भैंस की आंख में कीचड़ आना एक संक्रामक रोग है, जो आस-पास रहने वाले पशुओं में तेजी से फैल सकता है। यह वास्तव में एक बैक्टीरिया के कारण होने वाला इन्फेक्शन है, जो भैंस की आंख के अंदरुनी व बाहरी दोनों हिस्सों को प्रभावित करता है। भैंस की आंख से सफेद पानी आना, पूरा दिन आंख गीली रहना या भैंस द्वारा आंख खोल न पाना आदि इस रोग के कुछ सबसे आम संकेत होते हैं।

नियमित रूप से भैंस की आंख की सफाई करके यह रोग होने से बचाव किया जा सकता है। हालांकि, यदि भैंस को पहले ही यह रोग हो गया है, तो उसे अन्य जानवरों के संपर्क से दूर रखें, ताकि अन्य पशुओं को संक्रमित होने से बचाया जा सके। उसे अन्य पशुओं से तब तक दूर रखें, जब तक पशु चिकित्सक ऐसा करने को कहें।

जैसा कि यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, इसके इलाज में विभिन्न प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। ये दवाएं मुख्य रूप से क्रीम, आईड्रॉप्स और खाने वाली गोलियों के रूप में आती हैं। कुछ गंभीर मामलों में आंख के अंदर इंजेक्शन से भी दवाई पहुंचाई जाती है।

यदि इस स्थिति की समय पर जांच करके उचित इलाज शुरू न किया जाए, तो यह आंख को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकती है। ऐसे में भैंस को दिखाई देना पूरी तरह से बंद हो सकता है।

  1. भैंस की आंख से कीचड़ आना क्या है - What is Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi
  2. भैंस की आंख से कीचड़ आने के लक्षण - Symptoms Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi
  3. भैंस की आंख से कीचड़ आने के कारण - Causes of Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi
  4. भैंस की आंख से कीचड़ आने से बचाव - Prevention of Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi
  5. भैंस की आंख से कीचड़ आने का परीक्षण - Diagnosis of Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi
  6. भैंस की आंख से कीचड़ आने का इलाज - Treatment of Infectious Bovine Keratoconjunctivitis in Hindi

आंख से कीचड़ आना भैंसों में होने वाली काफी आम समस्या है। हिन्दी भाषा में इसे अन्य कई नामों से जाना जाता है जैसे आंख से गंदगी आना, आंख से मैल आना और आंख से सफेद पानी आना।

भैंस की आंख में कीचड़ आने की स्थिति को मेडिकल भाषा में इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस के नाम से जाना जाता है। यह आंख की पुतली को प्रभावित करने वाला एक गंभीर संक्रमण है, जो कुछ गंभीर मामलों में भैंस की आंख को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है। यदि रोग अत्यधिक गंभीर हो गया है, तो इससे आंख के कॉर्निया (आंख का काला हिस्सा) में सफेद परत बन जाती है, जिससे भैंस को दिखाई देना पूरी तरह से बंद हो सकता है।

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भैंस की आंख से कीचड़ आने पर विकसित होने वाले लक्षण संक्रमण फैलने के 2 से 3 दिन बाद दिखाई देने लगते हैं। ये लक्षण कुछ दिनों से कुछ हफ्तों तक बने रह सकते हैं। वयस्क भैंस या भैंसे (नर) के मुकाबले कटड़े या कटड़ी में इसके मामले अधिक गंभीर देखे गए हैं।

आंख से सफेद व गाढ़ा पानी आना इस रोग का सबसे पहला और मुख्य लक्षण होता है। हालांकि, इसके कुछ विशेष लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि रोग कितना गंभीर है। इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस (आईबीके) को मुख्य चार चरणों में विभाजित किया गया है। चरणों के अनुसार इसके लक्षणों में लगातार पानी व सफेद पदार्थ आना, पुतली में दरार जैसी रेखाएं बनना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता होना, आंख में दर्द और सूजन जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं कुछ गंभीर चरणों में कॉर्निया में घाव बनना, आंख क्षतिग्रस्त होना और यहां तक कि अंधापन भी हो सकता है।

रोग के चरणों के अनुसार आंख से कीचड़ आने के लक्षण निम्न हो सकते हैं -

  • स्टेज 1 -
    इस चरण में प्रभावित आंख की पुतली में हल्की क्षति हो जाती है और अधिक रौशनी भैंस को आंख में चुभने लगती है। इस स्थिति को प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशीलता कहा जाता है। इस स्थिति में भैंस बार-बार पलक झपकाती है और उसकी आंख का सफेद हिस्सा (स्क्लेरा) सूजन के कारण लाल हो जाता है। साथ ही कॉर्निया के बीच में एक छोटा सा छाला बन जाता है, जो एक सफेद धब्बे की तरह दिखने लगता है। कॉर्निया के अंदर सूजन व द्रव जमा हो जाता है, जिससे काले घेरे के बीच में ग्रे रंग के धब्बे दिखने लग जाते हैं।
     
  • स्टेज 2 -
    दूसरे चरण में आते-आते लक्षणों की गंभीरता बढ़ने लगती है और छाला कॉर्निया के अंदर फैलने लगता है। जैसे ही सूजन व लालिमा बढ़ती है, इसके कारण आंख के काले हिस्से में धुंधले सफेद रंग के धब्बे फैलने लगते हैं। इस चरण में भी आईरिस की स्थिति का पता लगाया जा सकता है, लेकिन संभावित रूप से भैंस की दृष्टि काफी प्रभावित हो सकती है। आंख में हो रही क्षति को ठीक होने में मदद करने के लिए कॉर्निया के बाहरी हिस्से की रक्त वाहिकाएं बढ़ने लगती हैं और इस कारण से आंख का रंग गुलाबी हो जाता है। इसी वजह से इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस को अंग्रेजी भाषा में “पिंक आई” भी कहा जाता है।
     
  • स्टेज 3 -
    तीसरे चरण में आंख के अंदर गंभीर छाले बनने लग जाते हैं और यह कॉर्निया के एक बड़े हिस्से को ढक लेते हैं। साथ ही साथ सूजन आंख के अंदरूनी हिस्सों में फैलने लग जाती है। आंख का अंदरूनी हिस्सा फाइब्रिन और सफेद रक्त कोशिकाओं से भर जाता है। इस कारण से आंख का रंग हल्का सफेद या पीला दिखने लगता है।
     
  • स्टेज 4 -​
    यह संक्रमण का सबसे गंभीर चरण है, जिसमें छाले आंख के लगभग सभी हिस्सों को ढक लेते हैं। छालों के अंदर से ही आईरिस दिखने लग जाता है। इस चरण में कॉर्निया व आईरिस दोनों क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और संक्रमण ठीक होने के बाद भी ये दोनों आपस में चिपक जाते हैं। इस स्थिति में आंख निकालना ही सबसे उचित उपाय माना जाता है।

यदि स्टेज चार में आने से पहले ही आंख के अंदर होने वाले छाले व घाव ठीक हो जाते हैं, तो रक्त वाहिकाएं वापस अपने आकार में आने लगती हैं। हालांकि, कुछ समय के लिए आंख के अंदर धुंधले धब्बे दिखाई दे सकते हैं। अंत में भैंस की आंख धीरे-धीरे साफ हो जाती है और देखने संबंधी समस्याएं भी काफी कम हो जाती हैं।

भैंस की आंख में बैक्टीरियल संक्रमण होने के कारण यह समस्या विकसित होती है। यह मुख्य रूप से "मोराक्सेला बोविस" (Moraxella bovis) नाम के बैक्टीरिया के कारण होता है। इसे "एम. बोविस" (M. bovis) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कुछ अन्य बैक्टीरिया व वायरस भी हैं, जो आंख से कीचड़ आने जैसी स्थितियों का कारण बन सकते हैं।

एम. बोविस बैक्टीरिया की सतह पर बाल जैसी एक संरचना होती है, जिसे “पिली” कहा जाता है। पिली की मदद से बैक्टीरिया कंजक्टिवा से चिपक पाते हैं और उस जगह पर संक्रमण फैलाना शुरू कर देते हैं। ऐसे में पलक की अंदरुनी सतह और आंख के अन्य हिस्सों में सूजन व लालिमा होने लगती है। समय के साथ-साथ सूजन व लालिमा की गंभीरता बढ़कर छाले का रूप धारण कर लेती है। अंत में ये छाले फूटने लगते हैं और अंधापन का कारण बन सकते हैं।

भैंस की आंख से कीचड़ आने का खतरा कब बढ़ता है?

पराग, धूल व पराबैंगनी किरणें जैसे कुछ सामान्य कारक भी हैं, जो भैंस की आंख में कीचड़ आने का खतरा बढ़ा देते हैं। इन्हें सामान्य भाषा में उत्तेजक पदार्थ भी कहा जाता है, ये आंख के अंदर जाकर कॉर्निया से रगड़ खाते हैं, जिससे खरोंच लग जाती है। खरोंच के माध्यम से बैक्टीरिया को आंख के अंदर जाने का रास्ता मिल जाता है।

कुछ उत्तेजक पदार्थों के कारण भैंस की आंख में अधिक पानी आता है, जिससे आंख पर मक्खियां बैठने लगती हैं। ये मक्खियां भी बैक्टीरिया को आंख तक पहुंचाने का काम करती हैं और इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस होने का खतरा बढ़ा देती हैं।

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भैंस की आंख व उसके शरीर की विशेष रूप से सफाई रखना सबसे अच्छा तरीका है। इसकी मदद से आंख से कीचड़ या पानी आने की समस्या होने से बचाव किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए भैंस को रोजाना साफ पानी में नहलाएं और उसकी आंख को धोएं। आंख को धोने के लिए किसी प्रकार के साबुन या अन्य उत्पादों का इस्तेमाल न करें या फिर आप पशु चिकित्सक से पूछकर कोई उत्पाद इस्तेमाल कर सकते हैं। भैंस के तबेले को भी साफ रखें और यदि तबेले में अधिक मक्खियां हैं, तो उचित कीटनाशक दवा का छिड़काव कराएं।

यदि किसी भैंस की आंख में पहले से ही यह संक्रमण हो गया है, तो उसके पास रहने वाले पशु भी संक्रमित हो सकते हैं। इस स्थिति में अन्य पशुओं में संक्रमण फैलने से रोकना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। ऐसे में संक्रमित भैंस को अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर रखें। उनकी चारे व पानी की नांद (खोल, खुरली) भी अलग-अलग रखें। यदि भैंस में संक्रमण के लक्षण खत्म हो गए हैं, तब भी उन्हें अन्य पशुओं के साथ रखने से पहले पशु चिकित्सक से बात कर लें।

पराबैंगनी किरणें भैंस की आंख से कीचड़ आने की समस्या को और बदतर बना सकती है, इसलिए संक्रमित भैंस को हमेशा छाया में ही रखना चाहिए। यदि भैंस की आंख पर बार-बार मक्खियां बैठ रही हैं, तो वे आंख को ठीक नहीं होने देती हैं और अन्य पशुओं में भी यह संक्रमण फैला सकती हैं। इसलिए डॉक्टर से पूछकर उचित कीटनाशक दवा का छिड़काव करना जरूरी है। इसके अलावा भैंस की आंख को धूल व पराग आदि के संपर्क में भी न आने दें।

इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस का परीक्षण मुख्य रूप से पशु चिकित्सक के द्वारा ही किया जाता है। इसके परीक्षण के दौरान सबसे पहले आंख की करीब से जांच की जाती है और साथ ही पशु चिकित्सक मालिक से भैंस के स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी ले सकते हैं।

इसके अलावा पशु चिकित्सक कुछ परीक्षण भी कर सकते हैं, जिसकी मदद से संक्रमण का कारण बनने वाले बैक्टीरिया की पहचान की जाती है। इस परीक्षण प्रक्रिया को "बैक्टीरियोलॉजी" कहा जाता है। परीक्षण के दौरान यह पता लगाना जरूरी है कि अल्सर आंख में कोई बाहरी चीज लगने या फिर किसी परजीवी के कारण नहीं हुए हैं।

कारण बनने वाले सूक्ष्मजीव की पुष्टि करने के लिए पशु चिकित्सक “माइक्रोबियल कल्चर” नामक परीक्षण भी कर सकते हैं।

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आंख से कीचड़ आना वास्तव में एक बैक्टीरियल संक्रमण है। हालांकि, कुछ दुर्लभ मामलों में यह वायरल संक्रमण भी हो सकता है। इस स्थिति का जल्द से जल्द इलाज करवाना जरूरी है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह रोग अन्य जानवरों में तेजी से फैल सकता है और कुछ गंभीर मामलों में यह स्थायी रूप से आंख को क्षतिग्रस्त कर सकता है।

इन्फेक्शियस बोवाइन केराटोकंजक्टिवाइटिस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया एम. बोविस के लिए कई दवाएं मौजूद हैं। पशु चिकित्सक द्वारा आंख का परीक्षण करने के बाद ये दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध कुछ सामान्य दवाएं भी हैं, जो क्रीम, मलहम, आईड्रॉप्स और खाने वाली दवा के रूप में मिल जाती हैं।

गंभीर मामलों में इस स्थिति का इलाज करने के लिए आंख के अंदर कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का इंजेक्शन (सबकंजक्टिवल इंजेक्शन) भी लगाया जा सकता है। इनमें प्रोकेन व पेनिसिलिन आदि दवाओं को सबसे प्रभावी माना जाता है। हालांकि, इलाज एक व्यवस्थित प्रणाली के अनुसार भी किया जा सकता है, उदाहरण के लिए ऑक्सिटेट्रासाइक्लिन, टूलाथ्रोमायसिन, टिल्मिकोसिन या फ्लोरफेनिकोल।

यदि संक्रमण अचानक से हुआ है या भैंस की आंख में कीचड़ आने के लक्षण अचानक से विकसित हुए हैं, तो सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं (खासकर जिसमें क्लोक्सेसीलिन हो) से इसे ठीक किया जा सकता है। कुछ दवाओं से भैंस के स्वास्थ्य पर साइड इफेक्ट्स भी देखे जा सकते हैं, इसलिए लाइसेंस प्राप्त दवाओं का इस्तेमाल करना और दवा देने के बारे में पशु चिकित्सक से बात करने की सलाह दी जाती है।

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