अमेरिका के वैज्ञानिकों ने सायकोटिक डिसऑर्डर के पूर्वानुमान को लेकर एक नई खोज की है। उनके मुताबिक, ब्लड टेस्ट के जरिये खून में कुछ विशेष प्रकार के प्रोटीनों के लेवल पता लगाकर यह अनुमान पहले ही लगाया जा सकता है कि सायकोसिस के खतरे से जूझ रहे किसी व्यक्ति को आगे चलकर सायकोटिक डिसऑर्डर हो सकता है या नहीं। इस खोज से जुड़ा अध्ययन जामा साइकाइट्री पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसका नेतृत्व आयरलैंड की आरसीएसआई यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंस ने किया था।

कुछ विशेष क्राइटेरिया, जैसे अल्पकालीन मनोरोग लक्षण, के आधार पर यह माना जाता है कि कुछ लोग क्लिनिकली सायकोटिक डिसऑर्डर के खतरे में हो सकते हैं। मिसाल के लिए स्किजोफ्रेनिया। हालांकि ऐसे लोगों में से केवल 20 से 30 प्रतिशत में ही वास्तव में सायकोटिक डिसऑर्डर विकसित हो पाता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने सायकोसिस के ज्यादा जोखिम वाले कुछ लोगों के ब्लड सैंपल लेकर उनका विश्लेषण करने का फैसला किया। 

दरअसल, वैज्ञानिक इन लोगों पर वर्षों से नजर बनाए हुए थे, यह देखने के लिए कि उनमें से किस-किस में सायकोटिक डिसऑर्डर विकसित होगा। बाद में इन लोगों के खून के नमूने लेने का फैसला किया गया और उनकी जांच की गई। परिणामों से जुड़े डेटा का मशीन लर्निंग या कहें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से विश्लेषण किया गया। इससे वैज्ञानिक यह जानने में कामयाब रहे कि शुरुआती ब्लड सैंपलों में प्रोटीन का पैटर्न क्या था। इससे यह पता लगाने में मदद मिली कि अध्ययन के तहत जिन लोगों के सैंपल लिए गए, उनमें से कौन-कौन सायकोटिक डिसऑर्डर का शिकार हुआ और कौन नहीं।

अध्ययन की मानें तो सायकोटिक डिसऑर्डर का पूर्वानुमान देने वाले कई प्रोटीन इनफ्लेमेशन में मौजूद होते हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि सायकोटिक डिसऑर्डर के विकास की शुरुआत में शरीर के इम्यून सिस्टम में भी प्रारंभिक बदलाव आते हैं। यह भी पता चला कि इन प्रोटीनों की जानकारी के आधार पर ब्लड सैंपल भावी हेल्थ कंडीशन के बारे में सालों पहले ही अनुमान लगाने में मददगार हो सकते हैं।

अध्ययन और इसके परिणामों से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए आरसीएसआई के मॉलिक्यूलर साइकाइट्री के प्रोफेसर और लेखक डेविड कॉटर ने कहा, 'हमारा उद्देश्य मनोरोगों को रोकना है। लेकिन इसके लिए ऐसी क्षमता हासिल करने की जरूरत है, जो बता सके कि वास्तव में कौन इस समस्या के खतरे में है। हमारे शोध से यह साफ हुआ है कि मशीन लर्निंग और खून में प्रोटीन लेवल के विश्लेषण से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन व्यक्ति वाकई में सायकोसिस के खतरे में है और किसे प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट से फायदा हो सकता है।'

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