प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के गंभीर प्रकार को ही प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर यानी पीएमडीडी कहा जाता है. इसे जीवनशैली में बदलाव और कभी-कभी दवा के साथ ठीक किया जा सकता है. पीएमडीडी होने पर पीरियड्स शुरू होने से पहले या दो सप्ताह में चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन या चिंता हो सकती है.

मासिक धर्म शुरू होने के दो से तीन दिन बाद लक्षण आमतौर पर खुद ही दूर हो जाते हैं. कुछ मामलों में लक्षणों को दूर करने के लिए दवा या अन्य उपचार की आवश्यकता हो सकती है.

आज हम इस लेख में प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लक्षण
  2. प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के कारण
  3. प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर का इलाज
  4. सारांश
प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के डॉक्टर

प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लक्षण प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम से अधिक गंभीर होते हैं. पीएमडीडी के लक्षण मासिक धर्म से पहले सप्ताह के दौरान दिखने लगते हैं और मासिक धर्म शुरू होने के बाद कुछ दिनों के भीतर ठीक हो जाते हैं. जो लोग पीएमडीडी का अनुभव करते हैं, वे अक्सर अपनी सामान्य क्षमताओं पर कार्य करने में असमर्थ होते हैं, यह स्थिति रिश्तों को प्रभावित कर सकती है. घर और काम पर दिनचर्या को बाधित कर सकती है. इसके कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं -

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पीएमडीडी का सही कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन पीएमडीडी प्रत्येक मासिक धर्म चक्र के साथ होने वाले सामान्य हार्मोन परिवर्तनों की असामान्य प्रतिक्रिया हो सकती है. हार्मोन परिवर्तन से सेरोटोनिन की कमी हो सकती है. सेरोटोनिन मस्तिष्क और आंतों में स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला ऐसा पदार्थ है, जो रक्त वाहिकाओं को संकुचित करता है और मूड को प्रभावित कर सकता है. साथ ही शारीरिक लक्षण पैदा कर सकता है. आइए विस्तार से जानें प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के कारणों के बारे में -

हार्मोन हो सकते हैं जिम्मेदार

विशेषज्ञ नहीं जानते कि कुछ महिलाओं को पीएमडीडी क्यों होता है. ओव्यूलेशन के बाद और मासिक धर्म से पहले एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के घटते स्तर पीएमडीडी के लक्षणों को ट्रिगर कर सकते हैं. कुल मिलाकर प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षण हार्मोनल उतार-चढ़ाव के साथ बदलते हैं और गर्भावस्था और मेनोपॉज के साथ गायब हो जाते हैं.

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ब्रेन केमिकल में परिवर्तन हो सकता है जिम्मेदार

सेरोटोनिन एक ब्रेन केमिकल है, जो मूड, भूख और नींद को नियंत्रित करता है. सेरोटोनिन में उतार-चढ़ाव पीएमडीडी के लक्षणों को ट्रिगर कर सकता है. सेरोटोनिन की अपर्याप्त मात्रा प्रीमेंस्ट्रुअल डिप्रेशन के साथ-साथ थकान, भूख लगने और नींद की समस्याओं में योगदान कर सकती है.

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डिप्रेशन हो सकता है जिम्मेदार

गंभीर प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम वाली कुछ महिलाओं में अनियंत्रित डिप्रेशन होता है, हालांकि अकेले डिप्रेशन सभी लक्षणों का कारण नहीं बनता है. कुछ महिलाओं में प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर का अनुभव करने की संभावना दूसरों की तुलना में अधिक होती है, खासतौर पर वे महिलाएं जिनका प्रसवोत्तर डिप्रेशन यानी अवसाद, मनोदशा संबंधी विकार का व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास रहा है. प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर प्रसव उम्र की 5% महिलाओं को प्रभावित करता है.

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कुछ दर्द निवारक दवाइयां जैसे एस्पिरिन, इबुप्रोफेन, और नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) पीएमडीडी के दौरान होने वाले सिरदर्द, स्तन कोमलता, पीठ दर्द और ऐंठन जैसे लक्षणों को कम कर सकते हैं. आइए विस्तार से जानें, प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के इलाज के बारे में-

  • कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि विटेक्सि एग्नस कास्टस जड़ी-बूटी जिसे निर्गुण्डी भी कहा जाता है, प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लिए अच्छी है, लेकिन इसके इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें. 
  • विटामिन की खुराक बढ़ाने, एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं और एंटीडिप्रेसंट दवाओं से पीएमडीडी के लक्षणों को कम किया जा सकता है. 
  • रिलैक्सेशन थेरेपी, मेडिटेशन, रिफ्लेक्सोलॉजी और योग भी पीएमडीडी में राहत दे सकते हैं, लेकिन इनका व्यापक रूप से अध्ययन नहीं किया गया है. 
  • चीनी, नमककैफीन का सेवन कम करना, प्रोटीन की मात्रा बढ़ाना और व्यायाम, तनाव प्रबंधन तकनीक और मासिक धर्म को पॉजिटिव तरीके से देखने में मदद मिल सकती है. 
  • ऐसी गतिविधियां करें जो तनाव को दूर करती हैं, जैसे पढ़ना, मूवी देखना, टहलने जाना या स्नान करना या अपना कोई पसंदीदा काम करना.

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प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर एक स्वास्थ्य समस्या है. पीएमडीडी माहवारी शुरू होने से पहले या दो सप्ताह में गंभीर चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन या चिंता का कारण बनती है. प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के लक्षण कुछ समय या लंबे समय तक भी रह सकते हैं, इसलिए लक्षण बिगड़ने या लंबे समय तक रहने पर जल्द से जल्द इलाज करवाने की सलाह दी जाती है. कुछ दवाइयों के सेवन से इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं. किसी भी प्रकार की दवाइयों के सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी हैं.

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