आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों का सेवन करने के अलावा कई तरह की बाह्य चिकित्सा विधि भी बताई गई हैं. ये कई बीमारियों को दूर करने में लाभकारी होती हैं. इन्हीं में से थालापोथिचिल भी एक आयुर्वेदिक विधि है, जो प्रमुख रूप से सिर की समस्याओं को दूर करने में प्रभावी होती है.

थालापोथिचिल विधि में औषधि युक्त लेप सिर पर लगाया जाता है. इससे सिर के बालों, नसों व स्किन को शीतलता व आराम मिलता है. यह थेरेपी सिर से जुड़े विकारों को दूर करने में असरदार है. सिर के साथ-साथ गले से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में थालापोथिचिल थेरेपी असरदार हो सकती है. इस विधि को शिरोलेपा भी कहा जाता है.

आज इस लेख में हम थालापोथिचिल का अर्थ, प्रक्रिया, फायदे, नुकसान व सावधानियों के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. थालापोथिचिल की प्रक्रिया
  2. थालापोथिचिल के फायदे
  3. थालापोथिचिल के नुकसान
  4. थालापोथिचिल में सावधानियां
  5. सारांश
थालापोथिचिल के डॉक्टर

थालापोथिचिल एक विशेष आयुर्वेदिक थेरेपी है, जो प्रमुख रूप से सिर से जुड़े विकारों को दूर करने के लिए उपयोग की जाती है. थालापोथिचिल मलयालम शब्द है, जिसमें ‘थाला’ का अर्थ सिर और ‘पोथिचिल‘ का अर्थ ढकना होता है यानी इस तरह इसका शाब्दिक अर्थ सिर को ढकना हुआ.

थालापोथिचिल दक्षिण भारत में व्यापक स्तर पर उपयोग की जाने वाली आयुर्वेदिक थेरेपी है, जो केरल राज्य से संबंधित है. इस थेरेपी में विशेष विधि से तैयार की जाने वाली औषधियों से युक्त लेप को सिर पर लगाया जाता है. इस थेरेपी से सिर के बालों, जड़ों, नसों और त्वचा को शीतलता प्रदान होती है. आइए, इसकी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानते हैं -

  • थालापोथिचिल आयुर्वेदिक थेरेपी की प्रक्रिया में सबसे पहले व्यक्ति को एक आरामदायक स्थिति में आसान पर बैठाया जाता है. इसके बाद विशिष्ट औषधीय तेल से सिर की मालिश की जाती है. व्यक्ति के सिर की स्थिति का सावधानीपूर्वक आंकलन करने के बाद उसे छाछ के साथ पकाकर एक ताजा हर्बल लेप तैयार किया जाता है.
  • इस हर्बल लेप को सिर पर लगभग 0.5 से 1 सेंटीमीटर की मोटाई की परत में लगाया जाता है, जिससे एक छोटा केंद्रीय भाग निकल जाता है. इस भाग में औषधीय तेल भरा जाता है. फिर लेप को केले या कमल की पत्तियों से ढक दिया जाता है और कपड़े से नाली को खुला छोड़ दिया जाता है. इसे लगभग 30 से 45 मिनट तक रखा जाता है. फिर सिर पर लगाए गए लेप को हटा दिया जाता है और अंत में सिर की मालिश की जाती है.
  • इस प्रक्रिया की अवधि स्थिति के आधार पर 40 मिनट से 1 घंटे तक होती है. सिर पर लगाया जाने वाला औषधीय तेल और हल्की मालिश से शीत उत्पन्न होती है. इन तेल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी व अवसाद विरोधी गुण होते हैं. इससे सिर के विकारों का जड़ से इलाज करने में मदद मिलती है.
  • यह औषधीय अर्क सेल मैम्ब्रेन को पार करते हैं और सर्कुलेटरी सिस्टम में प्रवेश करते हैं, जिनसे सिर की नसों और त्वचा तक पोषक तत्व पहुंचते और सिर के विकारों को दूर करने में मदद मिलती है. यहां पूरी प्रक्रिया के दौरान पर्याप्त तापमान बनाए रखने के लिए प्रक्रिया को पूरा करने में हर्बल पत्ती का आवरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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थालापोथिचिल विधि सिर से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में असरदार होती है. इसके अलावा भी इस थेरेपी के कई अन्य लाभ होते हैं. आइए, विस्तार से जानते हैं थालापोथिचिल थेरेपी के लाभ -

  • इस थेरेपी की मदद से पित्त दोष के असंतुलन को ठीक किया जा सकता है.
  • यह मन को शांत करता है, जिससे शरीर पर सुखदायक प्रभाव पड़ता है.
  • इस थेरेपी से नर्वस सिस्टम में स्थिरता आती है.
  • यह मर्म (महत्वपूर्ण क्षेत्रों) बिंदुओं को सक्रिय करता है.
  • थालापोथिचिल थेरेपी की मदद से तनावसिर के भारीपन से छुटकारा दिलाता है.
  • नींद की गुणवत्ता को सुधारने में भी थालापोथिचिल थेरेपी असरदार हो सकती है.
  • यह बालों की चमक और कोमलता में सुधार करता है.
  • इससे याददाश्त में सुधार होता है.
  • सिर और गर्दन के क्षेत्र को आराम, कायाकल्प व पोषण देता है.
  • यह मस्तिष्क को पोषण देता है.
  • इस थेरेपी को लेने से मानसिक रूप से शांति प्राप्त होती है.

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थालापोथिचिल को सुरक्षित और प्राकृतिक आयुर्वेदिक थेरेपी माना जाता है, जिससे सिर के विकारों को दूर करने में मदद मिलती है. हालांकि, कुछ अपवाद मामलों में इसके संभावित नुकसान देखने को मिलते सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • इससे अनिद्रा और नींद संबंधी विकार हो सकते हैं.
  • कुछ लोगों को थालापोथिचिल थेरेपी लेने से उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है.
  • थालापोथिचिल थेरेपी की वजह से कुछ लोगों को स्किन पर जलन भी महसूस हो सकती है. 
  • इस थेरेपी से सिर के कुछ त्वचा रोग जैसे सिर पर सूजन, रूसीबालों का झड़ना आदि परेशानी हो सकती है.
  • इसके कारण बाल समय से पहले सफेद हो सकते हैं.
  • कुछ लोगों को माइग्रेन, सिर दर्दमिर्गी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.
  • पुराने सिर दर्द की समस्या वाले लोगों को चिंताअवसाद हो सकता है.

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थालापोथिचिल आयुर्वेदिक थेरेपी में कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत पड़ती है, जिससे आपको कोई शारीरिक कष्ट न पहुंचे. इन निम्न सावधानियों को ध्यान में रखें -

  • थेरेपी लेने के बाद तुरंत स्नान करने से बचें.
  • आयुर्वेदाचार्य द्वारा निर्धारित भोजन और तरल पदार्थ का ही सेवन करें.
  • थेरेपी लेने के तुरंत बाद धूप में निकलने से बचें.
  • थेरेपी लेने से पहले कोई तेल या केमिकल बालों में न लगाएं.
  • थेरेपी लेने के बाद स्मोकिंग और ड्रिंकिंग से बचें.
  • थेरेपी लेने के बाद एक ही स्थान में कुछ देर तक बैठें.

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थालापोथिचिल आयुर्वेदिक थेरेपी बालों की देखभाल, सिर और गर्दन को प्रभावित करने वाली कई तरह की बीमारियों को दूर करने में प्रभावी होता है. इस थेरेपी के अंतगर्त औषधि युक्त लेप सिर पर लगाया जाता है, जो सिर के बालों, नसों और त्वचा को शीतलता और शांति प्रदान करता है और सिर से जुड़े विकारों को दूर करने में मदद करता है. हालांकि, इस थेरेपी के उपयोग के तुरंत बाद स्नान करने से बचना चाहिए और निर्धारित भोजन और तरल पदार्थ का ही सेवन करना चाहिए. थालापोथिचिल थेरेपी लेने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें.

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