जब आत्महत्या के कारण किसी का जीवन खत्म हो जाता है- ऐसा कदम उठाने वाला फिर चाहे कोई युवा हो, बुजुर्ग हो, दोस्त हो या कोई ऐसा व्यक्ति जिससे आप कभी नहीं मिले- तो इस बारे में दुख व्यक्त करना बेहद सामान्य सी बात है और ऐसा करना जरूरी भी होता है। दुख व्यक्त करना एक नैचरल प्रक्रिया है जिसकी मदद से हमें हालात का सामना करने में मदद मिलती है। लेकिन जब बात आत्महत्या की आती है तो इस दौरान हमारी प्रतिक्रिया सिर्फ शोक व्यक्त करने से कुछ अधिक होनी चाहिए सिर्फ इसलिए क्योंकि आत्महत्या को रोका जा सकता है। 

एक विख्यात मनोचिकित्सक और फोर्टिस हेल्थकेयर में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड बिहेवियरल साइंसेज के डायरेक्टर डॉ समीर पारिख कहते हैं, 'हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि आत्महत्या, दुनियाभर में लोगों की मौत होने के टॉप 10 कारणों में से एक है और डिप्रेशन या अवसाद दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी है। इसका आपके व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि, वर्ग, स्थिति या सफलता से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि किसी अन्य प्रकार की बीमारी की तरह ही ये भी सिर्फ एक बीमारी है।'

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सबसे पहले तो यह समझना बेहद आवश्यक है कि डिप्रेशन एक चिकित्सीय स्थिति है। डॉ पारिख आगे बताते हैं, 'हम में से कोई भी मलेरिया, टायफाइड या आज की तारीख में कोविड-19 बीमारी का शिकार हो सकता है और ठीक इसी तरह हम में से किसी को भी अवसाद या डिप्रेशन हो सकता है। जिस तरह दुनियाभर के 30 करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार हैं, उन्हीं की तरह आप और मां भी अवसादग्रस्त हो सकते हैं। हमें यह अहसास होना जरूरी है कि हम सभी के जीवन में एक दो नहीं बल्कि ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से हमें तनाव होता है, हम स्ट्रेस में होते हैं। लिहाजा यह जरूरी है कि हम इसे महसूस करें और उसके बाद हम खुद में लचीलापन, समर्थन, करूणा और सहानुभूति लाने की कोशिश करें। इतना ही नहीं, हमें इस पूरे विवरण में मानसिक स्वास्थ्य के चिकित्सीय पहलू को भी लाने की जरूरत है ताकि लोग बिना किसी डर, लांछन या हिचकिचाहट के मदद मांगने का हाथ आगे बढ़ा सकें।'

आत्महत्या की रोकथाम- ये हमारा लक्ष्य क्यों होना चाहिए
दुनियाभर में आत्महत्या की दर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट जो पिछले साल ही जारी की गई थी उसके मुताबिक, सभी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में से भारत में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है जो प्रति 1 लाख पर 16.5 है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज इन्जूरीज एंड रिस्क फैक्टर्स की स्टडी के आंकड़ों की मानें तो साल 2016 में दुनियाभर में हुए आत्महत्या के कुल मामलों में से भारत में महिलाओं में आत्महत्या की दर 36.6% और पुरुषों में 24.3% थी। 

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ये आंकड़े बेहद डराने वाले हैं और मौजूदा समय में कोविड-19 महामारी जब से शुरू हुई है और लोग जिस परिस्थिति में रह रहे हैं उसके बाद से तो अवसाद या डिप्रेशन जैसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों और समस्याओं के बढ़ने की आशंका बनी रहती है। दुर्भाग्यवश, मौजूदा स्थिति के कारण बहुत सारे लोग इस वक्त असुरक्षित महसूस कर सकते हैं और उन्हें आत्महत्या करने से रोकने के लिए तत्काल मदद की जरूरत है। सबसे अच्छा यही है कि आप आत्महत्या की रोकथाम को एक लक्ष्य बनाएं और निम्नलिखित कार्रवाई योग्य लक्ष्यों को अपनाकर किसी को आत्महत्या करने से रोकने में अपनी भूमिका निभाएं।

1. इससे जुड़े कलंक या लांछन को दूर करें : अपने दोस्तों, रिश्तेदारों जितने भी सामाजिक दायरों में आप सक्रिय हैं उन सभी जगहों पर मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दे, डिप्रेशन और आत्महत्या पर बात करें ताकि अगर कोई व्यक्ति अपनी मानसिक सेहत के बारे में खुलकर बात करना चाहे तो उससे जुड़े कलंक या लांछन को पूरी तरह से दूर किया जा सके। ऐसा करना बेहद जरूरी है कि क्योंकि लांछन या स्टिगमा ही वह कारण है जो किसी व्यक्ति को जिसे मदद की जरूरत है उसे मदद मांगने से रोक लेता है। लिहाजा यह सरकार के साथ साथ हर शख्स और समुदाय की भी जिम्मेदारी है कि मानसिक सेहत से जुड़े कलंक को दूर किया जाए।

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2. चेतावनी से जुड़े संकेतों पर नजर रखें : ऐसा नहीं कि वैसे लोग जिन्होंने पहले आत्महत्या करने की कोशिश की है सिर्फ उन्हीं के द्वारा आत्महत्या करने का खतरा अधिक है। आपको आत्महत्या से जुड़ी चेतावनी के संकेतों के बारे में पता होना चाहिए जैसे- दुनिया और आसपास मौजूद लोगों से पीछा छुड़ाने की कोशिश करना, अचानक से शांत हो जाना, खुद को नुकसान पहुंचाने वाला व्यवहार करना आदि। वैसे लोग जिनमें ये संकेत दिखें उनके पास जाकर मदद का हाथ बढ़ाएं। इतना ही नहीं अगर कोई आत्महत्या की धमकी देता हो तो उसकी चेतावनी को गंभीरता से लें खासकर किशोरावस्था में।

3. मदद का हाथ बढ़ाएं : अगर कोई व्यक्ति खुद को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच रहा हो तो ऐसे व्यक्ति से बात करने और उसके पास जाने के मामले में जरा संवेदनशील रहें, आपको इतना सक्षम होना चाहिए कि आप उन्हें अपने साथ संलग्न कर पाएं, उस व्यक्ति के बारे में बिना कोई विचार बनाए बिना उनकी स्थिति का पता लगाना चाहिए, आत्महत्या के जोखिम की पहचान करके उनसे सीधे पूछें कि क्या वे इस पर विचार कर रहे हैं, इसके बाद अपने सहज ज्ञान (गट फीलिंग) और स्पष्ट रूप से मौजूद जोखिम कारक दोनों के आधार पर मौजूदा स्थिति का आकलन करें। अगर इन सारी बातों के बारे में सीधे उस व्यक्ति से बात करने में आपको संकोच हो रहा हो तो किसी ऐसे व्यक्ति की मदद लें जो ऐसा करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हो या फिर कोई प्रफेशनल। जब बात आत्महत्या की आती है तो कुछ न करने से तो बेहतर है कि आप कुछ ज्यादा कर दें।

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4. सही प्रशिक्षण लें : मानसिक सेहत से जुड़े प्रफेशनल्स के साथ ही आम जनता दोनों को आत्महत्या रोकने के प्रभावी तरीकों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। जिस तरह सीपीआर देने का तरीका सभी को पता होना चाहिए उसी तरह एक पद्धति है- क्यूपीआर (QPR- क्वेश्चन- सवाल पूछना, परसुएड- समझाना और रेफर- परामर्श हेतु भेजना) जो आत्महत्या को रोकने में असरदार है। कोलैबोरेटिव असेसमेंट एंड मैनेजमेंट ऑफ सुसाइडैलिटी या सीएएमएस दृष्टिकोण भी एक टेक्नीक है जिसके बारे में सभी को पता होना चाहिए और उन्हें यह सिखाना भी चाहिए।

5. संसाधनों का निर्माण करें : कोई व्यक्ति जिसे मदद की जरूरत है उसे सिर्फ आत्महत्या से बचाव का हेल्पलाइन नंबर देना या उन्हें यह कहना कि मेंटल हेल्थ प्रफेशनल से मदद ले लो, इतना करना काफी नहीं है। आत्महत्या की रोकथाम के लिए व्यक्तिगत स्तर पर, सामुदायिक स्तर पर, क्षेत्रीय- स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर जरूरी प्रयास किए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए डॉ पारिख कहते हैं, 'अब समय आ गया है कि भारत में एक राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति बनाई जाए। इन संसाधनों के निर्माण के लिए प्रयास करने की जरूरत है, इन संसाधनों की पहुंच और प्रभावशीलता को आसान बनाने के बारे में व्यापक अभियान की जरूरत है और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े रहस्यों को हटाने वाले ऐसे रोल मॉडल्स की जरूरत है जो कमजोर और अतिसंवेदनशील लोगों में विश्वास पैदा कर पाएं।'

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