रित करने में मान्‍य बस्‍ती उपयोगी है।
       
  • बस्‍ती कर्म
    • यह एक आयुर्वेदिक एनिमा थेरेपी है जिसमें औषधीय तेलों या जड़ी बूटियों से बने काढ़े को विशेष उपकरण के जरिए बड़ी आंत में डाला जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • आमतौर पर आंतों को साफ करने के लिए दशमूल, वच, रसना और कुठ से हर्बल काढ़ा तैयार किया जाता है।
    • गठिया, आर्थराइटिस, रूमेटिज्‍म, मूत्रजनांगी से संबंधी बीमारियां, न्‍यूरोमस्‍कुर रोग (नसों और मांसपेशियों को प्रभावित करने वाले) और जठरांत्र से संबंधित विकारों के कारण होने वाले दर्द को बस्‍ती से नियंत्रित किया जा सकता है। ये बीमारियां अमूमन वात दोष के कारण उत्‍पन्‍न होती हैं।
       
  • नास्‍य कर्म
    • नाक को मस्तिष्‍क का द्वार माना जाता है। नास्‍य कर्म में जड़ी बूटियों से तैयार तरल को नाक की गुहा में डाला जाता है।
    • सिर, गर्दन, गले और आंखों एवं कान जैसी इंद्रियों से संबंधित बीमारियों के इलाज में नास्‍य कर्म का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • ये सिर, गर्दन और कंधों को प्रभावित करने वाले वात एवं कफ विकारों को नियंत्रित करने में असरकारी है। इन विकारों की वजह से प्रभावित हिस्‍से में दर्द, अकड़न, सुन्‍नपन और भारीपन महसूस होता है।
    • सामान्‍य तौर पर गर्दन में दर्द के लिए नास्‍य कर्म में पंचमूल या दशमूल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • नास्‍य के लिए तेल तैयार करने में मुस्‍ता, बिल्‍व (बेल) और बाला का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • लेप
    • इसमें औषधीय जड़ी बूटियों में घी या अन्‍य घोल को मिलाकर पेस्‍ट तैयार किया जाता है।
    • लेप के लिए जड़ी बूटियों का चयन मरीज की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
    • तेज दर्द से राहत दिलाने के लिए दशमूल और दूध से लेप तैयार किया जाता है।
    • रुमेटिज्‍म, सूजन और दर्द के इलाज में लेप बनाने के लिए घी का इस्‍तेमाल बहुत किया जाता है।

गर्दन में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • गोक्षुर
    • गोक्षुर श्‍वसन, तंत्रिका, प्रजनन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है एवं इसके अनेक औषधीय लाभ हैं।
    • वात दोष के खराब होने के कारण नसों में दर्द, नपुंसकता, पथरी, साइटिका या एडिमा होने पर गोक्षुरा को काढ़े या पाउडर के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। (और पढ़ें - एडिमा की आयुर्वेदिक दवा)
    • ये शरीर से अमा को साफ करती है और खराब दोष को संतुलित करती है। इस प्रकार गर्दन में दर्द से राहत मिलती है।
       
  • रसोनम
    • विभिन्‍न प्रकार के दर्द को नियंत्रित करने में रसोनम का औषधीय तेल, अर्क (जड़ी बूटी के पत्तों को पानी में भिगोकर तैयार हुआ रस), पाउडर या जूस उपयोगी है।
    • ये नसों और हड्डियों को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है और जमे हुए विषाक्‍त पदार्थ को साफ करता है एवं गठिया के कारण होने वाली ऐंठन, दर्द और सूजन से राहत प्रदान करता है। इस प्रकार विभिन्‍न समस्‍याओं के कारण हुए गर्दन में दर्द को ठीक करने में रसोनम (लहसुन) का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • अश्‍वगंधा
    • ये तंत्रिका, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, सूजन-रोधी और इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूती देने वाले गुण होते हैं।
    • अगर कमजोरी, सूजन, मांसपेशियों को क्षति, रूमेटिज्‍म, सूजन और कमजोर इम्‍युनिटी की वजह से गर्दन में दर्द हो रहा है तो अश्‍वगंधा उसका इलाज करने में असरकारी है।
    • इसे काढ़े, घी, पाउडर या तेल के रूप में ले सकते हैं।
       
  • बाला
    • बाला तंत्रिका, श्‍वसन, परिसंचरण, प्रजनन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, ऊर्जादायक, सूजन-रोधी और उत्तेजक गुण होते हैं।
    • बाला, शरीर को मजबूती प्रदान करने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक है।
    • ये दीर्घकालिक रूमेटिज्‍म (लंबे समय से चल रही रूमेटिज्‍म की बीमारी), मांसपेशियों में कमजोरी, ऊतकों में लंबे समय से हो रही है सूजन, सुन्‍नपन, नसों में दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन को नियंत्रित करने में बाला मददगार है।
    • इसका इस्‍तेमाल काढ़े, पाउडर और औषधीय तेल के रूप में किया जा सकता है।

गर्दन में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • प्रसारिणि तेल
    • इस तेल में प्रमुख सामग्री प्रसारिणि है। इसमें जटामांसी, रसना, तिल का तेल, पिप्पली और चित्रक भी मौजूद है।
    • प्रसारिण तेल के रसायनिक तत्‍व जैसे कि क्‍यूनोंस,ग्लाइकोसाइड, एमिनो एसिड और विटामिन सी दर्द निवारक और इम्‍यून को मजबूती देने वाले गुण रखते हैं।
    • इस मिश्रण को लगाने से विभिन्‍न समस्‍याओं से राहत मिलती है। ये शरीर की रक्षात्मक प्रतिक्रिया को बढ़ाती है और ऑस्टियोआर्थराइटिस एवं रूमेटाइड आर्थराइटिस के कारण हुए दर्द का इलाज करती है।
    • ये लकवा को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है।
       
  • लाक्षा गुग्‍गुल
    • लाक्षा गुग्‍गुल को लाक्षा (लाख), नागबाला, अर्जुन, अश्‍वगंधा, अस्थिसंहारक और गुग्गुल मौजूद है।
    • यह बढ़ती उम्र में हड्डियों में होने वाली डिजेनरेटिव स्थितियों के कारण जोड़ों में दर्द के इलाज में उपयोगी है।
    • बीमारी के इलाज के परिणाम को बेहतर करने और लक्षणों को ठीक तरह से नियंत्रित करने के लिए स्‍नेहन और स्‍वेदन में इस मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • महारास्नादि कषाय
    • इसमें अदरक, बाला, अरंडी, वच, पुनर्नवा, गुडूची, अमलतास, गोक्षुर, अश्‍वगंधा, अतिविष और बैंगन मौजूद है।
    • ये आर्थराइटिस, दर्द, सुन्‍नपन और साइटिका जैसी स्थितियों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। इस प्रकार गर्दन के दर्द के इलाज में भी इसका इस्‍तेमाल असरकारी हो सकता है।
       
  • दशमूल क्‍वाथ
    • दशमूल क्‍वाथ एक काढ़ा है जिसे श्‍योनाक, पृश्निपर्णी, अग्निमांथ, कंटकारी, बिल्‍व (बेल), गंभारी, बृहती और गोक्षुर जैसी 10 जड़ों से तैयार किया गया है।
    • इसका प्रमुख तौर पर इस्‍तेमाल वात विकारों के इलाज में किया जाता है। ये वात के असंतुलन के कारण पैदा हुए गर्दन में दर्द से राहत दिलाने में असरकारी है।
    • दशमूल क्‍वाथ से भगन्दर और अस्‍थमा जैसे अन्‍य वात रोगों को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
       
  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल में मौजूद कुछ सामग्रियों में हींग, जीरा, सरसों के बीज, कलौंजी, आमलकी, घी, शुद्ध गुग्‍गुल, हरीतकी, कुटकी, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) और चांदी, लोहा, सीसा, अभ्रक और टिन को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई भस्‍म शामिल है।
    • आमतौर पर इसका इस्‍तेमाल सरिवाद्यासव के साथ किया जाता है। यह गर्दन में दर्द का कारण बनने वाले दो प्रमुख समस्‍याओं रूमेटिज्‍म और आर्थराइटिस में दर्द एवं सूजन को नियंत्रित करने में असरकारी है।
    • ये दीर्घकालिक संक्रमण, भगंदर, तंत्रिका विकारों और गलसुआ रोग के इलाज में भी उपयोगी है।
       
  • त्रिफला रसायन
    • इसे तीन फलों – हरीतकी, विभीतकी और आमलकी के पाउडर से तैयार किया गया है जिसमें घी, शहद और कुछ अन्‍य जड़ी बूटियां भी मिलाई गई हैं।
    • आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार त्रिफला रसायन एक त्रिदोषक औषधि है जो कि त्रिदोष को संतुलित करती है।
    • त्रिफला रसायन स्‍वास्‍थ्‍य, इम्‍युनिटी और आयु को बढ़ाती है। ये सूजन और गठिया से संबंधित स्थितियों का इलाज करने में असरकारी है। (और पढ़ें - गठिया के घरेलू उपाय)
    • ये टीबी, निमोनिया, मोटापे, थकान और अपच को भी नियंत्रित करने में उपयोगी है।
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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • अनाज में कोद्रव और चावल में सामक एवं मटर, चना, अरहड़ और मुद्गा (मूंग दाल) जैसी दालें न खाएं।
  • पत्तेदार सब्जियों, भिंडी, फूलगोभी, खजूर, करेला और कमल ककड़ी का सेवन न करें।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि भूख, प्‍यास मल और पेशाब को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
  • जामुन और सुपारी भी न खाएं।
  • समय पर सोएं और रात को जागने से बचें। (और पढ़ें - सोने का सही तरीका)
  • बहुत ज्‍यादा शारीरिक गतिविधियां और व्रत रखना सही नहीं है।
  • गर्दन को झुकाने या ऊपर उठाने की गलती न करें इससे दर्द बढ़ सकता है।
  • गर्दन पर ज्‍यादा दबाव न डालें और फोन का भी अत्‍यधिक इस्‍तेमाल न करें, फोन के इस्‍तेमाल के कारण लोग अकसर गलत पोस्‍चर में रहते हैं जिससे गर्दन में दर्द पैदा होता है।

गर्दन के दर्द में मान्‍य बस्‍ती के प्रभाव की जांच के लिए एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में 30 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। इसमें प्रतिभागियों की गर्दन के पीछे काले चने के पेस्‍ट से बने गोलाकार फ्रेम को आटे के पेस्‍ट की मदद से चिपका कर लगाया गया। इस फ्रेम में गर्म नारायण तेल डाला गया।

एक चिपचिपे पदार्थ के जरिए फ्रेम को गर्दन से मजबूती से चिपकाया गया था। तेल को 30 मिनट के लिए प्रभावित हिस्‍से पर रखा गया। अध्‍ययन में पाया गया कि प्रतिभागियों को 90 फीसदी दर्द से राहत मिली। इसमें गर्दन में दर्द होने के कारण का कोई महत्‍व नहीं था।

(और पढ़ें - गर्दन में दर्द के घरेलू उपाय)

वैसे तो आयुर्वेदिक औषधियों का इस्‍तेमाल सुरक्षित होता है लेकिन फिर भी व्‍यक्‍ति की प्रकृति, प्रभावित दोष और बीमारी की स्थिति के आधार पर आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों बौर औषधियों के उपयोग के दौरान कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर,

  • हाइपरएसिडिटी (पेट में अत्यधिक एसिड बनना) और रक्‍त में अत्‍यधिक ऊष्‍णता (गर्मी) बढ़ने की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यति में लहसुन का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • पानी की कमी होने पर गोक्षुर नहीं देना चाहिए।
  • किसी भी तरह के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए कोई भी दवा लेने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श जरूर करना चाहिए।
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आजकल घंटों बैठे कर काम करने, गलत पोस्‍चर और व्‍यायाम की कमी के कारण गर्दन में दर्द की समस्‍या आम हो गई है। कभी-कभी किसी बीमारी की वजह से भी गर्दन में दर्द हो सकता है। इसलिए गर्दन के दर्द को नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं है।

सही देखभाल और उपचार से गर्दन के दर्द को ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक दर्द के कारण का पता लगाकर आपके लिए उचित उपचार को निर्धारित करेंगें।

(और पढ़ें - गर्दन के दर्द के लिए एक्सरसाइज)

Dr Bhawna

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संदर्भ

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