शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर (SWSD) उन लोगों को प्रभावित करता है, जो अलग-अलग शिफ्ट में काम करते हैं या खासकर रात में काम करते हैं. अनिद्रा और अधिक नींद आना एसडब्ल्यूएसडी के सामान्य लक्षण माने जाते हैं. दरअसल, जब व्यक्ति अलग-अलग शिफ्ट में काम करता है, तो यह वर्क शेड्यूल उनके आंतरिक बॉडी क्लॉक या सर्कैडियन रिदम को प्रभावित करता है. इस स्थिति में व्यक्ति के सोने-जागने का पूरा शेड्यूल गड़बड़ा जाता है और उसकी पूरी दिनचर्या प्रभावित होने लगती है. इससे 10 से 40 प्रतिशत लोग प्रभावित हो सकते हैं.

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आज इस लेख में आप शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के लक्षण
  2. शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के कारण
  3. शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का इलाज
  4. सारांश
शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के लक्षण, कारण व इलाज के डॉक्टर

एसडब्ल्यूएसडी एक पुरानी या दीर्घकालिक स्थिति है. कुछ लोग अपने इस वर्किंग शेड्यूल से बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं. इसके लक्षण अक्सर दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं. इस अवस्था में निम्न लक्षणों को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए -

जो लोग लंबे समय से शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का सामना कर रहे हैं, उनके लक्षण बिगड़ सकते हैं और कई गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकते हैं. यह डिसऑर्डर हृदय स्वास्थ्य और पाचन क्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. इसके अलावा, यह कैंसर के खतरे को भी बढ़ा सकता है.

अगर कोई बुजुर्ग पुरुष या महिला नाइट शिफ्ट में काम करते हैं, तो उनमें गंभीर रूप से नींद की कमी देखने को मिल सकती है. इसलिए, एसडब्ल्यूएसडी के लक्षणों को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए.

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शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का मुख्य कारण गैर-पारंपरिक घंटों में काम करना होता है. आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं -

  • इवनिंग शिफ्ट में काम करना
  • नाइट शिफ्ट में काम करना
  • घूमने वाली शिफ्टों में काम करना
  • सुबह बहुत जल्दी वाली शिफ्ट में काम करना

जो लोग इन शिफ्ट में काम करते हैं, उनमें शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के लक्षण दिख सकते हैं. इन वर्किंग शिफ्ट शेड्यूल को शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का कारण माना जाता है. इसके विपरीत जो लोग सुबह 9 और शाम के 5 बजे वाले शिफ्ट में काम करते हैं, उनमें यह समस्या देखने को नहीं मिलती है.

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शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का इलाज जीवनशैली में बदलाव करके और डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाइयों के माध्यम से किया जा सकता है. अगर शुरुआत में किसी को एसडब्ल्यूएसडी के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो जीवनशैली में बदलाव करने की जरूरत होती है. वहीं, इसके बाद अगर लक्षण गंभीर होते जाते हैं, तो दवाइयों की मदद ली जा सकती है. शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का इलाज इस प्रकार है -

जीवनशैली में सुधार करें

अगर कर्मचारी अपने काम के घंटे नहीं बदल पा रहे हैं, तो जीवनशैली में सुधार करके एसडब्ल्यूएसडी के प्रभाव को कम कर सकते हैं. जीवनशैली में बदलाव करके नींद और थकान को दूर करने में मदद मिल सकती है.

  • हर दिन कम से कम सात से नौ घंटे की नींद जरूर लें. अगर आप शिफ्ट में काम कर रहे हैं, तो भी अपनी नींद को प्राथमिकता दें.
  • अच्छी नींद के लिए सोने से एक घंटे पहले फोन, टीवी या लैपटॉप को देखना बंद कर दें. 
  • दिन में शोर काफी डिस्टर्ब करता है, जिससे सही नींद नहीं आती है. ऐसे में आप शोर को कम करने के लिए वाइट नॉइज मशीन या ईयर प्लग का उपयोग कर सकते हैं.
  • छुट्टी के दिनों में अपनी नींद को पूरी करने की कोशिश करें.
  • अगर संभव हो, तो कई शिफ्ट के बाद 48 घंटे की छुट्टी लें.
  • धूप से बचने के लिए धूप का चश्मा पहनें. इससे आपको नींद अच्छी आएगी.
  • सोने से चार घंटे पहले कैफीन का सेवन सीमित करें.
  • फलों और सब्जियों से भरपूर बैलेंस डाइट लें.
  • जिस कमरे में आ सो रहे हैं, वहां शांति रखें और लाइट रंगों के प्रयोग से बचें.
  • हो सके तो लंबी यात्रा करने से बचें. इससे आपके सोने के घंटों में कमी आ सकती है और नींद की कमी हो सकती है.

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दवाइयों का सेवन

जो लोग जीवनशैली को सही रखते हैं, उनमें एसडब्ल्यूएसडी के लक्षण कम ही देखने को मिलते हैं. फिर भी जब गैर-पारंपरिक घंटों में काम किया जाता है, तो नींद प्रभावित हो ही जाती है. इसकी वजह से शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के लक्षण नजर आने लगते हैं. जब एसडब्ल्यूएसडी के लक्षण लंबे समय तक रहते हैं और ये स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगते हैं, तो डॉक्टर कुछ दवाइयां खाने की सलाह दे सकते हैं.

  • मेलाटोनिन - मेलाटोनिन एक हार्मोन होता है, जो नींद के लिए जरूरी होता है. दरअसल, शरीर में मेलाटोनिन रात के समय बढ़ता है जिससे नींद अच्छी आती है. वहीं, सुबह के समय इसका स्तर कम होने लगता है, जिससे व्यक्ति जागता है. लेकिन जब कोई व्यक्ति रातभर शिफ्ट में काम करता है, तो उसे सुबह की नींद चाहिए होती है. ऐसे में अगर किसी को सुबह नींद नहीं आ रही है, तो वो मेलाटोनिन की खुराक ले सकता है. मेलाटोनिन एक ओवर-द-काउंटर दवा है, जिसे पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है. 
  • हिप्नोटिक्स और सेडटिव्स - हिप्नोटिक्स और सेडटिव्स (Hypnotics and sedatives) का कॉम्बिनेशन शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का इलाज कर सकता है. इनमें जोल्पिडेम और एसजोपिक्लोन शामिल हैं. नींद की समस्या होने पर इन दवाइयों का सेवन डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए. 
  • मोडाफिनिल - शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर का इलाज मोडाफिनिल (Modafinil) भी कर सकता है. मोडाफिनिल नींद में सुधार कर सकता है. इसके साथ ही यह ध्यान केंद्रित करने में भी मदद कर सकता है.
  • ब्राइट लाइट थेरेपी - ब्राइट लाइट थेरेपी एक प्राकृतिक प्रकार का प्रकाश है, जिसका उपयोग दिन के दौरान किया जाता है. यह शरीर की सर्कैडियन रिदम को सोने और जागने के घंटों को मैनेज करने मदद कर सकता है.

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शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर नींद से जुड़ी समस्या है. यह उन लोगों में देखने को मिलती है, जो नाइट शिफ्ट या गैर-पारंपरिक घंटों में काम करते हैं. इन शिफ्ट में काम करने का असर व्यक्ति की नींद पर पड़ता है और धीरे-धीरे इसके लक्षण बढ़ते जाते हैं. अगर आप नाइट शिफ्ट में काम करते हैं और आपको सुबह के समय नींद आने में दिक्कत होती है, तो एक बार डॉक्टर से जरूर मिलें और अपनी जीवनशैली को भी अच्छा बनाए रखें.

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