पूरी दुनिया को थैलेसीमिया बीमारी के बारे में जागरूक करने के मकसद से हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। थैलेसीमिया, रक्त विकार यानी खून से संबंधित एक ऐसी बीमारी है जो माता-पिता से आनुवांशिक तौर पर बच्चों तक पहुंचती है। इस बीमारी में शरीर में ऑक्सीजन का संचार करने वाले प्रोटीन हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है। हीमोग्लोबिन, लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) को शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाने का काम करता है। ऐसे में अगर शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाए तो इसका मतलब है कि पूरे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी जिससे एनीमिया होने का भी खतरा रहता है।

अगर माता-पिता दोनों ही थैलेसीमिया के कैरियर हों तो शिशु को गंभीर थैलेसीमिया होने का खतरा 25 प्रतिशत अधिक होता है। भारत की बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर साल करीब 10 हजार शिशु, थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। ऐसे में शिशु के इलाज में होने वाले खर्च की वजह से परिवार के खर्च पर अतिरिक्त बोझ बहुत अधिक हो जाता है।

गंभीर थैलेसीमिया मुख्य रूप से दो तरह का होता है- अल्फा थैलेसीमिया और बीटा थैलेसीमिया। अल्फा थैलेसीमिया में कम से कम एक अल्फा ग्लोबिन जीन्स में विकृति या उत्परिवर्तन होता है जबकि बीटा थैलेसीमिया में बीटा ग्लोबिन जीन्स प्रभावित होते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको थैलेसीमिया के इलाज से जुड़ी 3 बातों के बारे में बता रहे हैं।

  1. थैलेसीमिया का इलाज
  2. थैलेसीमिया के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट
  3. थैलेसीमिया के लिए लुस्पाटरसेप्ट दवा को मंजूरी
थैलेसीमिया दिवस: बीमारी के इलाज के बारे में ये 3 बातें जानना हैं जरूरी के डॉक्टर

थैलेसीमिया के मरीजों को 6 महीने की उम्र से लेकर जीवन में तब तक खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है जब तक बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए उनका इलाज न हो जाए। हर एक यूनिट खून के साथ थैलेसीमिया के मरीज को 126 मिलिग्राम आयरन प्राप्त होता है। यह आयरन शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जमा होने लगता है जिसे दवाइयों की मदद से मैनेज कर आयरन के लेवल को कम करना पड़ता है। थैलेसीमिया के कई दूसरे लक्षणों की बात करें लंबाई न बढ़ना, शरीर का वजन न बढ़ना और इंफेक्शन होने का खतरा अधिक।

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Long Time Capsule
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

मौजूदा समय में थैलेसीमिया का एकमात्र इलाज है बोन मैरो ट्रांसप्लांट। इसमें स्टेम सेल्स का स्त्रोत या तो मरीज का कोई भाई-बहन हो सकता है या फिर मरीज के परिजन बाहर से उसके लिए कोई मैच खोज सकते हैं। इसके लिए देशभर में कई रेजिस्ट्रीज भी बनी हुई हैं। अगर बीमारी के शुरुआती स्टेज में ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो जाए तो करीब 80 प्रतिशत थैलेसीमिया के मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं।

अमेरिका के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने एक नई दवा लुस्पाटरसेप्ट को थैलेसीमिया से पीड़ित वयस्क मरीजों के इलाज में इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है। यह एक इंजेक्शन है। क्लिनिकल ट्रायल में लुस्पाटरसेप्ट लेने वाले थैलेसीमिया के मरीजों में खून चढ़ाने की जरूरत में 70 प्रतिशत तक की कमी देखी गई।

हालांकि भारत जैसा देश जहां संसाधनों की कमी है, थैलेसीमिया के मरीजों के लिए बचाव ही इलाज का बेहतरीन तरीका है। पिछले कुछ सालों में भारत सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं जैसे- मरीजों की खून चढ़ाने की प्रक्रिया को फ्री करना और उन्हें नियमित रूप से आयरन किलेटर्स की दवाइयों की सप्लाई करना। ऐसा करने से इन मरीजों के जीवित रहने की संभावनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है और उनकी जीवन जीने की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

अगर दोनों माता-पिता थैलेसीमिया के संवाहक हों तो प्रेगनेंसी के 10 से 12 सप्ताह के अंदर अगर गर्भ में पल रहे भ्रूण की टेस्टिंग करवा ली जाए तो शिशु को गंभीर थैलेसीमिया होने से बचाया जा सकता है। ऐसा करने से थैलेसीमिया से मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

शहर के हेमेटोलॉजिस्ट खोजें

  1. सूरत के हेमेटोलॉजिस्ट
Dr. Srikanth M

Dr. Srikanth M

रक्तशास्त्र
25 वर्षों का अनुभव

Dr. Kartik Purohit

Dr. Kartik Purohit

रक्तशास्त्र
13 वर्षों का अनुभव

ऐप पर पढ़ें