वर्टिब्रा के ऊपर या नीचे से इंटरवर्टेब्रल डिस्क पर दबाव पड़ने की वजह से इसके टूटने या नुकसान पहुंचने को स्लिप डिस्क कहा जाता है। ये इंटरवर्टेब्रल डिस्क सुरक्षात्‍मक कुशन की तरह वर्टिब्रा के बीच मौजूद होते हैं और किसी भी तरह की चोट या नुकसान से इसकी रक्षा करते हैं। स्लिप डिस्‍क के सबसे सामान्‍य लक्षणों में प्रभावित हिस्‍से में दर्द, सुन्‍नपन और झनझनाहट महसूस होना है। आमतौर पर स्लिप डिस्‍क कमर के निचले हिस्‍से में होती है लेकिन ये कमर के ऊपरी हिस्‍से और गर्दन को भी प्रभावित कर सकती है।

स्लिप डिस्‍क के इलाज के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार जैसे कि स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि), स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि), पिझिचिल (तेल मालिश), शिरोधारा (तरल या तेल को सिर के ऊपर से डालने की विधि), नास्‍य (नासिका मार्ग से औषधि डालना), बस्‍ती (एनिमा) और धान्‍यामल धारा (प्रभावित हिस्‍से पर गर्म औषधीय तरल डालना) का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। स्लिप डिस्‍क के इलाज के लिए कुछ जड़ी बूटियों और औषधियों जैसे कि शुंथि (सोंठ), रसना, अश्‍वगंधा, गुडूची, दशमूल क्‍वाथ, वृहत वात चिंतामणि रस और त्रयोदशांग गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से स्लिप डिस्क - Ayurveda ke anusar slipped disc
  2. स्लिप डिस्क का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Slipped disc ka ayurvedic upchar
  3. स्लिप डिस्क की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Slipped disc ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार स्लिप डिस्क होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar slipped disc me kya kare kya na kare
  5. स्लिप डिस्क में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Slipped disc ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. स्लिप डिस्क की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Slipped disc ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. स्लिप डिस्क के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Slipped disc ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
स्लिप डिस्क की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

उम्र बढ़ने के साथ शरीर के ऊतकों में कमी आना स्लिप डिस्‍क का सबसे सामान्‍य कारण है। कुछ दुर्लभ मामलों में रीढ़ की हड्डी और इंटरवर्टेब्रल डिस्क में चोट की वजह से भी ये समस्‍या हो सकती है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में मौजूद तीनों दोषों में से शारीरिक क्रियाओं के लिए वात सबसे ज्‍यादा जरूरी होता है। उम्र बढ़ने के साथ वात में असंतुलन एवं खराबी आने लगती है जिससे शरीर के ऊतकों की गुणवत्ता और पुर्ननिर्माण में कमी एवं कई वात विकार होने लगते हैं। इस स्थिति में वात में असंतुलन आने को स्लिप डिस्‍क का कारण माना जाता है। स्लिप डिस्‍क के आयुर्वेदिक नुस्‍खों में प्रमुख तौर पर बढ़े हुए दोष और ऊतकों को ठीक करने का काम किया जाता है।

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ क्या हैं)

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  • स्‍वेदन
    • इस थेरेपी में विभिन्‍न तरीकों से पसीना लाया जाता है।
    • स्‍वेदन से शरीर की नाडियों को चौड़ा, ऊतकों में फंसे अमा (विषाक्‍त पदार्थ) को पतला कर जठरांत्र मार्ग में लाया जाता है। यहां से अमा को पंचकर्म थेरेपी की मदद से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
    • स्‍वेदन शरीर को भारीपन, अ‍कड़न और ठंड से राहत दिलाता है। कई विकारों खासतौर पर वात बढ़ने के कारण हुई स्थितियों के प्रमुख इलाज के तौर पर स्‍वेदन का इस्‍तेमाल किया जाता है। इस वजह से स्लिप डिस्‍क के इलाज में स्‍वेदन प्रभावकारी थेरेपी है।
    • विभिन्‍न उपकरणों जैसे कि गर्म कपड़े, धातु की वस्‍तु या गर्म हाथों या सही जड़ी बूटियों से बनी पुल्टिस को प्रभावित हिस्‍से पर लगाकर स्‍वेदन किया जाता है। भाप या जड़ी बूटियों से युक्‍त गर्म तरल पदार्थ को प्रभावित हिस्‍से पर डालकर भी स्‍वेदन कर्म किया जा सकता है।
       
  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन एक प्रकार की आयुर्वेदिक मालिश है जिसमें पूरे शरीर या प्रभावित हिस्‍से की हर्बल तेलों से मालिश की जाती है।
    • इस थेरेपी से दर्द और बीमारी के अन्‍य लक्षणों से राहत पाने में मदद मिलती है।
    • शरीर को बाहरी रूप से चिकना करने के लिए सामान्‍यत: अभ्‍यंग (तेल मालिश) का इस्‍तेमाल किया जाता है। अभ्‍यंग खराब हुए वात को संतुलित और शांत करता है एवं हड्डियों, ऊतकों और लिगामेंट्स को मजबूती देता है। ये दर्द को दूर करता है और शरीर की बीमारी से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता को बढ़ाता है। अभ्‍यंग थकान को दूर कर शरीर एवं मस्तिष्‍क को आराम भी पहुंचाता है।
    • वात के कारण पैदा हुए विकारों के इलाज के लिए अभ्‍यंग में सबसे ज्‍यादा तिल के तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • कटि बस्‍ती और ग्रीवा बस्‍ती
    • इस चिकित्‍सा में आटे से बने एक फ्रेम को प्रभावित हिस्‍से पर रखा जाता है और फिर उसके अंदर गर्म औषधीय तेल डाला जाता है। एक निश्चित समय के लिए इस तेल को त्‍वचा के संपर्क में ही रखा जाता है और तेल के ठंडा (तेल को एक विशेष तापमान पर बनाए रखने के लिए) होने पर उसे पूरी चिकित्‍सा के दौरान बदलते रहना होना है।
    • त्‍वचा को चिकना कर के और उस पर पसीना लाकर अमा एवं बढ़े हुए दोष को साफ किया जाता है। इससे भारीपन, अकड़न और दर्द से राहत मिलती है। इसलिए ये चिकित्‍सा स्लिप डिस्‍क जैसी वात स्थितियों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • जब गर्दन और कंधों से संबंधित विकार के इलाज के लिए इस चिकित्‍सा का इस्‍तेमाल किया जाता है तो इसे ग्रीवा बस्‍ती कहते हैं जबकि कमर का इलाज करने पर इसे कटि बस्‍ती कहा जाता है। हृदय रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर इस चिकित्‍सा का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • ये दोनों ही चिकित्‍साएं रक्‍त प्रवाह में सुधार, प्रभावित हिस्‍से में लचीलेपन और गतिशीलता को बढ़ाती है। इससे मस्‍कुलोस्‍केलेटल (कंकाल की हड्डियों, मांसपेशियों, कार्टिलेज, टेंडन, लिगामेंट, जोड़ों और अन्‍य संयोजी ऊतक जो ऊतकों और अंगों को एक साथ रखने में मदद करते हैं)  तनाव कम होता है और मांसपेशियों को आराम एवं ऊर्जा मिलती है। ये डिस्‍क में घाव के इलाज में भी उपयोगी है।
       
  • पिझिचिल
    • ये एक आयुर्वेदिक थेरेपी है जिसमें दो अनुभवी थेरेपिस्‍ट गुनगुने हर्बल तेल से शरीर की मालिश करते हैं।
    • इसमें मरीज को लिटाकर और एक विशेष कुर्सी पर बिठाकर मालिश की जाती है।
    • इसका बेहतर परिणाम पाने के लिए लगभग 10 दिन तक यह चिकित्‍सा करनी चाहिए।
       
  • शिरोधारा
    • इस थेरेपी में औषधीय तरल पदार्थ को माथे के ऊपर से डाला जाता है।
    • व्‍यक्‍ति की स्थिति के आधार पर शिरोधारा के लिए तरल पदार्थ का चयन किया जाता है।
    • ये चिकित्‍सा तनाव को कम करने और मस्तिष्‍क को आराम पहुंचाने में मददगार है। ये मानसिक शांति को बढ़ाती है और बेहतर नींद लाने में मदद करती है। इसीलिए ये चिकित्‍सा अधिकतर दर्द से जुड़ी स्थितियों के इलाज में उपयोगी है।
       
  • नास्‍य
    • इसमें हर्बल तरल पदार्थों को नासिक गुहा के जरिए शरीर में डाला जाता है। नासिका को मस्तिष्‍क का द्वार माना जाता है इसलिए नाक में जो भी डाला जाएगा वो सीधा मस्तिष्‍क को प्रभावित करेगा।
    • ये स्लिप डिस्‍क के सबसे सामान्‍य लक्षणों में से एक गर्दन और कंधों में अकड़न को दूर करने में मदद करता है।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती एक आयुर्वेदिक एनिमा है। इसमें औषधीय तेलों और हर्बल काढ़े जैसे तरल पदार्थों को गुदा मार्ग के जरिए आंतों तक पहुंचाया जाता है।
    • इसमें आंतों को साफ किया जाता है। इस प्रकार शरीर से अमा और बढ़े हुए दोष को निकाल दिया जाता है। चूंकि अमा और किसी दोष का बढ़ना ज्‍यादातर विकारों का प्रमुख कारण होता है इसलिए इन्‍हें ठीक कर स्‍वस्‍थ रहने में मदद मिलती है।
       
  • धान्‍यमल धारा
    • इस चिकित्‍सा में अनाज और आमलकी (आंवला) से बने औषधीय तरल को प्रभावित हिस्‍से पर डाला जाता है।
    • इस औषधीय तरल को बनाने के लिए धान्‍यमल, नवार चावल (एक प्रकार का चावल), खट्टे फल, शुंथि और बाजरे को एक पोटली में बांधर पानी में उबाला जाता है। इस पानी को सामान्‍य तापमान में ठंडा कर के इससे धान्‍यमल धारा थेरेपी की जाती है।
    • आमतौर पर धान्‍यमल से उपचार 7 से 14 दिनों के लिए किया जाता है लेकिन मरीज की स्थि‍ति एवं जरूरत के आधार पर अधिक समय तक ये चिकित्‍सा दी जा सकती है।
    • ये चिकित्‍सा रक्‍त प्रवाह को बेहतर करती है और बदन दर्द एवं मांसपेशियों में ऐंठन का इलाज करती है। ये शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है और प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य में सुधार आता है।
    • स्लिप डिस्‍क के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है और आमतौर पर वात-कफ विकारों के इलाज के लिए इसकी सलाह दी जाती है।

स्लिप डिस्‍क के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • शुंथि
    • ये चमत्‍कारिक जड़ी बूटी श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है एवं त्रिदोष में असंतुलन के कारण पैदा हुए विकारों को नियंत्रित करने में मददगार है।
    • इसमें दर्द निवारक, पाचक, कफ निस्‍सारक (बलगम साफ करने वाले) और कामोत्तेजक गुण होते हैं। वात विकारों के इलाज के लिए सेंधा नमक के साथ इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • ये दर्द और ऐंठन से राहत दिलाती है और पाचन अग्नि को बढ़ाती एवं कफ को कम करती है।
    • अर्क, पाउडर, गोली, काढ़े या पेस्‍ट के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • रसना
    • कड़वे स्‍वाद वाली रसना शरीर में ऊष्‍मा (गर्मी) और गुरुत्‍व (भारीपन) में सुधार लाती है।
    • इसका इस्‍तेमाल संधिवात (ऑस्टियोआर्थराइटिस), श्‍वास (अस्‍थमा), ज्‍वर (बुखार), सिध्मा (सफेद दाग) और कास (खांसी) के इलाज में किया जाता है।
    • ये वात विकारों जैसे कि स्लिप डिस्‍क को नियंत्रित करने में बहुत असरकारी है।
    • इसे गुनगुने पानी के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • अश्‍वगंधा
    • ये प्रजनन, तंत्रिका और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, सूजन-रोधी, शामक (नींद लाने वाले), नसों को आराम देने वाले, संकुचक (ऊतकों को एक साथ बांध कर रखने वाला), कामोत्तेजक और शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं।
    • इसे इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत करने के लिए जाना जाता है।
    • अश्‍वगंधा दर्द से राहत, ऊतकों को ठीक करने और मजबूती प्रदान करती है और इसी वजह से अश्‍वगंधा स्लिप डिस्‍क को नियंत्रित करने में असरकारी जड़ी बूटी है।
    • विभिन्‍न रोगों में रिकवरी और शरीर को ताकत देने के लिए सहायक के रूप में भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • काढ़े, तेल, घी और पाउडर के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • गुडूची
    • गुडूची पाचन और परिसंचरण तंत्र पर कार्य करती है। इसमें इम्‍युनिटी बढ़ाने और खून को साफ करने वाले गुण होते हैं।
    • ये संपूर्ण शारीरिक शक्‍ति में सुधार लाती है और स्लिप डिस्‍क के उपचार में प्रमुख औषधियों के साथ सहायक थेरेपी के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

स्लिप डिस्‍क के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • दशमूल क्‍वाथ
    • इस द्रवीय (तरल) मिश्रण में शलिपर्णी, प्रश्‍निपर्णी, अग्निमांथ, कष्‍मारी और गोक्षुरा जैसी सामग्रियों से बनाया गया है।
    • प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल वात विकारों के इलाज में किया जाता है लेकिन अव्‍यवस्थित या असंतुलित हुए सभी दोषों को संतुलित करने में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • दशमूल क्‍वाथ का इस्‍तेमाल गर्दन और कमर की अकड़न, खांसी और अस्‍थमा के इलाज के लिए किया जा सकता है।
    • ये अवरुत्त वात, अनुबंध्‍या वात या परातंत्र वात (वात के खराब होने के भिन्‍न प्रकार) के कारण पैदा हुई स्थितियों का इलाज कर सकता है। इन तीनों स्थितियों में अन्‍य दोष और अमा के कारण वात में अवरोध और असंतुलन आता है। चूंकि स्लिप डिस्‍क में वात प्रमुख दोष होता है इसलिए इस स्थिति के इलाज में दशमूल क्‍वाथ का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • वृहत वात चिंतामणि रस
    • इस औषधि को विभिन्‍न सामग्रियों जैसे कि सुवर्ण (सोना), रौप्‍य (चांदी), अभ्रक, लौह (आयरन) और प्रवाल (लाल मूंगा) की भस्‍म को एलोवेरा में मिलाकर तैयार किया गया है।
    • ये सभी प्रकार के वात विकारों जैसे कि स्लिप डिस्‍क और संधिवात के इलाज में उपयोगी है।
    • ये सिरगतवात जैसी स्थितियों में भी उपयोगी है। इसमें खराब वात शरीर की नाडियों और रक्‍त वाहिकाओं को प्रभावित करता है।
       
  • त्रयोदशांग गुग्‍गुल
    • इस मिश्रण को अश्‍वगंधा, गुडूची, शतावरी, गुग्‍गुल, घी, शुंथि और रसना से तैयार किया गया है।
    • त्रयोदशांग गुग्‍गुल टेंडन और लिगामेंट के विकारों के इलाज में असरकारी है। ये दर्द, अकड़न, छूने पर दर्द होने और सूजन से राहत दिलाती है। इस प्रकार स्लिप डिस्‍क के लिए ये असरकारी थेरेपी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • गरिष्‍ठ भोजन न करें जो आसानी से न पचता हो।
  • गतिहीन जीवनशैली से दूर रहें।
  • खाना खाने के बाद ज्‍यादा थकान वाला काम न करें।
  • ओवरईटिंग से बचें और ठंडे तापमान में ज्‍यादा न रहें।
  • ठंडे खाद्य और पेय पदार्थों का सेवन करने से बचें।

डिजेनरेटिव (लगातार बढ़ने वाला) डिस्‍क रोग से ग्रस्‍त एक 35 वर्षीय पुरुष की इस स्थिति को नियंत्रित करने में आयुर्वेदिक उपचारों के प्रभाव की जांच की गई। मरीज के इलाज में स्‍वेदन, कटि बस्‍ती और सर्वांग अभ्‍यंग का इस्‍तेमाल किया गया था। महारसनादि क्‍वाथ, स्वर्ण योगराज गुग्‍गुल, अश्‍वगंधा कैप्‍सूल जैसी औषधियों और पंचगुण तेल का भी प्रयोग किया गया था।

2 महीने बाद मरीज को दर्द, सूजन और जलन से काफी राहत मिली। ऐसा माना गया कि बढ़े हुए वात के साफ एवं संतुलित होने से लक्षणों में सुधार आया।

आयुर्वेदिक उपचार स्लिप डिस्‍क के कारण को जड़ से हटाने में मदद करता है लेकिन आयुर्वेदिक उपायों के इस्‍तेमाल के दौरान कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं, जैसे कि:

  • आंखों, नाक और मुंह से बहुत ज्‍यादा पानी आने पर नास्‍य कर्म नहीं लेना चाहिए।
  • गुदा में सूजन, आंतों में रुकावट और छेद एवं हैजा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को बस्‍ती कर्म की सलाह नहीं दी जाती है।
  • छाती में बहुत ज्‍यादा कफ या बलगम जमने की स्थिति में अश्‍वगंधा नहीं लेना चाहिए।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और लक्षणों के आधार पर ही दवा के प्रकार और खुराक का निर्धारण करना चाहिए। इसलिए बेहतर होगा कि आप खुद कोई दवा या जड़ी बूटी लेने से पहले अनुभवी चिकित्‍सक से सलाह लें।

(और पढ़ें - स्लिप डिस्क के लिए योग)

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स्लिप डिस्‍क, गर्दन और कमर दर्द का सामान्‍य कारण है और उम्र बढ़ने पर यह समस्‍या होती है। स्लिप डिस्‍क की शिकायत साइटिका और पैर तक पहुंचने वाले गंभीर कमर दर्द के कारण भी हो सकती है। स्लिप डिस्‍क का प्रमुख कारण उम्र के साथ वात का बढ़ना और अव्‍यवस्थित होना है। इसलिए स्लिप डिस्‍क की स्थिति के इलाज और बचाव में इस दोष को संतुलित करने से मदद मिल सकती है।

आयुर्वेदिक उपचारों से दोषों को वापिस से संतुलित किया जाता है और शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को हटाया जाता है। इस प्रकार स्लिप डिस्‍क के अंर्तनिहित कारण का इलाज किया जाता है। अगर आयुर्वेदिक दवाओं को सही खुराक में लिया जाए तो ये बीमारी को दोबारा होने से भी रोक सकती हैं और शरीर को मजबूती एवं जीवन की संपूर्ण गुणवत्ता में सुधार ला सकती हैं।

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संदर्भ

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