इन दिनों बड़ी संख्या में लोग खुद को स्वस्थ और निरोगी रखने के लिए एक्सरसाइज के साथ ही योग का भी सहारा ले रहे हैं। योग की सबसे अच्छी बात ये है कि इसे करने के लिए किसी तरह के इक्विप्मेंट की कोई जरूरत नहीं होती और इसे आप अपने घर के अंदर भी बड़ी आसानी से कर सकते हैं। योग के सबसे प्रचलित आसनों में से एक सूर्य नमस्कार का नाम तो आपने सुना ही होगा जो एक योगासन नहीं बल्कि कई आसनों का मेल है और इसे अपने आप में ही संपूर्ण व्यायाम के तौर पर जाना जाता है। 

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सूर्य नमस्कार की तरह ही है चंद्र नमस्कार। सूर्य नमस्कार को जहां सुबह के समय सूर्य की मौजूदगी में किया जाता है, वहीं चंद्र नमस्कार को शाम या रात के समय चांद की मौजूदगी में किया जाता है। दिनभर के काम और थकान के बाद शाम को चंद्र नमस्कार करके आप अपने शरीर और दिमाग को रिलैक्स कर सकते हैं। हालांकि, शाम या रात के समय यह आसन करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपका पेट खाली हो। खाना खाकर या भरे पेट में योग या कोई भी आसन करना नुकसानदेह हो सकता है। तो आखिर चंद्र नमस्कार क्या है, यह सूर्य नमस्कार से किस तरह से अलग है और इसे करने के क्या-क्या फायदे हैं, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

  1. सूर्य नमस्कार और चंद्र नमस्कार में अंतर - Difference between surya and chandra namaskar in hindi
  2. चंद्र नमस्कार के फायदे - Chandra namaskar ke fayde
  3. चंद्र नमस्कार करने का तरीका - How to do chandra namaskar in hindi
चंद्र नमस्कार करने का तरीका और फायदे के डॉक्टर
  • सूर्य नमस्कार और चंद्र नमस्कार में पहला अंतर ये है कि सूर्य नमस्कार जहां गर्मी, प्रकाश और गतिविधि के बारे में है वहीं, चंद्र नमस्कार ध्यान यानी मेडिटेशन, ठंडक या शीतलता, शांति और ग्रहणशील होने के बारे में है।
  • सूर्य नमस्कार जहां स्फूर्तिदायक होता है वहीं, चंद्र नमस्कार आराम देने वाला और व्यक्ति को रिलैक्स बनाने वाला आसन है।
  • सूर्य नमस्कार का अभ्यास, सुबह के समय जब सूर्योदय होता है उस वक्त किया जाता है और चंद्र नमस्कार शाम के समय जब चांद नजर आता है उस वक्त इसका अभ्यास किया जाता है।
  • सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने के दौरान योगासन करने वाला व्यक्ति एक आसन से दूसरे आसन में जल्दी जल्दी मूव करता है लेकिन वहीं चंद्र नमस्कार के दौरान योग के सभी आसन धीरे-धीरे आराम से किए जाते हैं। 
  • सूर्य नमस्कार के 12 चरण या 12 आसन, 12 राशियों से संबंध रखते हैं जबकि चंद्र नमस्कार के 14 चरण या 14 आसन चांद के 14 चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • शरीर को जगाने, ऊर्जा और गर्मी पैदा करने के लिए सूर्य नमस्कार सुबह के समय और वह भी योग क्लास की शुरुआत में किया जाता है। वहीं, चंद्र नमस्कार का अभ्यास शाम के वक्त शरीर को शांत करने और पुनर्स्थापित करने के लिए किया जाता है। 
  • सूर्य नमस्कार का पोज गतिशील अनुक्रम है जो शारीरिक स्तर पर स्टैमिना और शक्ति का निर्माण करता है। चंद्र नमस्कार के पोज की शांत गुणवत्ता, सांस लेने के लिए एक मजबूत संबंध बनाने में मदद करती है।

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सूर्य नमस्कार की ही तरह चंद्र नमस्कार करने के भी ढेरों फायदे हैं :

  • चन्द्र नमस्कार रीढ़ की हड्डी और घुटने के पीछे की नस यानी हैमस्ट्रिंग को मजबूत बनाने में मदद करता है।
  • इसके अलावा यह आसन पैरों के पीछे के हिस्से को खींचने में और पैर, हाथ, पीठ और पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करता है।
  • चंद्र नमस्कार मासिक धर्म के दौरान भी महिलाओं के लिए फायदेमंद माना जाता है।
  • चंद्र नमस्कार एक ऐसा योगासन है जो सभी मांसपेशी समूहों में लचीलापन लाने और उन्हें मजबूत बनाने में मदद करता है। 
  • इसके अलावा श्वसन तंत्र, संचार तंत्र यानी सर्कुलेटरी सिस्टम और पाचन तंत्र के कामकाज को भी बेहतर बनाने में मदद करता है।
  • जिन लोगों को स्ट्रेस या तनाव की समस्या हो उनके लिए भी चंद्र नमस्कार बेहद फायदेमंद हो सकता है।
  • चंद्र नमस्कार मुख्य रूप से शरीर के निचले हिस्से पर केंद्रित योगासन है लिहाज जिन लोगों को शरीर के निचले हिस्से में दर्द रहता हो उनके लिए यह योगासन काफी फायदेमंद है।
  • चंद्र नमस्कार आपको शांत करने में मदद करने के साथ ही आपकी रचनात्मक ऊर्जा को सही दिशा देने में भी मदद करता है।
  • सूर्य नमस्कार की ही तरह चंद्र नमस्कार भी अपने आप में संपूर्ण व्यायाम है जो आपकी ऊर्जा को संतुलित करता है, आपको थकावट से दूर रखता है, आत्मविश्वास में सुधार करता है और गुस्से को भी कम करता है।

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सूर्य नमस्कार में जहां 12 आसन या चरण होते हैं वहीं, चंद्र नमस्कार में 14 आसन या चरण होते हैं। वे चरण हैं :
1. प्रणामासन: दोनों पैरों को जोड़कर सीधे खड़े हो जाएं और अपनी गर्दन भी सीधी रखें। दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम करने या प्रार्थना करने की मुद्रा में खड़े हो जाएं। इसके बाद शरीर को रिलैक्स कर लें।

2. हस्त उत्तानासन: सांस अंदर लें और अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर बिल्कुल सीधा उठाएं। इसके बाद अपनी पीठ और हाथों को आर्क के शेप में पीछे की तरफ झुकाएं। इस दौरान आपकी कोहनी, घुटने सब सीधे होने चाहिए और सिर दोनों हाथों के बीच में और ठुड्डी ऊपर सीलिंग की तरफ पॉइंटेड होनी चाहिए।

3. उत्तानासन : सांस बाहर छोड़ें और फिर कमर (हिप) के हिस्से से आगे की तरफ झुकें। इस दौरान अपनी हथेलियों को पैरों के दोनों तरफ जमीन पर टिकाएं और अपने घुटने को बिलकुल सीधा रखें। (और पढ़ें : उत्तानासन करने का तरीका और फायदे)

4. अश्व संचालनासन : सांस को अंदर लें और अपने बाएं घुटने पर जोर देते हुए आगे की तरफ झुकें और दाहिने पैर को पीछे की तरफ जितना हो सके पीछे धकेलें। पीछे की तरफ झुकें और चेहरे को ऊपर की तरफ उठाएं। हथेलियों को जमीन पर रखकर शरीर को संतुलन में रखने की कोशिश करें।

5. अर्ध चंद्रासन : सांस अंदर लेते हुए दोनों हाथों को स्ट्रेच करें और सिर के ऊपर ले जाएं। पीछे की तरफ आर्क आकार बनाएं और हाथों को भी पीछे की तरफ ले जाएं। चेहरे को ऊपर की तरफ उठाएं और ऊपर देखें। एक पैर को पीछे की तरफ धकेलें और दूसरे पैर को 90 डिग्री के ऐंगल में रखें।  (और पढ़ें : अर्ध चंद्रासन करने का तरीका और फायदे)

6. पर्वतासन : सांस बाहर छोड़ें और हाथों को वापस जमीन पर ले आएं। अपने दोनों पैरों को पीछे की तरफ रखें और हिप के हिस्से से शरीर को ऊपर उठाएं। अपनी पीठ और दोनों पैरों को सीधा रखें और एक साथ जोड़कर रखें। दोनों हाथ की हथेलियों को जमीन पर टिका कर रखें। इस दौरान आपके शरीर से उल्टे वी जैसा आकार बनना चाहिए। 

7. अष्टांग नमस्कार : अब सांस छोड़ें और वापस अपने घुटनों पर आ जाएं। अब अपने घुटनों, छाती और ठुड्डी सभी को जमीन की तरफ ले आएं। अपने पेट और हिप को जमीन से सटाकर रखने की बजाए ऊपर उठाएं। अपनी हथेली को सीने के पास दोनों तरफ रखें। (और पढ़ें : दिल को स्वस्थ रखने वाले 5 योगासन)

8. भुजंगासन : सांस अंदर लें और अपने दोनों पैरों को पीछे की तरफ ले जाएं। जमीन पर अपनी हथेलियों को टाइट रखें और अपने शरीर को सीने के पास से ऊपर उठाएं। आपके दोनों हाथ कंधे के बिल्कुल नीचे होने चाहिए। इस दौरान कोबरा सांप अपना फन उठाते वक्त जैसा दिखता है आपका शरीर भी उसी पोजिशन में होना चाहिए। 

(और पढ़ें : भुजंगासन करने का तरीका और फायदे)

9. भुजंगासन पोजिशन के बाद एक बार फिर से पर्वतासन की पोजिशन में वापस आ जाएं।

10. पर्वतासन के बाद एक बार फिर अश्व संचालनासन के पोजिशन में वापस आ जाएं।

11. अश्व संचालनासन के बाद अर्ध चंद्रासन की पोजिशन में वापस आ जाएं।

12. अर्ध चंद्रासन के बाद उत्तानासन की पोजिशन में आ जाएं।

13. उत्तानासन के बाद एक बार फिर से हस्त उत्तानासन की पोजिशन।

14. और आखिर में पहले वाला प्रणामासन।

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Dr. Smriti Sharma

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