इंसानों की तरह ही कुत्तों में भी हड्डियों के टूटने के मामले सामने आते रहते हैं। कुत्तों में फीमर (जांघ की हड्डी) और उल्ना (अंग में हड्डियां) जैसी हड्डियों के टूटने का खतरा अधिक होता है। ये हड्डियां लंबी और अधिक वजन सहने योग्य होती हैं। आम तौर पर दुर्घटनाओं अथवा हड्डी के कमजोर होने के कारण कुत्तों में फ्रैक्चर के मामले देखने को मिलते हैं। हड्डियों के टूटने के मामले में कुत्तों को डॉक्टर के पास ले जाते वक्त मालिकों को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। 

कुत्तों के शरीर के कई हिस्सों जैसे पसलियां, पीठ या पूंछ में भी फ्रैक्चर हो सकते हैं। इसका उपचार भी फ्रैक्चर के प्रकार और क्षेत्र पर निर्भर करता है। उपचार के पश्चात एक बार फ्रैक्चर ठीक हो जाने के बाद, कुत्ते को कुछ दिनों के लिए चलने और खड़े होने के दौरान सहायता देने और पूर्ण देखरेख की जरूरत होती है। फ्रैक्चर वाले हिस्से को पूरी तरह से सही होने के लिए व्यायाम, मसाज और पूर्ण देखरेख बहुत आवश्यक होती है।

  1. कुत्तों में फ्रैक्चर के लक्षण - Kutton me Fracture ke Lakshan
  2. कुत्तों में फ्रैक्चर के कारण - Kutton me Fracture ke Karan
  3. कुत्तों में फ्रैक्चर का निदान - Kutton me Fracture ka Nidaan
  4. कुत्तों में फ्रैक्चर को सही करने का शुरुआती तरीका - Kutton me Fracture Theek ka Shuruwati Tareeka
  5. फ्रैक्चर ठीक होने पर देखरेख - Fracture Theek hone par Dekh Rekh

शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले फ्रैक्चरों के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन जो मुख्य लक्षण हैं, जिनसे इनकी पहचान की जा सकती है वो हैं -

  • दर्द के कारण कुत्ते अक्सर रोते रहेंगे
  • चलने के दौरान लंगड़ाना
  • खड़े होने में सक्षम न होना (यदि रीढ़ या पसलियों में फ्रैक्चर हो)
  • चलते-चलते प्रभावित हिस्से को छूना
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  1. नस्ल - चिहुआहुआ, शिहत्ज़ुस और पग जैसी नस्लों वाले कुत्तों की हड्डियां छोटी होती हैं जो आसानी से टूट सकती हैं।
  2. आयु - अधिक उम्र वाले कुत्तों में फ्रैक्चर होने की आशंका अधिक होती है। साथ ही छोटी आयु वाले कुत्तों में भी फ्रैक्चर का काफी अधिक डर होता है, क्योंकि ज्यादा उछल-कूद के दौरान इनकी कई अल्पविकसित और नाजुक हड्डियां टूट जाती हैं।
  3. दुर्घटनाएं - वाहनों की दुर्घटनाओं के कारण कुत्तों में सबसे अधिक फ्रैक्चर के मामले सामने आते हैं।
  4. आहार - यदि आपके कुत्ते को आहार में पर्याप्त कैल्शियम नहीं मिल रहा है, तो उसकी हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, जिनके टूटने का डर बना रहता है।
  5. अंडररिंग डिजीज - हाइपरट्रॉफिक ओस्टोडिस्ट्रॉफी (बड़ी नस्लों में एक विकासात्मक बीमारी) और ऑस्टोजेनेसिस इम्पेक्टा (भंगुर हड्डी रोग) जैसे रोग हड्डियों को कमजोर करते हैं, इस प्रकार उन्हें फ्रैक्चर होने का खतरा होता है।
  6. बोन कैंसर - ओस्टियोसारकोमा कुत्तों में होने वाला सबसे आम हड्डी का कैंसर है। इससे अचानक फ्रैक्चर हो जा सकता है।

घर पर ही फ्रैक्चर के लक्षणों को आसानी से देखा जा सकता है। यदि आप अपने कुत्ते को रोते हुए, लंगड़ाते हुए और एक अलग तरीके से चलते हुए पाते हैं, तो उसे पशु चिकित्सक के पास ले जाएं। यदि कुत्ता किसी दुर्घटना का शिकार हुआ है तो उसे पशु चिकित्सक के पास ले जाते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि कुत्ते को कुछ आंतरिक चोटें भी हो सकती हैं।

फ्रैक्चर के सटीक स्थान, सीमा और गंभीरता का पता लगाने के लिए एक्स-रे और सीटी स्कैन किया जाता है। छाती, पेट, मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में चोट का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी और खून की जांच कराना आवश्यक होता है।

शरीर के अलग-अलग हिस्सों में होने वाले फ्रैक्चर को उसी के अनुसार देखरेख और मैनेजमेट की जरूरत होती है।

  • टूटी हुई पसलियां - सबसे पहले जांच करें कि छाती के हिस्से में कोई घाव तो नहीं है। यदि कही घाव है तो उसे साफ कर ढक दें और फिर पूरी छाती को शीट से लपेट दें। चादरों को कसकर न लपेटें इससे सांस में रुकावट आ सकती है। यदि कुत्ते को सांस लेने में मुश्किल हो रही है और आवाज कर रही है, तो उसे तत्काल चिकित्सक के पास ले जाएं। चिकित्सक के पास ले जाते समय, न तो टांगें और न ही उसे अपने सीने से लगाए।
  • टूटी हुई पीठ - अगर कुत्ते की पीठ टूट गई हो तो पीठ पर कोई फ्लैट बोर्ड बांध दें, जिससे वह हिले-डुले नहीं।
  • टूटे हुए अंग - यदि कोई अंग टूट गया हो तो आवश्यकतानुसार मुंह बंद करने वाला जालीनुमा उपकरण से बंद करें। तौलिए की मदद से टूटे हुए अंग को सहारा दें। हड्डी को सेट करने की कोशिश न करें।
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फ्रैक्चर जब ठीक होने लगता है तो कई मामलों में होता है कि उसके पैर कमजोर पड़ रहे हैं, वह ठीक से खड़ा नही हो पा रहा है। यदि वह कई हफ्तों तक पैरों का सही से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है तो ऐसे में उसे फिजिकल थैरपी की जरूरत होती है। 

  • कोल्ड कंप्रेशन : चोट लगने के हफ्ते में फ्रैक्चर साइट वाले हिस्से पर सूजन और दर्द को कम करने के लिए कोल्ड पैक लगाएं। 
  • मैनुअल मसाज: एक बार जब सूजन कम हो जाती है तो क्षतिग्रस्त हड्डी के आसपास की त्वचा और मांसपेशियों की मालिश करना शुरू करें। मालिश करने से गांठ नहीं बनती है। गांठ बन जाने से सामान्य गतिविधियों में रुकावट आ सकती है।
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