शरीर के सभी अंगों और मांसपेशियों का हमारे स्वस्थ्य जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है। बेहतर काम करने और चलने फिरने के लिए शरीर के हर जोड़ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मगर समय के साथ जोड़ों के बीच में पाया जाने वाला फ्लूइड सूखने लगता है, जिससे हड्डियों में घर्षण उत्पन्न हो जाता है। इसी घर्षण की वजह से जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है। यह दर्द आपके दैनिक गति को रोकने के लिए काफी है। यहां यह जानना बहुत आवश्यक है कि आखिर जोड़ों में दर्द और गतिशीलता में कमी की वजह क्या है? जोड़ों में उत्पन्न होने वाली ऐसी समस्याओं के कई कारक हो सकते हैं, जैसे उम्र, वजन, जीवनशैली, वातावरणीय प्रभाव या कोई गंभीर बीमारी या चोट। हालांकि, अगर हम कुछ सावधानियां बरतें तो इस तरह की समस्याओं से निजात पा सकते हैं।

शरीर में जहां पर दो ​हड्डियां आपस में मिलती हैं वहां जोड़ बनते हैं। हाथों की उंगलियां, पैर की उंगलियां, टखने, कलाई, घुटने, कोहनी, कंधे, कूल्हे और गर्दन में जोड़ होते हैं। इन जोड़ों को कई तरह के ऊतकों और हड्डियों का संयोजन प्राप्त होता है जो इसे सुचारू ढंग से काम करने में मदद करते हैं।

शरीर में दो प्रकार के जोड़ पाए जाते हैं- बॉल ज्वाइंट्स और हिंग्स ज्वाइंट्स। बॉल ज्वाइंट्स शरीर को अलग-अलग दिशाओं में मुड़ने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए हमारे कंधे बॉल और सॉकेट ज्वाइंट्स की मदद से बाजुओं के ऊपरी हिस्से को जोड़ते हैं। इस जोड़ को ग्लेनोह्यूमरल कहा जाता है। इसी की मदद से हमारे हाथ ऊपर, नीचे, बगल की ओर मुड़ने में सक्षम होते हैं। कंधे स्कैपुला (हाथों के उपरी हिस्से की हड्डियों और कॉलरबोन की जोड़) को भी इधर-उधर मुड़ने में मदद करते हैं।

वहीं दूसरी ओर हिंग्स ज्वाइंट्स, बॉल ज्वाइंट्स की तुलना में अंगों को ज्यादा गतिशीलता तो नहीं देते हैं, लेकिन फिर भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। हमारी उंगलियां इनका उदाहरण हैं। उंगलियों में तीन जोड़ होते हैं जो हमें मुट्ठी बांधने, उंगलियों को मोड़ने या फिर किसी चीज पर ​ग्रिप बनाने में मदद करते हैं।

जब तक हमें किसी प्रकार की चोट या कोई दिक्कत नहीं आती है हम अपने जोड़ों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। वहीं जिन लोगों को गाउट, गठिया, एसीएल इंजरी, कूल्हे की चोट या फिर जोड़ों संबंधी कोई अन्य दर्द की समस्या होती है उन्हें अपने अंगों को हिलाने-डुलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए फिजियोथेरपी ही एक उपाय बचाता है। फिजियोथेरेपिस्ट उन्हें कई तरह के व्यायाम और गतिविधियां बताते हैं जो जोड़ों के दर्द को कम करने में मददगार हैं।

दूसरी ओर जिन लोगों को जोड़ों और हड्डियों में दर्द की कोई समस्या नहीं है, ऐसा नहीं है कि भविष्य में भी उन्हें यह दिक्कत नहीं हो सकती है। फिर पहले से ही कुछ सावधानियों को बरतकर अपने भविष्य को सुखमय बनाने के प्रयास में क्या हर्ज है? कई सारे ऐसे सरल अभ्यास हैं, जिनको प्रयोग में लाकर हम जोड़ों में आने वाली कठोरता और दर्द को दूर करने के प्रयास कर सकते हैं। इस लेख में हम आपको ऐसे ही कुछ अभ्यासों के बारे में बताएंगे।

  1. पूरे शरीर की स्ट्रेचिंग - Full-body stretch with a yawn
  2. गर्दन के जोड़ों की गतिशीलता - Gardan ke jodo ki gatisheelta
  3. कंधे के जोड़ों की गतिशीलता - Shoulder joint ke gatisheelta
  4. पीठ और रीढ़ की गतिशीलता - Back aur Spine ki mobilization
  5. कूल्हे के जोड़ों में गतिशीलता - Hip joint me mobilization
  6. कलाई, टखने, पैर और हाथ की उंगलियों में गतिशीलता - Wrists, Ankles, Fingers aur Toes me gatisheelta
सुबह-सुबह इन व्यायामों से बनाएं घुटनों को स्वस्थ और गतिशील के डॉक्टर

सुबह जागने के बाद सबसे पहले हम अंगड़ाई लेते हुए स्वाभाविक रूप से पूरे शरीर की स्ट्रे​चिंग कर लेते हैं। इस क्रिया को पैंडिकुलेटिंग के नाम से जाना जाता है। पूरी रात अलग-अलग तरीकों से लेटने से मांसपेशियों में जो विषमताएं उत्पन्न होती हैं उसे हटाने के लिए यह स्ट्रेचिंग बहुत जरूरी होती है। ऐसा करने से मांसपेशियों में उत्पन्न होने वाले अनावश्यक तनाव और कठोरता से राहत मिलती है। उठने के बाद आप इस तरह से भी स्ट्रेचिंग कर सकते हैं।

  • बिस्तर से उठने के बाद सबसे पहले अपनी बाहों को पूरी तरह से फैलाएं।
  • अपनी मुट्ठी बंद करते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं।
  • दोनों हाथों को बारी-बारी से उठाते हुए, पूरे हाथ में तनाव उत्पन्न करें। ऐसा प्रयास करें जैसे आप छत को छूने की कोशिश कर रहे हैं।
  • ऐसे ही अब अपने पैरों की उंगलियों पर पूरा भार डालते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और रीढ़ की हड्डी पर भी तनाव उत्पन्न करने का प्रयास करें।
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रीढ़ की हड्डी का जुड़ाव हमारी गर्दन से होता है। जब हम घंटों लैपटॉप पर काम करते हैं या फिर फोन की स्क्रीन को देखते रहते हैं तो इससे इन हड्डियों में काफी तनाव उत्पन्न होता है। गर्दन की गतिशीलता को बनाए रखने और हड्डियों पर पड़ने वाले इस तरह के तनावों से बचने के लिए निम्न अभ्यासों को प्रयोग में लाया जा सकता है।

  • सबसे पहले आराम से अपनी गर्दन को नीचे करें और कुछ सेकंड के लिए इसी स्थिति में रुकें।
  • अब सामने की ओर देखें और धीरे-धीरे अपनी गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं और छोड़ दें। कुछ सेकंड के लिए इसी स्थिति में रुकें। इस क्रिया को तीन से चार बार दोहराएं।
  • इसके बाद अब सिर को फिर से नीचे की ओर झुकाएं। इसके बाद सबसे पहले, अपने सिर को अपने दाईं ओर घुमाकर कुछ सेकंड के लिए रुकें। फिर धीरे-धीरे पूर्ववत स्थिति में आएं। जिस प्रकार से सिर को दाईं ओर घुमाकर रुके थे, अब उसी प्रक्रिया को बाईं ओर से भी दोहराएं।
  • इस प्रकिया के अगले चरण में सबसे पहले अपनी गर्दन को दाहिनी ओर झुकाएं। बाईं ओर से हाथों से हल्का जोर लगाएं और कुछ सेकंड के लिए रुकें। इसी तरह से बाईं ओर से भी इसी प्रक्रिया को दोहराएं। दोनों ओर से इस प्रकिया के तीन से चार रैप करें।

कंधे के जोड़ों को ग्लेनोह्यूमरल जोड़ के नाम से भी जाना जाता है। कंधे के जोड़ ऊपरी शरीर में आठ छोटी-बड़ी मांसपेशियों से संयोजित होते हैं। इनमें से तीन प्रमुख हड्डियां ऐसी हैं, जिनका विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। ये हड्डियां हैं- शोल्डर ब्लेड या स्कैपुला, कॉलरबोन या क्लेविकल और एक्रोमियन जो स्कैपुला और कॉलरबोन को जोड़ता है। जोड़ों की मदद से हाथों को ऊपर, नीचे और अन्य दिशाओं में घुमाया जा सकता है।आप बिना हाथों के प्रयोग के भी कंधों को ऊपर-नीचे और दूसरे दिशाओं में घुमा सकते हैं। कंधों के लिए आप इस अभ्यास को कर सकते हैं।

  • सबसे पहले अपनी कोहनी को मोड़कर हाथों को कंधों पर रखें। अब अपनी कोहनी को क्लाकवाइज घुमाएं। करीब 10 बार ऐसा करें। अब इसी प्रकिया को एंटी-क्लॉकवाइज भी दोहराएं।
  • व्यायाम के दूसरे चरण में बिल्कुल सीधे खड़े हो जाएं। अब दोनों हाथों को सिर के ऊपर करते हुए कमर को बाईं ओर मोड़ें। हाथों को भी बाईं ओर लेकर जाएं। अब पूर्ववत स्थिति में आते हुए दाईं ओर घूमें और हाथों की गति भी वैसे ही रखें। दोनों तरफ इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं। ऐसा करने से पीठ के ऊपरी हिस्से की मांसपेशियां सक्रिय अवस्था में आती हैं।
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रीढ़ की हड्डी मूल रूप से 33 हड्डियों का एक समूह है। यह शरीर की लगभग हर गतिविधि में हमारी मदद करती हैं। रीढ़ की हड्डियों का संयोजन निम्न है।

  • गर्दन में सात मेरुदंड
  • पीठ के ऊपरी हिस्से में 12 मेरुदंड
  • पीठ के निचले हिस्से में 5 मेरुदंड
  • सेक्रल जहां पीठ और कूल्हे जुड़ते हैं में 5 मेरुदंड
  • टेलबोन क्षेत्र में 5 मेरुदंड

पीठ के जोड़ों को गतिशीलता देने वाले अभ्यास के दौरान उपरोक्त सभी का व्यायाम हो जाता है। इस व्यायाम को निम्न तरीके से किया जा सकता है।

  • एक चटाई पर सीधे खड़े हो जाएं। आप चाहें तो पैरों को खोलकर भी खड़े हो सकते हैं।
  • धीरे से अपने सिर को नीचे की ओर लाते हुए अपनी ठुड्डी को छाती से स्पर्श कराएं।
  • अब जितना हो सके उतना नीचे की ओर जाएं और कम से कम 30 सेकंड के लिए रुकें।
  • यदि आप हाथों से फर्श को छू सकते हैं, तो पैर की उंगली को स्पर्श करें। घुटनों को मोड़ते हुए डीप स्क्वाट की स्थिति में आएं। अब पैरों को फिर से सीधा करें।
  • अपने पीठ को बारी-बारी से दाएं और बाएं ओर मोड़ें।
  • पूरे व्यायाम के दौरान सामान्य रूप से सांस लेते रहें। अपने सिर को ऊपर ना उठाएं ना ही ऊपर की ओर देखें। इस अभ्यास के दो से तीन राउंड करें।

वैकल्पिक रूप से आप भुजंगासन (कोबरा मुद्रा) और काउ पोज योग भी कर सकते हैं।

आपने अक्सर जिम और फिटनेस सेंटरों में हिप ओपनर्स शब्द के बारे में जरूर सुना होगा। कूल्हे के जोड़ों में आमतौर पर होने वाली समस्याओं का मुख्य कारण उम्र, गलत ढंग से बैठने और खराब जीवनशैली हो सकती है। इसका कूल्हे के जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिए आप हिप रोटेशन व्यायाम कर सकते हैं। इस व्यायाम के दौरान अपने कूल्हों को क्लाकवाइज हवा में घुमाएं। इस प्रक्रिया को एंटी क्लाकवाइज भी दोहराएं। कूल्हे के जोड़ों के लिए आप इस व्यायाम को भी कर सकते हैं।

  • सबसे पहले बिल्कुल सीधे खड़े हो जाएं, हाथों को अपनी कमर पर रखें।
  • अब बिना अपने कूल्हों को हिलाएं, दाहिने घुटने को कूल्हे के स्तर तक उठाएं।
  • अब अपने दाहिने घुटने को ऐसे मोड़ें, जिससे घुटने आपके दाहिनी ओर हों।
  • अब घुटनों को पूर्ववत स्थिति में लेकर आएं और सामने की ओर देखें।
  • अब अपने बाएं घुटने से भी इस प्रक्रिया को दोहराएं।
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जिन जोड़ों को हम अक्सर भूल जाते हैं या जिन्हें आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है, वह हैं- कलाई, टखने, हाथों और पैरों की उंगलियां। अगर अपने रोजाना के वर्कआउट के दौरान हम इन जोड़ों के व्यायाम को करें तो कई प्रकार की बड़ी समस्याओं जैसे कलाई के आर्थराइटिस, कलाई के दर्द और गाउट आदि से छुटकारा पा सकते हैं। यह कुछ छोटे-छोटे अभ्यास हैं जिन्हें हम दिन में कई बार कर सकते हैं। आइए जानते हैं इन्हें किस प्रकार से करना है।

  • अपने पैर की उंगलियों को घुमाएं।
  • उंगलियों को जितना संभव हो उतना फैलाएं, फिर एक कसी हुई मुट्ठी बनाएं।
  • अपनी कलाई को ऊपर और नीचे की ओर मोड़ें।
  • अब उन्हें 10 बार क्लॉकवाइज और 10 बार एंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं।
  • इसी तरह अपने पैरों की उंगलियों के साथ भी दोहराएं। अपनी एड़ी को भी 10 बार क्लॉकवाइज और 10 बार एंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं।

निष्कर्ष :

जोड़ों को गतिशीलता देने वाले अभ्यास दिन में कम से कम दो बार करने चाहिए।

  • सुबह उठने के बाद
  • व्यायाम के पश्चात - उदाहरण के लिए यदि जिम में आज आपका शोल्डर-डे था, तो आपको वार्म-अप के साथ-साथ कंधे की गतिशीलता वाले अभ्यास करने चाहिए।

जोड़ों को गतिशीलता देने वाले व्यायाम आम तौर पर शरीर को लचीलापन देने वाले व्यायामों से अलग होते हैं। इन व्यायामों का प्रमुख उद्देश्य जोड़ों को स्वस्थ और गतिशील बनाए रखना होता है। गतिशीलता वाले कुछ अभ्यास ऐसे भी होते हैं जो जोड़ों को सहारा देने वाली मांसपेशियों की स्ट्रेचिंग और उन्हें मजबूती देने में भी मदद करते हैं।

यदि आपको गठिया या ऑस्टियोपोरोसिस जैसी पुरानी बीमारी है, तो भी इनमें से कुछ अभ्यास करते हुए आप इन बीमारियों और उनके लक्षणों को कम कर सकते हैं। हालांकि, इन बीमारियों से पीड़ित लोग किसी भी व्यायाम को करने से पहले अपने चिकित्सक या फिजियोथेरेपिस्ट से परामर्श जरूर ले लें। इसी तरह जिन लोगों को जोड़ों में कठोरता या दर्द की शिकायत है वे लोग भी अपनी जीवनशैली में बदलाव और व्यायाम करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें।

Dr. Himanshu Arora

Dr. Himanshu Arora

फिजियोथेरेपिस्ट
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Deep Maheshwari

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फिजियोथेरेपिस्ट
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Mukesh Jat

Dr. Mukesh Jat

फिजियोथेरेपिस्ट
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Dr. Disha Bhav

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