कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर के कई देश लॉकडाउन की स्थिति में हैं। इसके चलते लोगों को कई प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जो निश्चित ही इसका एक नकारात्मक पहलू है। लेकिन लॉकडाउन का एक सकारात्मक असर पर्यावरण पर देखने को मिला है, खास कर भारत में। दरअसल, लॉकडाउन के चलते देश में तमाम फैक्ट्रियां, उद्योग और करोड़ों गाड़ियां बंद हैं। इसी का परिणाम है कि दिल्ली समेत देश के 90 से अधिक शहरों में प्रदूषण का स्तर कम होने लगा है।

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पीएम 2.5 में हुआ सुधार
कोविड-19 की वजह से भारत के 130 करोड़ से ज्यादा लोग लॉकडाउन झेल रहे हैं। सरकार ने सभी को घर में रहने को कहा है। उसने लोगों को अनावश्यक यात्रा करने से भी मना किया है। यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों में प्रदूषण का स्तर कम दर्ज किया गया है।

केंद्र सरकार के तहत प्रदूषण संबंधी निगरानी करने वाली संस्था 'सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च' (एसएएफएआई या सफर) के मुताबिक, कोरोना वायरस प्रकोप के कारण किए गए उपायों से दिल्ली में पार्टिक्युलेट मैटर यानी पीएम 2.5 में 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। वहीं, अहमदाबाद और पुणे में इसमें 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

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क्या है पार्टिक्युलेट मैटर या पीएम 2.5?
पीएम 2.5 हवा में मौजूद धूल के सबसे छोटे कण हैं। बताया जाता है कि इनका आकार (या डायमीटर) 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है। ये एक इंसानी बाल की मोटाई का करीब तीन प्रतिशत है। जानकार बताते हैं कि ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से देखा जा सकता है। सांस के जरिये बार-बार शरीर के अंदर जाने से ये व्यक्ति को हृदय रोग और फेफड़ों से जुड़ी कई बीमारियों दे सकते हैं। वायु प्रदूषण से जुड़ी खबरों, शोधों, अध्ययनों और अन्य प्रकार की रिपोर्टों में इनका जिक्र अक्सर होता है।

नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में आई कमी
लॉकडाइन की वजह से वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड यानी एनओएक्स प्रदूषण का स्तर भी कम होने लगा है। बता दें कि एनओएक्स के चलते सबसे ज्यादा सांस संबंधी रोगों का जोखिम बढ़ता है। एनओएक्स प्रदूषण के बढ़ने का एक मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं हैं। लेकिन लॉकडाउन के चलते सड़कों से करीब लाखों-करोड़ों वाहन गायब हो गए हैं। नतीजतन, महाराष्ट्र के पुणे में एनओएक्स प्रदूषण में 43 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जबकि मुंबई में 38 प्रतिशत और अहमदाबाद में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है।

यह परिवर्तन देख वैज्ञानिकों ने भी अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा है कि आमतौर पर मार्च में प्रदूषण मध्यम श्रेणी (एयर क्वालिटी इंडेक्स रेंज,100-200) में होता है, लेकिन वर्तमान में यह संतोषजनक (एक्यूआइ 50-100) या अच्छी (एक्यूआइ 0-50) श्रेणी में है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह लॉकडाउन का असर है, क्योंकि उद्योग, निर्माण कार्य और ट्रैफिक जैसे कारकों के बंद होने से हवा की क्वालिटी में सुधार हुआ है।

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