तंत्रिका तंत्र के सही विकास के लिए विटामिन ई जरूरी है। एक हालिया अध्ययन में यह जानकारी निकल कर आई है। अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी (ओएसयू) की प्रोफेसर मैरेट ट्रैबर ने अपने इस अध्ययन के हवाले से कहा है कि पर्याप्त विटामिन ई नहीं होने की वजह से मस्तिष्क शारीरिक रूप से पूरी तरह विकृत हो जाता है। इस अध्ययन को उन महिलाओं के लिए भी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, जो प्रसव काल में हैं और इस दौरान कई जटिलताओं का सामना करती हैं। इन्हीं जटिलताओं पर अध्ययन कर प्रोफेसर मैरेट ट्रैबर और उनकी टीम ने जाना है कि तंत्रिका तंत्र के संपूर्ण और सही विकास के लिए विटामिन ई जरूरी है। इस जानकारी को मेडिकल पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स ने अपने हालिया अंक में प्रकाशित किया है।

ओएसयू के वैज्ञानिकों ने शोध में जेब्राफिश को शामिल करते हुए ये परिणाम हासिल किए हैं। साफ पानी में रहना वाली यह प्रजाति अंडे के रूप में फर्टिलाइज होने से लेकर तैरने वाली मछली बनने में लगभग पांच दिन का समय लेती है। धमनियों से संबंधित जेनेटिक्स के विकास का अध्ययन करने के लिए इन्हें काफी ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। जानकारों के मुताबिक, जेब्राफिश के मॉलिक्यूलर, जेनेटिक और सेल्युलर लेवल इन्सानों से काफी ज्यादा मिलते-जुलते हैं और इन पर होने वाले अध्ययनों के परिणाम इन्सानों के लिए तत्काल प्रभाव से प्रासंगिक माने जाते हैं। इस कारण भ्रूणीय या अपरिपक्व जेब्रा मछलियों में वैज्ञानिकों की खासी रुचि रहती है, क्योंकि ये तेजी से विकसित होती हैं। इनका शरीर पारदर्शी होता है और इनका आसानी से ख्याल रखा जा सकता है। इन विशेषताओं के चलते जेब्रा मछली को अध्ययन में तेज और स्पष्ट परिणाम देने वाला सोर्स माना जाता है।

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विटामिन ई पर विशेषज्ञता रखने वाली प्रोफेसर ट्रैबर बताती हैं, 'किसी भ्रूण को विटामिन ई की जरूरत क्यों होती है? हम इस सवाल का जवाब लंबे समय से ढूंढ रहे हैं। इस नए अध्ययन के साथ (जेब्रा मछली की मदद से) हमने ऐसी तस्वीरें लेना शुरू किया है, जिन्हें विजुलाइज किया जा सकता है। हम जान सकते हैं कि मस्तिष्क कहां है, वह कहां अपने आकार में ढल रहा है और इसमें विटामिन ई की क्या भूमिका है।'

भ्रूण के विकास में मस्तिष्क प्रीमॉर्डियम (जैविक विकास का एक शुरुआती अंग) और न्यूरल ट्यूब पहले ही उभर जाते हैं और तंत्रिका तंत्र का विकास करने लगते हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जाना है कि विटामिन ई के बिना जेब्रा मछली के भ्रूणों के न्यूरल ट्यूब में खामियां आई थीं और मस्तिष्क कई प्रकार की कमियों से प्रभावित होने लगा था। इस बारे में ट्रैबर का कहना है, 'हमारे पास अब इन खामियों को दिखाने के लिए तस्वीरें हैं। इन्हें देखकर पता चलता है कि मस्तिष्क का निर्माण कर रहीं कोशिकाओं के अंतिम सिरे (क्लोजिंग एज) पर विटामिन ई होता है।'

स्वस्थ जैविक रचनाओं में न्यूरल क्रेस्ट सेल्स चेहरे की हड्डियों और अन्य प्रकार की अस्थियों के निर्माण में भूमिका निभाती हैं। शरीर के अंदर ये सेल्स तंत्रिका तंत्र के दूसरे हिस्सों का निर्माण भी करती हैं। ट्रैबर ने बताया, 'मुख्य कोशिका के रूप में क्रेस्ट सेल्स मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये कोशिकाएं दस अन्य अलग ऑर्गेन सिस्टम के निर्माण में भी भूमिका निभाती हैं, जिनमें हृदय और लिवर भी शामिल हैं। विटामिन ई की कमी की वजह से अगर इन कोशिकाओं में कोई गड़बड़ी आ जाए तो भ्रूण के पूरे फॉर्मेशन को नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि विटामिन ई की कमी के चलते भ्रूण की मौत होना हैरान करने वाली घटना नहीं है।'

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ट्रैबर का कहना है कि इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिक यह जानने के काफी करीब आ गए हैं कि पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई नहीं होने से भ्रूण के विकास, विशेषकर तंत्रिका तंत्र के डेवलप होने में क्या गड़बड़ी हो सकती है। लेकिन इसी समय वे इस जानकारी से काफी दूर हैं कि आखिर इस स्थिति में कौन से वंशाणु प्रभावित होकर बदल रहे होते हैं। ट्रैबर ने कहा, 'जो हम जानते हैं वह यह है कि विटामिन ई की कमी के चलते भ्रूण 24 घंटों तक ही जीवित रहता है और उसके बाद उसका मरना शुरू हो जाता है। वजूद में आने के छह घंटों तक कोई अंतर पता नहीं चलता। 12 घंटे होते-होते यह फर्क साफ दिखाई देता है। हालांकि तब तक वे मरते नहीं हैं। लेकिन 24 घंटों होने के बाद भ्रूण में नाटकीय बदलाव होते हैं और वह पूरी तरह खत्म होता दिखता है।'

क्या है विटामिन ई?
विटामिन ई वसा में पाया जाने वाला एक ऑर्गैनिक मॉलिक्यूल है, जो आठ यौगिकों से मिलकर बनता है। इनमें चारा टोकोफेरोल और चार टोकोट्राइएनोल शामिल होते हैं, जिनका अनुपात उनके केमिकल स्ट्रक्चर के हिसाब से अलग-अलग होता है। वैज्ञानिक भाषा में विटामिन ई को अल्फा-टोकोफेरोल कहा जाता है। मानव विकास और स्वास्थ्य में इस मॉलिक्यूल की कई बायोलॉजिकल भूमिकाएं हैं, जो आहार के रूप में काम करती हैं। कई प्रकार के तेल (जैसे ऑलिव ऑयल) में विटामिन ई पाया जाता है। सनफ्लॉवर, अखरोट और एवोकैडो जैसे उच्च स्तर के खाद्य पदार्थों में भी विटामिन ई मिलता है। इस विटामिन की विशेषज्ञ के रूप में ट्रैबर बताती हैं कि गर्भवती महिलाओं में विटामिन ई की कमी चिंता का विषय है। उनका कहना है कि ऐसी कई मेडिकल रिपोर्टें हैं, जिनमें बताया गया है कि कैसे विटामिन ई की कमी की वजह से कुछ गर्भवती महिलाओं के मिसकैरिज का खतरा बढ़ गया था।

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