प्रोस्टेट कैंसर यानी पौरुष ग्रंथि के कैंसर के इलाज को लेकर किए गए एक नए शोध में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। खबर है कि इस शोध में उन्होंने प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाले ड्रग एबायराटेरोन एसिटेट के एक नए फॉर्म्युलेशन की खोज की है, जिसका इस्तेमाल कर प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों के जीवन को नाटकीय ढंग से बेहतर किया जा सकता है। यहां बता दें कि एबायराटेरोन एसिटेट ड्रग बाजार में 'जायटीगा' ब्रैंड के नाम से बेची जाती है।

खबरों के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया (यूनिसा) में किए गए प्री-क्लिनिकट ट्रायलों के जरिये पता चला है कि इस ड्रग के नए फॉर्म्युलेशन से प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ इसके प्रभाव में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जा सकती है। इस फॉर्म्युलेशन को यूनिसा के कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर क्लाइव प्रेस्टिज के एक रिसर्च ग्रुप ने तैयार किया है। प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में बड़ी खोज बताए जा रहे इस ड्रग मिश्रण में ऑयल-बेस्ट ओरल फॉर्म्युलेशन का इस्तेमाल किया जाता है। दावा है कि इससे न सिर्फ ड्रग कम डोज में भी प्रभावकारी बनता है, बल्कि इसके साइडइफेक्ट्स (जैसे सूजन और डायरिया) को भी नाटकीय ढंग से कम किया जा सकता है।

(और पढ़ें - प्रोस्टेट कैंसर के कारण और लक्षण)

शोध से जुड़े प्रमुख रिसर्चर डॉ. हाले शुल्स का कहना है कि जायटीगा को प्रोस्टेट कैंसर का सबसे अच्छा इलाज माना जाता है और इस नए ड्रग फॉर्म्युलेशन से इसे और बेहतर करने में मदद मिलेगी। डॉ. शुल्ज का कहना है, 'कई ड्रग्स घुलनशील नहीं होते हैं। इसलिए जब वे (शरीर के) अंदर जाते हैं तो आंतों में जाकर डिजॉल्व (घुलना या विघटित होना) नहीं होते। इसका मतलब है कि उन ड्रग्स का उपचार संबंधी प्रभाव सीमित होता है। जायटीगा के साथ भी ऐसा है। इसकी डोज का केवल दस प्रतिशत शरीर में घुल पाता है। बाकी का 90 प्रतिशत डोज डिजॉल्व नहीं होता और मल के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।'

डॉ. शुल्ज ने आगे बताया, 'इसलिए जायटीगा लेने वाले मरीजों को पहले दो घंटे तक पेट को खाली रखना (फास्टिंग) होता है। ड्रग अंदर जाकर अपेक्षित रूप से घुल जाए इसके लिए अगले एक घंटे तक भी कुछ नहीं खाना होता। आप कल्पना कर सकते हैं कि यह कितना दिक्कत भरा है। लेकिन हमारे नए फॉर्मुले ने इसे बदल दिया है। इसमें तेलीय पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर में औषधीय खाद्य पदार्थों की तरह काम करते हैं। इससे हम दवा के विलय और समावेश होने की क्षमता को बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। परिणामस्वरूप, दवा और प्रभावी साबित हुई है जो इलाज के दौरान मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती।'

(और पढ़ें - कैंसर: कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम कर सकता है विटामिन डी- वैज्ञानिक)

दरअसल, नए फॉर्मुले के तहत उच्च स्तर पर विघटित हो चुके एबायराटेरोन एसिटेट को एक विशेष प्रकार के तेल और सुराखदार सिलिका के अति सूक्ष्मकणों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। इस कॉम्बिनेशन से एक पाउडर का निर्माण होता है, जिसे टेबलेट की शक्ल में तब्दील किया जा सकता है या कैप्सूल में भरा जा सकता है। इन्सानों पर इसे आजमाने से दवा के डोज में 1,000 मिलीग्राम से लेकर 700 मिलीग्राम की कमी प्रतिदिन की जा सकती है और इसके लिए फास्टिंग की भी जरूरत नहीं है।

क्या है प्रोस्टेट कैंसर?
यह पुरुषों की पौरुष ग्रंथि में होने वाला कैंसर है। यह छोटे से अखरोट के आकार की ग्रंथि होती है जो वीर्य का उत्पादन करती है, जिससे शुक्राणु ट्रांसपोर्ट होते हैं। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को होने वाला सबसे आम कैंसर माना जाता है। यह आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है और शुरुआत में पौरुष ग्रंथि तक ही सीमित रहता है। बताया जाता है कि ग्रंथि में सीमित होने तक यह कोई गंभीर नुकसान नहीं पहुंचाता। इसलिए अगर शुरू में इसका इलाज हो जाए तो सफल उपचार की संभावना ज्यादा होती है। यहां बता दें कि पौरुष ग्रंथि से जुड़ी कोई भी समस्या या असामान्यता प्रोस्टेट कैंसर है, यह जरूरी नहीं है।

(और पढ़ें - एस्प्रिन की दवा के कम सेवन से घट सकता है लिवर कैंसर का खतरा: वैज्ञानिक)

जानकारों के मुताबिक, हर छह पुरुषों में एक को 85 वर्ष की उम्र से पहले यह बीमारी होने का खतरा रहता है। ऑस्ट्रेलिया में इस बीमारी के हजारों मरीज हैं। बीते साल की ही बात करें तो उस दौरान ऑस्ट्रेलिया में साढ़े 19 हजार से ज्यादा पुरुषों को यह कैंसर हुआ था। वहीं, 2018 में पूरी दुनिया में दस लाख से ज्यादा प्रोस्टेट कैंसर के मरीज थे।

ऐप पर पढ़ें