नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 की वजह से होने वाली बीमारी कोविड-19 ने न सिर्फ लोगों की सेहत पर बुरा असर डाला है बल्कि उनकी रोजमर्रा का जीवन भी पूरी तरह से बदल गया है। इस संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कई देशों में लॉकडाउन किया गया, लोगों का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया और स्कूल-कॉलेज तो पिछले 3-4 महीने से पूरी तरह से बंद हैं। 

इतने लंबे समय तक जब बच्चों के स्कूल बंद हैं तो जाहिर सी बात है कि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। इस नुकसान की पूर्ति के लिए दुनियाभर में बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से पढ़ाई करायी जा रही है। जिस तरह बड़ी संख्या में लोग घर से ही ऑफिस का काम कर रहे हैं, ठीक उसी तरह बच्चे भी घर से स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं। भारत में भी सिर्फ मेट्रो सिटीज में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल फोन के जरिए ऑनलाइन पढ़ाई करवायी जा रही है। 

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स्कूल से दूर हैं दुनिया के 126 करोड़ बच्चे
यूनेस्को (यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन) के आंकड़ों की मानें तो इस वक्त दुनियाभर के करीब 126 करोड़ (1.26 बिलियन) बच्चे ऐसे हैं जो कोविड-19 महामारी की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। यह आंकड़ा दुनियाभर के छात्रों की जनसंख्या का 72 फीसदी हिस्सा है। इसमें से भारत के करीब 32 करोड़ (320 मिलियन) बच्चे शामिल हैं। इन बच्चों के स्कूल दोबारा कब से खुल पाएंगे इस बारे में भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है
ऐसी स्थिति में घर से पढ़ाई करने का मतलब है कि बच्चे अब उन्हीं चीजों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे यूज करने से पैरंट्स पहले उन्हें मना करते थे। टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि। ऑनलाइन क्लासेज की वजह से बच्चे घंटो मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं जिसका उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के लगातार इस्तेमाल को लेकर कई पैरंट्स भी चिंतित हैं। लेकिन चूंकि इस वक्त कोविड-19 की वजह से बच्चों को पढ़ाने का एक मात्र रास्ता ऑनलाइन क्लासेज ही हैं इसलिए माता-पिता भी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं।

स्कूल में पढ़ाई के साथ कई और चीजें सीखते हैं बच्चे
जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वहां वे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि साथ ही साथ वे नए दोस्त बनाते हैं, सामाजिक व्यवहार करना सीखते हैं, खेलते-कूदते हैं, शारीरिक गतिविधियां करते हैं, सामने वाले व्यक्ति की बॉडी लैंग्वेज को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन घर से ऑनलाइन क्लासेज के जरिए हो रही पढ़ाई की वजह से बच्चे ये सारी चीजें नहीं कर पा रहे हैं और इसका भी उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। 

ऑनलाइन क्लासेज का बच्चे की शारीरिक सेहत पर असर
कम्प्यूटर, लैपटॉप, आईपैड या मोबाइल फोन के सामने घंटों बैठे रहने की वजह से बच्चों के शरीर पर भी इसका कई तरह से नकारात्मक असर पड़ता नजर आ रहा है। 

आंखें लाल होना और सिरदर्द की समस्या
ज्यादातर पैरंट्स का यही कहना है कि लंबे समय तक गैजट्स के इस्तेमाल की वजह से बच्चों की आंखें लाल हो रही हैं और उन्हें सिरदर्द की भी समस्या हो रही है। अगर समय रहते इन समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए तो ये आगे चलकर बढ़ सकती हैं। टीवी, कम्प्यूटर या फोन की स्क्रीन को घंटों तक लगातार देखते रहने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है और उन्हें ज्यादा पावर का चश्मा लगाने की जरूरत पड़ने लगती है। 

स्क्रीन की ब्लू लाइट से आंखों को नुकसान
अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की मानें तो 2 साल तक के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम शून्य होना चाहिए, 2 से 6 साल तक के बच्चों के लिए रोजाना सिर्फ 1 घंटे का स्क्रीन टाइम और 6 साल से ऊपर के बच्चों के लिए रोजाना सिर्फ 2 घंटे स्क्रीन टाइम की सलाह दी जाती है। इसकी वजह ये है कि इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट का बच्चे की आंखों और रेटिना पर बुरा असर पड़ता है जिसकी वजह से आंखें लाल हो जाती हैं, आंखों से पानी आने लगता है या फिर आंखों में ड्राइनेस हो जाती है। 

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लेकिन मौजूदा समय में जब कोविड-19 की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, खेलने के लिए घर से बाहर नहीं जा पा रहे हैं, ऐसे में उनका स्क्रीन टाइम काफी अधिक हो गया है। पढ़ाई के साथ ही खेलने के लिए भी बच्चे मोबाइल और लैपटॉप ही यूज कर रहे हैं क्योंकि वे घर से बाहर नहीं जा सकते हैं। इसके अलावा लगातार कई घंटों तक एक ही पॉस्चर में एक ही जगह बैठे रहने की वजह से बच्चों की मांसपेशियों और जोड़ों में भी दर्द की समस्या हो सकती है। लिहाजा पैरंट्स को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • मोबाइल या लैपटॉप को बच्चे की आंखों से कम से कम 2 फीट की दूरी पर रखें
  • बच्चे लगातार स्क्रीन की तरफ न देखें बल्कि बीच-बीच में पलकों को झपकाते रहना जरूरी है
  • बच्चे के स्क्रीन टाइम पर पैरंट्स नजर रखें, पढ़ाई के अलावा बहुत ज्यादा देर गैजट्स का इस्तेमाल न करने दें
  • हर 6 महीने में एक बार ऑप्थैलमोलॉजिस्ट से बच्चे की आंखों की जांच करवाएं
  • बच्चों की आंखों की रोशनी बनी रहे और उन्हें आंखों से जुड़ी कोई समस्या न हो इसके लिए उन्हें गाजर, पालक, कद्दू और हरी पत्तेदार सब्जियों से भरपूर हेल्दी डायट खिलाएं।
  • ऑनलाइन पढ़ाई और स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से बच्चे की नींद पर इसका असर न पड़े इस बात का भी ध्यान रखें  

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ऑनलाइनल क्लासेज का मानसिक सेहत पर असर
1. अलगाव की भावना पैदा होती है

क्लासरूम में पढ़ाई करने के दौरान बच्चे के अलावा उसके 20-30 क्लासमेट्स और होते हैं लेकिन ऑनलाइन क्लास के दौरान आपके साथ कम्पैनियन या साथी के रूप में सिर्फ आपका लैपटॉप या मोबाइल फोन। इस तरह अकेले पढ़ाई करने का अनुभव कई बार परेशान करने वाला हो सकता है। आपके क्लासमेट्स, दोस्त और टीचर भले ही आपको सामने स्क्रीन पर नजर आएं लेकिन वे आपके साथ मौजूद नहीं हैं। इसकी वजह से कई बार बच्चों को अलगाव की भावना भी महसूस हो सकती है।

2. अलगाव की वजह से एंग्जाइटी और डिप्रेशन का खतरा
हाल के दिनों में हुए कई अध्ययनों से इस बात के संकेत मिले हैं कि जो लोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर अत्यधिक समय बिताते हैं उन्हें ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है और उन्हें इंटरनेट की लत भी लग जाती है जिससे उनका जीवन कई तरह से प्रभावित हो सकता है। यह पूरी परिस्थिति एक तरह से सामाजिक अलगाव को जन्म देती है जिससे शैक्षणिक उपलब्धि में कमी आती है और यहां तक ​​कि डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी भी हो सकती है। अकेलापन या अलगाव महसूस होने की वजह से कई स्टूडेंट का कॉन्फिडेंस भी कम हो जाता है।

3. फेस-टू-फेस कम्यूनिकेशन की कमी
चूंकि ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट, टीचर और क्लासमेट्स के साथ फेस-टू-फेस संपर्क नहीं हो पाता है लिहाजा बहुत से छात्रों को ऐसा लग सकता है कि वे टीम सेटिंग में प्रभावी ढंग से काम करने में असमर्थ हैं। ऑनलाइन वातावरण में अपने टीचर और क्लासमेट्स के साथ रिश्ता बनाने के लिए बच्चे को बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ती है।

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