एक्जिमा आमतौर पर कई तरह की स्किन प्रॉब्लम्स के लिए इस्तेमाल होने वाला छत्र शब्द है जिसमें शरीर के किसी भी हिस्से की त्वचा पर खुजली होने लगती है, त्वचा लाल हो जाती है और वहां जलन होने लगती है। वैसे तो एक्जिमा कई तरह का होता है और यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है लेकिन नवजात शिशु या छोटे बच्चों को होने वाले एक्जिमा को एटोपिक डर्मेटाइटिस भी कहते हैं। यह एक्जिमा का सबसे आम रूप भी है जो बचपन में शुरू होता है और वयस्क होते-होते खुद-ब-खुद दूर हो जाता है।

नवजात शिशु की त्वचा इतनी कोमल और संवेदनशील होती है कि उन्हें रैशेज और कई तरह की स्किन से जुड़ी समस्याएं होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में बेबी एक्जिमा इन्हीं में से सबसे कॉमन स्किन प्रॉब्लम है। इसमें त्वचा पर रैश यानी चकत्ता या खाज जैसे धब्बे बन जाते हैं जिसमें खुजली भी होने लगती है। बेबी एक्जिमा आमतौर पर 6 महीने से 5 साल की उम्र के बच्चों को होता है। अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) में साल 2014 में की एक रिपोर्ट की मानें तो बेबी एक्जिमा अमेरिका के करीब 10 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करता है। वहीं, भारत की बात करें तो यहां भी बेबी एक्जिमा करीब 5 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चों को प्रभावित करता है।   

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अमेरिकन अकैडमी ऑफ डर्मेटॉलजी की मानें तो करीब 90 प्रतिशत लोगों को 5 साल से कम की उम्र में एक्जिमा का अनुभव होता है तो वहीं 1 साल से कम उम्र के बच्चों को एटोपिक डर्मेटाइटिस जो एक्जिमा का एक प्रकार है का सामना करना पड़ता है। इसे बेबी एक्जिमा या इन्फेन्टाइल एक्जिमा भी कहते हैं। तो आखिर शिशुओं में एक्जिमा होने का कारण क्या है, लक्षण क्या हैं और इसका इलाज कैसे हो सकता है, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

  1. बेबी एक्जिमा होने का कारण - baby eczema ka karan
  2. बेबी एक्जिमा से जुड़े जोखिम कारक - baby eczema ke risk factors
  3. बेबी एक्जिमा के लक्षण - baby eczema ke lakshan
  4. बेबी एक्जिमा को डायग्नोज कैसे करते हैं? - baby eczema ko diagnose kaise karte hain?
  5. बेबी एक्जिमा का इलाज - baby eczema ka ilaj
  6. शिशु के माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान - baby eczema hone par parents aise rakhen dhyan
नवजात शिशु को एक्जिमा के डॉक्टर

जब शरीर का इम्यून सिस्टम अत्यधिक या अनावश्यक प्रतिक्रिया देने लगता है तो इसी के नतीजे के तौर पर शरीर में एक्जिमा होने लगता है। वैसे तो एक्जिमा होने का कोई एक मुख्य कारण अब तक पता नहीं चल पाया है लेकिन डॉक्टरों की मानें तो एक्जिमा होने के पीछे जेनेटिक और वातावरण से जुड़े कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। साथ ही एक्जिमा संक्रामक यानी छूआछूत से फैलने वाली बीमारी नहीं है। 

जिन नवजात शिशुओं के पारिवारिक इतिहास में अस्थमा, ऐलर्जी, हे फीवर या एक्जिमा जैसी बीमारियां हों उन शिशुओं या बच्चों में एक्जिमा होने का खतरा काफी अधिक होता है। साथ ही जिन शिशुओं को बेबी एक्जिमा हो उन्हें हे फीवर और अस्थमा होने का खतरा भी काफी अधिक होता है। डॉक्टरों और अनुसंधानकर्ताओं की थिअरी की मानें तो एक्जिमा होने का कारण और उसके सक्रिय होने के पीछे बैक्टीरिया, एलर्जी पैदा करने वाले तत्व (ऐलर्जन) और जेनेटिक परिवर्तन भी शामिल है।

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करीब 20 से 30 प्रतिशत लोग जिन्हें एक्जिमा होता है उनकी स्किन की सबसे बाहरी सतह में आनुवांशिक परिवर्तन (जेनेटिक वेरिएशन) होता है। इस वजह से स्किन के लिए मॉइश्चर यानी नमी को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है और साथ ही स्किन के लिए बाहरी तत्वों को भी रोक पाना संभव नहीं हो पाता। 

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बच्चों में आखिर किन वजहों से एक्जिमा होता है और इससे जुड़े जोखिम कारक यानी रिस्क फैक्टर्स क्या हैं इस बारे में अब तक कई शोध हो चुके हैं। इंटरनैशनल जर्नल ऑफ इन्वायरनमेंटल रिसर्च और पब्लिक हेल्थ में साल 2018 में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो प्रेगनेंसी के दौरान जो महिलाएं हद से ज्यादा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करती हैं उनके शिशुओं को जन्म के बाद एक्जिमा होने का खतरा अधिक होता है।

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मई 2018 में जर्नल ऑफ द यूरोपियन अकैडमी ऑफ डर्मेटॉलजी एंड वेनेरियोलॉजी में प्रकाशित एक दूसरी स्टडी में इस बात पर फोकस किया गया है कि बाहरी वातावरण खासकर हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व और मौसम विज्ञान संबंधी स्थितियां किस तरह से बच्चों में होने वाले एक्जिमा को प्रभावित करती हैं। स्टडी में शामिल अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, फोर्मेल्डेहाइड, लेड, पार्टिक्युलेटर मैटर और ओजेन का हाई लेवल भी नवजात शिशु में होने वाले एक्जिमा यानी इन्फेन्टाइल एक्जिमा को प्रभावित करता है।

नवजात शिशु में होने वाले अटोपिक डर्मेटाइटिस या इन्फेन्टाइल एक्जिमा होने के संकेत या लक्षण:

  • ड्राई स्किन और स्किन में खुजली
  • त्वचा पर लालिमा (रेडनेस)
  • त्वचा पर सूजन या गांठ जैसा होना जिससे तरल पदार्थ का रिसाव हो
  • रात के समय ज्यादा प्रत्यक्ष और स्पष्ट तौर पर नजर आता है बेबी एक्जिमा
  • एक्जिमा हमेशा एक जैसा नहीं रहता, यह आता-जाता रहता है और जब यह बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो इसे भभकना (फ्लेयर-अप) कहते हैं।

एक साल से कम उम्र के नवजात शिशु में आमतौर पर एक्जिमा के लाल चकत्ते गालों पर, माथे पर और बच्चे की खोपड़ी यानी स्कैल्प पर नजर आते हैं। हालांकि यह घुटने, कोहनी और गर्दन के पास भी हो सकता है।

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वहीं, छोटे बच्चों और किशोरों में आमतौर पर एक्जिमा के रैशेज कोहनी के जोड़ पर, घुटने के पीछे वाले हिस्से में, गर्दन पर, कलाई के अंदरूनी हिस्से में और पैरों में टखने के पास होता है। स्किन के जिस हिस्से पर एक्जिमा होता है वहां की स्किन मोटी, गहरे रंग की और बार-बार खुजलाने की वजह से दागदार और क्षतिग्रस्त हो जाती है।

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एक्जिमा को डायग्नोज करने या इस रोग की पहचान करने के लिए कोई खास तरह का टेस्ट नहीं है। जब आप अपने शिशु को डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं तो वह शिशु के शरीर पर मौजूद इन रैशेज यानी लाल चकत्तों को देखते हैं और फिर लक्षणों के बारे में, शिशु की सेहत और परिवार की सेहत के बारे में आपसे जानकारी हासिल करते हैं। अगर परिवार के किसी सदस्यों को अटोपिक डर्मेटाइटिस हो तो यह डॉक्टर के लिए अहम संकेत होता है। ऐसे में डॉक्टर त्वचा में होने वाली खुजली और जलन से जुड़ी दूसरी समस्याओं को खारिज कर देते हैं और किसी डर्मेटॉलजिस्ट या ऐलर्जिस्ट से संपर्क करने की सलाह देते हैं।

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इतना ही नहीं, हो सकता है डॉक्टर आपसे यह भी कहें कि आप शिशु को खास तरह के खाद्य पदार्थ जैसे- दूध, अंडा, सोया और नट्स भी देना पूरी तरह से बंद कर दें। साथ ही डॉक्टर शिशु का साबुन, कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट बदलने और कई दूसरे तरह के बदलाव करने की भी सलाह दे सकते हैं ताकि यह देखा जा सके कि इन बदलावों के बाद शिशु किस तरह से प्रतिक्रिया दे रहा है।

वैसे तो एक्जिमा से पूरी तरह से रोगमुक्त नहीं हुआ जा सकता लेकिन इलाज से लक्षणों को कम करने में मदद जरूर मिलती है। शिशु की उम्र कितनी है, एक्जिमा शरीर के किस हिस्से में है और यह कितना गंभीर है इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही डॉक्टर बेबी एक्जिमा का इलाज करते हैं। इनमें से कुछ इलाज टॉपिकल यानी स्थान संबंधी होता जिसे स्किन पर लगाया जाता है, वहीं कई बार खाने वाली दवाइयां भी दी जाती हैं।

अमेरिकन अकैडमी और पीडियाट्रिक्स (एएपी) ने बेबी एक्जिमा के इलाज के लिए 4 मुख्य लक्ष्य निर्धारित किए हैं:

1. स्किन का रख-रखाव: यह सबसे जरूरी है क्योंकि इसकी मदद से ही क्षतिग्रस्त हुई त्वचा की मरम्मत की जा सकती है और स्वस्थ स्किन अवरोध (स्किन बैरियर) को विकसित किया जा सकता है। साथ ही भविष्य में भभकना यानी फ्लेयर-अप होने के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

2. एंटी-इन्फ्लेमेटी दवा: जब एक्जिमा बढ़ जाता है यानी फ्लेयर-अप होता है तो इस दौरान सूजन और जलन को कम करने में मदद करती हैं ये दवाएं। (हालांकि ये दवाएं शिशुओं के लिए हमेशा सही नहीं होतीं)

3. खुजली को नियंत्रित करना: त्वचा पर बार-बार खुजलाने से खुजली की गंभीरता और बढ़ जाती है। लिहाजा खुजली को कंट्रोल करना भी जरूरी है।

4. सक्रिय होने वाले कारणों को कंट्रोल करना: वैसे कारण जिनकी वजह से एक्जिमा होता है अगर उन्हें रोक दिया जाए तो फ्लेयर-अप को कंट्रोल किया जा सकता है।

इन 4 लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए बेबी एक्जिमा का इलाज निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है:

  • मॉइश्चराइजर लगाना: त्वचा में नमी का बने रहना बेहद जरूरी है, लिहाजा रोजाना दिन में 2 से 3 बार मॉइश्चराइजर लगाएं। मॉइश्चराइजर लगाने का सबसे सही समय है नहाने के बाद। शिशु को नहलाने के बाद उसकी स्किन को अच्छे से पोछकर सूखा दें और उसके बाद पेट्रोलियम जेली जैसा कोई ऑइंटमेंट या क्रीम जिसमें तेल की मात्रा अधिक हो उसे शिशु के शरीर पर लगाएं।
  • कोर्टिकोस्टेरॉयड्स: इन्हें कोर्टिकोसोन या स्टेरॉयड क्रीम या ऑइंटमेंट भी कहते हैं। इन्हें लगाने से स्किन में सूजन और जलन को कम करने में मदद मिलती है। (ये वे स्टेरॉयड्स नहीं हैं जिनका इस्तेमाल ऐथलीट्स करते हैं) इन क्रीम्स और ऑइंटमेंट की शक्ति और ताकत अलग-अलग होती है। लिहाजा शिशु के लिए डॉक्टर जो उचित स्ट्रेंथ वाली क्रीम बताएं उसी का इस्तेमाल करें। गलत स्ट्रेंथ वाली क्रीम लगाने से स्किन डैमेज हो सकती है।
  • एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवा: इनमें वैसी दवाएं शामिल हैं जो स्किन के इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया करने के तरीके को बदल देती हैं।
  • खिलाई जाने वाली दूसरी दवाएं: इसमें एंटीथिस्टैमिन्स यानी एंटी-एलर्जी दवा शामिल होती है ताकि वैसे बच्चे जिन्हें एक्जिमा की वजह से खुजली अधिक हो रही हो वे रात के समय आराम से सो पाएं। अगर स्किन पर होने वाला चकत्ता बैक्टीरिया से संक्रमित है तो उसे कंट्रोल करने के लिए एंटीबायोटिक्स आदि।
  • कई और तरह के इलाज: फोटोथेरेपी जिसमें यूवी लाइट से इलाज किया जाता है। कई बार एक्जिमा से प्रभावित त्वचा पर गीला कपड़ा भी रखा जाता है ताकि स्किन में होने वाली इरिटेशन को कम किया जा सके और पानी में मिलाकर ब्लीच सॉलूशन से स्नान कराना भी इलाज का एक तरीका है।

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एक्जिमा का इलाज करने या इससे बचने के लिए अपने शिशु की स्किन को रुखी-सूखी या खुजलीदार होने से बचाएं और उन कारणों को दूर करें जिस वजह से एक्जिमा हो सकता है। लिहाजा पैरंट्स इन बातों का ध्यान रखें:

  • नवजात शिशु या बच्चों को गर्म नहीं गुनगुने पानी से नहलाएं लेकिन बहुत ज्यादा देर तक नहीं बल्कि सिर्फ 5 या 10 मिनट तक। इस दौरान बिना सेंट वाला सौम्य साबुन या बिना साबुन वाले क्लीन्जर का इस्तेमाल करते हुए शिशु को नहलाएं। इसके बाद त्वचा को अच्छे से सुखाएं और फिर क्रीम या ऑइंटमेंट लगाएं।
  • अपने डॉक्टर से इस बारे में जरूर पूछें कि शिशु में खुजली को कंट्रोल करने के लिए क्या नहलाते वक्त ओटमील में भिगोए हुए प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं।
  • शिशु को वैसे कॉटन कपड़े पहनाएं जो सॉफ्ट हों और जिनसे स्किन आसानी से सांस ले पाए। पॉलियेस्टर और ऊनी कपड़ों से स्किन में इरिटेशन हो सकती है।
  • शिशु को बहुत ज्यादा अतितप्त (ओवरहीट) करने से बचाएं क्योंकि ऐसा होने से एक्जिमा फिर से भभक सकता है (फ्लेयर-अप)
  • शिशु को जहां तक संभव हो खूब सारा पानी पिलाएं। इससे भी स्किन में मॉइश्चर यानी नमी को बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • आपके घर में अगर एलर्जी पैदा करने वाले तत्व जैसे- पराग, फफूंदी या तंबाकू का धुंआ हो तो उससे शिशु को पूरी तरह से दूर रखें।
  • स्ट्रेस यानी तनाव की वजह से भी एक्जिमा काफी गंभीर हो सकता है। लिहाजा जहां तक संभव हो बच्चे के स्ट्रेस को कम करने की कोशिश करें।

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