स्कॉटलैंड दुनिया का पहला देश बन गया है जहां महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड मुफ्त मुहैया कराने की व्यवस्था कर दी गई है। स्कॉटलैंड की संसद में इस संबंध में बिल पारित कर दिया गया है। अब इस देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में जहां कहीं भी स्कॉटलैंड के आधिकारिक केंद्र (जैसे युवा क्लब, फार्मेसी, कम्युनिटी सेंटर) होंगे, वहां महिलाओं को माहवारी से जुड़े उत्पाद बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध कराए जाएंगे। स्कॉटलैंड के इस कदम को महिलाओं के स्वास्थ्य के लिहाज से क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, महिलाओं के लिए यह सुविधा सुनिश्चित करने के लिए स्कॉटिश संसद में 'पीरियड प्रॉडक्ट्स (फ्री प्रॉविजन) स्कॉटलैंड बिल' लाया गया था। बताया जा रहा है कि 112 सांसदों ने बिल का समर्थन किया। किसी भी सांसद ने इसका विरोध नहीं किया, हालांकि एक सांसद ने मतदान नहीं किया। खबरों के मुताबिक, अब बिल दूसरे चरण में जाएगा, जिसमें संसद के सदस्य बिल में संशोधन करने के प्रस्ताव दे सकते हैं। इसके बाद तीसरे चरण के तहत बिल पर अंतिम विचार किया जाएगा।

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स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस व्यवस्था से स्कॉटलैंड की सरकार पर 24.1 मिलियन पाउंड (223 करोड़ रुपये से ज्यादा) का आर्थिक बोझ पड़ेगा। हालांकि बिल को प्रस्तावित करने वाली सांसद मोनिका लेनन का कहना है कि इस बिल का पास होना स्कॉटलैंड में माहवारी को सामान्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। मोनिका ने कहा, 'यह इस बात का सबूत है कि इस देश में लोग लैंगिक समानता को लेकर कितने गंभीर हैं।'

मोनिका लेनन ने जो बात कही, वह एक देश के रूप में स्कॉटलैंड पर लागू होती दिखती है। जानकार इसकी वजह भी बताते हैं। उनका कहना है कि माहवरी को लेकर स्कॉटलैंड जागरूक है और इस मुद्दे को लेकर अपने यहां कई सुधार करता रहा है। मिसाल के लिए, 2018 में स्कॉटलैंड ने फैसला लिया था कि यहां के सभी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सैनिटरी उत्पाद मुफ्त में उपलब्ध कराए जाएंगे।

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वहीं, आंकड़ों के लिहाज से भी स्कॉटलैंड का यह फैसला महत्वपूर्ण लगता है। युनाइटेड किंगडम (इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड) की एक गैर-सरकारी संस्था 'प्लान इंटरनेशनल' के एक शोध के मुताबिक, यूके में रहने वालीं हर दस महिलाओं या युवतियों में से एक माहवारी संबंधी उत्पाद नहीं खरीद पाती। ऐसे में स्कॉटलैंड यूके समेत पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बन सकता है।

भारत में क्या हैं हालात?
यूरोप में हर दस महिलाओं में केवल एक महिला सैनिटरी प्रॉडक्ट नहीं ले पाती। वहीं, भारत इस मामले में काफी पीछे है। 2011 की जनगणना के आधार 2015-16 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 33 करोड़ से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें माहवारी के चलते सैनिटरी उत्पादों की जरूरत है। लेकिन केवल 36 प्रतिशत महिलाओं को ही ऐसे उत्पाद उपलब्ध हो पाते हैं। यह हाल तब है जब इस मुद्दे को लेकर देश में कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं।

सैनिटरी पैड्स नहीं मिल पाना व्यवस्था से जुड़ी बड़ी कमी है। लेकिन हमारे यहां माहवारी को लेकर जागरूकता की भी काफी कमी है। इसके चलते महिलाओं को कई सामाजिक समस्याओं को सामना करना पड़ता है। अंधविश्वास के चलते भारत में माहवारी को 'अभिशाप' की तरह देखा गया है। इसकी वजह से ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इसे 'अपवित्र' और 'गंदा' मानते हैं, जबकि यह महिलाओं के शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है। आज भी हालात ऐसे हैं कि मेडिकल स्टोर में सैनिटरी पैड्स को काले या नीले रंग के थैलों में दिया जाता है ताकि कोई देख न ले।

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क्या है माहवारी?
माहवारी या मासिक धर्म प्रजनन चक्र का प्राकृतिक अंग है। इसमें गर्भाशय से रक्त योनि के जरिये महिला के शरीर से बाहर निकलता है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया 15 वर्ष (उससे थोड़ा पहले भी) की लड़कियों में शुरू होती है। यह उनमें यौवन की शुरुआत का संकेत है।

महिलाओं के पेट के अंदर गर्भाशय के दोनों तरफ दो छोटे अंडाशय होते हैं। इनमें सैकड़ों अंडे भरे होते हैं। महिलाएं जब यौवन में पहुंचती हैं तो उनका अंडाशय हार्मोन (विशेष रूप से एस्ट्रोजन) बनाता है जिससे स्तन का विकास होता है और मासिक धर्म की शुरुआत होती है। इसमें मस्तिष्क की पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा एक रासायनिक संदेशवाहक का स्त्राव किया जाता है जिसे गोनैडोट्रोपिन कहते हैं। यह संदेशवाहक अंडाशय को संदेश देता है कि वह महीने में एक बार परिपक्व अंडा जारी करे। 

अंडा जारी होने के बाद गर्भाशय तक जाता है। इस दौरान अगर उसे कोई स्पर्म मिलता है तो निषेचन (फर्टिलाइजेशन) की प्रक्रिया के तहत महिला गर्भवती होती है। लेकिन अगर अंडे का निषेचन नहीं होता तो शरीर गर्भाशय की उस रक्त युक्त झिल्ली को हटा देता है जिसका उपयोग नहीं हो पाया। इसी के चलते योनि से रक्त का स्राव होता है। यही मासिक धर्म है। मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि यह प्रक्रिया दो से पांच या तीन से सात दिन तक चलती है। इस दौरान महिला के शरीर से कुछ ही मिलीलीटर रक्त निकलता है।

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