बीते कुछ सालों में कीटो डाइट ने काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है। इस खास तरह के डाइट में फैट की उच्च मात्रा, पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और बेहद कम कार्बोहाइड्रेट को शामिल किया जाता है। इस डाइट का सेवन करने पर शरीर में किटोसिस नाम की प्रक्रिया शुरू होती है जो शरीर को मजबूर करती है कि वह ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेट की जगह शरीर में मौजूद फैट को जलाना शुरू करे।
कीटो डाइट में उच्च फैट और कम कार्बोहाइड्रेट का सेवन
कीटोजेनिक या कीटो डाइट में सामान्य रूप से अंडा, चीज, कम कार्बोहाइड्रेट वाली सब्जियां जैसे- केल, पालक, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, फूल गोभी, लौकी, तोरी, करेला, सूखे मेवे और सीफूड को शामिल किया जाता है। जो लोग कीटो डाइट को फॉलो कर रहे होते हैं उनके लिए जरूरी होता है कि वे अपनी 75 से 80 प्रतिशत ऊर्जा को फैटी फूड्स से प्राप्त करें। भले ही कीटो डाइट का सेवन करने से वजन घटाने में मदद मिलती हो और दुनियाभर के कई सेलिब्रिटीज इस डाइट का समर्थन भी करते हों लेकिन अक्सर जो सवाल ज्यादातर लोगों के मन में आता है वो ये है कि- क्या इतनी ज्यादा मात्रा में फैट का सेवन करना शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है? अगर आपके मन में भी कभी यह सवाल आया है तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए।
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क्या कीटो डाइट कोलेस्ट्रॉल लेवल पर असर डाल सकता है?
अक्सर लोगों के मन में इस बात को लेकर चिंता रहती है कि कीटो डाइट का उनके कोलेस्ट्रॉल लेवल पर क्या असर होगा। कुछ समय पहले हार्वर्ड हेल्थ ब्लॉग में एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ था जिसमें यह समझाया गया था कि आंकड़ों से पता चलता है कि जब आप कीटो डाइट को फॉलो करना शुरू करते हैं तो शुरुआत में तो कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ता है लेकिन कुछ महीने तक लगातार किटोसिस की प्रक्रिया होने के बाद कोलेस्ट्रॉल में कमी आने लगती है।
हालांकि कीटो डाइट का लंबे समय तक शरीर पर क्या असर होता है इस बारे में ज्यादा रिसर्च मौजूद नहीं है इसलिए अनिश्चितता की यह स्थिति उन लोगों के लिए ज्यादा चिंताजनक है जिनके परिवार में कई लोगों को हृदय रोग की समस्या हो चुकी है।
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कीटो डाइट का हार्ट हेल्थ पर असर
कीटोजेनिक डाइट का हृदय की सेहत पर क्या और कैसा असर होता है इसे लेकर अनुसंधानकर्ता और डॉक्टर्स भी फिलहाल उलझन की स्थिति में हैं। नई रिसर्च में पाया गया है कि कीटो डाइट उन लोगों के हार्ट हेल्थ में सुधार कर सकता है जिनमें पहले से ही हार्ट फेलियर का खतरा है। इस तरह के लोगों में, हृदय की दाईं या बाईं तरफ की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं जिस वजह से हृदय की असरदार तरीके से खून को पंप करने की क्षमता कम हो जाती है।
एक और चीज जो खासकर उन लोगों में होती है जिन्हें पहले से डायबिटीज की समस्या है वो ये है कि हृदय का लचीलापन कम हो जाता है जिस वजह से वह अलग-अलग रासायनिक ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग नहीं कर पाता। इसकी वजह से मांसपेशियों को असरदार तरीके से कार्य करने के लिए जिस ईंधन की जरूरत होती है उसमें भी कमी आ जाती है। ऊर्जा के लिए उपयोग होने वाला सबसे अधिक और कॉमन मॉलिक्यूल (अणु) है पाइरूवेट। एमपीसी कॉम्प्लेक्स नाम का प्रोटीन इस अणु को हृदय तक लेकर जाता है। एमपीसी का अर्थ है- माइटोकॉन्ड्रियल पाइरूवेट कैरियर जिसमें 2 सबयूनिट होते हैं- एमपीसी1 और एमपीसी2।
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एमपीसी2 का उत्पादन कम होने से हार्ट फेलियर की स्थिति बनती है
अमेरिका के सेंट लूईस स्कूल ऑफ मेडिसिन के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि जब इंसान का हृदय कमजोर होने लगता है तो इन दोनों सबयूनिट्स- एमपीसी1 और एमपीसी2- का उत्पादन भी कम हो जाता है। इसके बाद अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों पर की गई एक स्टडी में पाया कि जब एमपीसी2 का उत्पादन कम होने लगता है तो इसकी वजह से समय के साथ धीरे-धीरे हार्ट फेलियर की स्थिति विकसित होने लगती है।
हाई फैट लो कार्ब डाइट से हार्ट फेलियर को रोका जा सकता है
इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाली सेंट लूईस स्कूल ऑफ मेडिसिन में बायोकेमिस्ट्री और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर काइल एस मेक्कॉमिस ने समझाया, "यहां पर दिलचस्प बात ये है कि इस तरह के हार्ट फेलियर को होने से रोका जा सकता है और यहां तक की हृदय को हुई क्षतिपूर्ति को बदला भी जा सकता है अगर मरीज को हाई फैट और लो कार्बोहाइड्रेट वाला कीटोजेनिक डाइट दिया जाए। इसके अलावा चूहों में 24 घंटे का उपवास, जो एक तरह से कीटोजेनिक ही है, ने भी हृदय की रीमॉडलिंग में महत्वपूर्ण वृद्धि दिखायी।"
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साथ ही स्टडी में यह भी पाया गया कि किटोसिस की प्रक्रिया के दौरान एक वैकल्पिक ईंधन का भी उत्पादन होता है जिसे Acetyl CoA कहते हैं जिसका इस्तेमाल माइटोकॉन्ड्रिया (कोशिकाओं में ऊर्जा का केंद्र) ऊर्जा के स्त्रोत के तौर पर कर सकता है, पाइरूवेट की जगह। रिसर्च में यह भी दिखाया गया कि कीटो डाइट, माइटोकॉन्ड्रिया में फैटी एसिड्स के टूटने की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है जिससे हार्ट फेलियर की समस्या को पूरी तरह से बदला जा सकता है (चूहों में)।
इसी को आधार बनाकर स्टडी में यह सुझाव दिया गया है कि अगर उच्च फैट और कम कार्बोहाइड्रेट वाले डाइट का सेवन किया जाए तो यह हार्ट फेलियर के इलाज में पोषण संबंधी चिकित्सीय हस्तक्षेप की तरह कार्य कर सकता है। इस बारे में हृदय रोग विशेषज्ञ भी यही अंदाजा लगा रहे हैं कि इस स्टडी के नतीजे हार्ट फेलियर के इलाज के लिए नई दवाओं के विकास को प्रेरित कर सकते हैं।
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