अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया कि दया और मेहरबानी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा दे सकती है। इस शोध के अनुसार, करुणा और दया से जुड़े कार्य करना और दूसरों की मदद करना आपकी अपनी सेहत और भलाई के लिए फायदेमंद है। लेकिन शोध में यह भी कहा गया कि सभी तरह का अच्छा व्यवहार दाता या देने वाले व्यक्ति के लिए समान रूप से फायदेमंद नहीं होता।

मदद करने वाले और मदद पाने वाले व्यक्ति के बीच जो लिंक है उसकी ताकत कई बातों पर निर्भर करती है, जिसमें किस प्रकार की दया दिखायी जा रही है, स्वास्थ्य और भलाई की परिभाषा क्या है और दया दिखाने वाले व्यक्ति की उम्र, लिंग और अन्य जनसांख्यिकीय कारक भी शामिल हैं। इस स्टडी को साइकोलॉजिकल बुलेटिन नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

दूसरों के प्रति दया दिखाना शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान देता है
इस स्टडी के लीड ऑथर और यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्ग कॉन्ग में रिसर्च असिस्टेंट प्रफेसर ब्रायंट पीएच हुई कहते हैं, "दूसरों की मदद करने वाला सामाजिक व्यवहार जिसमें परोपकार, सहयोग, विश्वास और करुणा शामिल है- ये सभी एक सामंजस्यपूर्ण और अच्छी तरह से काम करने वाले समाज के आवश्यक तत्व हैं। यह मानव जाति की साझा संस्कृति का हिस्सा है, और हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि दूसरों के प्रति दया दिखाना और दूसरों की मदद करना, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भी योगदान देता है।"

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प्रोसोशल व्यवहार करने वाले लोग ज्यादा खुश होते हैं
इससे पहले इस बारे में जितने भी अध्ययन हुए उनमें यह सुझाव दिया था कि जो लोग प्रोसोशल यानी दूसरों की मदद करने या दूसरों को फायदा पहुंचाने वाले व्यवहार में संलग्न होते हैं वे लोग ज्यादा खुश होते हैं और उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है उन लोगों की तुलना में जो दूसरों की मदद करने में ज्यादा समय नहीं बिताते हैं। हालांकि, सभी अध्ययनों ने इस लिंक के लिए सबूत नहीं पाए हैं और रिसर्च में इस कनेक्शन की ताकत व्यापक रूप से भिन्न भी है।

प्रोसोशल व्यवहार और व्यक्ति की सेहत के बीच क्या संबंध है?
इस परिवर्तन या भिन्नता का कारण क्या है इसे समझने के लिए हुई और उनके सहयोगियों ने 201 स्वतंत्र अध्ययनों का एक मेटा-विश्लेषण किया, जिसमें कुल 1 लाख 98 हजार 213 प्रतिभागी शामिल थे। इसमें प्रोसोशल व्यवहार और व्यक्ति की सेहत और भलाई के बीच क्या संबंध है इसे देखने और समझने की कोशिश की गई। कुल मिलाकर, हुई और उनके सहयोगियों ने पाया कि दोनों के बीच एक मामूली संबंध था। हालांकि प्रभाव का आकार छोटा था, लेकिन फिर भी यह सार्थक है, क्योंकि हुई के अनुसार, यहां यह देखना जरूरी है कि कितने लोग हर दिन दया और करुणा के कार्य करते हैं।

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अचानक किसी की मदद करना शेड्यूल चैरिटी से बेहतर
रिसर्च में गहराई से देखने के बाद हुई और उनके सहयोगियों ने पाया कि दया और करुणा से जुड़े आकस्मिक या क्रमरहित कार्य, जैसे- किसी बुजुर्ग पड़ोसी के किराने का सामान ले जाने में उनकी मदद करना, मदद करने वाले व्यक्ति की समग्र भलाई के साथ अधिक मजबूती से जुड़ा थे उन औपचारिक प्रोसोशल व्यवहार की तुलना में जिसमें चैरिटी या मदद के लिए शेड्यूल बनाया गया था। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हुई के अनुसार अनौपचारिक मदद अधिक आकस्मिक और सहज होती है और अधिक आसानी से सामाजिक संबंध बनाने के लिए नेतृत्व कर सकती है। उन्होंने कहा कि अनौपचारिक रूप से किसी को कुछ देना या किसी की मदद करने में अधिक विविधता होती है और इस तरह की भावना कभी नीरस नहीं होती।

इतना ही नहीं, शोधकर्ताओं ने दया और परोपकार से जुड़े कार्यों और यूडिमोनिक (जो आत्मप्रत्यक्षीकरण पर केंद्रित है, जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमता को महसूस करता है और जीवन में अर्थ ढूंढता है) कल्याण के बीच एक मजबूत लिंक पाया है, दया से जुड़े कार्यों और हेडोनिक (जो खुशी और सकारात्मक भावनाओं के संदर्भ में हो) कल्याण की तुलना में। हुई जिन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ क्रैम्बिज में इस रिसर्च की शुरुआत की उनका कहना है कि इसका अलग-अलग उम्र के लोगों पर अलग-अलग असर देखने को मिला। कम उम्र के और युवा दाताओं ने समग्र कल्याण, यूडिमोनिक कल्याण और मनोवैज्ञानिक कामकाज के उच्च स्तर की सूचना दी, जबकि बुजुर्ग दाताओं ने शारीरिक स्वास्थ्य में बेहतरी के बारे में बताया।

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