कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम - Caudal Regression Syndrome in Hindi

Dr. Vishal MakvanaMBBS

April 29, 2022

December 16, 2023

कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम
कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम

कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम एक दुर्लभ जन्मजात विकार है। यह अनुमानित है कि प्रत्येक 100,000 नवजात शिशुओं में 1 से 3 को य​ह समस्या होती है। यह तब होता है जब जन्म से पहले निचली रीढ़ दुम वा​ला हिस्सा" का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता है। इस सिंड्रोम की वजह से जिन हिस्सों पर प्रभाव पड़ता है उनमें पीठ का निचला हिस्सा और लिंब (शरीर का बड़ा हिस्सा जैसे किसी व्यक्ति या जानवर में उसके हाथ पैर या किसी पक्षी में उसका पंख), जननांग पथ और जठरांत्र संबंधी मार्ग शामिल है।

इस स्थिति को कभी-कभी 'सैक्रल एजीनिसिस' कहा जाता है, क्योंकि इसमें त्रिकास्थि (त्रिभुज के आकार की हड्डी जो श्रोणि से रीढ़ को जोड़ती है) या तो आंशिक रूप से विकसित होती है या बिल्कुल भी विकसित नहीं होती है।

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कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम के प्रकार - Types of Caudal Regression Syndrome in Hindi

निदान किए जाने के बाद, डॉक्टर स्थिति की गंभीरता की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड या एमआरआई टेस्ट कर सकते हैं -

वे निम्न प्रकार में से किसी एक का निदान करेंगे -

  • टाइप I - सैक्रम (श्रोणि से रीढ़ को जोड़ने वाली त्रिभुज के आकार की हड्डी) के एक तरफ किसी प्रकार की असामान्यता या इस हिस्से का विकास नहीं होना।
  • प्रकार II - सैक्रम के दोनों किनारों में असामान्यताएं या दोनों किनारों का विकास नहीं होना।
  • प्रकार III - सैक्रम का बिल्कुल भी विकसित न होना
  • प्रकार IV - टांग के ऊतकों का पूरी तरह से एक साथ जुड़ा होना
  • टाइप V - टांग के ऊतकों का कुछ हिस्सा न बन पाना

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कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम के कारण - Caudal Regression Syndrome Causes in Hindi

इसका सटीक कारण स्पष्ट नहीं है। हालांकि, कुछ शोध से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान यदि किसी महिला को डायबिटीज है या उनके आहार में पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड की मात्रा नहीं है, तो ऐसे में बच्चे के दुम या निचली रीढ़ वाले हिस्से का सही से विकास न हो पाने का जोखिम बढ़ जाता है। इस समस्या का खतरा ज्यादातर ऐसे बच्चे में होता है, जिसकी माता को डायबिटीज है, खासकर ऐसी महिला जिन्होंने डायबिटीज को नियंत्रण में नहीं रखा।

यह ऐसे शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता है, जिनकी माता को डायबिटीज नहीं है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि इसके कारणों में आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक शामिल हो सकते हैं।

कुछ मामलों में, कौडल रिग्रेसन सिंड्रोम वीएएनजीएल1 नाम​क जीन में गड़बड़ी से जुड़ा हो सकता है, लेकिन यह जीन वास्तव में किसी प्रकार कौडल रिग्रेसन सिंड्रोम को ट्रिगर करता है, इस बारे में जानकारी स्पष्ट नहीं है।

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कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम की जांच - Diagnosis of Caudal Regression Syndrome in Hindi

कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम का निदान

आमतौर पर कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम के शुरुआती लक्षण गर्भावस्था के चौथे और सातवें सप्ताह के बीच दिखाई दे सकते हैं। ज्यादातर मामलों में, इस स्थिति का निदान गर्भावस्था के पहले त्रैमासिक के अंत तक किया जा सकता है।

यदि गर्भवती महिला को डायबिटीज है या गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज विकसित हुआ है तो डॉक्टर इस स्थिति के लक्षणों को देखने के लिए विशेष रूप से अल्ट्रासाउंड कर सकते है। अन्यथा, वे नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड टेस्ट के जरिये भ्रूण में असामान्यता के बारे में पता लगा सकते हैं।

यदि आपके डॉक्टर को कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम को लेकर संदेह है, तो वे गर्भावस्था के 22 सप्ताह के बाद एमआरआई कर सकते हैं। इससे वे बच्चे के निचले शरीर की बनावट को विस्तारपूर्वक या स्पष्ट तरीके से देख सकते हैं। निदान की पुष्टि के लिए बच्चे के जन्म के बाद भी एमआरआई का भी उपयोग किया जा सकता है।

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कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम का उपचार - Caudal Regression Syndrome Treatment in Hindi

कौडल रिग्रेशन सिंड्रोम का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे में इसके लक्षण कितने गंभीर हैं। कुछ मामलों में, बच्चे को केवल विशेष जूते, लेग ब्रेसेस या बैसाखी की आवश्यकता हो सकती है, ताकि उन्हें चलने फिरने में मदद मिल सके। बच्चे के निचले शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उनकी गतिविधयों को दुरस्त करने के लिए फिजियोथेरेपी की जाती है।

यदि बच्चे के पैरों का विकास नहीं हुआ है, तो वे आर्टिफिशियल या प्रोस्थेटिक (ऐसा उपकरण जिसके जरिए शरीर के अंग को रिप्‍लेस किया जा सकता है) लेग्स के जरिये पैरों का उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं।

यदि प्रभावित बच्चे को मूत्राशय को नियंत्रित करने में परेशानी होती है, तो उन्हें मूत्र को निकालने के लिए कैथेटर (मुलायम, खोखला व पतला ट्यूब जिसे पेशाब के निकास के लिए मूत्राशय में डाला जाता है) की आवश्यकता हो सकती है। यदि बच्चे में इम्परफोरेट एनस (एक दोष जिसमें गुदा का द्वारा या ब्लॉक होता है या होता ही नहीं है) की समस्या है, तो ऐसे में सर्जरी की मदद से उसकी आंत में छेद करके मल को बाहर निकाला जा सकता है। हालांकि, कुछ लक्षणों के इलाज के लिए भी सर्जरी की जरूरत हो सकती है।