ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसा रोग है जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और हडि्डयों के ऊतक खराब होने लगते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्‍चर का खतरा बढ़ जाता है क्‍योंकि हड्डियों के निर्माण और पुन:अवशोषण की प्रक्रिया घट जाती है। विकासशील देशों में ऑस्टियोपोरोसिस को एक महत्‍वपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के रूप में जाना जाता है। इन देशों में 12 प्रतिशत पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं अपने जीवन में कभी न कभी ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित होती हैं। 80 और इससे अधिक उम्र की महिलाओं में कूल्‍हे के फ्रैक्‍चर की शिकायत ज्‍यादा रहती है।

आयुर्वेद के अनुसार वात के स्‍तर का खराब होना अस्थि सुश्रिता या ऑस्टियोपोरोसिस का कारण है। आयुर्वेद में ऑस्टियोपोरोसिस को नियंत्रित करने के लिए दशमूल तेल और महानारायाण तेल से स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि) की सलाह दी जाती है।

ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में शुंथि (सोंठ), अरंडी, रसोनम (लहसुन) और अन्‍य जड़ी बूटियों उपयोगी हैं। प्रवाल पिष्‍टी और योगासन से दर्द में राहत मिलती है और फ्रैक्‍चर का खतरा भी कम हो जाता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक चिकित्‍सक वृद्धावस्‍था की शुरुआत में ही ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए संतुलित आहार और स्‍वस्‍थ जीवनशैली अपनाने की सलाह देते हैं। 

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से ऑस्टियोपोरोसिस - Ayurveda ke anusar Osteoporosis
  2. ऑस्टियोपोरोसिस का आयुर्वेदिक उपचार - Osteoporosis ka ayurvedic ilaj
  3. ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Osteoporosis ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Osteoporosis kam karne ke liye kya kare kya na kare
  5. ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Osteoporosis ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Osteoporosis ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
  7. ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Osteoporosis ki ayurvedic dawa ke side effects
ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

हड्डियों, उपास्थि (कार्टिलेज: नरम हड्डी), दांतों आदि से अष्टि धातु बनता है। ये शरीर के आहार की संरचना एवं ढांचे को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। ये शरीर के महत्‍वपूर्ण अंगों की भी रक्षा करता है। ऑस्टियोपोरोसिस के पारंपरिक इलाज के कुछ दुष्‍प्रभाव हैं। ये सिर्फ ऑस्टियोपोरोसिस के कुछ लक्षणों से राहत दिलाता है।

आयुर्वेद के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस के कारणों में सूखी सब्जियों का सेवन, बहुत ज्‍यादा व्‍यायाम, खानपान से संबंधित गलत आदतें जैसे कि बहुत ज्‍यादा व्रत रखना या डाइटिंग करना, चिंता करना और रात को देर तक जागना शामिल है। इसके अलावा रजोनिवृत्ति के कारण महिलाओं के शरीर में हार्मोन का स्‍तर असंतुलित होने लगता है और इस वजह से भी उनमें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सबसे ज्‍यादा रहता है।

(और पढ़ें - हार्मोन असंतुलन के लक्षण)

विभिन्‍न वैदिक पुस्‍तकों में ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षणों में संधि शैथिल्‍य (जोड़ों का ढीला होना), अस्थि भेद (हड्डियों में फ्रैक्‍चर या चोट लगना), रुक्‍क्षत (सूखापन), दांतों, बालों एवं नाखूनों के टूटने या इनसे संबंधित रोगों, फ्रैक्‍चर ठीक होने में ज्‍यादा समय लगने, विकृतियां जैसे कि मेरूवक्रता (स्कोलियोसिस: मेरुदंड का सीधा न होकर एक तरफ झुकना) और कुबड़ापन तथा अस्थि शूल (हड्डियों में दर्द) का उल्‍लेख किया गया है। 

(और पढ़ें - हड्डी टूटने का प्राथमिक उपचार)

Joint Pain Oil
₹494  ₹549  10% छूट
खरीदें
  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन प्रक्रिया में औषधीय तेलों से शरीर की मालिश की जाती है। खराब वात दोष के इलाज में गर्म तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। मालिश हल्‍के और कोमल हाथों से की जाती है। आमतौर पर तिल के तेल और अरंडी के तेल का इस्‍तेमाल खराब वात दोष में किया जाता है जबकि पित्त दोष की स्थिति में नारियल तेल या घी का प्रयोग किया जाता है। खराब कफ दोष की स्थिति में सरसों के तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में स्‍नेहन प्रक्रिया में चंदन बला लाक्षादि तेल, महामाश तेल, महानारायण तेल और दशमूल तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। इसमें अभ्‍यंग जैसी विभिन्‍न मालिश प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर स्‍नेहन के साथ स्‍नेहपान (तेल या घी पीना) की सलाह दी जाती है।
    • तेल चिकित्‍सा शरीर के ऊतकों को चिकना और उनकी सुरक्षा में मदद करता है। ये शरीर में अमा के स्राव को तेज कर उन्‍हें बाहर निकालने में मददगार है।
    • विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं जैसे कि गठिया, नेत्र संबंधित रोग, शराब की लत, कपकपाना, कब्‍ज और लकवे के इलाज में स्‍नेहन का इस्‍तेमाल किया जाता है। जांघों में अकड़न, पेट फूलने, कमजोर या ज्‍यादा सक्रिय पाचन तंत्र, एनोरेक्सिया (असामान्य रूप से शरीर का कम वज़न और वज़न बढ़ने का अत्यधिक डर रहना), गले से संबंधित रोग एवं बढे हुए कफ से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को स्‍नेहन नहीं देना चाहिए। (और पढ़ें - कब्ज का होम्योपैथिक इलाज
       
  • बस्‍ती (एनिमा)
    • अस्थि से संबंधित विकारों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली प्रमुख चिकित्‍साओं में से एक है बस्‍ती। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक हड्डियों को मजबूत करने के लिए इस चिकित्‍सा की सलाह देते हैं। इसका प्रमुख तौर पर इस्‍तेमाल शरीर में अतिरिक्‍त वात के कारण हुए रोगों के इलाज में किया जाता है। ये चिकित्‍सा संपूर्ण आंत पर कार्य करती है। (और पढ़ें - हड्डियों को मजबूत कैसे बनाएं
    • इस चिकित्‍सा द्वारा मल के साथ शरीर से अमा को निकाल दिया जाता है। इस तरह ऊतकों में सुधार और अंगों (विशेषत: आंत के अंगों और ऊतकों को) को क्रियाशील बनाने में मदद मिलती है। बस्‍ती का इस्‍तेमाल गठिया, रुमेटिज्‍म (जोड़ों, मांसपेशियों या रेशेदार ऊतकों में सूजन और दर्द के कारण हुए रोग), कमर दर्द, बार-बार कब्‍ज की समस्‍या एवं वात रोग के इलाज में किया जाता है।
    • ये मानसिक विकारों जैसे कि मानसिक मंदता, मिर्गी और इंद्रियों से संबंधित विकारों को ठीक करने में मदद करती है। मज्‍जा बस्‍ती विशेष रूप से ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्‍त लोगों में असरकारी है।

ऑस्टियोपोरोसिस के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • निर्गुंडी
    • निर्गुंडी दर्द निवारक के रूप में कार्य करती है। ये खराब वात दोष का इलाज कर हड्डियों को मजबूती देती है। निर्गुंडी का असर परिसंचरण, तंत्रिका और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर पड़ता है। ये जोड़ों में सूजन को भी कम करती है और तेज रुमेटिज्म के इलाज में मदद करती है। निर्गुंडी की गर्म पत्तियों या पुल्टिस का इस्‍तेमाल मोच के इलाज में किया जाता है।
    • इस पौधे की जड़, पत्तियों और फूलों का इस्‍तेमाल विभिन्‍न रोगों के इलाज में किया जाता है। निर्गुंडी को आप काढ़े, अर्क पाउडर के रूप में शहद, पानी या चीनी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। निर्गुंडी के फल से बनी पुल्टिस सूजन और दर्द से राहत पाने के लिए जोड़ों पर लगाई जाती है।
       
  • अरंडी
    • अरंडी का मूत्र, उत्‍सर्जन, तंत्रिका, पाचन तंत्र और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर सकारात्‍मक असर पड़ता है। ये खराब वात दोष का इलाज करती है और इसमें दर्द निवारक रेचक (दस्‍त) गुण होते हैं। ये जड़ी बूटी प्रमुख तौर पर शरीर में सूजन और रेचक कार्य के लिए इस्‍तेमाल की जाती है। ये खराब वात दोष को खत्‍म कर हड्डियों को भी मजबूत करती है।
    • अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य संबंधित समस्‍याओं जैसे कि आंतों में सूजन, दस्‍त, पीलिया और अर्टिकुलर रुमेटिज्‍म (संक्रमित गठिया) के इलाज में भी अरंडी का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये जड़ी बूटी, पेस्‍ट, अर्क, काढ़े और तेल के रूप में उपलब्‍ध है। अरंडी का तेल उबले हुए दूध या चाय के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • शल्‍लकी
    • शल्‍लकी को आयुर्वेद में सूजन-रोधी गुणों के लिए जाना जाता है। इस पौधे की गोंद से बने अर्क का इस्‍तेमाल कई वर्षों से सूजन से संबंधित समस्‍याओं में किया जा रहा है। सूजन-रोधी के साथ-साथ शल्‍लकी में एंटीऑक्‍सीडेंट, ह्रदय को सुरक्षा देने वाले एवं जीवाणुरोधी गुण मौजूद हैं।
    • इसका पौधा विभिन्‍न त्‍वचा विकारों जैसे कि डर्मा‍टाइटिस, हड्डियों से जुड़े विकार जैसे कि ऑस्टियोपोरोसिस, अस्थि अवशोषण एवं अन्‍य जोड़ों से संबंधित रोगों के इलाज में उपयोगी है। इसके अलावा ये स्‍तन, प्रोस्‍टेट और मूत्राशय कैंसर के इलाज में भी मदद करती है। ये कार्डियोवस्‍कुलर रोगों, मुंह में छाले, दस्‍त, एलर्जी और माइग्रेन में राहत दिलाती है।
       
  • शुंथि
    • शुंथि में पाचक (पाचन को सुधारने वाले), उत्तेजक, कामोत्तेजक और दर्द निवारक गुण मौजूद होते हैं। ये प्रमुख तौर पर श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। आमतौर पर शुंथि का इस्‍तेमाल शरीर में कफ को कम करने और पाचन अग्नि को बढ़ाने के लिए किया जाता है। ये कई रोगों जैसे कि मूत्र असंयमिता (पेशाब न रोक पाना), अस्‍थमा, उल्‍टी, कब्‍ज, नेत्र रोगों और लगातार हो रहे गठिया के दर्द से राहत दिलाती है।
    • इसमें हड्डियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले गुण होते हैं। शुंथि हड्डी खनिज घनत्‍व (हड्डी के ऊतकों में हड्डी खनिज की मात्रा) में कमी को रोकती है और सूजन को कम करती है जिसे हड्डियों के इलाज में मदद मिलती है और हड्डियों में दर्द कम होता है।
    • शुंथि अर्क, ताजा रस, पाउडर, पेस्‍ट, काढ़े और गोली के रूप में उपलब्‍ध है। इसे अन्‍य जड़ी बूटियों जैसे कि शुंथि के साथ काली मिर्च मिलाकर रेचक के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं। वहीं घी के साथ शुंथि मिलाकर लेने पर अपच दूर होती है और अरंडी के तेल के साथ लेने पर ये पेट दर्द से राहत दिलाती है। (और पढ़ें - अपच के घरेलू उपाय
       
  • रसना
    • रसना में फ्लेवोनॉयड्स, ट्रिटेरपेनोइड्स, लैक्‍टोंस, स्‍टेरोल्‍स और अन्‍य पौधों से मिलने वाले रसायनिक घटक मौजूद हैं जो इसे विभिन्‍न रोगों के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। इस पौधे को गठिया-रोधी और सूजन-रोधी गुणों के लिए जाना जाता है जो इसे सूजन संबंधित रोगों और हड्डियों से जुड़ी बीमारियों जैसे कि ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
       
  • रसोनम
    • रसोनमक में परजीवी-रोधी, कामोत्तेजक, उत्तेजक, ऊर्जादायक, कीटाणुनाशक और कफ निस्‍सारक गुण होते हैं। ये परिसंचरण, तंत्रिका, प्रजनन, पाचक और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के उपाय
    • रसोनम डिम्बाशय-उच्छेदन (ओवरी निकालना) के बाद अस्थि अवशोषण को रोकती है। इस प्रकार हार्मोन की कमी से होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस में अस्थि खनिज के नुकसान की संभावना कम रहती है। 
    • रसोनम को शोधन (सफाई) जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है जो शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थ) को साफ करती है। ये रुमेटिज्‍म, आर्टरियोस्‍केलिरोसिस (नाक से खून बहना), हृदय रोगों, हाई ब्‍लड प्रेशर, दौरे पड़ने, हाई कोलेस्ट्रॉल, टीबी, खांसी, हिस्‍टीरिया और ट्यूमर के इलाज में उपयोगी है। ये औषधीय काढ़े, तेल, पाउडर, जूस और अर्क के रूप में उपलब्‍ध है।

ऑस्टियोपोरोसिस के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • लाक्षा गुग्‍गुल
    • लाक्षा गुग्‍गुल ऑस्टियोपोरोसिस के प्रमुख लक्षणों जैसे कि घुटनों में दर्द, अकड़न, हिलने में दिक्‍कत आने से राहत दिलाती है। ये औषधि स्‍वेदन और स्‍नेहन प्रक्रिया के द्वारा दी जाती है।
    • लाक्षा गुग्‍गुल में गुग्‍गुल के 5 भाग, नागबला का एक भाग, अस्थिसंहारक का 1 भाग, लाक्षा (लाख) का एक भाग, अश्‍वगंधा का एक भाग और अर्जुन का एक भाग मौजूद है।
    • नागबला एक रसायन (शक्‍तिवर्द्धक) और अस्थिसंहारक है जिसमें संधानीय (टूटी हड्डियों को जोड़ने वाले) गुण मौजूद हैं जबकि अश्‍वगंधा में ऊर्जादायक और पीड़ा दूर कर आराम देने वाले गुण हैं।
       
  • प्रवाल पिष्टी
    • आयुर्वेद में प्रवाल पिष्टी या लाल मूंगा पाउडर का संबंध रत्‍न वर्ग से है। इसके रसायनिक घटक में कैल्‍शियम कार्बोनेट है और ये मूंगे की चट्टानों (छोटे समुद्री जीवों द्वारा निर्मित) से ली जाती है। 99 फीसदी हड्डियां कैल्शियम से बनी होती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति के लिए प्रवाल पिष्टी एक महत्‍वूपर्ण औषधि है।
    • प्रवाल पिष्टी का इस्‍तेमाल महिलाओं में रजोनिवृत्ति सिंड्रोम के इलाज में भी किया जाता है। प्रवाल को कैल्शियम के आसानी से पचने वाले और सबसे बेहतरीन स्रोत के रूप में जाना जाता है। इसमें अम्‍ल-रोधी, रेचक (मल निष्‍कासन की क्रिया में सुधार लाने वाले), संकुचक (ऊतकों में संकुचन लाने वाले) और मूत्रवर्द्धक गुण भी मौजूद हैं।
       
  • महायोगराज गुग्‍गुल
    • महायोगराज गुग्‍गुल में पिप्‍पलीमूल, शुंथि, चावक, पिप्‍पली, भुनी हुई हींग, कुटकी, गुग्‍गुल और अन्‍य सामग्रियां मौजूद हैं। इस औषधि का इस्‍तेमाल प्रमुख तौर पर खराब वात के कारण हुए लंबे समय तक रहने वाले रोगों के इलाज में किया जाता है।
    • इस रूप में ये जड़ी बूटी शरीर से अमा को खत्‍म करने में मदद करती है। ये पाचन तंत्र में सुधार लाती है और उत्तेजक के रूप में कार्य करती है। इसके अलावा महायोगराज गुग्‍गुल असंतुलित हुए वात दोष को ठीक करने में मदद करती है। ये अस्थि धातु को पोषण देती है और उसे संरेखित (एक पंक्ति में लाना) करती है। इस प्रकार अस्थि धातु के कुपोषित होने के कारण हुए ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • मुक्ताशुक्ति
    • मौक्‍तिक (मोती) और शौक्‍तिक (शंख) भस्‍म (राख) के मिश्रण से मुक्ताशुक्ति को तैयार किया गया है। ये शरीर में खराब हुए वात और पित्त के स्‍तर को संतुलित करता है।
    • मौक्‍तिक भस्‍म कमजोर हुई धातुओं विशेषत: अस्थि धातु को मजबूती प्रदान कर उन्‍हें पोषण देती है।
    • चूंकि अस्थि धातु का कमजोर होना ही ऑस्टियोपोरोसिस का प्रमुख कारण है इसलिए इस रोग के इलाज में मुक्ताशुक्ति सबसे ज्‍यादा असरकारी औषधि है। मौक्‍तिक भस्‍म के अस्थि धातु के साथ-साथ रक्‍त और मम्‍सा धातु को भी पोषण देकर पूरे शरीर को मजबूती प्रदान करती है।
    • ये लू लगना (हीट स्‍ट्रोक) और सिरदर्द से भी राहत दिलाती है।
    • शौक्तिक भस्‍म में मौक्तिक भस्‍म जैसे ही गुण मौजूद होते हैं। हालांकि, उपरोक्‍त प्रभावों के अलावा यह पूरे धातु क्रम में समान रूप से शक्ति और पोषण प्रदान करने में मदद करती है। ये प्रमुख तौर पर रक्‍त, रस, अस्थि और मम्‍सा धातु पर कार्य करती है।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

Joint Capsule
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • नमकीन और तीखी चीज़ें न खाएं।
  • ज्‍यादा कॉफी न पीएं।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे डकार या पेशाब आदि को रोके नहीं।
  • बहुत ज्‍यादा व्‍यायाम न करें।
  • ज्‍यादा पैदल चलने से बचें। 

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षणों से राहत पाने में मज्‍जा बस्‍ती के साथ श्रृंखला को असरकारी पाया गया है। उपचार के साथ सभी प्रतिभागियों को अपनी जीवनशैली में कुछ विशेष बदलाव जैसे शराब, सूखे मांस और सब्जियां, भारी व्‍यायाम और धूम्रपान से दूर रहने के लिए कहा गया। 

(और पढ़ें - धूम्रपान छोड़ने के लिए योग

अध्‍ययन के अनुसार शल्‍लकी से मिलने वाले एकोसनॉइड्स (यौगिकों का एक वर्ग जो पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड से निकलता है [जैसे - आर्सिडोनिक एसिड] और कोशिकाओं की गतिविधियों में शामिल होता है) से प्राप्‍त आर्सिडोनिक एसिड को ऑस्टियोपोरोसिस में सुधार लाने में असरकारी पाया गया। इनसे ऑस्टिओक्‍लास्‍ट और हड्डियों में मौजूद मोनोक्‍यूलिअर एसेसरी कोशिकाओं के बीच मजबूत संबंध बनाकर पुन:अवशोषण की प्रक्रिया में भी सुधार आया।

रसना, रसोनम, निर्गुंडी, अरंडी, गंध प्रसारिणि और अन्‍य जड़ी बूटियों के पॉलीहर्बल सूत्रण (फॉर्म्‍यूला) की जांच 10 दिनों तक चूहों पर की गई। इससे चूहों में बुखार और सूजन में कमी आई। इस सूत्रण के गठिया-रोधी और दर्द निवारक प्रभाव भी देखे गए। कई अध्‍ययनों में लाक्षा गुग्‍गुल में गठिया-रोधी और कोंड्रोसाइट (स्‍वस्‍थ कार्टिलेज में पाई जाने वाली कोशिकाएं) को सुरक्षा देने वाले गुण पाए गए हैं।

(और पढ़ें - सूजन कम करने के घरेलू उपाय)  

आयुर्वेद में ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए खराब हुए अस्थि धातु और असंतुलित वात को ठीक किया जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों और औषधियों से हड्डियों को मजबूती, हड्डियों की गुणवत्ता में सुधार और हड्डियों के आसपास सूजन एवं दर्द में कमी लाई जाती है।  

(और पढ़ें - हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जूस रेसिपी

मज्‍जा बस्‍ती और स्‍नेहन के साथ विभिन्‍न जड़ी बूटियों और औषधियों से ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं। शारीरिक रूप से क्रियाशील रहने और आसानी से पचने वाले एवं पौष्‍टिक आहार से शरीर के संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य तथा हड्डियों की सेहत में सुधार लाया जाता है।

Joint Support Tablet
₹449  ₹695  35% छूट
खरीदें

ऑस्टियोपोरोसिस की आयुर्वेदिक औषधि के निम्नलिखित नुकसान हो सकते हैं:

  • गुदा मार्ग से ब्‍लीडिंग, दस्‍त, बुखार, कोलोन कैंसर और कुछ प्रकार के डायबिटीज से ग्रस्‍त व्यक्ति को बस्‍ती नहीं देना चाहिए। शिशु पर भी बस्‍ती कर्म नहीं करना चाहिए।
  • किडनी, आंतों और पित्त नलिका में संक्रमण से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अरंडी का तेल नहीं लेना चाहिए। पेशाब में दर्द और जलन (डिस्‍यूरिया) या पीलिया में भी अरंडी के तेल के इस्‍तेमाल से बचना चाहिए। (और पढ़ें - पीलिया में क्या खाएं
  • शुंथि के कारण शरीर में पित्त बढ़ सकता है और इस वजह से अल्‍सर, बुखार, त्‍वचा में सूजन एवं ब्‍लीडिंग हो सकती है इसलिए पित्त प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति को इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

(और पढ़ें - रजोनिवृत्ति के बाद होने वाला ऑस्टियोपोरोसिस

अब डायबिटीज का सही इलाज myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट के साथ। ये आपके रक्त शर्करा को संतुलित करते हैं और स्वस्थ जीवन की ओर एक कदम बढ़ाते हैं। आज ही आर्डर करें

 

Dr Bhawna

Dr Bhawna

आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

Dr. Saumya Gupta

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Centre Council for Research in Ayurvedic Science. Osteoporosis. New Delhi; [Internet]
  2. Swami Sada Shiva Tirtha. The Ayurveda Encyclopedia. The Authoritative Guide to Ayurvedic Medicine; [Internet]
  3. Ajay K. Gupta et al. Effect of Majja Basti (therapeutic enema) and Asthi Shrinkhala (Cissus quadrangularis) in the management of Osteoporosis (Asthi-Majjakshaya). Ayu. 2012 Jan-Mar; 33(1): 110–113. PMID: 23049194
  4. Science Direct (Elsevier) [Internet]; Pluchea lanceolata (Rasana): Chemical and biological potential of Rasayana herb used in traditional system of medicine
  5. Kshipra Rajoria et al. Clinical study on Laksha Guggulu, Snehana, Swedana & Traction in Osteoarthritis (Knee joint). Ayu. 2010 Jan-Mar; 31(1): 80–87. PMID: 22131690
  6. G. S. Lavekar. Mahayograj guggulu: Heavy metal estimation and safety studies. Int J Ayurveda Res. 2010 Jul-Sep; 1(3): 150–158. PMID: 21170206
  7. Sanjeev Rastogi. Ayurvedic PG education and Panchakarma. Year : 2013 Volume : 34 Issue : 1 Page : 129-130
  8. Prasad, Koteeshwara M. Evaluation of anti arthritic and anti-inflammatory property of the polyherbal formulation sudard. Rajiv Gandhi University of Health Sciences; Karnataka
ऐप पर पढ़ें