जब बात अस्थमा और सांस से संबंधित कई दूसरी एलर्जी की आती है तो हम सब यही जानते हैं कि वायु प्रदूषण, तंबाकू का धुआं, धूल और कई बार पराग-कण की वजह से ये बीमारियां होती हैं। इसके अलावा सर्दी-जुकाम, फ्लू और मौजूदा समय में कोविड-19 को भी सांस लेने में दिक्कत संबंधी समस्याओं के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आप कब और कितने बजे सोते हैं इसका भी आपकी श्वास संबंधी सेहत पर गहरा असर पड़ सकता है? यही वजह है कि इन दिनों डॉक्टर ज्यादातर लोगों को अपनी नींद पर ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं।

नींद और श्वास संबंधी बीमारियों के बीच लिंक
वैसे तो हर एक व्यक्ति के लिए रोजाना रात में कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद बेहद जरूरी है लेकिन आप कितने बजे सोते हैं यह टाइमिंग भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। हाल ही में हुई एक स्टडी की मानें तो जो किशोर (13 से 19 साल के बच्चे) रात में देर तक जगने के बाद सुबह देर तक सोते रहते हैं उनमें एलर्जी और अस्थमा होने का खतरा उन किशोरों की तुलना में अधिक होता है जो समय पर सोते और जागते हैं। 

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एक नहीं बल्कि कई अध्ययनों में यह बात साबित हो चुकी है कि शरीर की बाकी क्रियाओं के साथ-साथ श्वास संबंधी सेहत को भी बेहतर बनाए रखने के लिए अच्छी नींद जरूरी है। आखिरकार, नींद एक सामान्य जैविक क्रिया है जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम, इंडोक्राइन सिस्टम, कार्डियोवस्कुलर सिस्टम और श्वसन प्रणाली से जुड़ी होती है। इसके अलावा नींद, शरीर के तापमान को भी बनाए रखने में मदद करती है।

श्वसन प्रणाली या सांस संबंधी सेहत का नींद से क्या संबंध है इसी को दिखाने के लिए 2004 में अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में एक स्टडी प्रकाशित की गई। इस स्टडी की मानें तो नींद से जुड़ा हार्मोन मेलाटोनिन अस्थमा के मरीजों में वायुमार्ग की मांसपेशियों को चिकना करने और सूजन-जलन (इन्फ्लेमेशन) की समस्या को कम करके अस्थमा के रोगियों की स्थिति बेहतर बनाने में मदद करता है। 

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सोते वक्त श्वसन तंत्र में क्या होता है?
तो आखिर जब हम सोते हैं तो हमारे श्वसन तंत्र में वास्तव में क्या होता है? 2009 में प्रकाशित लंग इंडिया की एक स्टडी में इस प्रक्रिया की व्याख्या की गई है। बिना किसी बीमारी वाले पूरी तरह से सामान्य व्यक्ति में भी नींद लेने के दौरान सांस लेने में बाधा उत्पन्न होती है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 2-8 mmHg (मिलीमीटर ऑफ मर्क्युरी) की वृद्धि होती है। यह बाधा पूरी तरह से सामान्य है और ऐसा जरूरी नहीं कि इससे किसी तरह का कोई नुकसान हो। 

दरअसल, जब हम नींद में होते हैं तो हमारी ग्रसनी (pharynx) की मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं जिससे ऊपरी वायुमार्ग में प्रतिरोध बढ़ जाता है और इस कारण हम में से बहुत से लोग खर्राटे लेने लगते हैं। इस दौरान चूंकि शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं, आराम के मोड में चली जाती हैं इसलिए सांस लेने का तरीका थोड़ा सा असंतुलित या अस्थिर हो जाता है, लेकिन फिर भी सुरक्षित ही रहता है।

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सर्काडियन रिदम के हिसाब से नींद न लेने का नुकसान
वैसे लोग जो अपनी शरीर की आंतरिक घड़ी की लय (circadian rhythm) के हिसाब से नींद लेते हैं उनमें इन सामान्य श्वसन शारीरिक प्रतिक्रियाओं से किसी तरह का कोई नकारात्मक परिणाम नहीं होता। लेकिन वैसे लोग जो circadian rhythm के हिसाब से अपनी नींद को मेनटेन नहीं कर पाते हैं, फिर चाहे वह देर रात तक जगने की वजह से हो, नींद से जुड़े बीमारी की वजह से या फिर स्लीप हार्मोन मेलाटोनिन की कमी की वजह से- ऐसे लोगों में सांस संबंधी कई बीमारियां देखने को मिलती हैं जैसे- रेस्पिरेटरी फेलियर, ब्रॉन्काइल रीऐक्टिविटी, म्यूकस का भरा रहना आदि।

देर रात तक जगने का किशोरों की सेहत पर असर
नींद से जुड़ी समस्याओं का सांस संबंधी सेहत पर पर असर पड़ता है और यह बात सिर्फ वयस्कों में ही देखने को नहीं मिलती। ईआरजे ओपन रिसर्च की एक स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि जो किशोर रात में देर तक जगे रहते हैं और इस वजह से सुबह देर तक सोते हैं उनमें अस्थमा और सांस से संबंधी कई दूसरी एलर्जी होने का खतरा अधिक होता है। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा की डॉ सुभभ्रता मोइत्रा कहती हैं, 'नींद और नींद का हार्मोन मेलाटोनिन दोनों अस्थमा को प्रभावित करते हैं इसलिए हम ये देखना चाहते थे कि क्या किशोरों की रात में देर तक जगने या जल्दी सो जाने की पसंद का उनके अस्थमा के खतरे से कोई संबंध है या नहीं।' 

इस स्टडी में भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के 1684 किशोरों को शामिल किया गया था जिनकी उम्र 13 से 14 साल के बीच थी। स्टडी में शामिल सभी प्रतिभागियों से कहा गया था कि वे अपनी नींद और सोने से जुड़ी आदतों और सांस संबंधी लक्षण जैसे- सांस लेते वक्त घरघराहट की आवाज आना, छींक आना और नाक बहना जैसे लक्षणों के बारे में रिपोर्ट दें। इस दौरान शोधकर्ताओं ने नींद के समय और सांस संबंधी समस्याओं के बीच क्या लिंक है इसे समझने के लिए पर्यावरण संबंधी कारकों जैसे- परिवार का कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है या नहीं, आसपास कोई फैक्ट्री है या नहीं और वायु प्रदूषण जैसे कारकों को भी ध्यान में रखा। 

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देर तक जगने वालों में अस्थमा का खतरा 3 गुना अधिक
अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि वैसे किशोर जो रात में देर तक जगते हैं उनमें अस्थमा होने का खतरा 3 गुना अधिक है उन किशोरों की तुलना में जो समय पर या जल्दी सो जाते हैं। इतना ही नहीं, रात में देर तक जगने वाले किशोरों में एलर्जिक राइनाइटिस या परागज ज्वर बीमारी होने का खतरा भी दोगुना अधिक था। डॉ मोइत्रा और उनकी टीम ने इस बात की ओर भी इशारा किया कि यह रात में देर से सोने की आदत आंशिक रूप से फोन, टैबलेट, लैपटॉप और अन्य उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी के संपर्क में आने के कारण होती है जिसका इस्तेमाल किशोर सोने के समय पर करते हैं।

सोने के समय से पहले किशोरों को इन उपकरणों को खुद से दूर रखने के लिए प्रोत्साहित करना तो जरूरी है ही। साथ ही साथ वयस्कों, बच्चों और सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए यह भी जरूरी है कि वे नींद के उचित वातावरण का निर्माण करें ताकि भविष्य में न तो नींद की कमी और ना ही सांस संबंधी कोई और स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो।

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