विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने महिलाओं को एचआईवी संक्रमण से बचाने वाली डैपिविरिन रिंग को अपनी स्वीकृति दे दी है। बीते विश्व एड्स दिवस के मौके पर इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर माइक्रोबाइसाइड्स (आईपीएम) ने यह जानकारी दी। आईपीएम एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी कार्यक्रम (प्रॉडक्ट डेवलेपमेंट पार्टनरशिप) है, जो महिलाओं को एचआईवी संक्रमण से बचाने से जुड़े काम करता है। इसके तहत डब्ल्यूएचओ से डैपिविरिन रिंग को स्वीकृति दिलाने की कोशिश काफी समय से की जा रही थी, जिसे अब कामयाबी मिल गई है। आईपीएम ने कहा है कि जो महिलाएं इस वजाइनल इनसर्ट (या डिवाइस) का लगातार इस्तेमाल करती हैं, उनमें एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त होने का खतरा काफी कम हो जाता है। डैपिविरिन रिंग लचीले सिलिकॉन से बना उत्पाद है, जो एक महीने तक धीरे-धीरे एंटीरेट्रोवायरल ड्रग डैपिविरिन को रिलीज करता है। किसी रिंग (अंगूठी) के आकार में ढाले गए इस एचआईवी प्रिवेंशन मेथड को लेकर आईपीएम का कहना है कि यह दवा वजाइनल टीशू (योनि के ऊतक) को एचआईवी से संक्रमित होने से बचाने का काम करता है।

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आईपीएम ने इस उम्मीद के साथ डब्ल्यूएचओ से इस रिंग के इस्तेमाल के लिए अप्रूवल मांगा था कि इसकी मदद से अफ्रीका में महिलाओं को एचआईवी संक्रमण से बचाने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि अफ्रीका में एचआईवी का अधिकतर ट्रांसमिशन हेट्रोसेक्शुअल सेक्स के जरिये होता है। ऐसे में वहां की महिलाओं के लिए डैपिविरिन रिंग काफी फायदेमंद हो सकती है। इसे रेफ्रिजरेशन की जरूरत नहीं है यानी महिलाएं इसे हमेशा अपने पास रख सकती हैं और अपने सेक्स पार्टनर को बताए बिना इस्तेमाल कर सकती हैं। हालांकि रिंग का इस्तेमाल अफ्रीका तक सीमित नहीं है। ऐसा करने की कई परिस्थितियां हैं, जिन पर आमतौर पर चर्चा नहीं होती है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मेडिकल एक्सपर्ट बताते हैं कि जब कोई महिला एचआईवी प्रिवेंशन डिवाइस या पिल का इस्तेमाल करती है तो उसका पार्टनर उस पर संक्रमित होने का आरोप लगा सकता है या खुद को भी संक्रमित मान सकता है। इससे उसके आक्रामक होने की आशंका होती है। वहीं, जिन माता-पिता को पता चलता है कि उनकी युवा बेटियां इस प्रकार के प्रिकॉशन ले रही हैं तो वे भी क्रोधित हो सकते हैं। ऐसे में डैपिविरिन रिंग जैसे मेथड्स का महत्व बढ़ जाता है।

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साल 2016 में आई दो बड़ी स्टडी में डैपिविरिन रिंग को एचआईवी संक्रमण की रोकथाम में केवल 30 प्रतिशत प्रभावी बताया गया था। बाद में आए कुछ अध्ययनों में कहा गया कि यह वजाइनल इनसर्ट संक्रमण को रोकने में कुल-मिलाकर 35 प्रतिशत ही कारगर पाया गाया है। हालांकि इसकी वजह डिवाइस का सही प्रकार से काम करना नहीं था, बल्कि महिलाओं का इसे लगातार यूज न कर पाना था, विशेषकर युवा महिलाएं इस रिंग को लगातार इस्तेमाल नहीं पा रही थीं। जबकि एक अध्ययन में बताया गया था कि 25 वर्ष से ज्यादा की उम्र की जिन महिलाओं ने डैपिविरिन रिंग का लगातार इस्तेमाल किया था, उनमें एचआईवी संक्रमण से सुरक्षा 60 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई थी। साफ था कि अगर इस मेथड के जरिये महिलाओं में एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकना है, तो उनमें इसके इस्तेमाल की आदत होनी चाहिए।

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दूसरी ओर, रिंग्स पर काम कर रहे आईपीएम ने इनके एक महीने से ज्यादा समय तक बने रहने के लिए इनकी क्षमता में बढ़ोतरी करने पर भी फोकस किया है। इसके तहत प्रयास किया गया है कि रिंग एक महीने के बजाय तीन महीने तक काम करती रहे, जिससे महिलाएं एचआईवी और अनचाही प्रेग्नेंसी दोनों से बची रहें। अब जाकर उसके प्रयास डब्ल्यूएचओ की स्वीकृति के रूप में सफल हुए हैं, जिसने कहा है कि आईपीएम की डैपिविरिन रिंग गुणवत्ता, सुरक्षा और क्षमता के वैश्विक पैमाने पर खरी उतरती है।

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