आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा - Arthrogryposis Multiplex Congenita in Hindi

Dr. Suvansh Raj NirulaMBBS

March 18, 2021

March 18, 2021

आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा
आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा

आर्थ्रोग्रिपोसिस या आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा (एएमसी) विकारों का एक समूह है, जिसमें जन्म के समय से मल्टीपल ज्वॉइंट कॉन्ट्रैक्चर (लोचदार ऊतकों का सिकुड़ना या संकुचन) मौजूद होते हैं। गर्भावस्था में गर्भकालीन विकास के दौरान गतिशीलता (मोबिलटी) की कमी की वजह से मांसपेशियों के ऊतक रेशेदार हो जाते हैं। मोटे तौर पर आर्थ्रोग्रिपोसिस की तीन श्रेणियां मौजूद हैं - एम्योप्लासिया, डिस्टल और सिंड्रोमिक आर्थ्रोग्रिपोसिस।

आर्थ्रोग्रिपोसिस जेनेटिक और पर्यावरणीय कारक दोनों की वजह से हो सकता है। हालांकि, गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव को प्रभावित करने वाले कुछ कारक भी इसमें शामिल हो सकते हैं। यदि किसी में रोग से संबंधित फैमिली हिस्ट्री है तो ऐसे में मरीज के माता पिता का आनुवंशिक परीक्षण किया जाना चाहिए।

इस स्थिति में ऊपरी अंगों की तुलना में निचले अंग ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसका निदान पूरी तरह से मेडिकल हिस्ट्री, नैदानिक ​​परीक्षण, रेडियोलॉजिकल इमेजिंग और साइटोजेनेटिक टेस्ट करके किया जाता है। एएमसी को बाल रोग विशेषज्ञ के नेतृत्व में स्वास्थ्य टीम द्वारा प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी। इसके अलावा इलाज में फिजियोथेरेपी, सॉफ्ट टिश्यू में गड़बड़ी को सर्जरी के माध्यम से ठीक करना और मनोवैज्ञानिक देखभाल भी शामिल है। यह रोग तब तक प्रगतिशील नहीं है, जब तक कि यह अन्य किसी अधिक गंभीर न्यूरोजेनिक कारणों के साथ संयोजन में नहीं होता है।

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आर्थ्रोग्रिपोसिस के प्रकार - Type of Arthrogryposis in Hindi

आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कंजेनाइटल (एएमसी) एक टर्म है, जिसे विभिन्न विकारों का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जन्म के समय से मल्टीपल (दो या अधिक) गैर-प्रगतिशील ज्वॉइंट कॉन्ट्रैक्चर मौजूद होते हैं। हालांकि, प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान जोड़ों का विकास सामान्य रूप से हो सकता है, लेकिन बाद में एएमसी तब विकसित हो सकता है, जब संयोजी ऊतक (कनेक्टिव टिश्यू) से जुड़ी कोई स्थिति या न्यूरोलॉजिकल विकारों की वजह से गतिविधियां सीमित और कम हो जाती हैं। जोड़ों की गतिविधियां सीमित होने की वजह से मांसपेशियों के ऊतक वसा या रेशेदार ऊतकों (फाइब्रोस टिश्यू) में बदल सकते हैं। यह मसल्स फाइब्रोसिस कॉन्ट्रैक्चर का कारण बनती हैं। फिलहाल, आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा के तीन मुख्य समूह निम्नलिखित हैं :

  • एम्योप्लासिया : एम्योप्लासिया में मांसपेशियों का विकास सही से नहीं होता है। इसके लक्षणों में मांसपेशियों की कमजोरी और जोड़ों में संकुचन शामिल है। एम्योप्लासिया के कुछ मामलों में ऊपरी अंगों में कंधों के अंदरूनी भाग में असामान्यता आ जाती है, जिसमें कोहनी सीधा रहना और कलाई में लोच आना भी शामिल है। निचले अंगों में कूल्हों का अपनी जगह से खिसक जाना (डिस्लोकेट होना), घुटने का बढ़ना और गंभीर रूप से कुछ असामान्यताएं (सेकंडरी क्लबफुट) सामान्य हैं।
  • डिस्टल आर्थ्रोग्रिपोसिस : यह आनुवंशिक रूप से मिली बीमारियों का एक समूह है, जिसमें एक या एक से अधिक जोड़ों में संकुचन हो जाता है। हालांकि, यह केवल हाथ और पैर (जैसे बाहरी अंगों) के जोड़ को प्रभावित करता है और यह किसी भी प्राइमरी न्यूरोलॉजिकल या मस्कुलर डिजीज (मांसपेशियों की बीमारी) से संबंधित नहीं हैं। बता दें, कुल दस अलग-अलग प्रकार के डिस्टल आर्थ्रोग्रिपोसिस का वर्णन किया गया है।
  • सिन्ड्रोमिक आर्थ्रोग्रिपोसिस : सेकंडरी से प्राइमरी न्यूरोलॉजिकल या मस्कुलर डिसऑर्डर की वजह से होने वाले जोड़ों में संकुचन को सिंड्रोमिक आर्थ्रोग्रिपोसिस की श्रेणी में रखा गया है। इनमें से, न्यूरोलॉजिकल कारण सबसे आम और महत्वपूर्ण हैं और मुख्य रूप से यह दो प्रकार का होता है - सेंट्रल न्यूरोलॉजिकल और न्यूरोमस्कुलर।
    • सेंट्रल न्यूरोलॉजिकल : मोटर ​न्यूरॉन डिजीज रीढ़ की हड्डी, मस्तिष्क और चेहरे को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप विकासशील भ्रूण की गतिशीलता में कमी और आर्थ्रोग्रिपोसिस की स्थिति उत्पत्ति होती है। हालांकि, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी भी आर्थ्रोग्रिपोसिस का कारण बन सकती है। इसके अन्य कारणों में मस्तिष्क के अगले भाग को नुकसान पहुंचना शामिल है। बता दें, जब मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में विशेष तंत्रिका कोशिकाएं जिन्हें मोटर न्यूरॉन्स कहा जाता है, ठीक से काम करना बंद कर देती हैं तो उस स्थिति को मोटर ​न्यूरॉन डिजीज कहते हैं।
    • न्यूरोमस्कुलर : कंजेनाइटल मायोपैथी और कंजेनाइटल न्यूरोपैथी यह दोनों आनुवंशिक रूप से होते हैं और यह सिन्ड्रोमिक आर्थ्रोग्रिपोसिस के महत्वपूर्ण कारणों में शामिल हैं। जेनेटिक पेरीफेरल न्यूरोपैथी भी सिंड्रोमिक आर्थ्रोग्रोपियोसिस का एक दुर्लभ कारण है।

(और पढ़ें - स्पास्टिसिटी का इलाज क्या है)

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आर्थ्रोग्रिपोसिस के लक्षण - Arthrogryposis symptoms in Hindi

ऊपरी और निचले अंगों में एम्योप्लासिया के लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि, निचले अंग ज्यादा प्रभावित होते हैं।

ऊपरी हिस्सा :

  • कंधे - अंदर की ओर घूमे हुए
  • कोहनी - सीधी होना या मुड़ी हुई पोजीशन में फिक्स होना
  • कलाई - शरीर की तरफ मुड़ी हुई होना
  • हाथ - अंगूठे और हथेली की बनावट असामान्य होना और उंगलियों का आपस में चिपका होना

निचले अंग :

  • कूल्हों - एक या दोनों तरफ के कूल्हों का डिस्लोकेट होना
  • घुटने - सीधे होना या झुके हुए पोजीशन में फिक्स होना
  • पैर - दोनों पैरों का अंदर की ओर मुड़ा होना

अंगों की अन्य विकृति :

  • अंगों का छोटा होना (विशेष रूप से पैर)
  • वेब्स (जैसे क्षतिग्रस्त नसें जो त्वचा के ऊपर से दिखाई दे सकती हैं)
  • डिम्पल
  • गर्भ नाल का फंस जाना, जिसके चलते दबाव बन सकता है।
  • पटेला (घुटने की कटोरी न होना) की अनुपस्थिति
  • रेडियल (कोहनी से कलाई के बीच मौजदू दो हड्डियों में से एक) हेड का डिस्लोकेट होना

चेहरे और जबड़े का असामान्य होना :

  • नाक की ​हड्डी सपाट होना
  • रक्त वाहिकाओं का ट्यूमर, अक्सर यह लाल रंग के जन्मचिह्न की तरह होता है।
  • माइक्रोग्रैथिया (एक ऐसी स्थिति जिसमें बच्चे का निचला जबड़ा बहुत छोटा होता है)
  • ट्रिज्मस जिसे लॉक जॉ भी कहते हैं, इसमें जबड़ा पूरी तरह से नहीं खुल पाता है। (और पढ़ें - मुंह खोलने में कठिनाई)

अन्य संकेत और लक्षण :

  • जोड़ों की मूवमेंट खुलकर न हो पाना या मूवमेंट करने में कठिनाई
  • कूल्हों (और कभी-कभी घुटने) का जन्मजात रूप से डिस्लोकेट होना
  • एट्रोफी या मांसपेशियों की कमी
  • संकुचन (विशेष रूप से डिस्टल ज्वॉइंट्स में)
  • टेरिगिआ (Pterygia) (ये एक तरह की झिल्ली है, जो आमतौर पर गर्दन, घुटनों, कोहनी, टखनों या उंगलियों में होती है)
  • स्कोलियोसिस (रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन)
  • जननांग संबंधी असमानताएं
  • अम्बिलिकल हर्निया
  • वंक्षण हर्निया

इसके अलावा श्वसन पथ, मूत्र प्रणाली और तंत्रिका तंत्र से संबंधित कई अन्य विकृतियां भी हो सकती हैं।

 (और पढ़ें - वंक्षण हर्निया का ऑपरेशन कैसे होता है)

आर्थ्रोग्रिपोसिस के कारण - Causes of Arthrogryposis in Hindi

आर्थ्रोग्रिपियोसिस तब होता है जब भ्रूण की गतिशीलता में बाधा आती है। ऐसे में मांसपेशियों का विकास प्रभावित होता है। इस बाधा के कारण हो सकते हैं :

  • पर्यावरण :
    • मैटरनल ओलिगोहाइड्राम्निओस (Maternal oligohydramnios यानी गर्भावस्था के दौरान एमनियोटिक द्रव में कमी होना, जिसकी वजह से बच्चे के हाथ पैर दब सकते हैं और ऐसे में असामान्यता आ सकती है) (और पढ़ें - गर्भावस्था में होने वाली परेशानियां)
    • गर्भावस्था के दौरान मैटरनल इंफेक्शन (और पढ़ें - प्रेग्नेंसी में यूरिन इन्फेक्शन का कारण)
    • फीटल (भ्रूण) एकिनेसिया, जिसके लक्षणों में एक से अधिक जोड़ों में संकुचन और चेहरे की बनावट में असामानता हो जाती है।
    • मैटरनल मायस्थेनिया ग्रेविस (ऑटोइम्यून न्यूरोमस्कुलर विकार)
  • आनुवंशिक :
    • एक्स-लिंक्ड रेसेसिव (जिस जीन की वजह से डिसऑर्डर हुआ है, उसका संबंध एक्स क्रोमोसोम से होना)
    • ऑटोसोमल डोमिनेंट (माता-पिता दोनों में से किसी एक से जीन की खराब प्रतियां बच्चे में पारित होना)
    • ऑटोसोमल रेसेसिव (माता-पिता दोनों से जीन की खराब प्रतियां बच्चे में पारित होना)
    • माइटोकॉन्ड्रियल
    • क्रोमोसोम से संबंधित असामान्यता जैसे ट्राइसॉमी 18
  • मस्कुलोपैथी :
    • कंजेनाइटल म्योपैथी
    • कंजेनाइटल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
    • मायस्थेनिक सिंड्रोम
    • इंट्रायूटेरिन (अंतर्गर्भाशयी) वायरल म्योसाइटिस
    • माइटोकॉन्ड्रियल डिसऑर्डर
  • संयोजी ऊतक विकार :
    • डायस्ट्रोफिक डिस्प्लेसिया
    • ओस्टियोकोन्ड्रोप्लेसिया
    • मेट्रोपिक ड्वारफिज्म
  • न्यूरोजेनिक विकार : आर्थ्रोग्रिपोसिस के सबसे गंभीर रूपों का कारण न्यूरोलॉजिकल असामान्यताएं हैं। इसके उदाहरणों में शामिल हैं :
    • मायेलोमेनिंगोसेल (जन्म दोष जिसमें एक विकासशील बच्चे की रीढ़ की हड्डी ठीक से विकसित नहीं हो पाती है)
    • सैक्रल एजीनेसिस (दुर्लभ जन्म दोष, जिसमें निचली रीढ़ की हड्डी का विकास असामान्य होता है)
    • स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (यह ज्यादातर शिशुओं और बच्चों को प्रभावित करती है, इसमें वे अपनी मांसपेशियों का सही से इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं)
    • कंजेनाइटल कॉन्ट्रैक्चर सिंड्रोम
    • सेरेब्रो-ओकुलो-फेशियल सिंड्रोम
    • मार्डन-वॉकर सिंड्रोम
    • पेना-शोकीर सिंड्रोम

(और पढ़ें - जोड़ों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज)

आर्थ्रोग्रिपोसिस के जोखिम कारक - Risk factors of Arthrogryposis in Hindi

आर्थ्रोग्रिपोसिस के विकास के कुछ जोखिम कारक निम्नलिखित हैं:

(और पढ़ें - मल्टीपल स्केलेरोसिस में क्या खाना चाहिए)

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आर्थ्रोग्रिपोसिस का निदान - Arthrogryposis diagnosis in Hindi

डॉक्टर आर्थ्रोग्रिपोसिस का निदान के लिए मेडिकल हिस्ट्री चेक करके शुरुआत कर सकते हैं। इस दौरान वे गर्भावस्था और प्रसव से जुड़े सवाल पूछने के साथ-साथ फैमिली हिस्ट्री भी चेक कर सकते हैं।

फैमिली हिस्ट्री चेक करना :

  • परिवार का कोई सदस्य या बच्चा इस समस्या से प्रभावित हुआ हो
  • ऐसे दो लोगों के बीच यौन संबंध होना, जिनके पूर्वज एक ही हैं, ऐसा होने पर दुर्लभ रेसेसिव विकारों का जोखिम बढ़ता है (और पढ़ें - सुरक्षित सेक्स कैसे करे)
  • यदि पैरेंट (माता और पिता दोनों) की उम्र गर्भाधान के समय 40 वर्ष या उससे अधिक है तो ऐसे में क्रोमोसोम संबंधी विकारों के लिए जोखिम बढ़ जाता है
  • आनुवंशिक विकारों की वजह से भ्रूण में असामान्यता होना और इस असामान्यता की वजह से कभी गर्भपात हुआ हो
  • माता में मायस्थेनिया ग्रेविस, मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) और मायोटोनिक डिस्ट्रोफी जैसी बीमारियां बच्चे में आर्थ्रोग्रिपोसिस का दुर्लभ कारण हो सकती है।

गर्भावस्था और प्रसव से संबंधी हिस्ट्री चेक करना :

  • रूबेला और कॉक्ससैकी जैसे कुछ वायरस के कारण गर्भावस्था के दौरान मां को होने वाला संक्रमण, बच्चे में न्यूरोपैथी का कारण बन सकता है।
  • लंबे समय तक मैटरनल पाइरेक्सिया (शरीर के तापमान में वृद्धि और बुखार) की वजह से असामान्य रूप से तंत्रिका में वृद्धि हो सकती है, जिससे संकुचन पैदा हो सकता है।
  • औषधीय (जैसे फेनीटोइन) और रिक्रिएशनल (अल्कोहल) जैसे तरीके, गर्भवती होने पर भ्रूण की गतिविधि को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आर्थ्रोग्रिपोसिस की समस्या हो सकती है।
  • गर्भावस्था के दौरान ओलिगोहाइड्राम्निओस (एमनियोटिक द्रव कम होने से) भ्रूण की गतिविधियों में कमी आ सकती है।
  • गर्भाशय संरचना में असामान्यताएं होने से भ्रूण में संकुचन हो सकता है जो कि गतिशीलता को रोक सकता है।
  • प्रसव के दौरान बच्चे की पोजिशन सही न होने (जैसे ब्रीच पोजिशन) की वजह से डिलीवरी में दिक्कत आना (और पढ़ें - नॉर्मल डिलीवरी के बाद देखभाल)
  • गर्भनाल से जुड़ी असामान्यताएं, उदाहरण के तौर पर यदि बच्चे के चारों ओर नाल फंस गई हो तो ऐसे में बच्चे की गतिविधि रुक सकती है।
  • जुड़वां या इससे ज्यादा बच्चे होने पर भी बच्चे की गतिविधियां सीमित हो सकती हैं। (और पढ़ें - गर्भनाल को संक्रमण से कैसे बचाएं)

पूरी तरह से मेडिकल हिस्ट्री चेक करने के बाद, विशेषज्ञ एक शारीरिक परीक्षण कर सकते हैं। लक्षणों की जांच के बाद, सिस्टेमिक एग्जामिनेशन भी हो सकता है, जिसमें शरीर की प्रमुख प्रणालियों जैसे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, श्वसन प्रणाली, हृदय प्रणाली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रणाली की समीक्षा की जाती है। इस दौरान न्यूरोलॉजिकल परीक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि यह विभिन्न कारणों से होने वाले न्यूरोलॉजिकल विकारों की पहचान करने में मदद कर सकता है।

आर्थ्रोग्रिपोसिस के लिए टेस्ट - Tests for Arthrogryposis in Hindi

आर्थ्रोग्रिपोसिस के लिए निम्नलिखित टेस्ट किए जा सकते हैं :

  • आनुवंशिक परीक्षण : यदि परिवार में किसी को आर्थ्रोग्रिपोसिस की समस्या रही हो तो ऐसे में जेनेटिक काउंसलिंग व अन्य टेस्ट कराने का सुझाव दिया जाता है।
  • ब्लड टेस्ट : सीरम क्रिएटिनिन किनेज टेस्ट के माध्यम से मस्कुलर डिसऑर्डर (खासकर, मांसपेशियों में आसमान्यता के मामलों में) का निदान हो सकता है।
  • रेडियोलॉजिकल इमेजिंग
    • एक्स-रे : जोड़ों और हड्डियों में गड़बड़ी का पता लगाने के लिए एक्स-रे किया जा सकता है।
    • अल्ट्रासाउंड : शरीर के विकृत अंगों में मांसपेशियों के समूह की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड की जरूरत होती है।
    • सीटी स्कैन : सीटी स्कैन की छवियां सिंपल एक्स-रे की तुलना में अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करती हैं। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की जांच कर सकता है जो कि संभवता: नसों से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकता है।
    • एमआरआई : यह तकनीक रेडियो किरणों की मदद से शरीर के अंदर हड्डी और ऊतकों की विस्तृत या विस्तारपूर्वक छवियां तैयार करती है। एमआरआई का उपयोग विकृति और मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी दोनों की जांच के लिए किया जाता है।

(और पढ़ें - जोड़ों में दर्द की होम्योपैथी दवा)

आर्थ्रोग्रिपोसिस का उपचार - Treatment of Arthrogryposis in Hindi

आर्थ्रोग्रिपोसिस का प्रबंधन फिजियोथेरेपी, स्प्लिंटिंग, कास्टिंग, सर्जरी (जहां आवश्यक हो) और साइकोसोक्रेटिक देखभाल के साथ किया जा सकता है।

  • कंजर्वेटिव मैनेजमेंट : आर्थ्रोग्रिपोसिस के जो मामले एम्योप्लासिया और डिस्टल आर्थ्रोग्रिपोसिस की वजह से होते हैं उनमें कंजर्वेटिव मैनेजमेंट विशेष रूप से फायदेमंद है। हालांकि, यह न्यूरोजेनिक और मायोपैथिक डिसऑर्डर की वजह से होने वाले आर्थ्रोग्रिपोसिस के मामलों में अधिक फायदेमंद नहीं है।
    • फिजियोथेरेपी : स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज की मदद से गतिशीलता में सुधार होता है और यह आगे होने वाले संकुचन को रोकने व जोड़ों की गतिविधियों को बेहतर करने में भी प्रभावी है।
    • स्प्लिन्टिंग : स्प्लिंटिंग यानी खपच्ची की मदद से विकृत जोड़ों के इलाज में मदद मिल सकती है।
    • कास्टिंग : डॉक्टर से परामर्श करने के बाद या उनके द्वारा सुझाए गए निर्देशों के अनुसार, प्रभावित जोड़ों में स्ट्रेचिंग और मूविंग से भी फायदा हो सकता है।
  • सर्जरी : टिश्यू (ऊतक) को हुए नुकसान और जोड़ की विकृति को ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यक हो सकती है। निम्नलिखित स्थितियों को ठीक करने के लिए सर्जरी की जाती है :
    • कूल्हों के खिसक जाने पर
    • रीढ़ की विकृति को स्थिर करने के लिए
    • कलाई और अंगूठे की विकृति के लिए
    • क्लबफुट आदि के लिए

हालांकि, रोगियों में अक्सर मैलिगनेंट हाइपरथर्मिया विकसित होने का खतरा रहता है इसलिए एनेस्थीसिया (सर्जरी के लिए रोगी को बेहोश करना) चुनौतीभरा हो सकता है।

  • मनोवैज्ञानिक देखभाल : मरीज की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति और अन्य सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर मनोवैज्ञानिक देखभाल की आवश्यकता होती है। इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
  • व्यावसायिक चिकित्सा : गंभीर मामले, जहां सामान्य रूप से शारीरिक कार्य करने में दिक्कत आती है, वहां व्यावसायिक चिकित्सा सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकती है।

(और पढ़ें - मनोवैज्ञानिक परीक्षण के प्रकार)

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आर्थ्रोग्रिपोसिस का परिणाम - Prognosis of Arthrogryposis

आर्थ्रोग्रिपोसिस का परिणाम इसके अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है। हालांकि, आर्थ्रोग्रिपोसिस वाले अधिकांश रोगियों का जीवनकाल सामान्य होता है। एम्योप्लासिया के मरीजों में बेहतर परिणाम देखे जा सकते हैं। ज्यादातर मामलों में स्कोलियोसिस की समस्या हो सकती है और इसे बदतर होने से पहले इसका उपचार शुरू कर देना चाहिए, ताकि बेहतर परिणाम मिल सकें।

(और पढ़ें - जोड़ों में अकड़न क्या है)

आर्थ्रोग्रिपोसिस की रोकथाम - Prevention of Arthrogryposis

यदि परिवार में किसी सदस्य को कभी आर्थ्रोग्रिपोसिस की समस्या रही हो तो ऐसे में बाकी लोगों को जेनेटिक काउंसलिंग या अन्य टेस्ट करवा लेने चाहिए। इसके अलावा कुछ प्रकार के आर्थ्रोग्रिपोसिस के विकसित होने से बचने के लिए गर्भावस्था के दौरान मैटरनल इंफेक्शन, असुरक्षित दवा का सेवन, पायरेक्सिया और चोट जैसे कारकों से भी सावधान रहने की जरूरत है।

(और पढ़ें - चोट लगने पर घरेलू उपाय)



संदर्भ

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  3. Ayadi K, Trigui M, Abid A, Cheniour A, Zribi M, Keskes H. Arthrogryposis: Clinical manifestations and management. Arch Pediatr. 2015 Aug;22(8):830-9. PMID: 26141802.
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आर्थ्रोग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स कॉन्जेनिटा के डॉक्टर

Dr. Mayur Kumar Goyal Dr. Mayur Kumar Goyal पीडियाट्रिक
10 वर्षों का अनुभव
Dr. Gazi Khan Dr. Gazi Khan पीडियाट्रिक
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Dr. Himanshu Bhadani Dr. Himanshu Bhadani पीडियाट्रिक
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