नए कोरोना वायरस से फैलने वाली बीमारी कोविड-19 पर फिलहाल नजर डालें तो इसकी रफ्तार कम होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। दुनियाभर के करीब 200 से ज्यादा देशों में यह संक्रामक बीमारी फैल चुकी है जिसकी शुरुआत दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर से हुई थी। 15 अप्रैल 2020 के आंकड़ों की मानें तो अब तक करीब 20 लाख लोग सार्स-सीओवी-2 वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और करीब 1 लाख 26 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 

वैसे लोग जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, जो बुजुर्ग हैं, जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है, जिन्हें पहले से कोई बीमारी है जैसे- डायबिटीज, अस्थमा, हृदय रोग, किडनी की बीमारी और हाई ब्लड प्रेशर उन्हें कोविड-19 संक्रामक बीमारी के गंभीर लक्षण होने का खतरा सबसे अधिक है। लेकिन इस महामारी के दौरान साल 2020 उन महिलाओं के लिए ज्यादा तनावपूर्ण हो सकता है जो गर्भवती हैं। 

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विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की मानें तो चूंकि कोविड-19 और प्रेगनेंसी को लेकर काफी कम आंकड़े मौजूद हैं इसलिए ऐसा लगता है कि गर्भवती महिलाएं कोविड-19 के गंभीर लक्षणों वाले हाई-रिस्क कैटिगरी में तो नहीं आती हैं। साथ ही कोविड-19 से संक्रमित मां से होने वाले बच्चे में इस बीमारी के सीधे पहुंचने (वर्टिकल ट्रांसमिशन) के भी कोई सबूत अब तक नहीं मिले हैं। हालांकि यूके में कुछ मामले जरूर सामने आए हैं। 

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हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि कोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिला की देखभाल की जा सके। इसके तहत, जहां तक वर्टिकल ट्रांसमिशन की बात है (मां से बच्चे में बीमारी का फैलना) इसे लेकर जो सबूत सामने आ रहे हैं वे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वर्टिकल ट्रांसमिशन संभव है। हालांकि यह कितने अनुपात में गर्भावस्था को प्रभावित करता है और नवजात शिशु में इसका क्या असर होता है, इस बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।

भारत में भी कुछ गर्भवती महिलाओं में कोविड-19 इंफेक्शन के मामले सामने आए हैं। ज्यादातर गर्भवती महिलाएं जिनमें कोविड-19 इंफेक्शन की पुष्टि हुई थी वे न सिर्फ इस बीमारी से उबर गईं बल्कि इनमें से एक ने आइसोलेशन वॉर्ड में रहते हुए पूरी तरह से स्वस्थ बच्चे को भी जन्म दिया। चूंकि इस बारे में बेहद सीमित रिसर्च मौजूद है इसलिए इसमें अंतर करना मुश्किल है। लिहाजा कोविड-19 महामारी के इस समय गर्भवती महिला की प्रसवपूर्व देखभाल करना और भी जरूरी हो जाता है। 

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गर्भवती महिलाएं जिनमें कोविड-19 इंफेक्शन पॉजिटिव पाया गया है उनके मन में इस बीमारी को लेकर कई तरह के सवाल हैं। जैसे- इस महामारी के वक्त बच्चे को जन्म देना कितना सुरक्षित है? क्या वे नैचुरल लेबर के जरिए बच्चे को जन्म दे पाएंगी? इस आर्टिकल में हम कोविड-19 संक्रमण से पीड़ित गर्भवती महिलाओं और उनकी डिलिवरी के प्रबंधन से जुड़े सभी सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे। 

  1. गर्भवती स्वास्थ्यकर्मी महिलाओं की देखभाल कैसे होनी चाहिए?
  2. गर्भवती महिला को कब और कैसे कोविड-19 हेल्थ केयर टीम से संपर्क करना चाहिए?
  3. कोविड-19 संक्रमण की संदिग्ध गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचने के बाद क्या करना चाहिए?
  4. कोविड-19 संक्रमण की पुष्टि होने पर गर्भवती महिला का ध्यान कैसे रखा जाता है?
  5. कोविड-19 इंफेक्शन से संक्रमित गर्भवती महिला को कब आईसीयू में भर्ती किया जाता है?
  6. क्या कोविड-19 इंफेक्शन से पीड़ित गर्भवती महिला नैचरल तरीके से बच्चे को जन्म दे सकती है?
  7. अगर गर्भवती महिला कोविड-19 पॉजिटिव है तो बच्चे का जन्म कब होना चाहिए?
  8. क्या कोविड-19 इंफेक्शन से संक्रमित गर्भवती महिला का प्लान्ड सिजेरियन हो सकता है?
कोविड-19 इंफेक्शन से संक्रमित गर्भवती महिला की देखरेख और डिलिवरी का प्रबंधन के डॉक्टर

अगर कोई स्वास्थ्यकर्मी महिला गर्भवती है और वह कोविड-19 इंफेक्शन से पीड़ित मरीजों की देखभाल कर रही हैं तो उन्हें प्रसवपूर्व कई जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • अगर संभव हो तो उस स्वास्थ्यकर्मी महिला को घर से काम करने की इजाजत होनी चाहिए।
  • गर्भवती स्वास्थ्यकर्मी महिला को यह विकल्प देना चाहिए कि वह सीधे मरीजों की देखभाल करने से जुड़ा कार्य करना चाहती हैं या नहीं।
  • अगर स्वास्थ्यकर्मी महिला 28 हफ्ते से कम गर्भवती हैं तो उन्हें फिजिकल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखना चाहिए और उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए पीपीई का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • अगर स्वास्थ्यकर्मी महिला की प्रेगनेंसी 28 हफ्ते से ज्यादा की है और उन्हें पहले से किसी तरह की कोई बीमारी है तो उन्हें कोविड-19 के पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आने से पूरी तरह से बचना चाहिए। अगर संभव हो तो उन्हें घर से काम करने की इजाजत देनी चाहिए।

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अगर किसी गर्भवती महिला में कोविड-19 इंफेक्शन के हल्के-फुल्के लक्षण नजर आते हैं जैसे- बुखार, खांसी या सांस लेने में दिक्कत तो उन्हें अपनी मैटरनिटी डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए और डॉक्टर को अपनी मौजूदा स्थिति के बारे में बताना चाहिए। डॉक्टर को इस बात का आकलन करना होता है कि ये लक्षण गर्भावस्था से जुड़े हैं या फिर कोविड-19 इंफेक्शन से जुड़े और उसके हिसाब से आगे की कार्यवाही करनी चाहिए।

हालांकि अगर गर्भवती महिला में बेहद गंभीर लक्षण नजर आएं जैसे- सांस लेने में हद से ज्यादा मुश्किल होना, सीने में लगातार दर्द होना, भ्रम की स्थिति महसूस होना, चेहरे और होंठों का नीला पड़ना आदि तो महिला के घरवालों को तुरंत कोविड-19 के लिए खासतौर पर तैयार किए गए अस्पताल से संपर्क करना चाहिए। इसके बाद गर्भवती मरीज को कोविड-19 इंफेक्शन के संदिग्ध मरीजों के लिए तैयार किए गए स्क्रीनिंग एरिया में ले जाना चाहिए।

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अस्पताल जाने के दौरान गर्भवती महिला को अपने साथ कम से कम लोगों को लेकर जाना चाहिए ताकि उन लोगों को भी इंफेक्शन होने का खतरा न रहे। जहां तक संभव हो गर्भवती मरीज को अपने निजी वाहन में अस्पताल आने की बजाए अस्पताल वालों से कहना चाहिए कि वे कोविड-19 की एंबुलेंस भेजें।

कोविड-19 इंफेक्शन की संदिग्ध गर्भवती महिला जब अस्पताल पहुंचती है तो संक्रामक बीमारी के स्पेशलिस्ट उनकी जांच करते हैं जो मामले की गंभीरता का आकलन करते हैं और साथ ही वहां एक ऑब्स्टेट्रिशन भी होती है जो प्रसूति से जुड़ी कोई इमरजेंसी है या नहीं, इसकी जांच करती हैं। अगर गर्भवती महिला में बीमारी के माइल्ड लक्षण दिखते हैं लेकिन प्रसूति से जुड़ी कोई आपातकालीन बात नहीं है तो महिला को घर पर ही 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जाती है। अगर लक्षण खत्म नहीं होते हैं तो 14 दिन के बाद फिर से कोविड-19 का टेस्ट किया जाता है।

अगर गर्भवती महिला गंभीर लक्षणों के साथ अस्पताल पहुंचती है और साथ में प्रसूति से जुड़ी आपातकालीन स्थिति भी बन रही हो तो महिला को तुरंत अस्पताल के कोविड-19 सेक्शन में ऐडमिट किया जाता है। गर्भवती महिला को आइसोलेशन वॉर्ड में रखा जाता है और तुरंत टेस्ट करने के लिए उनका नेजोफैरिंजल स्वैब सैंपल लिया जाता है। इसके बाद ऑब्स्टेट्रिशन गर्भवती महिला और उसके बच्चे की सेहत से जुड़ी जानकारी लेती हैं।

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अगर गर्भवती महिला कोविड-19 पॉजिटिव है लेकिन उनमें किसी तरह के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं (asymptomatic)

  • अगर गर्भवती महिला में कोविड-19 इंफेक्शन की पुष्टि हो जाती है लेकिन महिला में किसी तरह के लक्षण नजर नहीं आ रहे या फिर उसे पहले से किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है या उनमें प्रसूति से जुड़ी कोई इमरजेंसी भी नहीं है तो गर्भवती महिला को उनके घर में ही आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जाती है। इस दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे की ग्रोथ और हार्टबीट की डॉपलर की मदद से हर 2 सप्ताह में जानकारी ली जाती है।
  • सभी तरह के रूटीन स्कैन जैसे- गर्भ में पल रहे भ्रूण की मॉनिटरिंग, ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट और सभी तरह के दूसरे टेस्ट भी आइसोलेशन पीरियड खत्म होने के बाद ही किए जाते हैं।
  • अगर इस दौरान किसी तरह की प्रसूति संबंधी आपातकालीन स्थिति बनती है तो गर्भवती महिला अपनी डॉक्टर या ऑब्स्टेट्रिशन से संपर्क कर सकती हैं।

गर्भवती महिला कोविड-19 पॉजिटिव है और उसमें लक्षण भी दिख रहे हैं

  • अगर गर्भवती महिला में लक्षण नजर आने लगते हैं तो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
  • गर्भवती महिला का तापमान, ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और श्वसन दर को दिनभर में 3 से 4 बार चेक किया जाता है।
  • छाती का एक्स-रे या सीटी स्कैन जैसी जांच सिर्फ आपातकालीन स्थिति में ही करनी चाहिए और इस दौरान पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। ये टेस्ट्स करने के दौरान गर्भवती महिला के पेट पर सुरक्षात्मक शील्ड रखनी चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे भ्रूण तक रेडिएशन न पहुंचें।
  • गर्भवती महिला के शरीर में सैच्युरेशन 95 प्रतिशत से ऊपर बना रहे इसके लिए ऑक्सीजन थेरेपी दी जा सकती है।
  • गर्भवती महिला को नसों के जरिए हाइड्रेशन देने की बजाए मुंह से देना चाहिए।
  • गर्भवती महिला का तापमान बनाए रखने के लिए उन्हें बुखार रोधी दवा देनी चाहिए ताकि होने वाले बच्चे को मां के बढ़े हुए तापमान से बचाया जा सके।
  • कोविड-19 के अलावा कोई वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन तो नहीं है इसकी जांच भी की जानी चाहिए।
  • अगर गर्भवती महिला को लेबर या ऐक्टिव ब्लीडिंग का खतरा न हो तो उन्हें लो मॉलिक्युलर वेट हेपारिन वाला थ्रॉम्बोप्रोफाइलेसिस दिया जा सकता है। थ्रॉम्बोएम्बोलिज्म, प्रेगनेंसी और कोविड-19 दोनों में ही होने वाली एक कॉमन समस्या है और इससे निपटने के लिए ही थ्रॉम्बोप्रोफाइलेसिस दिया जाता है।
  • भ्रूण का हार्ट रेट और भ्रूण की गतिशीलता पर रोजाना नजर रखी जाती है। जिन गर्भवती महिलाओं में समय से पहले डिलिवरी का खतरा हो उन्हें एंटीनेटल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स दिया जा सकता है।

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अगर गर्भवती महिला में निम्नलिखित लक्षण नजर आएं तो उन्हें इंटेसिव केयर यूनिट यानी आईसीयू में भर्ती कराना पड़ता है:

  • अगर सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर (बीपी की ऊपरी लिमिट जो आमतौर पर 120 mmHg होती है) 90 mmHg से कम या 160 mmHg से अधिक हो जाए।
  • अगर डायस्टोलिक बीपी (बीपी की नीचे की लिमिट जो आमतौर पर 80 mmHg होती है) 100 mmHg से ज्यादा हो जाए।
  • अगर हार्ट रेट प्रति मिनट 50 बीट से कम या प्रति मिनट 120 मिनट से अधिक हो जाए।
  • श्वसन दर (रेस्पिरेटरी रेट) प्रति मिनट 10 श्वास से कम या प्रति मिनट 30 श्वास से अधिक हो।
  • शरीर में ऑक्सीजन सैच्युरेशन 94 प्रतिशत से कम हो जाए।
  • अल्पमूत्रता (यूरिन आउटपुट प्रति घंटे 35ml से कम हो)
  • भ्रम की स्थिति, व्याकुलता, उदासीनता
  • प्रीक्लैम्प्सिया की स्थिति हो और साथ में सिरदर्द और सांस की कमी

सीक्वेन्शियल ऑर्गन फेलियर असेसमेंट (SOFA) के 3 में से अगर कोई 2 लक्षण भी गर्भवती महिला में नजर आएं तो उन्हें आईसीयू में भर्ती किया जा सकता है:

  • सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 100 mmHg से कम हो
  • श्वास लेने की दर प्रति मिनट 22 श्वास से कम हो जाए
  • मरीज चेतना की स्थिति में न हो

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अगर गर्भवती महिला अलक्षणी है (asymptomatic) और उसके शरीर में श्वास संबंधी किसी भी तरह की समस्या से जुड़े संकेत नहीं दिख रहे हैं तो वह महिला नैचरल तरीके से बच्चे को जन्म दे सकती है। हालांकि अगर गर्भवती महिला की स्थिति खराब होने लगती है या फिर वह सेप्टिक शॉक या ऑर्गन फेलियर का शिकार होने लगती है तो डॉक्टरों को तुरंत सिजेरियन डिलिवरी करने पर विचार करना चाहिए।  

गर्भ में पल रहे बच्चे की डिलिवरी पर होने वाली मां के इंफेक्शन का असर नहीं पड़ता और यह किसी भी तरह से इन्ड्यूस्ड लेबर (दवा देकर लेबर पेन शुरू करवाना) का संकेत नहीं है। अगर गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में ही यह इंफेक्शन हो जाता है तब भी डिलिवरी के समय में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। अगर गर्भवती महिला को ये इंफेक्शन गर्भावस्था के आखिरी तिमाही यानी 6 से 9 महीने के बीच होता है तो डिलिवरी को तब तक टाल देना चाहिए जब तक महिला के 2 लगातार टेस्ट नेगेटिव न आ जाएं।

हालांकि अगर महिला गंभीर रूप से बीमार है तो बच्चे की डिलिवरी तुरंत कर देनी चाहिए ताकि मां के शरीर से मेटाबॉलिक और श्वास संबंधी लोड को कम किया जा सके। बच्चे की डिलिवरी से पहले डॉक्टरों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि होने वाली मां नैदानिक रूप से स्थिर हो और गर्भावस्था का समय 25 हफ्ते से अधिक हो (आमतौर पर यह 40 सप्ताह होता है) और गर्भ में पल रहा भ्रूण पूरी तरह से स्वस्थ हो।

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अगर कोई गर्भवती महिला जिसे पहले से किसी तरह की कोई बीमारी या मेडिकल इशू की वजह से सी-सेक्शन या प्लान्ड डिलिवरी की सलाह दी गई है अगर उस महिला को कोविड-19 इंफेक्शन हो जाए तो उस महिला की डिलिवरी पूरी तरह से उसके मौजूदा स्वास्थ्य के हालात पर निर्भर करती है। अगर महिला को कोविड-19 इंफेक्शन है लेकिन उसमें अभी कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं तब डिलिवरी को वैसे ही किया जा सकता है जैसे पहले प्लान किया गया था।

लेकिन अगर महिला को कोविड-19 के साथ-साथ बीमारी के लक्षण भी दिख रहे हैं तो डिलिवरी को 2 सप्ताह के आइसोलेशन पीरियड तक रोककर रखना चाहिए। लेकिन आइसोलेशन का दूसरा सप्ताह आते-आते अगर इस दौरान महिला गंभीर रूप से बीमार हो जाती है तो डॉक्टरों को ये फैसला करना होता है कि वे प्रेगनेंसी को जारी रखना चाहते हैं या समाप्त करना।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 इंफेक्शन से संक्रमित गर्भवती महिला की देखरेख और डिलिवरी का प्रबंधन है

संदर्भ

  1. The Ministry of Health and Family Welfare. Govt. of India. COVID-19 INDIA. [Internet]
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