वैज्ञानिकों ने जानवरों में जीन एडिटिंग (संपादन) के जरिए फेफड़ों की एक घातक बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला है, जो एक हानिकारक बदलावा होता है। इसमें जन्म के बाद कुछ घंटों के भीतर ही मृत्यु तक हो जाती है। प्रूफ ऑफ कांसेप्ट स्टडी नाम से यह शोध अध्ययन साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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इसमें यह दिखाया गया है कि जन्म से पहले गर्भाश्य के भीतर भ्रूण में जीन एडिटिंग करने से फेफड़े की इस घातक बीमारी का इलाज किया जा सकता है। अमेरिका में फिलाडेल्फिया के शिशु अस्पताल के एक शोधकर्ता ने कहा कि विकासशील भ्रूण में कई तरह के जन्मजात गुण होते हैं, इसलिए इस पर चिकित्सीय जीन एडिटिंग से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

संभव है इलाज
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, गर्भावस्था के मध्य या अंतिम समय में लेकिन बच्चे के जन्म से पहले जीन एडिटिंग के जरिए बीमारी में कमी या उपचार की योग्यता और हमेशा के लिए रोग के निदान की शुरुआत काफी आकर्षक दिखती है। यह विशेष रूप से फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी के लिए सही है, जिनका कार्य जन्म के समय काफी महत्वपूर्ण होता है।’ शिशु अस्पतालों में भर्ती होने वाले सभी बच्चों में से करीब 22 प्रतिशत को सांस की बीमारियों के चलते भर्ती करवाया जाता है और जन्मजात कारणों से होने वाली सांस की समस्याओं के इलाज तथा इनकी गहराई से समझ होने के बावजूद यह कई बार घातक साबित होती है। चूंकि बाहरी वातावरण से सीधे संपर्क में फेफड़े एक अवरोधी अंग होते हैं, इसलिए दोषपूर्ण जीन को सही करने की दिशा में टारगेटेड डिलीवरी एक बेहतर इलाज लगता है।

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इस पर अमेरिका के पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने कहा, ‘हम देखना चाहते थे कि किस तरह हम जीन एडिटिंग मशीन को मुंह से सांस नली के अंदर से फेफड़ों की कोशिकाओं को लक्ष बनाते हैं और कि यह तरीका वाकई में कारगर साबित होता है या नहीं।’ शोधकर्ताओं ने दिखाया कि भ्रूण के विकास के दौरान चूहों के गर्भ में जीन एडिटिंग से फेफड़ों में लक्षित परिवर्तन हुए। उन्होंने चूहे के भ्रूण में बच्चे के जन्म से चार दिन पहले जीन एडिटिंग की, जो मनुष्य में गर्भावस्था के तीसरे महीने के बराबर है।

फेफड़ों को बचाती हैं यह कोशिकाएं
सभी कोशिकाओं में से एल्वोलर एपेथेलिअल नामक कोशिकाओं और फेफड़ों की सांस नली की परत पर पाई जाने वाली कोशिकाओं में सबसे ज्यादा एडिटिंग हुई है। 2018 में, एक शोध समूह ने एल्वोलर एपेथेलिअल प्रजनक (एईपी) नामक कोशिकाओं के वंश का पता लगाया था, जो इनके एक बड़े समूह से जुड़े हुए थे। इन्हें एल्वोलर टाइप 2 कोशिकाएं कहा गया। यह कोशिकाएं पल्मोनरी सर्फेक्टेंट को बनाती हैं, जो फेफड़ों में सतही तनाव को कम करती हैं औऱ इससे हर बार सांस लेने पर फेफड़ों को नुकसान होने से सुरक्षा मिलती है। एईपी फेफड़ों में एक तरह की स्थिर कोशिकाएं हैं, जो धीरे-धीरे बनती हैं, लेकिन यह चोट लगने के बाद एल्विओली के अस्तर को दोबारा से बनाने और गैस विनिमय को बहाल करने के लिए तेजी से बढ़ती हैं।

दूसरे प्रयोग में शोधकर्ताओं ने सर्फेक्टेंट प्रोटीन सी (SFTPC) की कमी वाले एक चूहे में जन्म से पहले फेफड़ों की बीमारी की तीव्रता को कम करने के लिए जीन एडिटिंग का इस्तेमाल किया। यह मनुष्यों के SFTPC जीन में पाई जाने वाली एक सामान्य बीमारी की तरह है।

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