एक शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसे विशेष प्रकार के सेल (कोशिका) की खोज की है, जो हड्डियों के निर्माण और उनके पोषण में अहम भूमिका निभाता है। इस खोज को हड्डियों की कमजोरी से जुड़ी बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए भविष्य की थेरेपी में संभावित भरोसेमंद टार्गेट के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसेल्वेनिया के पेरलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के फैकल्टी स्टाफ के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अस्थि मज्जा (बोन मैरो) से जुड़े फैट सेल्स के फॉर्मेशन (एडिपोजेनेसिस) की वंशागत कोशिकाएं (एमएएलपी) हड्डियों के स्वयं को रीमॉडल करने की प्रक्रिया में अहम रोल निभाती हैं। इनसे जुड़े प्रोसेस में किसी प्रकार की खराबी या कमी होने के चलते ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है। इस जानकारी का पता चलने के बाद शोधकर्ताओं ने कहा है कि एमएएलपी कोशिकाओं का इस्तेमाल करके बोन रीमॉडलिंग को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे हड्डियों की कमजोरी से जुड़े कई ट्रीटमेंट को सुधारा जा सकता है। यह जानकारी अध्ययन समेत मेडिकल पत्रिका जर्नल ऑफ क्लिनिकल इनवेस्टिगेशन में प्रकाशित हुई है।

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खबर के मुताबिक, अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ लेखक और ऑर्थोपैडिक सर्जरी के एसोसिएट प्रोफेसर लिंग किन का कहना है, 'हड्डी में होने वाले बदलाव को नियंत्रित करने के लिए नए सेल्युलर और मॉलिक्यूलर मकैनिज्म की खोज मौजूदा थेरेपी में सुधार लाने और नए उपचारों के विकास में मदद करेगी। मिसाल के लिए, एडवांस जीन एडिटिंग तकनीक और नई सेल-स्पेसेफिक डिलिवरी अप्रोच से भविष्य में ऑस्टियोपोरोसिस जैसे बोन डिसऑर्डर की थेरेपी में एमएएलपी के व्यवहार को रेग्युलेट करना संभव हो सकता है।'

हड्डियों का स्वस्थ रखरखाव उनकी रीमॉडलिंग से जुड़ी कोशिकाओं, जिन्हें ऑस्टियोब्लास्ट कहते हैं, में संतुलन बनाने का काम करता है। इससे हड्डियों से वे मटीरियल निकलते रहते हैं, जो नई हड्डी के लिए जरूरी माने जाते हैं। साथ ही पुराने बोन मटीरियल को सोखने वाली कोशिकाओं (ऑस्टियोक्लास्ट) में भी बैलेंस बना रहता है। इससे नई हड्डी बनने का मार्ग खुलता है। इस संतुलन से जुड़े किसी भी मार्ग में कोई बाधा आने से अनहेल्दी बोन निर्मित होने का खतरा बढ़ जाता है। जानकार बताते हैं कि ऑस्टियोपोरोसिस के मामले में ऑस्टियोक्लास्ट हड्डी को इसके रीफॉर्मेशन की तुलना में जल्दी नष्ट करने लगते हैं। इस कारण हड्डियों की सघनता कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे कमजोर बनती हैं, जिससे व्यक्ति को फ्रैक्चर होने का खतरा हमेशा बना रहता है।

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अभी तक वैज्ञानिकों में इसे लेकर सहमति थी कि पूर्णतया निर्मित हड्डी में ऑस्टियोब्लास्ट और ऑस्टियोसाइट ही ऑस्टियोक्लास्ट के प्रॉडक्शन को सक्रिय करने का काम करते हैं ताकि हड्डी की रीमॉडलिंग की प्रक्रिया फिर से शुरू हो सके। लेकिन दूसरी तरफ, वे एमएएलपी जैसी एडिपोसाइट लिनियज सेल्स की भूमिका से अज्ञात थे कि ये हड्डी के रीजॉर्प्शन को कैसे रेग्युलेट करते हैं। हालांकि अब इस बारे में जानकारी स्पष्ट होती दिख रही है।

इस साल की शुरुआत में प्रोफेसर किन और उनके सहयोगियों ने हड्डियों में एमएएलपी के वजूद का पता लगाया था। वहीं, नए अध्ययनों में इन शोधकर्ताओं ने और स्पष्ट किया है कि बोन टर्नओवर में एमएएलपी किस प्रकार भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि इन कोशिकाओं का ऑस्टियोक्लास्ट से सेल-टू-सेल कॉन्टैक्ट होता है। एडवांस तकनीक की मदद से किन और उनके साथियों ने जाना है कि एमएएलपी सेल्स, आरएएनकेएल नाम का प्रोटीन उच्च स्तर पर स्त्रावित करते हैं, जो ऑस्टियोक्लास्ट के फॉर्मेशन के लिए जरूरी माना जाता है।

इस जानकारी के साथ शोधकर्ताओं ने चूहों के एमएएलपी में आरएएनकेएल की कमियों का अध्ययन किया। जिस समय चूहों की उम्र एक महीना हुई थी, तब से उनकी लंबी हड्डियों के स्पॉन्जी कॉम्पोनेंट की उच्च सघनता 60 प्रतिशत से 100 प्रतिशत हो गई थी। आरएएनकेएल से हुए इस बदलाव को शोधकर्ताओं ने 'जबर्दस्त बढ़ोतरी' बताया है, जो सामान्य चूहों के बोन मास की तुलना में काफी ज्यादा है। अध्ययन से यह साफ हुआ है कि ऑस्टियोब्लास्ट और ऑस्टियोसाइट कोशिकाओं ने अपना काम हमेशा की तरह किया, लेकिन जिस वजह से ऑस्टियोक्लास्ट फंक्शन सक्रिय हुआ और मौजूदा हड्डियों के एब्जॉर्प्शन की प्रक्रिया शुरु हुई, वह मुख्य रूप से एमएएलपी और आरएएनकेएल के कारण देखने को मिली।

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इस जानकारी का पता चलने के बाद प्रोफेसर किन ने कहा है, 'एमएएलपी कोशिकाओं के संपूर्ण संचालन का पता लगाकर हमने एक ऐसे टार्गेट की पहचान कर ली है, जिस पहले कभी भी विचार नहीं किया गया था। अगर आरएएनकेएल के सेक्रेशन को विश्वसनीय ढंग से डिसेबल कर दिया जाए तो इससे ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों में बोन रीमॉडलिंग को संतुलित किया जा सकता है।'

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