मीट का ज्यादा सेवन बच्चों में वीजिंग यानी घरघराहट की समस्या का कारण बन सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पके मीट में मौजूद पदार्थ बच्चों को सांस लेने से जुड़ी इस कंडीशन से ग्रस्त कर सकते हैं। अमेरिका के माउंट सिनाई के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस दावे से जुड़े अध्ययन को थोरैक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। यह स्टडी एडवांस ग्लाइकेशन एंड-प्रॉडक्ट्स (एजीई) नाम के कंपाउंड्स पर चर्चा करती है, जो शरीर में इन्फ्लेमेशन बढ़ाने का काम करते हैं। इसमें शोधकर्ताओं ने कहा है कि प्रारंभिक जीवन में खान-पान से जुड़ी आदतें बच्चों में घरघराहट की समस्या होने के खतरे को बढ़ा सकती हैं और भविष्य में अस्थमा होने की वजह भी बन सकती हैं।

अमेरिका में रहने वाले बच्चों में हाल के सालों में अस्थमा के मामले बढ़े हैं। जानकार इसे उनके खाने-पीने की आदतों से जोड़कर देखते हैं, विशेषकर मांस के सेवन से। इसीलिए शोधकर्ताओं ने अध्ययन में दो साल से 17 साल के बीच के 4,388 बच्चों के आंकड़े इकट्ठे किए। ये आंकड़े 2003 से 2006 के बीच अमेरिका के नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रीशन एग्जामिनेशन सर्वे से लिए गए थे। इनसे मिली जानकारी के आधार पर वैज्ञानिकों ने बच्चों में खान-पान के कारण एजीई की मात्रा, उनमें मांस उपभोग की फ्रीक्वेंसी तथा श्वसन संबंधी लक्षणों का आंकलन किया। इसमें उन्होंने पाया कि जिन बच्चों में (मांस सेवन के कारण) एजीई का प्रभाव ज्यादा था, उनमें वीजिंग या घरघराहट के लक्षण अन्य बच्चों की तुलना में अधिक थे। ये बच्चे ऐसी वीजिंग से विशेष रूप से पीड़ित थे, जो सोते और एक्सरसाइज करते समय ज्यादा परेशान करती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों को इसके इलाज के लिए मेडिकेशन की जरूरत पड़ सकती है।

अध्ययन के परिणामों पर इसके प्रमुख लेखक और माउंट सिनाई के आइकन स्कूल ऑफ मेडिसिन के रिसर्च फेलो जिंग जेनी वांग कहते हैं, 'हमने पाया है कि डायटरी एजीई, जो अधिकतर नॉन-सीफूड मीट से आता है, के सेवन का बच्चों में घरघराहट की समस्या के ज्यादा खतरे से संबंध है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनकी ओवरऑल डाइट की गुणवत्ता कैसी है।' वहीं, एक अन्य वरिष्ठ लेखक आईसीएम की असिस्टेंट प्रोफेसर सोनाली बोस का कहना है, 'यह अध्ययन उन डायटरी फैक्टर्स को आइडेंटिफाई करता है जो बच्चों में श्वसन संबंधी लक्षणों को प्रभावित करते हैं। यह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इस प्रकार के खतरों को टाला जा सकता है। उम्मीद है हमारे परिणाम भविष्य में होने वाले बड़े अध्ययनों को इस बारे में शोध करने के लिए प्रेरित करेंगे कि क्या इस प्रकार के विशेष डायटरी कॉम्पोनेंट बचपन में होने वाले श्वसन रोग, जैसे अस्थमा, में कोई भूमिका निभाते हैं या नहीं।'

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