गर्भावस्था के दौरान उत्साह में हेवी एक्सरसाइज करना मां और बच्चे दोनों के लिए सही नहीं है। एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि ऐसा करने पर गर्भवती महिला में जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह) और नवजात बच्चे में फेटल मैक्रोसोमिया (जन्म के समय सामान्य से ज्यादा वजन और लंबाई होना) जैसी कंडीशन की वजह बन सकता है। अमेरिका के पेनसेल्वेनिया स्थित लिहाई यूनिवर्सिटी में हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने न्यू जर्सी राज्य के स्वास्थ्य विभाग के जॉब डेटा की पहले से एकत्र किए मेटर्नल और फेटल हेल्थ डेटा से तुलना की है।

खबर के मुताबिक, इस प्रक्रिया में पता चला है कि गर्भावस्था के समय जो महिलाएं शारीरिक गतिविधि में ज्यादा वक्त बिताती हैं, उनमें (अर्थात उनके नवजात बच्चे में) फेटल मैक्रोसोमिया होने का खतरा 17 प्रतिशत ज्यादा होता है। ऐसा होने पर पैदा होने वाले बच्चों का वजन आठ पाउंड (3.6 किलोग्राम) से अधिक होता है और उसके युवा अवस्था में मोटापे का शिकार होने का खतरा पैदा हो जाता है। इतना ही नहीं, महिला में भी आगे चलकर ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा हो सकता है।

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  1. नींद में कमी से जेस्टेशनल डायबिटीज - स्टडी

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जेस्टेशनल डायबिटीज और प्रेग्नेंसी में इंटेंसिव फिजिकल एक्टिविटी के बीच संबंध होने का पता लगाया है। यह कंडीशन फेटल मैक्रोसोमिया का एक बड़ा कारण मानी जाती है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि ज्यादा शारीरिक गतिविधि के कारण नींद में कमी होने से जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या हो सकती है, जो बाद में फेटल मैक्रोसोमिया का कारण बन सकती है। हालांकि यह संबंध पहले से ज्ञात बताया जाता है, लेकिन इस बारे में ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किए गए हैं। कई जानकारों का मत है कि मेडिकल कम्युनिटी को इस विषय पर और ध्यान देने की आवश्यकता है। 

शीर्ष अमेरिकी हेल्थ एजेंसी सीडीसी के हवाले से मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं के लिए यह सबसे उपयुक्त है कि वे अपने डॉक्टर से बात करके ही यह तय करें कि उनके लिए किस स्तर की फिजिकल एक्टिविटी उचित और पर्याप्त है, क्योंकि गर्भावस्था से जुड़ी कुछ कंडीशन के चलते कुछ न कुछ शारीरिक गतिविधि करना जरूरी होता है। लेकिन उसकी इंटेसिटी कितनी ज्यादा या कम हो, इस पर डॉक्टरी सलाह लेना जरूरी माना जाता है। जानकार बताते हैं कि अगर महिला बिल्कुल भी वर्कआउट नहीं करती है तो गर्भवती होने पर उसे अचानक से ज्यादा एक्सरसाइज करना शुरू नहीं करना चाहिए। बेहतर होगा कि शुरुआत में प्रतिदिन केवल पांच मिनट एक्सरसाइज की जाए और थोड़े-थोड़े समय बाद पांच-पांच मिनट बढ़ाते हुए एक्सराइज को बढ़ाया जाए ताकि डॉक्टर द्वारा सुझाए गए व्यायाम स्तर तक पहुंचने में मदद मिले।

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गर्भावस्था में व्यायाम जैसे विषय पर आया यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण हैं। महिलाएं, विशेषकर गर्भवती महिलाएं, इसे लेकर काफी उलझन में रहती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान उन्हें किस प्रकार व्यायाम कितनी मात्रा या समय तक करना चाहिए। वैसे इस विषय पर सीडीसी और अन्य अमेरिकी हेल्थ इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों का कहना है कि सभी गर्भवती महिलाओं को हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट कम स्तर की इंटेसिटी वाली एक्सरसाइज करनी चाहिए। इनमें ब्रिस्क वॉकिंग जैसे व्यायाम शामिल किए जा सकते हैं। ये व्यायाम हार्ट रेट बढ़ाते हैं, लेकिन पसीना आने का कारण नहीं बनते।

हालांकि हालिया सालों में आए अध्ययन बताते हैं कि महिलाएं पहले से ज्यादा काम कर रही हैं और ऐसा प्रेग्नेंसी के समय भी चलता रहता है। वे इस अवस्था में भी हेवी फिजिकल एक्टिविटी में शामिल रहती हैं, जिसका संबंध प्रेग्नेंसी के दौरान उनमें पैदा होने वाले रासायनिक प्रभावों से है। लिहाजा उनके काम से संबंधित तनाव से उनकी प्रेग्नेंसी और चाइल्डबर्थ पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंतापूर्वक विचार करने की जरूरत है।

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