कोविड-19 से निपटने में सबसे अहम भूमिका निभा रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का वेतन समय पर नहीं आने का मुद्दा हाल में काफी चर्चा में रहा है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह सुनिश्चित करे कि डॉक्टरों को उनके वेतन समय पर मिलें। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस मुद्दे पर शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कई राज्यों ने डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को समय पर वेतन दिए जाने के निर्देशों का पालन अभी तक नहीं किया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह इस मामले में 'लाचार' नहीं है। 

पीटीआई की खबर के मुताबिक, सरकार की दलील पर सर्वोच्च अदालत ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता से कहा, 'अगर राज्य केंद्र सरकार के निर्देशों और आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं तो आप लाचार नहीं हैं। आपको सुनिश्चित करना होगा कि आपका आदेश लागू हो। आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपके पास (ऐसा करने की) शक्ति है। आप अपनी तरफ से कदम उठा सकते हैं।' इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एसजी से कहा कि सरकार यह स्पष्ट करे कि कोविड-19 के मरीजों की इलाज में लगे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के क्वारंटीन पीरियड को अवकाश की तरह ट्रीट न किया जाए और उनके वेतन न काटे जाएं। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को समय पर वेतन रिलीज करने के निर्देश जारी करने को कहा।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत को बताया कि 17 जून के उसके निर्देशों के मद्देनजर सरकार की तरफ से 18 जून को जरूरी आदेश जारी कर दिए गए थे। मेहता ने दावा किया कि इसके बाद भी दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, त्रिपुरा और कर्नाटक में कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को पूर्ण वेतन नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा कि अब इस बारे में सरकार आगे क्या कदम उठाएगी, यह बताने के लिए एक हफ्ते के समय की जरूरत है। कोर्ट ने सरकार को यह मोहलत दे दी।

उधर, इस मामले में याचिकाकर्ता डॉक्टर आरुषि जैन की तरफ से पेश हुए वकील केवी विश्वनाथन ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए हाई रिस्क और लो रिस्क क्लासिफिकेशन का कोई आधार नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 18 जून को केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश का भी कोई औचित्यपूर्ण आधार नहीं है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन न मिलना अभी भी जारी है। बता दें कि पेशे से निजी चिकित्सक आरुषि जैन ने केंद्र सरकार के 15 मई को घोषित किए गए उस फैसले पर सवाल उठाए हैं, जिसमें कहा गया था कि कोरोना वायरस के मरीजों को देख रहे डॉक्टरों के लिए 14 दिनों का क्वारंटीन अनिवार्य नहीं है।

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यूनाइटेड रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (यूआरडीए) द्वारा दायर की गई याचिका पर भी सुनवाई की थी। इसमें यूआरडीए के वकीलों मिथु जैन, मोहित पॉल और अर्नव विद्यार्थी ने शिकायत की थी कि अनिवार्य क्वारंटीन पीरियड को अवकाश की तरह ट्रीट किया जा रहा है, जिसके चलते डॉक्टरों के वेतन काटे जा रहे हैं। कोर्ट ने भी अपने निर्देश में इसे डॉक्टरों की समस्याओं में से एक बताया। वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने भी स्वीकार किया कि क्वारंटीन पीरियड को अवकाश की तरह ट्रीट नहीं किया जाना चाहिए और वे इस बारे में आवश्यक कदम उठाएंगे।

क्या है पूरा मामला?
दरअसल, बीती 17 जून को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए केंद्र सरकार से कहा था कि वह 24 घंटों के अंदर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह आदेश जारी करे कि वे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के वेतन का समय पर भुगतान करें और कोविड-19 के मरीजों के इलाज से सीधे तौर पर जुड़े लोगों के लिए उचित क्वारंटीन सुविधाएं उपलब्ध कराएं। कोर्ट ने कहा था कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को निर्देश देते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि उनका विश्वसनीय ढंग से पालन किया जाए और अगर ऐसा नहीं होता तो उसे आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उल्लंघन माना जाए। हालांकि दावा है कि कोर्ट के इस कदम के बाद भी कई राज्य अभी भी डॉक्टरों के वेतन समय पर नहीं दे रहे और क्वारंटीन पीरियड को अवकाश मानते हुए उनके वेतन काट रहे हैं।

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