रोज रात को अतिरिक्त 29 मिनट सोने से माइंडफुलनेस में सुधार हो सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है, जिसे स्लीप हेल्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि रात की नींद से जुड़े मल्टीपल डाइमेंशन प्रतिदिन माइंडफुलनेस को किस तरह प्रभावित करते हैं। अध्ययन के परिणामों के मुताबिक, रात को मिली बेहतर नींद अगले दिन माइंडफुलनेस में सुधार कर सकती है। इसके बदले दिन में सोने की आदत में कमी होती है। आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि यह माइंटफुलनेस क्या चीज है।

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क्या है माइंडफुलनेस?
माइंडफुलनेस को स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकार एक तरह का मेडिटेशन बताते हैं, जिसमें व्यक्ति एक विशेष वर्तमान अवधि में संवेदनाओं और भावनाओं के प्रति अपनी समझ और जागरूकता पर ध्यान लगाता है, लेकिन उन पर किसी तरह की राय नहीं बनाता और न ही उन्हें निर्धारित करने का प्रयास करता है। इस क्रिया में सांस लेने से जुड़े मेथड, मार्गदर्शित कल्पना और अन्य प्रकार की प्रैक्टिस शामिल हैं, जिनसे शरीर रिलैक्स होता है और तनाव को कम करने में मदद मिलती है।

इस मेडिटेशन में सुधार लाने के मकसद से अध्ययन के शोधकर्ताओं ने नर्सों को शामिल किया, जो किसी भी हेल्थकेयर सिस्टम का सबसे बड़ा हिस्सा होते हैं। उनका काम उनकी नींद में बाधक बनता है। ऐसे में उनमें पर्याप्त नींद लेने की और माइंडफुट अटेंशन की मांग ज्यादा होती है। शिफ्ट का काम होने के चलते वे इन दोनों से वंचित रहते हैं, जो नींद से जुड़ी समस्याओं की वजह बनता है। वे स्थिति के हिसाब से नियंत्रण नहीं कर पाते और कभी-कभी जानलेवा कंडीशंस में पहुंच जाते हैं। लिहाजा उनके लिए उचित मात्रा में नींद लेना बहुत जरूरी हो जाता है।

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इस मुद्दे पर बात करते हुए अध्ययन से जुड़ी लेखिका सूमी ली कहती हैं, 'कोई व्यक्ति जगा और अलर्ट तो हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वह माइंडफुल भी हो। इसी तरह, कोई और व्यक्ति थका या कम उत्तेजित हो सकता है, फिर भी वह माइंडफुल बना रह सकता है। माइंडफुल अटेंशन, जागे रहने से अलग चीज हैं। यह बताता है कि आपका अटेंशन कंट्रोल और आत्मनियंत्रण कैसा है, जिससे आपकी समझ बढ़ती है और आसपास के माहौल और आंतरिक संकेतों के साथ अनुकूल समायोजन करने में मदद मिलती है।'

ली और उनके सहयोगी शोधकर्ताओं ने 61 नर्सों की स्लीप हेल्थ यानी नींद से जुड़े स्वास्थ्य के अलग-अलग पहलुओं पर गौर किया। उन्होंने पाया कि थोड़ा अतिरिक्त सोने से नर्सों का माइंडफुल अटेंशन सुधरा और उचित नींद के साथ ज्यादा बेहतर होता चला गया। उनकी स्लीप क्वालिटी भी सुधरी, बार-बार सोने की आदत में कमी हुई और अन्य प्रकार के भी बदलाव देखने को मिले। रोजाना माइंडफुल अटेंशन के चलते दिन में सोना कम हो गया। इसके अलावा, दो हफ्ते की इस अवधि में 66 प्रतिशत नर्सों में अनिद्रा के लक्षण कम होने की संभावना भी बढ़ गई।

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