कभी-कभार किसी वजह से सिर घूमना या चक्कर आना सामान्य हो सकता है लेकिन अगर आप उन लोगों में से हैं जिन्हें अक्सर खड़े होने पर चक्कर आने लगता है या सिर घूमने लगता है तो आपको अपने जीवन के बाद के सालों में डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश बीमारी होने का खतरा अधिक हो सकता है। अमेरिकन अकैडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की मेडिकल पत्रिका न्यूरोलॉजी में हाल ही में एक नई स्टडी प्रकाशित हुई है जिसमें यह दावा किया गया है। इस स्थिति को ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कहते हैं और यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब खड़े होने पर अचानक व्यक्ति के ब्लड प्रेशर में गिरावट आ जाती है।

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सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर में कमी होने पर डिमेंशिया का खतरा अधिक
हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि स्टडी में केवल उन लोगों में डिमेंशिया के साथ लिंक पाया गया, जिनके सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर में कमी देखने को मिली, उन लोगों में नहीं जिनके डायस्टॉलिक ब्लड प्रेशर में या ओवरऑल ब्लड प्रेशर में गिरावट नजर आयी। ब्लड प्रेशर की रीडिंग में जो ऊपर की तरफ या पहला नंबर दिखता है उसे ही सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन उस स्थिति को कहते हैं जिसमें बैठने की स्थिति में रहने के बाद अचानक खड़े होने पर किसी व्यक्ति के सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर में कम से कम 15 mmHg की कमी नजर आए।

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बैठने के बाद खड़े होने पर बीपी मॉनिटर करने की जरूरत
इस स्टडी के लीड ऑथर और सैन फ्रैंसिसको स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के लॉरे रूच कहते हैं, 'जिन लोगों को बैठने के बाद उठने पर चक्कर महसूस होता हो ऐसे लोग जब बैठने के बाद खड़े हों तो उनके ब्लड प्रेशर को मॉनिटर करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि यह संभव है कि अगर इस तरह के ब्लड प्रेशर में होने वाली कमी को कंट्रोल कर लिया जाए तो उम्र बढ़ने और बुजुर्ग होने पर ऐसे लोगों की सोच और स्मृति कौशल को संरक्षित करने में मदद मिल सकती है।'

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15 प्रतिशत प्रतिभागियों में ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की समस्या
इस स्टडी में 2 हजार 131 लोगों को शामिल किया गया था जिनकी औसत उम्र 73 साल थी और जब इन लोगों को स्टडी में भर्ती किया गया था उस वक्त इनमें से किसी को भी डिमेंशिया नहीं था। स्टडी की शुरुआत में इन सभी लोगों की ब्लड प्रेशर रीडिंग ली गई, उसके बाद 1 साल बाद, 3 साल बाद और फिर 5 साल बाद। स्टडी में शामिल प्रतिभागियों में से कुल 15 प्रतिशत में ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की समस्या दिखी, 9 प्रतिशत में सिस्टोलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की और 6 प्रतिशत में डायस्टोलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की।

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सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन वाले 40 फीसद लोगों में डिमेंशिया का खतरा
इसके बाद अगले 12 वर्षों तक प्रतिभागियों का मूल्यांकन किया गया यह देखने के लिए इनमें से किसी में डिमेंशिया विकसित हुआ या नहीं। स्टडी में शामिल 2 हजार से अधिक प्रतिभागियों में से 462 यानी करीब 22 प्रतिशत लोगों में डिमेंशिया बीमारी विकसित हो चुकी थी। सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की समस्या से पीड़ित करीब 40 प्रतिशत लोगों में डिमेंशिया होने का खतरा था, उन लोगों की तुलना में जिनमें यह समस्या नहीं थी। सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन से पीड़ित 192 में से 50 लोगों में यानी करीब 26 प्रतिशत लोगों में डिमेंशिया विकसित हुआ उन 412 या 21 प्रतिशत लोगों की तुलना में जिनमें सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की समस्या नहीं थी।

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ब्लड प्रेशर रीडिंग में ज्यादा बदलाव होने वाले लोगों में खतरा अधिक
जब शोधकर्ताओं ने डिमेंशिया के जोखिम को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों जैसे- डायबिटीज, धूम्रपान, शराब का सेवन आदि को समायोजित या अनुकूल कर लिया उसके बाद भी सिस्टॉलिक ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन वाले लोगों में डिमेंशिया विकसित होने की संभावना 37 प्रतिशत अधिक थी। स्टडी के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन लोगों के बैठने से खड़े होने की सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर रीडिंग में सबसे ज्यादा बदलाव आया था, उनमें डिमेंशिया विकसित होने की संभावना अधिक थी उन लोगों की तुलना में जिनकी ब्लड प्रेशर रीडिंग अधिक स्थिर थी। 

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यह स्टडी बीपी की रीडिंग और डिमेंशिया के बीच संबंध को दिखाती है
स्टडी में शामिल लोगों की ब्लड प्रेशर रीडिंग समय के साथ कितनी बदलती है इसके आधार पर ही इन लोगों को 3 अलग-अलग समूहों में बांटा गया था। सिस्टॉलिक रीडिंग में सबसे अधिक उतार-चढ़ाव वाले समूह में कुल 24 प्रतिशत लोगों को जीवन के बाद के सालों में डिमेंशिया विकसित हुआ जबकि रीडिंग में सबसे कम उतार-चढ़ाव वाले समूह में 19 प्रतिशत लोगों में डिमेंशिया विकसित हुआ। स्टडी के ऑथर लॉरे रूच कहते हैं कि यह एक ऑब्जर्वेशनल यानी पर्यवेक्षी स्टडी है जिसमें कारण और प्रभाव के बारे में नहीं दिखाया गया है। यह केवल ब्लड प्रेशर की रीडिंग और डिमेंशिया विकसित होने के बीच संबंध को दिखाता है।

हृदय रोग के जोखिम को भी बढ़ाता है ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन को हृदय रोग के लिए भी बेहद खतरनाक माना जाता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने करीब 9 हजार से अधिक मध्यम आयु वर्ग के लोगों पर 2 दशक से भी ज्यादा समय तक नजर रखी जिसके बाद यही नतीजे सामने आए कि जिन लोगों में ऑर्थोस्टैटिक हाइपोटेंशन यानी ओएच की समस्या थी उन लोगों में भविष्य में हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक का खतरा अधिक था।

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