आज विश्व हीमोफीलिया दिवस है। वर्ष 2019 में वर्ल्ड फेडेरेशन ऑफ हीमोफीलिया का उद्देश्य इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों तक अपनी पहुंच बढ़ाकर उन्हें जागरूक करना है। हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है जो बहुत ही कम लोगों में देखी जाती है। इस बीमारी में सर्जरी होने या चोट लगने पर शरीर से लगातार खून निकलता रहता है जो कि आसानी से बंद नहीं होता। यह समस्या महिलाओं की तुलना में पुरूषों को ज्यादा होती है।

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ज्यादातर पुरूष क्यों होते हैं इसका शिकार
दरअसल, हीमोफीलिया खून के थक्के को जमने में मदद करने वाले प्रोटीन की कमी की वजह से होता है। ये जीन्स एक्स क्रोमोजोम में मौजूद होते हैं। पुरूषों में महज एक एक्स क्रोमोजोम होता है जबकि महिलाओं के पास दो एक्स क्रोमोजोम हैं।

एक्स क्रोमोजोम में कई ऐसे जीन्स मोजूद होते हैं, जो वाई क्रोमोजोम में नहीं होते। इसका मतलब यह है कि पुरूषों के पास एक्स क्रोमोजोम में मौजूद सभी जीन्स एक हैं, जबकि महिलाओं में इनकी संख्या दो होती है।

पुरूषों को अपनी मां से एक्स क्रोमोजोम और पिता से वाई क्रोमोजोम मिलता है। इसी तरह महिलाओं को अपनी मां और पिता से एक-एक एक्स क्रोमोजोम मिलता है। अगर पुरूषों का एक्स क्रोमोजोम प्रभावित होता है तो इससे उनमें हीमोफीलिया जैसी बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में दोनों तरह के एक्स क्रोमोजोम या फिर एक क्रोमोजोम प्रभावित होता है।  अगर एक क्रोमोजोम प्रभावित हुआ है तो इसके बाद दूसरा क्रोमोजोम भी निष्क्रिय हो जाता है।

हीमोफीलिया का चिकित्सकीय इलाज

  • हीमोफीलिया को रिप्लेसमेंट थेरेपी से ठीक किया जा सकता है।
  • रिप्लसेमेंट थेरेपी में मरीज में जो क्लाॅटिंग फैक्टर कम होते हैं या नहीं होते हैं, उन्हें रिप्लेस किया जाता है। मरीजों को क्लाॅटिंग फैक्टर के लिए इन्जेक्शन दिया जाता है।
  • रिप्लेसमेंट थेरेपी के लिए क्लाॅटिंग फैक्टर ट्रीटमेंट मनुष्य के खून से ले सकते हैं या फिर लैब में कृत्रिम रूप से इसे तैयार किया जा सकता है।
  • कुछ मरीजों में ब्लीडिंग रोकने के लिए नियमित रिप्लेसमेंट थेरेपी की जरूरत होती है। इसे प्रोफाइलेक्टिक थेरेपी कहते हैं। 
  • जिन मरीजों में हीमोफीलिया गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है, उन्हें प्रोफाइलेक्टिक थेरेपी दी जाती है।
  •  ब्लीडिंग शुरू होने के बाद और इसके न रूकने की स्थिति में कुछ मरीजों को डिमांड थेरेपी दी जा सकती है। 
  • हीमोफीलिया के इलाज के कारण वायरल इन्फेक्शन और एंटीबॉडीज के विकसित होने की समस्या हो सकती है।
  • जोड़ों, मांसपेशियों और शरीर के अन्य हिस्सों में क्षति होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
  • हीमोफीलिया ए के शुरूआती चरण में अन्य तरह के ट्रीटमेंट जैसे डेस्मोप्रेसिन की सलाह दी जाती है। डेस्मोप्रेसिन एक तरह का हार्मोन है जो शरीर को क्लाॅटिंग फैक्टर बनाने में मदद करता है।

हीमोफीलिया होने पर क्या करें

यूं तो हीमोफीलिया को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन इस बीमारी से बचने या खून बहने की संभावना में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए आप निम्न बातों पर ध्यान दें:

  • नियमित एक्सरसाइज करें।
  • एस्प्रिन, नाॅनस्टेराॅएडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं जैसे हेपारिन आदि न लें।
  • अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें।
  • ओरल हाइजीन का ख्याल रखें।
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