स्वीडन स्थित अपसाला यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ब्रेन ट्यूमर की पहचान करने के लिए एक नए प्रकार की पद्धति विकसित की है। इस संबंध में किए गए उनके अध्ययन को विज्ञान पत्रिका 'जीनोम बायॉलजी' में प्रकाशित किया गया है। इन शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके द्वारा विकसित पद्धति से डीएनए में होने वाले परिवर्तनों (म्यूटेशन) और उनके वंशाणुओं पर होने वाले प्रभाव के बारे में जाना जा सकता है। इसी प्रभाव के चलते ग्लियोब्लास्टोमा होने की स्थिति पैदा होता है, जो एक घातक ब्रेन ट्यूमर माना जाता है और जिसका पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है।

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क्या कहता है शोध?
बताया जाता है कि एक मानव जीनोम (वंशाणुओं के समूह) में करीब 22 हजार वंशाणु होते हैं। तमाम शोध होने के बाद भी शरीर में प्रोटीन पैदा करने वाले डीएनए के बारे में केवल दो प्रतिशत जानकारी ही मिल पाई है। इसलिए इस बारे में हमारी जानकारी 98 प्रतिशत तक कम मानी जाती है। इसी में यह जानकारी भी छुपी है कि विकास के अलग-अलग चरणों और कैंसर जैसी बीमारियों के दौरान शरीर के ऊतकों में कोई वंशाणु या जीन एक्टिव है या नहीं।

कोशिकाओं में होने वाले बदलाव कैंसर का कारण बनते हैं। ऐसा ही एक घातक कैंसर ग्लियोब्लास्टमा है, जो एक प्रकार का ब्रेन ट्यूमर है। डीएनए से जुड़े नॉन-कोडिंग रीजन्स को लेकर हमारी सीमित जानकारी के कारण हम नहीं जानते कि आखिर किन बदलावों के कारण ग्लियोब्लास्टमा होता है। इसी अधूरी जानकारी को पूरा करने के लिए अपसाला यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ट्यूमर ऊतकों से जुड़े संपूर्ण जीनोम सीक्वेंस का अध्ययन किया है।

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यूनिवर्सिटी में इम्यूनॉलजी, जेनेटिक्स और पैथॉलजी विभाग के प्रोफेसर कैरिन फोर्सबर्ग-नीलसन ने कहा कि शोध के तहत कैंसर कोशिकाओं के विकास से जुड़े व्यावहारिक बदलावों की पहचान करना और उन्हें तमाम रैन्डम वैरिएशन से अलग करना एक प्रमुख कार्य था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने एसईएमए3सी वंशाणु की मदद से ऐसे कई म्यूटेशन का पता लगाया जिसका संबंध कैंसर होने के पूर्वानुमान से है।

क्या है ग्लियोब्लास्टोमा?
ग्लियोब्लास्टोमा का मेडिकल टर्म जीबीएम यानी ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफार्म है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक गंभीर ट्यूमर है, मस्तिष्क को सहारा देने वाले ऊतकों में बनता है। जीबीएम मस्तिष्क के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह दिमाग के निचले या सामने वाले हिस्से में बनता है। कहा जाता है कि ग्लियोब्लास्टोमा अधिकतर वयस्कों को ही होता है। इसके प्रभाव में मस्तिष्क पर दबाव बढ़ने लगता है, जिसके चलते मरीज में कई लक्षण दिखते हैं। इनमें सिरदर्द, दौरे पड़ना, उल्टी आना, सोचने में दिक्कत पैदा होना, मूड और व्यवहार में बदलाव, दोहरा या धुंधला दिखना और बोलने में परेशानी जैसे लक्षण शामिल हैं।

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