7 अक्‍टूबर, 2019 को विलियम जी कैलिन जूनियर, सर पीटर जे रैटक्‍लिफ और ग्रेग एल सेमेंजा का नाम फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिकों की सूची में शामिल हो गया है।

इन तीन वैज्ञानिकों को कोशिकाओं के ऑक्‍सीजन को ग्रहण करने की क्रिया पर खोज करने के लिए यह पुरस्‍कार दिया गया है। शरीर में कोशिकाएं ऑक्‍सीजन की मौजूदगी को कैसे महसूस करती हैं और वो कैसे स्‍वयं को इसके अनुकूल बनाती हैं, इस विषय पर इन तीनों वैज्ञानिकों ने एक साथ रिसर्च की थी। इसी कार्य के लिए इन्‍हें नोबेल पुरस्‍कार दिया गया है।

विलियम जी कैलिन जूनियर, हार्वर्ड मेडिकल स्‍कूल के डाना फार्बर कैंसर इंस्‍टीट्यूट के साथ जुड़े हुए हैं। डॉ. ग्रैग जॉन हापकिन्‍स यूनिवर्सिटी में काम करते हैं और ब्रिटेन के वैज्ञानिक रैटक्‍लिफ लंदन की फ्रांसिस क्रिक इंस्‍टीट्यूट में क्‍लीनिकल अनुसंधान के डायरेक्‍टर हैं।

क्‍या थी रिसर्च

भोजन को ऊर्जा या एनर्जी में बदलने के लिए शरीर को ऑक्‍सीजन की जरूरत होती है। नोबेल पुरस्‍कार जीते तीनों वैज्ञानिकों ने इस तथ्‍य को आधार प्रदान किया कि ऑक्‍सीजन की उपलब्‍धता कम होने पर सेलुलर मेटाबोलिज्‍म और शारीरिक क्रियाओं पर क्‍या असर पड़ता है।

पुरस्‍कार की घोषणा करते हुए कारोलिंस्का इंस्‍टीट्यूट के रैंडाल जॉनसन ने कहा कि जिस तरह से मोमबत्ती को जलने के लिए पर्याप्‍त मात्रा में ऑक्‍सीजन की जरूरत होती है वैसे ही हमारी कोशिकाएं भी अपना मेटाबोलिक रेट उपलब्‍ध ऑक्‍सीजन की मात्रा के अनुरूप बना लेती हैं। इससे प्रत्‍येक कोशिका को ऊर्जा, हीट और ऊतकों के विकास में मदद मिलती है।

तीनों वैज्ञानिकों ने ऑक्‍सीजन के विभिन्‍न स्‍तरों के चलते जींस के कार्यों को नियंत्रित करने वाले आणविक तंत्र की पहचान की है। आपको बता दें कि इससे अनेक बीमारियों का संबंध है।

मांसपेशियां कार्य करने के लिए ऑक्‍सीजन का इस्‍तेमाल करती हैं। कभी-कभी पूरे शरीर में ऑक्‍सीजन की मात्रा में बदलाव आता है। घाव या चोट लगने पर भी उस हिस्‍से में हाइपोक्सिक प्रतिक्रिया यानी ऑक्‍सीजन की मात्रा कम हो सकती है। हार्ट अटैक और अन्‍य हृदय से संबंधित स्थितियों में भी ऑक्‍सीजन का स्‍तर घट सकता है।

जब शरीर को ऑक्‍सीजन के स्‍तर में कमी आने का पता चलता है तो ये एनजीओ-जेनेसिस (नई रक्‍त वाहिकाओं का रूप) और एरिथ्रोपोएसिस (लाल रक्‍त कोशिकाओं का निर्माण) को प्रेरित एवं ग्लाइकोलिसिस (शुगर को तोड़कर एनर्जी में बदलना) के स्‍तर को बढ़ाने का काम करने लगता है।

एनीमिया या ज्‍यादा ऊंचाई वाली जगहों पर जाने की स्थिति में शरीर को सही मात्रा में ऑक्‍सीजन नहीं मिल पाता है। ऐसे में शरीर अधिक लाल रक्‍त कोशिकाओं के निर्माण के लिए एरिथ्रोपोएटिन (ईपीओ) नामक हार्मोन पैदा करने लगता है। जब किडनी इस हार्मोन को बनाने लगती है तो पूरे शरीर की कोशिकाएं इसे महसूस कर हाइपोक्सिया की स्थिति को दूर करने का काम करने लगती हैं। इस पूरे आणविक तंत्र का पता तीनों नोबेल पुरस्‍कार विजेताओं ने लगाया है।

डॉ सेमेंजा ने पाया कि हाइपोक्सिया इंड्यूसिंग फैक्‍टर-1 या एचआईएफ-1 अल्‍फा नामक प्रोटीन कॉम्‍प्‍लेक्‍स ईपीओ के उत्‍पादन को शुरू करता है और शरीर में ऑक्‍सीजन के स्‍तर में आई कमी पर प्रतिक्रिया करता है। ये जीन कम ऑक्‍सीजन की स्थितियों में कैंसर कोशिकाओं को जीवित रहने में मदद करता है।

इससे पहले डॉ. कैलिन को वीएचएल जीन और एचआईएफ-1 अल्‍फा प्रोटीन कॉम्‍प्‍लेक्‍स के बीच संबंध होने का पता चला था। सर रैटक्‍लिफ ने बताया कि केवल किडनी ही नहीं बल्कि पूरे शरीर की विभिन्‍न कोशिकाएं ऑक्‍सीजन की मौजूदगी को भांप सकती हैं। नोबेल एसेंबली द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्‍ति के अनुसार रैटक्‍लिफ और उनके रिसर्च ग्रुप ने ये भी बताया कि वीएचएल नामक जीन एचआईएफ-1 अल्‍फा के साथ कैसे सामंजस्‍य बैठाता है। ये कार्य ऑक्‍सीजन का सामान्‍य स्‍तर वापिस होने पर वीएचएल द्वारा एचआईएफ-1 अल्‍फा को कम करके किया जाता है।

नोबेल पुरस्‍कार 2019 के तीनों विजेताओं को वर्ष 2016 में एल्‍बर्ट लास्‍कर बेसिक मेडिकल रिसर्च अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। ये एक वार्षिक पुरस्‍कार है जो सन् 1945 से मेडिसन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले लोगों को दिया जाता है।

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