वैज्ञानिकों को स्मार्टफोन एप्लिकेशन द्वारा किए गए ध्वनि विश्लेषण से हार्ट फेलियर के मरीजों के फेफड़ों में रक्त के जमाव का पता लगाने में कामयाबी हासिल हुई है। उनकी मानें तो इससे ऐसे मरीजों की हालत ज्यादा गंभीर होने से पहले ही उचित उपचार देने में मदद मिली है। यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियॉलजी (ईएससी) के वैज्ञानिक प्लेटफॉर्म 'एचएफए डिस्कवरीज' के शोधकर्ताओं ने अपने एक छोटे अध्ययन में ऐसा करके दिखाया है। इससे यह भी साबित हुआ है कि दिल की बीमारी से पीड़ित मरीजों की कड़ी निगरानी कर उन्हें न सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने की नौबत से बचाया जा सकता है, बल्कि मौतों को भी टालने में मदद मिल सकती है।

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हार्ट फेल होने पर मरीज का हृदय रक्त की उस तरह पंपिंग नहीं करता है जैसी उसे करनी चाहिए। इसके चलते मरीज की सांस में कमी होना इसके सबसे आम लक्षण के रूप में सामने आता है। ऐसा फेफड़ों में द्रवीय जमाव के कारण होता है। यह जमाव जानलेवा हो सकता है, इसलिए इसका पहले से पता चलना जरूरी हो जाता है। फेफड़ों के जमने की वजह से पीड़ित के बोलने की क्षमता प्रभावित होती है। कहा जा रहा है कि स्पीच पैटर्न में आए इस बदलाव पर गौर कर पीड़ित के क्लिनिकल स्टेटस का पता लगाया जा सकता है। यह प्रक्रिया आज कई तरीकों से आजमाई जा रही है। तकनीक के जरिये शब्दों को ध्वनि उच्चारण में बदलना और ऑटोमैटिक वॉइस रेकग्निशन इसके उदाहरण हैं। 

ताजा अध्ययन में एक नए मोबाइल एप की मदद से यह जानने की कोशिश की गई कि यह फेफड़ों में रक्त के जमाव (कंजेस्टेड) और बिना जमाव (नॉन-कंजेस्टेडः वाली स्थिति में अंतर कर सकता है या नहीं। शोधकर्ताओं ने इसके लिए अस्पतालों में भर्ती ऐसे 40 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया, जो एक्यूट (गंभीर) हार्ट फेलियर और लंग कंजेस्चन के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे। शोधकर्ताओं ने उन्हें एक स्टैंडर्ड स्मार्टफोन में पांच वाक्य अपनी आवाज में रिकॉर्ड करने को कहा। ऐसा उन्हें दो बार करना था। एक बार अस्पताल में भर्ती होने के समय और दूसरी बार डिस्चार्ज होने से जरा पहले, यानी उस समय जब उनके फेफड़े रक्त संचय से पीड़ित नहीं रह गए थे। शोधकर्ताओं की मानें तो मोबाइल एप की तकनीक कंजेस्टेड और नॉन-कंजेस्टेड की स्थिति में रिकॉर्ड हुई आवाजों में अंतर करने में सफल रही।

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इस अध्ययन में शामिल एक प्रोफेसर आमिर का कहना है कि इस सिस्टम को हार्ट फेलियर के मरीजों के घरों में उनकी मॉनिटरिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी बताया गया है कि फिजिशन्स ने बतौर प्रेस्क्रिप्शन हार्ट फेलियर के मरीजों को इस एप को डाउनलोड करने को कहना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि अस्वस्थ महसूस करने पर मरीज अपने स्मार्टफोन में एप डाउनलोड कर अपनी वॉइस रिकॉर्ड कर उन्हें भेजें। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे मोबाइल एप व्यक्तिगत 'हेल्दी' मॉडल के रूप में विकसित हो सकती है।

इस बारे में प्रोफेसर आमिर का कहना है, 'जिन लोगों के फेफड़ों में रक्त संचय के शुरुआती लक्षण दिखाई दें, वे इसकी मदद से अपने उपचार में जरूरी बदलाव कर सकते हैं। इस प्रकार वे अस्पताल में भर्ती होने से बच सकते हैं।' प्रोफेसर ने आगे कहा, 'जैसे-जैसे और स्पीच सैंपल इकट्ठे होते हैं, वैसे-वैसे परिवर्तनों के हिसाब से इस मॉडल की संवेदनशीलता बढ़ती जाएगी।'

प्रोफेसर आमिर इस तकनीक की जरूरत को कोविड-19 महामारी से भी जोड़ते हैं। उनका कहना है, 'कोविड-19 महामारी के दौरान हेल्थकेयर प्रोफेशनल हार्ट फेलियर के मरीजों के अस्पताल आने को लेकर कई तरह के बदलाव कर रहे हैं। वे टेलिमेडिसिन प्लेटफॉर्म के जरिये (फोन पर ही) उन्हें देख रहे हैं। यह बताता है कि कैसे रिमोट मॉनिटरिंग के जरिये कोरोना वायरस की चपेट में आने के खतरे को कम किया जा सकता है।'

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