आये दिन मेरे क्लिनिक में बहुत सारे बच्चे बुखार के कारण आते है। ज़्यादातर माता-पिता को बुखार से इतना डर लागता है, कि वे आपत्कालीन (emergency) चेकउप का निवेदन करते है। और ज़्यादातर माता-पिता को बुखार के वक़्त बरतने की सावधानिया की जानकारी भी नही होती।

तो आज मै आपको, इस परेशानी का छोटा सा उपाय और बरत्ने की सावधानियो के बारे में जानकारी दूंगी।

यह जानकारी सिर्फ 3 महिने से ज़्यादा उम्र के बच्चों के लिए लागू होती है। 3 महीने से छोटे बच्चों मे बुखार गंभीर समस्या हो सकती है, तो उन्हें तुरंत बालरोगतज्ञ (pediatrician) से चेकउप करवाने के लिए ले जाएं।

  1. बच्चों को बुखार क्या है - What is fever in children in hindi
  2. बच्चे को बुखार के लक्षण - Symptoms of fever in children in hindi
  3. बच्चे को बुखार हो तो बरते ये सावधानियां - Precautions to take if your child has fever in hindi
  4. बच्चे को बुखार के कारण - Causes of fever in children in hindi
  5. बच्चों के बुखार का इलाज - Treatment of fever in children in hindi
  6. बच्चों को बुखार से कैसे बचाये - How to prevent fever in children in hindi

जब छोटा बच्चा घर में होता है, तो साथ में एक थर्मोमीटर (themometer) होना आवश्यक है। आजकल डिजिटल (digital) थर्मोमीटर केमिस्ट में आसानी से मिलते हैं। इनमे तापमान दो तरह से दर्ज होता है -

  1. डेग्री सिल्सिउस (degree celcius - ०C)
  2. डेग्री फेरनहाइट (degree fahrenheit - ०F)

बुखार यानी बदन का तापमान 37.5 ०C या 99.5 ०F से ज़्यादा। 

बुखार एक रोग नही है। बुखार एक परेशानी है, जिसका कारण ढूंढ कर हमें उसका हल करना है। 

बच्चे को बुखार में होने वाले लक्षण -

यहां मै आपको सिर्फ बुखार में सावधानियो की जानकारी दूंगी। तुरंत डॉक्टर से मिले अगर नीचे दिये हुये लक्षण है - 

  1. तापमान 102०F या 39०C या उससे ज़्यादा है
  2. बच्चे को झटके आ रहे हो
  3. बच्चा सुस्त हो रहा हो
  4. बदन पे दाने आ गए हों 
  5. सांसे लेने में दिक्कत हो रही हो 
  6. दस्त बहुत ज़्यादा लग गए हों 
  7. बच्चा 3 माह से कम आयु का हो
  8. खाना पीना बहुत कम कर दिया हो 
  9. दिन में 3 से कम बार पेशाप करता हो
  10. हाथ पैर थंडे पड रहे हों
  11. बच्चा बेहोश हो जाए तो
  12. जोडो में सूजन आ रही हो 
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बच्चों को बुखार क्यों होता है?

हर बच्चा कभी ना कभी बीमार पड़ता ही है। वो इसलिए क्योंकि उसके शरीर में बिमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक छमता पूरी तरह से तयार नहीं हुई है। इसके आलावा उन्हें ये नहीं पता होता की गंदगी क्या होती है। वे जमीन पर पड़ी कुछ भी गंदी वस्तु मुँह में डाल लेते हैं जिससे संक्रमण उनके शरीर में प्रवेश कर जाता है। हमें गंदी  वस्तुओं को, जिनसे संक्रमण का खतरा हो, बच्चों के पहुँच से दूर रखना चाहिए। बीमारी से बचाव ही सबसे बेहतरीन इलाज है।  

बुखार के कारण अनेक हो सकते हैं, जैसे कि -

  1. जुखाम
  2. दस्त
  3. टाइफाइड
  4. निमोनिया
  5. कान के इन्फेक्शन
  6. त्वचा के इन्फेक्शन
  7. पेशाब का इन्फेक्शन
  8. गले का इन्फेक्शन
  9. दिमाग का इन्फेक्शन
  10. जोडों का इन्फेक्शन
  11. मलेरिया

इनके अलावा और बहुत सारे कारण होते है।

अगर उपर लिखित लक्षण नही हैं, तो आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं। लेकिन दूसरे दिन डॉक्टर के पास चेकउप के लिये बच्चे को अवश्य ले जाइये -

  1. बच्चे के पूरे शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए।
  2. थर्मोमीटरसे तापमान हर 6 घंटे में जाचे और लिख कर रखें। इससे डॉक्टर को बिमारी का अंदाज भी लग सकता है।
  3. बदन पार कम कपडे डालें। बच्चे को ज्यादा कंबल न उढ़ायें। ज़्यादातर लोगों को मैने ये कहते हुए सुना है कि अगर बदन कपकापा कर पसीना छोड़ता है, तो बुखार कम होता है। ऐसा नहीं है, ये ग़लतफहमी है। आसान सा ही उदाहरण लें - अगर कढ़ाई गरम हो, तो उसे थंडा करने के लिये हम उसे ढकेंगे, या फिर उसपे पानी डालेंगे? कमरे का पंखा चला दें। बच्चे को कम और आराम दायक कपडा पहनाएं। इससे बच्चे के शरीर का तापमान आसानी से निकल जायेगा। मगर यदि आप का बच्चा ठण्ड से कांप रहा हो तो उसे पतला कम्बल उढ़ा दें। 
  4. बच्चे को हर छह घंटे में पैरासिटामॉल (Paracetamol) दवाई दे सकते हैं। दूसरी कोई दवाई डॉक्टर से पूछे बिना न दें। इसका डोस दावाई के बोतल पे ही बच्चे की उम्र और वजन के हिसाब से लिखा होता है।
  5. बच्चे छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। जिससे इसका संक्रमण दूसरो में न फैले ।
  6. तरल पदार्ध, खासकर पानी, फलों का रस और गर्म सूप अधिक मात्रा में लें।
  7. बुखार दो दिन से ज्यादा हो तो डॉक्टर की सलाह लें।
  8. बुखार 2-4 दिन लेता है कम होने के लिये, जरा सब्र रखीये!
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बच्चोंको बुखार से कैसे बचाये?

  1. बच्चे को संतुलित आहार दें, और स्वस्थ रखें।
  2. उनका वजन उम्र के दायरे में होना चाहिये।
  3. सारे  टीके उन्हें ठीक उम्र में दे।
  4. आर्थिक रूप से संभव हो तो निमोनिया, दस्त, टाइफाइड, चिकन पॉक्स के टीके भी उम्र अनुसार लगवा दें।
  5. बच्चो के इलाज के लिये, बालरोगतज्ञ (pediatrician) से ही  सलाह ले।
  6. बीमारी से बचाव ही सबसे बेहतरीन इलाज है। 
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