कोविड-19 महामारी और इसे रोकने के लिए दुनियाभर के ज्यादातर देशों में जो लॉकडाउन किया गया है उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी लोगों पर कुछ न कुछ असर जरूर हुआ है। ऐसे में इस महामारी के समय मानसिक या बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चे की मदद कैसे की जाए? इस सवाल का जवाब हर किसी के लिए एक समान नहीं हो सकता। इस सवाल का जवाब उस बच्चे के माता-पिता और परिवार पर निर्भर करता है और इसीलिए यह सभी के लिए अलग-अलग हो सकता है। मैं इस सवाल का जवाब अपनी उस ट्रेनिंग और अनुभवों के आधार पर दे सकती हूं जिन परिवारों के साथ मिलकर मैं काम कर रही हूं।

मानसिक रूप से कमजोर बच्चे या किशोर के साथ रहते वक्त आपको इस बात को समझना होगा और सचेत भी रहना होगा कि ऐसे बच्चे किसी भी घटना को उसी दृष्टिकोण से देखते हैं जिसमें उनकी शारीरिक और भावनात्मक सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती हो। ऐसे बच्चों से यह उम्मीद करना पूरी तरह से अवास्तविक है कि वे परिवार के किसी सदस्य की जरूरत को प्राथमिकता देंगे या उसे अपनी जरूरत से आगे रखेंगे। हालांकि, ऐसे बच्चों को हम संकेतों के जरिए सिखा जरूर सकते हैं।

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मौजूदा समय में जब ऐसे बच्चों की देखभाल करने वाले केयरटेकर और खुद बच्चों की भी दैनिक रूटीन पूरी तरह से बाधित हो गई है- देखभाल करने वालों को दोगुनी (तीन गुनी, चार गुनी) जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं। उन्हें अपने साथ-साथ उनपर निर्भर रहने वालों की भी रूटीन को सुव्यवस्थित करना पड़ रहा है। 'चुनौतिपूर्ण' यह शब्द भी मौजूदा परिस्थिति का पूरी तरह से आकलन नहीं कर सकता। बहुत से केयरटेकर्स को तो उत्तेजना पूर्ण समय से भी गुजरना पड़ रहा है।

लिहाजा सभी चीजों को फिर से पटरी पर लाने की तरफ पहला कदम यही है कि आप परिवार के लिए उनकी उम्मीद के मुताबिक रूटीन बनाएं। माता-पिता होने के नाते आप अपने जीवन में जितनी मुस्तैदी और पूर्वानुमान रखेंगे, उतना ही आप भावनात्मक रूप से शांत रह पाएंगे और बच्चे की जरूरत व प्रतिक्रिया के लिए खुद को तैयार रख पाएंगे। 

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घर में मौजूद सभी बच्चों को इस रूटीन के अनुकूल बनाने की कोशिश करें। आप चाहें तो किसी कागज पर चित्र बनाकर भी इस रूटीन की तरफ परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं। ये चित्र या तस्वीरें रिमांइडर का काम करेंगी और स्थिति के अनुसार तैयार रखने में मदद करेंगी।

परिवार के बाकी सदस्यों से भी मदद लें। माता-पिता होने के नाते हम सभी का एक सेट पैटर्न और निश्चित भूमिकाएं होती हैं। ऐसा अक्सर प्रतिबिंबित होता है कि दूसरों को भी इस जरूरत को समझकर स्वेच्छा से मदद का हाथ आगे बढ़ाना चाहिए। लेकिन इसके उलट अगर दूसरे लोग स्वाभाविक रूप से मदद का हाथ नहीं बढ़ा रहे हैं तो इसका मतलब है कि वो ये नहीं करना चाहते।

एक बार जब ऊपर बताई गई ये 3 मौलिक चीजें अपनी जगह पर आ जाएंगी तब आपको पर्याप्त संकेत मिल जाएगा जिसके बाद नोटिस करना शुरू कर देंगे कि बच्चे को प्राकृतिक रूप से क्या करना ज्यादा अच्छा लगता है या फिर किस चीज की तरफ उसका झुकाव अधिक है। उनकी ऐक्टिविटी के लिए या उनके साथ खेलने के लिए कुछ समय अलग निकालकर रखने से आप उनके साथ अपनी बॉन्डिंग बेहतर कर पाएंगे।

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आमतौर पर यही अनुभव देखने को मिलता है कि जब माता-पिता बच्चे को कोई निर्देश देना चाहते हैं या बच्चे से कोई काम करवाना चाहते हैं तो वे बच्चे से इस बारे में बोलते हैं या उसके समीप जाकर उससे बात करते हैं। ऐसा करने की बजाए, अगर माता-पिता बच्चे के खेल या उसके क्रियाकलापों में शामिल हों, अपनी भागीदारी दिखाएं तो बच्चा, पैरंट को मित्रतापूर्ण मौजूदगी के तौर पर देखने लगता है।

इस तरह की पेयरिंग का एक और फायदा ये है कि बच्चा, पैरंट को उनकी सहायता करने की इजाजत दे देता है। ऐसा होने पर जब माता-पिता बच्चे को किसी फैमिली रूटीन में शामिल होने के लिए कहेंगे तो बच्चा न तो शर्मिंदगी महसूस करेगा और ना ही हठी बनेगा।

जब आप किसी अक्षम बच्चे के साथ काम कर रहे हों तो आपको कई बार यह ध्यान आता है कि कई पहलूओं में बच्चे को ट्रेनिंग और सपोर्ट की जरूरत है। नतीजतन, माता-पिता बच्चे को सिखाने लग जाते हैं और कई बार जरूरत से ज्यादा सिखाने लग जाते हैं। लिहाजा माता-पिता बच्चे से जितनी भी मांग कर रहे हैं उन सभी के प्रति उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है। अपने हाथ धो, लंच करो, नहाने के लिए आओ, कपड़े बदलो। ये सभी आदेश हैं। अगर बच्चे को माता-पिता की तरफ से इस तरह के कई आदेश लगातार मिलते रहते हैं तो या तो बच्चा निष्क्रिय रूप से उसका पालन करता रहता है या फिर माता-पिता के संपर्क में रहने का विरोध करने लगता है।

हफ्तेभर के लिए सीखने के कुछ लक्ष्य चुनें। आप चाहें तो इन लक्ष्यों को निर्धारित करने में किसी प्रफेशनल की मदद ले सकते हैं। बच्चे की क्षमता क्या है इसे लेकर वास्तविक बने रहें और दैनिक जीवन से जुड़ी चीजें और कौशल को ही सबसे ज्यादा अहमियत दें। बच्चों को घरेलू कामकाज में शामिल करें, रोजाना के रूटीन कामों में उनकी मदद लें। ऐसा करने से बच्चे को सम्मिलत महसूस होगा और बच्चे के साथ आपका भावनात्मक कनेक्शन भी बेहतर बन पाएगा।

हर काम को करने की हड़बड़ी दिखाने की बजाए धीरे-धीरे और फोकस करते हुए हर काम करें। जो बच्चे मानसिक रूप से अक्षम हैं उन्हें नए-नए कौशल सीखने में काफी वक्त लगता है। पढ़ाई से जुड़े कामों को आमने-सामने रखकर उससे जंग न करें। अक्षमता से पीड़ित ज्यादातर बच्चों को वैसे भी संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि उनके क्लास का शैक्षणिक पाठ उनकी खुद की कौशल क्षमता से कहीं अधिक होता है। ऐसे में अगर आप बच्चे को ऐसा काम करने को दें जो उसके लिए बेहद मुश्किल है तो जाहिर सी बात है कि बच्चा उसमें असफल ही होगा और बार-बार मिल रही असफलता बच्चे की उत्प्रेरणा को कम करने का काम करेगा। यहां पर एक बार फिर बच्चे की क्षमता को पहचानें। या फिर ट्रेन्ड प्रोफेशनल्स की मदद लें, ताकि वे आपके बच्चे के लिए उपयुक्त शैक्षणिक लक्ष्य तैयार कर पाएं।

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थेरेपिस्ट, स्पेशल एजुकेशन टीचर, स्पीच और लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट, साइकोलॉजिस्ट आदि प्रफेशनल्स की टीम के साथ संपर्क में रहें जो आपके बच्चे के मध्यवर्ती प्लान्स में आपकी मदद कर सकें। यह टीम आपके बच्चे के स्कूल में हो सकती है या फिर आपकी कम्यूनिटी में। जिन चीजों को आपको पहले से तैयार करके रखने की जरूरत है उसमें अतिरिक्त जरूरत पड़ने पर टीम की मदद लें।

जानें कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मानसिक रूप से अक्षम बच्चों की मदद कैसे करें? के डॉक्टर
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