कोरोना वायरस संकट के चलते दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाएं और दवा कारोबार प्रभावित हुए हैं। कई घातक बीमारियों के इलाज में अवरोध उत्पन्न होने के साथ-साथ उनके इलाज के लिए जरूरी दवाओं के उत्पादन के भी प्रभावित होने की आशंका जताई जाती रही हैं। अब इन सबके बीच चीन ने दवा निर्माण के लिए जरूरी प्रमुख प्रारंभिक सामग्री (की स्टार्टिग मटीरियल्स या केएसएम) के दाम दस से 20 प्रतिशत तक बढ़ा दिए हैं। उसके इस कदम से भारत की दवा कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। गौरतलब है कि देश में जीवनरक्षक एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड और अन्य प्रकार की दवाओं के उत्पादन के लिए जरूरी केएसएम और कच्चा माल (जिसे एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट कहते हैं) चीन से ही आयात किया जाता है। कोविड-19 स्वास्थ्य संकट की वजह से इन सामग्रियों की सप्लाई पहले से प्रभावित है और अब इनके दाम बढ़ने से भारतीय दवा कंपनियों की परेशानी बढ़ना लाजमी है।

जानकारों के मुताबिक, भारत अपने दवा कारोबार के लिए जरूरी 70 से 80 प्रतिशत केएसएम, एपीआई और अन्य कच्चे मटीरियल के लिए चीन पर ही निर्भर है। कुछ विशेष एंटीबायोटिक्स (जैसे सेफालोसपोरिंस, एजिथ्रोमाइसिन और पेंसिलिन) के मामले में तो यह निर्भरता 90 प्रतिशत तक है। ऐसे में जानकारों के मुताबिक, चीन के केएसएम के दाम बढ़ाने के फैसले से इनका आयात करने वाली भारतीय कंपनियों पर अतिरिक्त लागत का बोझ पड़ेगा। उनका कहना है कि आने वाले महीनों में यह स्थिति स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगी। साथ ही इसे भारतीय ड्रग उद्योग के आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों को असफल करने की 'चीन की चाल' के रूप में भी देखा जा रहा है। ऐसा क्यों, यह नीचे दी गई कुछ जानकारियों से समझा जा सकता है-

  • केएसएम के दामों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी करने से भारत में एपीआई का उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा
  • वैश्विक बाजार में चीनी उत्पादों (दवाएं) की तुलना में भारतीय दवा कंपनियां लाभ नहीं कमा पाएंगी 
  • लागत बढ़ने के चलते भारत की दवा कंपनियों द्वारा निर्मित एपीआई चीनी कच्चे माल के मुकाबले में नहीं टिक पाएगा

खबरों के मुताबिक, केएसएस के दाम चक्रीय रूप से बढ़ते हैं। ऐसा ही एपीआई के मामले में भी देखा जाता है। लेकिन कोरोना वायरस संकट की वजह से इस साल अभी तक ऐसा देखने को नहीं मिला था। यही कारण है कि अब चीन द्वारा केएसएम के दाम बढ़ाए जाने से मेडिकल क्षेत्र के उत्पादकों की चिंता बढ़ गई है। उनका कहना है कि चीनी मुद्रा में बढ़ोतरी करने वाला यह कदम आर्थिक रूप से तर्कसिद्ध नहीं लगता। यहां यह भी बता दें कि बीते 45 दिनों में चीनी मुद्रा आरएमबी प्रति डॉलर के मुकाबले चार प्रतिशत बढ़ गई है। मीडिया से बातचीत में भारतीय दवा विशेषज्ञ कहते हैं कि चीनी कंपनियां एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड के निर्माण से जुड़े केएसएम के दामों को मैनिपुलेट कर रही हैं। ऐसे में एपीआई की मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ने का दबाव भारत की कंपनियों पर दिखेगा।

इन एक्सपर्ट का कहना है कि हालांकि भारत सरकार ने स्वदेश में दवा निर्माण को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने संबंधी योजनाएं प्रस्तुत की हैं, लेकिन उन स्कीमों में कंपनियों से बड़े पैमाने पर निवेश करने की बात कही गई है, विशेषकर फरमेंटेशन आधारित उत्पादों के मामले में। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह जरूरी है कि निवेश हो अन्यथा बढ़ी लागत का असर कंपनियों पर साफ तौर पर दिखेगा।

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