एचआईवी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्‍यून सिस्‍टम) को प्रभावित करता है जिससे शरीर पर कई संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है और इस वजह से मरीज़ को ठीक होने में अधिक समय लगता है। आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की लगभग 23 मिलियन आबादी ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) संक्रमण से ग्रस्‍त है। इनमें से लगभग 8.1 मिलियन लोग इम्‍यून डेफिशियंसी सिंड्रोम (एड्स) से पीडित हैं।

आयुर्वेद के अनुसार एड्स एक "प्रोग्रेसिव वेस्टिंग रोग" (धीरे-धीरे शरीर को खत्म करने वाला रोग) है जो कि शरीर में आठवे धातु ओजस को खत्म करने लगता है। ओजस धातु को शरीर के सभी धातुओं का मूलतत्‍व कहा जाता है क्‍योंकि यह सभी धातुओं के उत्‍कृष्‍ट हिस्‍से से बना है और ये प्रतिरक्षा प्रणाली को सहयोग प्रदान करता है। ओजस धातु के क्षतिग्रस्‍त और कम होने पर शरीर की प्रतिरक्षा संरचना कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में शरीर पर कई संक्रमणों और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 

एलोपैथी के अनुसार, संक्रमण से लड़ने के दौरान सफेद रक्‍त कोशिकाओं का एक प्रकार सीडी4 पैथोजन को ढूंढकर उसे नष्‍ट कर देता है। हालांकि, एचआईवी इंफेक्‍शन रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचाकर सीडी4 कोशिकाओं की संख्‍या घटा देता है। इन सीडी4 कोशिकाओं के 200 से कम होने पर (स्‍वस्‍थ शरीर में इसकी संख्‍या 500 या इससे ज्‍यादा होती है) व्‍यक्‍ति को एड्स की बीमारी घेर लेती है।

आयुर्वेद में आमलकी (भारतीय करौंदा), अश्‍वगंधा (भारतीय जिनसेंग) गुडुची और शतावरी जैसी कुछ जड़ी-बूटियों को प्रतिरोधक क्षमता बेहतर करने और प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए असरकारी बताया गया है। एड्स को नियंत्रित करने के लिए इन जड़ी-बूटियों का प्रयोग कर सकते हैं। संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर करने में च्‍यवनप्राश अवलेह भी प्रभावकारी पाया गया है।

आयुर्वेद सदवृत्त (अच्छी जीवनशैली) को बढ़ावा देता है जिसमें तनाव से दूर रहना, साफ-सफाई का ध्‍यान रखना, अपने साथी के प्रति ईमानदार रहना और एचआईवी को नियंत्रित रखने के लिए अध्‍यात्मिक जीवन व्‍यतीत करना शामिल है। खून चढ़ाने से पहले रक्‍त के नमूने चैक करवाएं, संक्रमित सुईं का इस्‍तेमाल और असुरक्षित यौन संबंध बनाने से बचें और गर्भावस्‍था के दौरान एचआईवी टेस्‍ट जरूर करवाएं ताकि इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके। 

(और पढ़ें - एचआईवी एड्स होने पर क्या करे)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से एचआईवी-एड्स - Ayurvedic view of HIV-AIDS in Hindi
  2. एचआईवी-एड्स का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Ayurvedic treatment for HIV-AIDS patients in Hindi
  3. एचआईवी-एड्स की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Ayurvedic herbs and medicines for HIV-AIDS in Hindi
  4. आयुर्वेद के अनुसार एचआईवी-एड्स होने पर क्या करें और क्या न करें - Dietary and lifestyle changes for HIV-AIDS patients as per ayurveda in Hindi
  5. एचआईवी-एड्स में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - How effective are ayurvedic medicines and treatments for HIV-AIDS in Hindi
  6. एचआईवी-एड्स की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Side effects and risks of ayurvedic medicine and treatments for HIV-AIDS in Hindi
  7. एचआईवी-एड्स के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Takeaway in Hindi
एचआईवी/एड्स की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार, ओजस के कम होने पर शरीर में शुक्र धातु द्वारा एक गाढ़ा पदार्थ बनने लगता है जोकि एड्स का कारण बनता है। तनाव, दुर्बलता, नकारात्‍मक विचार, सुधबुध खोना और सामंजस्‍य बैठाने में परेशानी जैसे कई कारणों की वजह से ओजस धातु में कमी आ सकती है।

एचआईवी संक्रमण से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को चकत्ते (रैशेज़), बुखार, गले की खराश, लिम्फाडेनोपैथी और असहज या असंतुष्‍ट महसूस (मलाईस) होता है।

कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के कारण एचआईवी या एड्स से ग्रस्‍त मरीज़ों में हर्पीस जोस्‍टर, ओरल थ्रश और सेबोरिक केरेटोसिस जैसे संक्रमणों का खतरा भी बढ़ सकता है। प्रभावित व्‍यक्‍ति को टीबी, न्‍यूरोपैथी, कपोसी सार्कोमा और साइटोमेगालोवायरस रेटिनाइटिस की बीमारी भी हो सकती है।

द्रव्‍य (औषधीय) रसायन, आचार (व्यवहार) रसायन और आहार (भोजन) रसायन जैसे विभिन्‍न प्रकार के रसायन प्रतिरक्षा प्रणाली को पहुंचे नुकसान को ठीक करने में मदद करते हैं। 

(और पढ़ें - प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कैसे करे)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
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  • रक्‍तमोक्षण (दूषित रक्‍त को शरीर से निकालने की विधि)
    • रक्‍तमोक्षण की प्रक्रिया में शरीर के विशिष्‍ट भाग का चयन कर दूषित खून को शरीर से बाहर निकाला जाता है। शरीर के किस भाग से दूषित खून को बाहर निकालना है ये क्षतिग्रस्‍त हुए दोष पर निर्भर करता है। (और पढ़ें - खून साफ करने के उपाय)
    • रक्‍तमोक्षण का प्रयोग तुरंत परिणाम पाने की स्थिति‍ में किया जाता है। पित्त संबंधित विकार जैसे कि सिरदर्द, प्लीहा को प्रभावित करने वाली अवस्‍था, त्‍वचा, लिवर, गठिया और हाई बीपी जैसे रोगों के इलाज में तुरंत परिणाम पाने के लिए रक्‍तमोक्षण प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है। (और पढ़ें - बीपी कम करने के उपाय)
    • रक्‍तमोक्षण के लिए जोंक चिकित्‍सा का प्रयोग कर एचआईवी और एड्स के मरीज़ों की सेहत में सुधार आ सकता है। जोंक चिकित्‍सा ना केवल शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालती है बल्कि सीडी4 कोशिकाओं की संख्‍या को भी बढ़ाती है। इस तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्‍तर बेहतर हो पाता है। (और पढ़ें - बॉडी को डिटॉक्स करने का तरीका)
  • रसायन (ऊर्जा देना)
    • रसायन प्रक्रिया के इलाज में ऊर्जा देने वाली जड़ी-बूटियों और टॉनिक से व्‍यक्‍ति की सेहत में सुधार लाया जाता है। एचआईवी/एड्स के इलाज में आचार रसायन, आहार रसायन और द्रव्‍य रसायन का प्रयोग किया जाता है।
    • आचार रसायन में एचआईवी/एड्स से ग्रस्‍त मरीज़ के जीवन जीने के तरीके को बेहतर करना शामिल है। ये व्‍यक्‍ति को अध्‍यात्मिक और मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ होने में मदद करता है। इसके अलावा ये तनाव और बेचैनी से भी राहत दिलाता है। तनाव का स्‍तर बढ़ने के कारण हुई बीमारियों को इससे रोका जा सकता है। (और पढ़ें - बेचैनी कैसे दूर करे)
    • द्रव्‍य रसायन प्रक्रिया में प्रतिरक्षा प्रणाली की क्रिया को बेहतर करने के लिए मरीज़ को एकल जडी-बूटी, हर्बो-मिनरल या पॉलीहर्बल (कई जड़ी-बूटियों का मिश्रण) योग दिया जाता है। इस उपचार में आधुनिक औषधि के सिद्धांत का अनुसरण किया जाता है जिसमें स्‍वस्‍थ आहार के साथ उचित पोषण, स्‍वस्‍थ जीवनशैली और मनोवैज्ञानिक परामर्श शामिल हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली को पहुंची क्षति को ठीक करने के लिए इनकी जरूरत पड़ती है।
    • आहार रसायन में मरीज़ को ऐसे खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं जो ऊर्जा देने वाली प्रकृति से संबंधित होंं जैसे दूध आदि।

(और पढ़ें - शरीर की ऊर्जा बढ़ाने के उपाय)

एचआईवी-एड्स के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटी 

  • आमलकी
    • एचआईवी-एड्स के साथ-साथ कई रोगों के इलाज में आमलकी (आंवला) के पौधे का फल रयासन के रूप में इस्‍तेमाल किया जाता है। आमलकी तीनों दोषों (वात, पित्त और कफ) को शांत करती है।
    • आमलकी में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है और इसमें जीवाणुरोधी, ऑक्‍सीकरणरोधी और सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं। आमलकी का सेवन करने से बैक्‍टीरियल संक्रमण और सूजन का खतरा कम होता है और एचआईवी-एड्स के मरीज़ों में ये बीमारियों को रोकने में मदद करती है।
    • आमलकी सेहत को दुरुस्‍त कर आयु बढ़ाती है और जीवन के स्‍तर को बेहतर करती है। आमलकी के इम्‍यूनोमोड्यूलेट्री (इम्‍यून सिस्‍टम के कार्य को बेहतर करने वाला रयासनिक घटक) प्रभाव के कारण इससे शरीर की संक्रमण रोकने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही ये फेफड़ों में सूजन से भी मरीज को राहत दिलाता है। आमलकी एड्स के साथ टीबी के मरीज़ों को राहत पाने में मदद करती है।
    • पाउडर, काढ़ा या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार आमलकी ले सकते हैं। (और पढ़ें - विटामिन सी की कमी से होने वाले रोग)
  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा में इम्‍यूनोमोड्यूलेट्री, ऑक्‍सीकरणरोधी, एडेप्‍टोजेनिक (सबसे अधिक असरकारी जड़ी-बूटी) और सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं जोकि शरीर में सूजन की प्रक्रिया को रोकने में मदद करते हैं।
    • अश्‍वगंधा को अवसाद और तनाव से राहत पाने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा तनावरोधी गुण के कारण ये मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी मजबूत करती है। अश्‍वगंधा खासतौर पर कमजोर इम्‍युनिटी वाले लोगों की संक्रमण से सुरक्षा करने के लिए भी जानी जाती है। इसलिए अश्‍वगंधा की मदद से एचआईवी-एड्स के मरीज स्‍वस्‍थ और तनाव रहित जीवन जी सकते हैं।
    • थकान, ग्रंथियों में सूजन और पैरालिसिस जैसी बीमारियों के इलाज में भी अश्‍वगंधा का प्रयोग किया जाता है। पाउडर, काढ़े के रूप में या तेल या घी के साथ इसे मिलाकर या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार अश्‍वगंधा का सेवन कर सकते हैं। (और पढ़ें - गाय के घी के फायदे)
  • यस्थिमधु (मुलेठी)
    • यस्थिमधु या मुलेठी में उपस्थित इम्‍यूनोमोड्यूलेट्री और इम्‍युनो-स्टिमुलेंट (इम्‍यून सिस्‍टम को उत्तेजित करने वाली दवा या पोषक) गुण के कारण ये एचआईवी संक्रमण और एड्स की बीमारी का प्रबंधन करने में मदद करती है। यस्थिमधु विशेष रूप से एचआईवी को रोकने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है।
    • इसके अलावा यस्थिमधु गले में खराश, मांसपेशियों में ऐंठन, सूजन, दुर्बलता और अल्‍सर के इलाज में भी मदद करती है। इम्‍यूनोमोड्यूलेट्री गुणों के साथ-साथ यस्थिमधु में कफ निकालने वाले, श्‍लेष्‍मा झिल्‍ली को आराम और नींद लाने वाले, ऊर्जा और कब्‍ज आदि से राहत दिलाने वाले गुण भी मौजूद होते हैं।
    • पानी या दूध में यस्थिमधु का काढ़ा बनाकर या इसे घी के साथ मिलाकर, पाउडर या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार यस्थिमधु का सेवन कर सकते हैं। (और पढ़ें - त्वचा पर घी लगाने के फायदे)
  • तुलसी
    • इम्यूनोमोड्यूलेट्री और तनावरोधी प्रभाव के कारण एड्स के इलाज में तुलसी का प्रयोग किया जाता है। तुलसी में वायरसरोधी गुण भी मौजूद होते हैं जो इसे एचआईवी के इलाज में असरकारी बनाते हैं। तुलसी में जीवाणुरोधी, एंटी-ऑक्‍सीडेंटऔर दर्द-निवारक गुण होते हैं और ये पेट के कीड़ों को खत्‍म करने की असरकारी दवा के रूप में भी जानी जाती है।
    • ब्रोंकाइटिस में एलर्जी, अर्थराइटिस और सांस से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में भी तुलसी का उपयोग किया जाता है। तुलसी भूख और पाचन क्रिया को बेहतर करती है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के उपाय)
    • तुलसी को घी के साथ मिलाकर या पाउडर या तुलसी का जूस या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार तुलसी का सेवन कर सकते हैं।
  • पुनर्नवा
    • पुनर्नवा में मौजूद इम्यूनोमोड्यूलेट्री गुण के कारण ये शरीर में इम्‍यूनिटी के स्‍तर को बढ़ाने का कार्य करती है। पुनर्नवा में वायरसरोधी गुण भी होते हैं जोकि एचआईवी से लड़ने और अन्‍य वायरल संक्रमण को रोकने में मदद करती है। एचआईवी/एड्स के मरीज़ों को टीबी जैसे बैक्‍टीरियल संक्रमण को भी रोकने में पुनर्नवा सक्षम है।
    • पुनर्नवा में गठियारोधी और तनावरोधी गुण भी पाए जाते हैं। गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए एक प्रमुख जड़ी-बूटी के रूप में पुनर्नवा लेने की सलाह दी जाती है।
    • पुनर्नवा को औषधीय तेल, अर्क, पाउडर या जूस के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
  • हरीतकी
    • हरीतकी में जीवाणुरोधी, इम्यूनोमोड्यूलेट्री, सूजनरोधी और ऑक्‍सीकरणरोधी गुण पाए जाते हैं जोकि एचआईवी संक्रमित या एड्स के मरीज़ों में इम्‍युनिटी को बेहतर करने, बैक्‍टीरियल संक्रमण से लड़ने और सूजन संबंधित रोगों से बचाने में मदद करती है।
    • हरीतकी में ऊर्जावान, एंस्ट्रिंजेंट (संकोचक ऊतक) और लैक्‍सेटिव (मल त्‍याग करने की क्रिया को नियंत्रित करने वाली) गुण पाए जाते हैं। शरीर के लिए हरीतकी टॉनिक की तरह काम करती है। एड्स के अलावा हरीतकी बवासीरदस्‍त, मुंह में अल्‍सर और लिवर रोग जैसे अन्‍य कई रोगों से राहत पाने में मदद करती है।
    • हरीतकी का सेवन पेस्‍ट, पाउडर या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार कर सकते हैं। (और पढ़ें - दस्त से बचने के उपाय)
  • गुडुची
    • गुडुची में इम्यूनोमोड्यूलेट्री प्रभावयुक्‍त सक्रिय घटक मौजूद होते हैं जिस कारण गुडुची शरीर की रक्षा प्रणाली और कमज़ोर इम्‍युनिटी को बेहतर करने में मदद करती है। गुडुची शरीर में फेगोसिटिक कार्य (हानिकारक बाहरी कणों को बाहर निकाल कर शरीर की रक्षा करने वाली कोशिकाएं) को बेहतर करती है और मैक्रोफेज़ेस (बाहरी पदार्थों को ग्रहण और पचाने वाली सफेद रक्‍त कोशिकाएं) के कार्य को उत्तेजित करती है।
    • एनीमिया, पीलिया, टीबी, लगातार हो रहे मलेरिया का बुखार और डायबिटीज़ के इलाज में भी गुडुची का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • गुडुची को पाउडर या अर्क या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। (और पढ़ें - बुखार में क्या खाना चाहिए)
  • शतावरी
    • शतावरी में इम्यूनोमोड्यूलेट्री और एंटी-ऑक्‍सीडेंट गुण पाए जाते हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने के लिए शतावरी को मुख्‍य जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है और एड्स के मरीज़ों के लिए शतावरी लाभकारी होती है। ये कीमोथेरेपी ले रहे मरीज़ों के संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य को भी बेहतर करती है।
    • हर्पीस, अम्‍लपित्त (हाइपर एसिडिटी), पेचिश, बुखार, नपुसंकता और अन्‍य कई रोगों के इलाज में शतावरी का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - एसिडिटी में क्या खाएं)
    • शतावरी के पाउडर को घी या तेल के साथ, काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

एचआईवी/एड्स की आयुर्वेदिक दवा

  • च्‍यवनप्राश अवलेह
    • च्‍यवनप्राश अवलेह बनाने में एक से अधिक जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है और इसमें प्रमुख सामग्री के रूप में आमलकी डाली जाती है। टॉनिक के रूप में कार्य करने वाला च्‍यवनप्राश अवलेह ऊर्जा प्रदान करता है और एचआईवी संक्रमण और एड्स के मरीज़ों की संपूर्ण सेहत को बेहतर करने में मदद करता है। चीनी या गुड़ के साथ औषधीय काढ़े को उबालकर अवलेह तैयार किया जाता है।
    • च्‍यवनप्राश अवलेह को गन्‍ने के रस, उबले हुए दूध या काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
  • वसंत कुसुमाकर
    • वसंत कुसुमाकर में सुवर्णा को हवा या ऑक्सीजन में उच्च तापमान पर गर्म कर भस्‍म के रूप में डाला गया है। इसमें प्रवाल, वंग, नाग और अन्‍य चीजें भी डाली गई हैं। प्रमुख तौर पर वसंत कुसुमाकर का प्रयोग वात रोगों, कफ और टीबी के इलाज में किया जाता है।
    • ओजक्षय (ओजस की कमी) के कारण होने वाले रोगों के इलाज में वसंत कुसुमाकर मदद करती है। ये अत्‍यधिक दुबले, जल्‍दी थकने वाले और पीली त्‍वचा वाले लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य को भी बेहतर करती है। ये मानसिक और भावनात्‍मक बल प्रदान करती है जिससे अवसाद से लड़ने में मदद मिलती है। वसंत कुसुमाकर फेफड़ों, ह्रदय और पाचन तंत्र एवं प्रजनन प्रणाली को मजबूत बनाती है। अत: एचआईवी और एड्स के मरीज़ों में ये दवा कमजोरी का इलाज कर उन्‍हें शक्‍ति देती है। (और पढ़ें - अवसाद के घरेलू उपाय)
  • वंग भस्‍म
    • वंग भस्‍म शुक्र धातु के अंगों को मजबूत करती है। टीबी और अत्‍यधिक यौन क्रिया के कारण होने वाले रोगों की वजह से कम हुए शुक्र धातु के इलाज में वंग भस्‍म इस्‍तेमाल की जाती है। इसलिए यौन क्रिया के कारण होने वाले एचआईवी संक्रमण या एड्स के प्रबंधन में वंग भस्‍म मदद करती है। वजन बढ़ाने के लिए दुबले व्‍यक्‍ति भी वंग भस्‍म का प्रयोग कर सकते हैं। (और पढ़ें - सुरक्षित सेक्स कैसे करें)
    • वंग भस्‍म में कृमिघ्‍न (कीड़ों को नष्‍ट करने वाले) गुण भी पाए जाते हैं।
  • त्रैलोक्‍य चिंतामणि रस
    • त्रैलोक्‍य चिंतामणि रस में सुवर्णा भस्‍म, गंधक भस्‍म, तमरा भस्‍म (तांबे की राख), पारद भस्‍म (पारद की राख) आदि मौजूद होती हैं।  
    • त्रैलोक्‍य चिंतामणि रस जोड़ों के दर्द, हृदय रोग और कमर दर्द के इलाज में असरकारी होता है। एचआईवी संक्रमित और एड्स के मरीज़ों में त्रैलोक्‍य चिंतामणि रस कमजोरी दूर कर शक्‍ति बढ़ाता है।  (और पढ़ें - ​कमर दर्द के घरेलू उपाय)

कई कारणों एवं व्‍यक्‍ति की प्रकृति के अनुसार हर मरीज़ को अलग इलाज दिया जाता है। अपनी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के निवारण के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें और उचित दवा एवं उपचार लें। 

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क्‍या करें:

  • खून चढ़ाने से पहले एचआईवी वायरस की जांच के लिए ब्लड टेस्‍ट करवाएं।
  • साफ-सफाई का पूरा ध्‍यान रखें।
  • अपने साथी के प्रति ईमानदार रहें।
  • अध्‍यात्मिक जीवन का पालन करें। 

(और पढ़ें - लैब टेस्ट क्या है)

क्‍या ना करें:

  • असुरक्षित यौन संबंध बनाने से बचें।
  • इस्‍तेमाल की गई सुई का प्रयोग ना करें।
  • अत्‍यधिक तनाव लेने से बचें।

 (और पढ़ें - तनाव दूर करने के उपाय​)

प्रयोगात्‍मक अध्‍ययन के परिणाम के अनुसार आमलकी वजन और सीरम प्रोटीन को बढ़ाने में मदद करती है। (और पढ़ें - वजन घटाने के लिए जड़ी-बूटियां)

पेट, फेफड़ों और लिवर पर तुलसी के प्रभाव की जांच करने के लिए चूहों पर किए गए एक अन्‍य अध्‍ययन के मुताबिक तुलसी कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों (कार्सिनोजेन) को हटाने वाले एंजाइम को उत्तेजित करने का कार्य करती है।  

दूध के साथ पुनर्नवा के हेमेटिनिक (रक्‍त कोशिकाओं के निर्माण को उत्तेजित करने और खून में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बढ़ाने वाले) प्रभाव पाए गए हैं। इसके अलावा खासतौर पर बच्‍चों के विकास के लिए जरूरी गुण इसमें पाए जाते हैं। (और पढ़ें - हीमोग्लोबिन टेस्ट कैसे होता है)

एचआईवी संक्रमित और एड्स के मरीज़ों में टीबी एक सामान्‍य और प्रमुख समस्‍या है। टीबी के मरीज़ों पर गुडुची के प्रभावों के बारे में जानने के लिए एक अध्ययन किया गया था। इस अध्‍ययन के मुताबिक गुडुची मैक्रोफेजेस के कार्य को उत्तेजित करती है जिससे प्रतिरक्षा बेहतर तरीके से काम कर पाता है। टीबी के सामान्‍य इलाज के साथ गुडुची देने पर मरीज़ जल्‍दी से ठीक हो पाता है।

(और पढ़ें - टीबी रोग के घरेलू उपाय)

  • कैंसर और सीने में खून के जमाव से ग्रस्‍त मरीज़ों को अश्‍वगंधा नहीं दी जानी चाहिए।
  • अत्‍यधिक कफ दोष, हाई ब्‍लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) और एडिमा के रोगियों को यश्तिमधु का इस्‍तेमाल नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा जिन लोगों की पोटेशियम अवशोषित करने की क्षमता अधिक है, उन्‍हें भी यश्तिमधु नहीं लेनी चाहिए। इन रोगों से ग्रस्‍त मरीज़ों को डिग्लिसराईजिनेटेड यश्तिमधु (मुलेठी में से ग्लिसराईजिन नामक रसायन को निकलने के बाद) का सेवन करना चाहिए। गर्भवती महिलाएं यश्तिमधु का प्रयोग ना करें। (और पढ़ें - सूजन कम करने के उपाय)
  • अत्‍यधिक पित्त, अम्‍लपित्त (हाइपरएसिडिटी) या "टॉक्सिक ब्‍लड हीट" (शरीर में अधिक गर्मी) से ग्रस्‍त लोगों को पुनर्नवा नहीं लेनी चाहिए। इस जड़ी-बूटी के कारण मानसिक दुर्बलता हो सकती है इसलिए डॉक्टर की सलाह से ही पुनर्नवा लेनी चाहिए।
  • अत्‍यधिक अमा (विषाक्‍त पदार्थ) से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को शतावरी का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • जिन लोगों को थकान ज्‍यादा होती है या जिनके शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) है, उन्‍हें हरीतकी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ज्‍यादा दुबले लोग भी इस जड़ी-बूटी का इस्‍तेमाल करने से बचें। हरीतकी का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में पित्त बढ़ सकता है। (और पढ़ें - बॉडी बनाने के लिए क्या खाना चाहिए)
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आयुर्वेद से एचआईवी की अंतिम अवस्‍था एड्स का इलाज संभव नहीं है। हालांकि, आयुर्वेद द्वारा सुझाई गई जड़ी-बूटियों, औषधियों और जीवनशैली में सकारात्‍मक बदलाव करके सीडी4 और सीडी8 कोशिकाओं की मात्रा को बढ़ाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर किया जा सकता है। इस तरह एचआईवी संक्रमित या एड्स के मरीज़ के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।

(और पढ़ें - एचआईवी टेस्ट कैसे होता है)

Dr Bhawna

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संदर्भ

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  4. Ven Murthy MR1, Ranjekar PK, Ramassamy C, Deshpande M. Scientific basis for the use of Indian ayurvedic medicinal plants in the treatment of neurodegenerative disorders: ashwagandha.. Cent Nerv Syst Agents Med Chem. 2010 Sep 1;10(3):238-46. PMID: 20528765.
  5. Kesava Rao V. Kurapati, Venkata S. Atluri, Thangavel Samikkannu, Gabriella Garcia, and Madhavan P. N. Nair. Natural Products as Anti-HIV Agents and Role in HIV-Associated Neurocognitive Disorders (HAND): A Brief Overview. Front Microbiol. 2015; 6: 1444. PMID: 26793166.
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